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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
यावत् जानता और देखता है । यह हुआ 'सुन कर' का अर्थ ।
[२३३] भगवन् वह 'प्रमाण' क्या है ? कितने हैं ? गौतम ! प्रमाण चार प्रकार का कहा गया है । वह इस प्रकार है-(१) प्रत्यक्ष, (२) अनुमान, (३) औपम्य (उपमान) और (४) आगम । प्रमाण के विषय में जिस प्रकार अनुयोगद्वारसूत्र में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी जान लेना यावत् न आत्मागम, न अनन्तरागम, किन्तु परम्परागम तक कहना ।
[२३४] भगवन् क्या केवली मनुष्य चरम कर्म को अथवा चरम निर्जरा को जानतादेखता है ? हाँ, गौतम ! केवली चरम कर्म को या चरम निर्जरा को जानता-देखता है । भगवन् ! जिस प्रकार केवली चरमकर्म को या चरमनिर्जरा को जानता-देखता है, क्या उसी तरह छद्मस्थ भी...यावत् जानता-देखता है ? गौतम ! जिस प्रकार 'अन्तकर' के विषय में आलापक कहा था, उसी प्रकार ‘चरमकर्म' का पूरा आलापक कहना चाहिए ।
२३५] भगवन् ! क्या केवली प्रकृष्ट मन और प्रकृष्ट वचन धारण करता है ? हाँ, गौतम ! धारण करता है । भगवन् ! केवली जिस प्रकार के प्रकृष्ट मन और प्रकृष्ट वचन को धारण करता है, क्या उसे वैमानिक देव जानते-देखते हैं ? गौतम ! कितने ही (वैमानिक देव उसे) जानते-देखते हैं, और कितने ही नहीं जानते-देखते । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गए हैं, मायीमिथ्यादृष्टिरूप से उत्पन्न
और अमायीसम्यग्दृष्टिरूप से उत्पन्न । जो मायी-मिथ्यादृष्टिरूप से उत्पन्न हुए हैं, वे नहीं जानतेदेखते तथा जो अमायी सम्यग्दृष्टिरूप से उत्पन्न हुए हैं, वे जानते-देखते हैं । भगवन् यह किस कारण से कहा जाता है कि अमायी सम्यग्दृष्टि वैमानिक देव यावत् जानते-देखते हैं ? गौतम ! अमायी सम्यग्दृष्टि वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-अनन्तरोपपन्नक और परम्परोपपन्नक । इनमें से जो अनन्तरोपपन्नक हैं, वे नहीं जानते-देखते; किन्तु जो परम्परोपपन्नक हैं, वे जानते-देखते हैं।
भगवन् ! परम्परोपपन्नक वैमानिक देव जानते-देखते हैं, ऐसा कहने का क्या कारण है? गौतम ! परम्परोपपत्रक वैमानिक देव दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त और अपर्याप्त । इनमें से जो पर्याप्त हैं, वे इसे जानते-देखते हैं; किन्तु जो अपर्याप्त वैमानिक देव हैं, वे नहीं जानतेदेखते । इसी तरह अनन्तरोपपन्नक-परम्परोपपन्नक, पर्याप्त-अपर्याप्त, एवं उपयोगयुक्त उपयोगरहित इस प्रकार के वैमानिक देवों में से जो उपयोगयुक्त वैमानिक देव हैं, वे ही जानते-देखते हैं । इसी कारण से ऐसा कहा गया है कि कितने ही वैमानिक देव जानते-देखते हैं, और कितने ही नहीं जानते-देखते ।
[२३६] भगवन् ! क्या अनुत्तरोपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, यहाँ रहे हुए केवली के साथ आलाप और संलाप करने में समर्थ हैं ? गौतम ! हाँ, समर्थ हैं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, जो अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण (व्याख्या) पूछते हैं, उस का उत्तर यहाँ रहे हुए केवली भगवान् देते हैं । इस कारण से यह कहा गया है कि अनुत्तरौपपातिक देव यावत् आलाप-संलाप करने में समर्थ हैं । भगवन् ! केवली भगवान् यहाँ रहे हुए जिस अर्थ, यावत् व्याकरण का उत्तर देते हैं, क्या उस उत्तर को वहाँ रहे हुए अनुत्तरौपपातिक देव जानतेदेखते हैं ? हाँ गौतम ! वे जानते-देखते हैं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से (कहा जाता है)