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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
कितने काल तक सापचय रहते हैं ? ( गौतम !) सोपचय के पूर्वोक्त कालमानानुसार सापचय का काल जानना । और वे सोपचय-सापचय कितने काल तक रहते हैं ? ( गौतम !) सोपचय का जितना काल कहा है, उतना ही सोपचय-सापचय का काल जानना । नैरयिक कितने काल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं ।
सभी एकेन्द्रिय जीव सर्व काल (सर्वदा) सोपचय - सापचय रहते हैं । शेष सभी जीव सोपचय भी हैं, सापचय भी हैं, सोपचय - सापचय भी हैं और निरुपचय-निरपचय भी हैं । इन चारों का काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट, आवलिका का असंख्यातवाँ भाग है । अवस्थितों (निरुपचय-निरपचय) में व्युत्क्रान्तिकाल (विरहकाल) के अनुसार कहना चाहिए ।
भगवन् ! सिद्ध भगवान् कितने काल तक सोपचय रहते हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आठ समय तक । और सिद्ध भगवान्, निरुपचय-निरपचय कितने काल तक रहते हैं ? ( गौतम !) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' ।
शतक - ५ उद्देशक- ९
[२६४] उस काल और उस समय में... यावत् गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर से इस प्रकार पूछा
भगवन् ! यह 'राजगृह' नगर क्या है ? क्या पृथ्वी राजगृह नगर कहलाता है ?, अथवा क्या जल राजगृहनगर कहलाता है ? यावत् वनस्पति क्या राजगृहनगर कहलाता है ? जिस प्रकार 'एजन' नामक उद्देशक में पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनि जीवों की (परिग्रह-विषयक) वक्तव्यता कही गई है, क्या उसी प्रकार यहाँ भी कहनी चाहिए ? यावत् क्या सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य, राजगृह नगर कहलाता है ? गौतम ! पृथ्वी भी राजगृहनगर कहलाती है, यावत् सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य भी राजगृहनगर कहलाता है ।
भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! पृथ्वी जीव- (पिण्ड ) है और अजीव - (पिण्ड) भी है, इसलिए यह राजगृह नगर कहलाती है, यावत् सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य भी जीव हैं, और अजीव भी हैं, इसलिए ये द्रव्य (मिलकर) राजगृहनगर कहलाते हैं । हे गौतम! इसी कारण से पृथ्वी आदि को राजगृहनगर कहा जाता है ।
[२६५] हे भगवन् ! क्या दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है ? हाँ, गौतम ! दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है । भगवन् ! किस कारण से दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है ? गौतम ! दिन में शुभ पुद्गल होते हैं अर्थात् शुभ पुद्गल - परिणाम होते हैं, किन्तु रात्रि में अशुभ पुद्गल अर्थात् अशुभपुद्गल परिणाम होते हैं । इस कारण से दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है ।
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भगवन् ! नैरयिकों के (निवासस्थान में) उद्योत होता है, अथवा अन्धकार होता है । गौतम ! नैरयिक जीवों के (स्थान में ) उद्योत नहीं होता, अन्धकार होता है । भगवन् ! किस कारण से नैरयिकों के (स्थान में) उद्योत नहीं होता, अन्धकार होता है ? गौतम ! नैरयिक जीवों के अशुभ पुद्गल और अशुभ पुद्गल परिणाम होते हैं, इस कारण से ।