________________
भगवती-५/-/४/२२९
१२७
प्रकार की जो भी बातें हुई थीं, तुम्हें बताएँगे ।' तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर द्वारा इस प्रकार की आज्ञा मिलने पर भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दननमस्कार किया और फिर जिस तरफ वे देव थे, उसी ओर जाने का संकल्प किया ।
इधर उन देवों ने भगवान् गौतम स्वामी को अपनी ओर आते देखा तो वे अत्यन्त हर्षित हुए यावत् उनका हृदय प्रफुल्लित हो गया; वे शीघ्र ही खड़े हुए, फुर्ती से उनके सामने गए और जहाँ गौतम स्वामी थे, वहाँ उनके पास पहुँचे । फिर उन्हें यावत् वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार बोले-'भगवन् ! महाशुक्रकल्प से, महासामान नामक महाविमान से हम दोनों महर्द्धिक यावत् महानुभाग देव यहाँ आये हैं । हमने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दननमस्कार किया और मन से ही इस प्रकार की ये बातें पूछीं कि 'भगवन् ! आप देवानुप्रिय के कितने शिष्य सिद्ध होंगे यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेंगे ?' तब हमारे द्वारा मन से ही श्रमण भगवान महावीर स्वामी से पूछे जाने पर उन्होंने हमें मन से ही इस प्रकार का यह उत्तर दिया-'हे देवानुप्रियो ! मेरे सात सौ शिष्य सिद्ध होंगे, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेंगे ।' 'इस प्रकार मन से पूछे गए प्रश्न का उत्तर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा मन से ही प्राप्त करके हम अत्यन्त हृष्ट और सन्तुष्ट हुए यावत् हमारा हृदय उनके प्रति खिंच गया । अतएव हम श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार करके यावत् उनकी पर्युपासना कर रहे हैं।' यों कह कर उन देवों ने भगवान् गौतम स्वामी को वन्दन-नमस्कार किया और वे दोनों देव जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में वापस लौट गए।
[२३०] 'भगवन् !' इस प्रकार सम्बोधित करके भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना-नमस्कार किया यावत् पूछा-'भगवन् ! क्या देवों को 'संयत' कहा जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, यह देवों के लिए अभ्याख्यान है । भगवन् ! क्या देवों को ‘असंयत' कहना चाहिए ? गौतम ! यह अर्थ (भी) समर्थ नहीं है । देवों के लिए यह निष्ठुर वचन है । भगवन् ! क्या देवों को 'संयतासंयत' कहना चाहिए ? गौतम : यह अर्थ (भी) समर्थ नहीं है, यह असद्भूत वचन है । भगवन् ! तो फिर देवों को किस नाम से कहना चाहिए ? गौतम ! देवों को 'नोसंयत' कहा जा सकता है ।
[२३१] भगवन् ! देव कौन-सी भाषा बोलते हैं ? अथवा (देवों द्वारा) बोली जाती हुई कौन-सी भाषा विशिष्टरूप होती है ? गौतम ! देव अर्धमागधी भाषा बोलते हैं, और बोली जाती हुई वह अर्धमागधी भाषा ही विशिष्टरूप होती है।
[२३२] भगवन् ! क्या केवली मनुष्य संसार का अन्त करने वाले को अथवा चरमशरीरी को जानता-देखता है ? हाँ गौतम ! वह उसे जानता-देखता है । भगवन् ! जिस प्रकार केवली मनुष्य अन्तकर को, अथवा अन्तिमशरीरी को जानता-देखता है, क्या उसी प्रकार छद्मस्थ-मनुष्य जानता-देखता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, छद्मस्थ मनुष्य किसी से सुन कर अथवा प्रमाण द्वारा अन्तकर और अन्तिम शरीरी को जानता-देखता है ।
भगवन् ! सुन कर का अर्थ क्या है ? हे गौतम ! केवली से, केवली के श्रावक से, केवली की श्राविका से, केवली के उपासक से, केवली की उपासिका से, केवली-पाक्षिक से, केवलीपाक्षिक के श्रावक से, केवली-पाक्षिक की श्राविका से, केवलीपाक्षिक के उपासक से अथवा केवलीपाक्षिक की उपासिका से, इनमें से किसी भी एक से 'सुनकर' छद्मस्थ मनुष्य