________________
१३१
भगवती-५/-/६/२४४
स्वादिम दे करके । इस प्रकार जीव अशुभ दीर्घायु के कारणभूत कर्म बांधते हैं ।
भगवन् ! जीव शुभ दीर्घायु के कारणभूत कर्म किन कारणों से बांधते हैं ? गौतम ! प्राणिहिंसा न करने से, असत्य न बोलने से, और तथारूप श्रमण या माहन को वन्दना, नमस्कार यावत् पर्युपासना करके मनोज्ञ एवं प्रीतिकारक अशन, पान, खादिम और स्वादिम देने से । इस प्रकार जीव शुभ दीर्घायु का कारणभूत कर्म बांधते हैं ।
[२४५] भगवन् ! भाण्ड बेचते हुए किसी गृहस्थ का वह किराने का माल कोई अपहरण कर ले, फिर उस किराने के सामान की खोज करते हुए उस गृहस्थ को, हे भगवन् ! क्या आरम्भिकी क्रिया लगती है, या पारिग्रहिकी क्रिया लगती है ? अथवा मायाप्रत्ययिकी, अप्रत्याख्यानिकी या मिथ्यादर्शन- प्रत्ययिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! ऊनको आरम्भिकी क्रिया लगती है, तथा पारिग्रहिकी, मायाप्रत्ययिकी एवं अप्रत्याख्यानिकी क्रिया भी लगती है, किन्तु मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् लगती है, और कदाचित् नहीं लगती । यदि चुराया हुआ सामान वापस मिल जाता है, तो वे सब क्रियाएँ अल्प हो जाती हैं ।
भगवन् ! किराना बेचने वाले गृहस्थ से किसी व्यक्ति ने किराने का माल खरीद लिया, उस सौदे को पक्का करने के लिए खरीददार ने सत्यंकार ( बयाना ) भी दे दिया, किन्तु वह (किराने का माल ) अभी तक ले जाया गया नहीं है; भगवन् ! उस भाण्डविक्रेता को उस किराने के माल से आरम्भिकी यावत् मिथ्यादर्शन- प्रत्ययिकी क्रियाओं में से कौन-सी क्रिया लगती है ? गौतम ! उस गृहपति को उस किराने के सामान से आरम्भिकी से लेकर अप्रत्याख्यानिकी तक चार क्रियाएँ लगती हैं । मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् लगती है और कदाचित् नहीं लगती । खरीददार को तो ये सब क्रियाएँ प्रतनु (अल्प ) हो जाती हैं । भगवन् ! किराना बेचने वाले गृहस्थ के यहाँ से यावत् खरीददार उस किराने के माल को अपने यहाँ ले आया, भगवन् ! उस खरीददार को उस किराने के माल से आरम्भिकी से लेकर मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी तक कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? और उस विक्रेता गृहस्थ को पांचों क्रियाओं में से कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? गौतम ! खरीददार को उस किराने के सामान से आरम्भिक से लेकर अप्रत्याख्यानिकी तक चारों क्रियाएँ लगती हैं; मिथ्यादर्शन- प्रत्ययिकी क्रिया की भजना है; विक्रेता गृहस्थ को तो ये सब क्रियाएँ प्रतनु (अल्प ) होती हैं । भगवन् ! भाण्ड - विक्रेता गृहस्थ से खरीददार ने किराने का माल खरीद लिया, किन्तु जब तक उस विक्रेता को उस माल का मूल्यरूप धन नहीं मिला, तब तक, हे भगवन् ! उस खरीददार को उस अनुपनीत धन से कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? उस विक्रेता को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? गौतम ! यह आलापक भी उपनीत भाण्ड के आलापक के समान समझना चाहिए । चतुर्थ आलापक- यदि धन उपनीत हो तो प्रथम आलापक, (जो कि अनुपनीत भाण्ड के विषय में कहा है) के समान समझना चाहिए । (सारांश यह है कि ) पहला और चौथा आलापक समान है, इसी तरह दूसरा और तीसरा आलापक समान है ।
भगवन् ! तत्काल प्रज्वलित अग्निकाय क्या महाकर्मयुक्त, तथा महाक्रिया, महाश्रव और महावेदना से युक्त होता है ? और इसके पश्चात् समय-समय में क्रमशः कम होता हुआबुझता हुआ तथा अन्तिम समय में अंगारभूत, मुर्मुरभूत और भस्मभूत हो जाता है क्या वह अग्निकाय अल्पकर्मयुक्त तथा अल्पक्रिया, अल्पाश्रव अल्पवेदना से युक्त होता है ? हाँ गौतम !