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भगवती-५/-/३/२२३
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ही आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, जैसे कि या तो वह इस भव का ही आयुष्य वेदता है, अथवा पर भव का ही आयुष्य वेदता है । परन्तु जिस समय इस भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, उस समय परभव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन नहीं करता, और जिस समय परभव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, उस समय इस भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन नहीं करता । इस भव के आयुष्य का वेदन करने से परभव का आयुष्य नहीं वेदा जाता और परभव के आयुष्य का वेदन करने से इस भव का आयुष्य नहीं वेदा जाता । इस प्रकार एक जीव एक समय में एक ही आयुष्य का वेदन करता है; वह इस प्रकार या तो इस भव के आयुष्य का, अथवा परभव के आयुष्य का ।
[२२४] भगवन् ! जो जीव नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, क्या वह जीव यहीं से आयुष्य-युक्त होकर नरक में जाता है, अथवा आयुष्य रहित होकर जाता है ? गौतम ! वह यहीं से आयुष्ययुक्त होकर नरक में जाता है, परन्तु आयुष्यरहित होकर नरक में नहीं जाता । हे भगवन् ! उस जीव ने वह आयुष्य कहाँ बाँधा ? और उस आयुष्य-सम्बन्धी आचरण कहाँ किया ? गौतम ! उस (नारक) जीव ने वह आयुष्य पूर्वभव में बाँधा था और उस आयुष्यसम्बन्धी आचरण भी पूर्वभव में किया था । नैरयिक के समान यावत् वैमानिक तक सभी दण्डकों के विषय में यह बात कहनी चाहिए । भगवन् ! जो जीव जिस योनि में उत्पन्न होने योग्य होता है, क्या वह जीव, उस योनि सम्बन्धी आयुष्य बांधता है ? जैसे कि जो जीव नरक योनि में उत्पन्न होने योग्य होता है, क्या वह नरकयोनि का आयुष्य बांधता है, यावत् देवयोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव क्या देवयोनि का आयुष्य बांधता है ? हाँ, गौतम ! जो जीव जिस योनि में उत्पन्न होने योग्य होता है, वह जीव उस योनिसम्बन्धी आयुष्य को बाँधता है । जैसे कि नरक योनि में उत्पन्न होने योग्य जीव नरकयोनि का आयुष्य बांधता है, तिर्यञ्चयोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव, तिर्यञ्चयोनि का आयुष्य बांधता है, मनुष्ययोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव मनुष्ययोनि का आयुष्य बाँधता है यावत् देवयोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव देवयोनि का आयुष्य बांधता है । जो जीव नरक का आयुष्य बांधता है, वह सात प्रकार की नरकभूमि में से किसी एक प्रकार की नरकभूमि सम्बन्धी आयुष्य बांधता है । यथा-रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी का आयुष्य बांधता है । जो जीव तिर्यञ्चयोनि का आयुष्य बांधता है, वह पांच प्रकार के तिर्यञ्चों में से किसी एक प्रकार का तिर्यञ्च-सम्बन्धी आयुष्य बांधता है । यथा-एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनि का आयुष्य इत्यादि । तिर्यश्च के सभी भेदविशेष विस्तृत रूप से यहाँ कहने चाहिए । जो जीव मनुष्य-सम्बन्धी आयुष्य बांधता है, वह दो प्रकार के मनुष्यों में से किसी एक प्रकार के मनुष्य-सम्बन्धी आयुष्य को बांधता है, जो जीव देवसम्बन्धी आयुष्य को बांधता है, तो वह चार प्रकार के देवों में से किसी एक प्रकार का आयुष्य बांधता है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-५ उद्देशक-४ || [२२५] भगवन् ! छद्मस्थ मनुष्य क्या बजाये जाते हुए वाद्यों (के) शब्दों को सुनता है ? यथा-शंख के शब्द, रणसींगे के शब्द, शंखिका के शब्द, खरमुही के शब्द, पोता के शब्द, परिपीरिता के शब्द, पणव के शब्द, पटह के शब्द, भंभा के शब्द, झल्लरी के शब्द,