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भगवती-६/-/५/२९५
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[२९५] इन आठ कृष्णराजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक विमान हैं । यथा- अर्चि, अर्चिमाली, वैरोचन, प्रभंकर, चन्द्राभ, सूर्याभ, शुक्राभ, और सुप्रतिष्ठाभ । इन सबके मध्य में रिष्टाभ विमान है ।
भगवन् ! अर्चि विमान कहाँ है ? गौतम ! अर्चि विमान उत्तर और पूर्व के बीच में हैं । भगवन् ! अर्चिमाली विमान कहाँ है ? गौतम ! अर्चिमाली विमान पूर्व में है । इसी क्रम से सभी विमानों के विषय में जानना चाहिए यावत्-हे भगवन् ! रिष्ट विमान कहाँ बताया गया है ? गौतम ! रिष्ट विमान बहुमध्यभाग, में बताया गया है ।
इन आठ लोकान्तिक विमानों में आठ जाति के लोकान्तिक देव रहते हैं । यथा
[२९६] सारस्वत, आदित्य, वह्नि, वरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, आग्नेय और (बीच में) नवमा रिष्टदेव ।।
[२९७] भगवन् ! सारस्वत देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! सारस्वत देव अर्चि विमान में रहते हैं । भगवन् ! आदित्य देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! आदित्य देव अर्चिमाली विमान में रहते हैं । इस प्रकार अनुक्रम से रिष्ट विमान तक जान लेना चाहिए कि भगवन् ! रिष्ट देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! रिष्ट देव रिष्ट विमान में रहते हैं ।
भगवन् ! सारस्वत और आदित्य, इन दो देवों के कितने देव हैं और कितने सौ देवों का परिवार कहा गया है ? गौतम ! सारस्वत और आदित्य, इन दो देवों के सात देव हैं और इनके ७०० देवों का परिवार है । वह्नि और वरुण, इन दो देवों के १४ देव स्वामी हैं और १४ हजार देवों का परिवार कहा गया है । गर्दतोय और तुषित देवों के ७ देव स्वामी हैं और ७ हजार देवों का परिवार कहा गया है । शेष तीनों देवों के नौ देव स्वामी और ९०० देवों का परिवार कहा गया है ।।
[२९८] प्रथम युगल में ७००, दूसरे युगल में १४,००० तीसरे युगल में ७,००० और शेष तीन देवों के ९०० देवों का परिवार है ।
[२९९] भगवन् ! लोकान्तिकविमान किसके आधार पर प्रतिष्ठित हैं ? गौतम ! लोकान्तिकविमान वायुप्रतिष्ठित हैं । इस प्रकार-जिस तरह विमानों का प्रतिष्ठान, विमानों का बाहल्य, विमानों की ऊँचाई और विमानों के संस्थान आदि का वर्णन जीवाजीवाभिगमसूत्र के देव-उद्देशक में ब्रह्मलोक की वक्तव्यता में कहा है, तदनुसार यहाँ भी कहना चाहिए; यावत्हाँ, गौतम ! सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व यहाँ अनेक बार और अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुके हैं, किन्तु लोकान्तिकविमानों में देवरूप में उत्पन्न नहीं हुए ।
भगवन् ! लोकान्तिकविमानों में लोकान्तिकदेवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? गौतम ! आठ सागरोपम की स्थिति कही गई है । भगवन् ! लोकान्तिकविमानों से लोकान्त कितना दूर है ? गौतम ! लोकान्तिकविमानों से असंख्येय हजार योजन दूर लोकान्त कहा गया है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है;' ।
| शतक-६ उद्देशक-६ [३००] भगवन् ! पृथ्वीयां कितनी हैं ? गौतम ! सात हैं । यथा-रत्नप्रभा यावत् तमस्तमःप्रभा । रत्नप्रभापृथ्वी से लेकर अधःसप्तमी पृथ्वी तक, जिस पृथ्वी के जितने आवास