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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
प्राण, समस्त भूत, समस्त जीव और समस्त सत्त्व, एवंभूत (जिस प्रकार कर्म बांधा है, उसी प्रकार) वेदना वेदते हैं, भगवन् ! यह ऐसा कैसे है ? गौतम ! वे अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एवंभूत वेदना वेदते हैं, उन्होंने यह मिथ्या कथन किया है । हे गौतम ! मैं यों कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एवंभूत वेदना वेदते हैं और कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, अनेवंभूत वेदना वेदते हैं ।
___ 'भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! जो प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, जिस प्रकार स्वयं ने कर्म किये हैं, उसी प्रकार वेदना वेदते हैं, वे प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एवंभूत वेदना वेदते हैं किन्तु जो प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, जिस प्रकार कर्म किये हैं, उसी प्रकार वेदना नहीं वेदते वे प्राण, भूत, जीव और सत्त्व अनेवंभूत वेदना वेदते हैं । इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि कतिपय प्राण भूतादि एवम्भूत वेदना वेदते हैं और कतिपय प्राण भूतादि अनेवंभूत वेदना वेदते हैं ।
भगवन् ! नैरयिक क्या एवम्भूत वेदना वेदते हैं, अथवा अनेवम्भूत वेदना वेदते हैं ? गौतम ! नैरयिक एवम्भूत वेदना भी वेदते हैं और अनेवंम्भूत वेदना भी वेदते हैं । भगवन ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! जो नैरयिक अपने किये हुए कर्मों के अनुसार वेदना वेदते हैं वे एवम्भूत वेदना वेदते हैं और जो नैरयिक अपने किये हुए कर्मों के अनुसार वेदना नहीं वेदते; वे अनेवम्भूत वेदना वेदते हैं । इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त संसारी जीवों के समूह के विषय में जानना चाहिए ।
[२४३] भगवन् ! जम्बूद्वीप में, इस भारतवर्ष में, इस अवसर्पिणी काल में कितने कुलकर हुए हैं ? गौतम ! सात । इसी तरह तीर्थकरों की माता, पिता, प्रथम शिष्याएँ, चक्रवर्तियों की पाताएँ, स्त्रीरत्न, बलदेव, वासुदेव, वासुदेवों के माता-पिता, प्रतिवासुदेव आदि का कथन जिस प्रकार ‘समवायांगसूत्र' अनुसार यहाँ भी कहना 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । यह इसी प्रकार है ।
| शतक-५ उद्देशक-६ । [२४४] भगवन् ! जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म किस कारण से बांधते हैं ? गौतम ! तीन कारणों से जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म बाँधते हैं-(१) प्राणियों की हिंसा करके, (२) असत्य भाषण करके और (३) तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक, अनेषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम दे कर । जीव अल्पायुष्कफल वाला कर्म बांधते हैं ।
भगवन् ! जीव दीर्घायु के कारणभूत कर्म कैसे बांधते हैं ? गौतम ! तीन कारणों से जीव दीर्घायु के कारणभूत कर्म बांधते हैं-(१) प्राणातिपात न करने से, (२) असत्य न बोलने से, और (३) तथारूप श्रमण और माहन को प्रासुक और एषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम-देने से । इस प्रकार से जीव दीर्घायुष्क के कर्म का बन्ध करते हैं ।
भगवन् ! जीव अशुभ दीर्घायु के कारणभूत कर्म किन कारणों से बांधते हैं ? गौतम ! प्राणियों की हिंसा करके, असत्य बोल कर, एवं तथारूप श्रमण और माहन की हीलना, निन्दा, खिंसना, गर्दा एवं अपमान करके, अमनोज्ञ और अप्रीतिकार अशन, पान, खादिम और