________________
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
यह इस रूप की वैक्रियशक्ति तो केवल शक्तिरूप है । किन्तु सम्प्राप्ति द्वारा उसने ऐसी विक्रिया की नहीं, करता नहीं और न भविष्य में करेगा ।
[१५६] भगवन् ! यदि देवेन्द्र देवराज शक्र ऐसी महान् कृद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्वणा करने से समर्थ है, तो आप देवानुप्रिय का शिष्य तिष्यक' नामक अनगार, जो प्रकृति से भद्र, यावत् विनीत था निरन्तर छठ-छठ की तपस्या से अपनी आत्मा को भावित करता हआ, पूरे आठ वर्ष तक श्रामण्यपर्याय का पालन करके. एक मास की संल्लेखना से अपनी आत्मा को संयुक्त करके, तथा साठ भक्त अनशन का छेदन कर, आलोचना और प्रतिक्रमण करके, मृत्यु के अवसर पर मृत्यु प्राप्त करके सौधर्मदेवलोक में गया है । वह वहाँ अपने विमान में, उपपातसभा में, देव-शयनीय में देवदूष्य से ढंके हुए अंगुल के असंख्यात भाग जितनी अवगाहना में देवेन्द्र देवराज शक्र के सामानिक देव के रूप में उत्पन्न हुआ है । फिर तत्काल उत्पन्न हुआ वह तिष्यक देव पांच प्रकार की पर्याप्तियों अर्थात्-आहार पर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, श्वासोच्छ्वास-पर्याप्ति और भाषामन–पर्याप्ति से पर्याप्तिभाव को प्राप्त हुआ । तब सामानिक परिषद् के देवों ने दोनों हाथों को जोड़कर एवं दसों अंगुलियों के दसों नखों को इकट्ठे करके मस्तक पर अंजलि करके जय-विजय-शब्दों से बधाई दी । इसके बाद वे इस प्रकार बोले-अहो ! आप देवानुप्रिय ने यह दिव्य देव-ऋद्धि, दिव्य देव-द्युति उपलब्ध की है, प्राप्त की है, और दिव्य देव-प्रभाव उपलब्ध किया है, सम्मुख किया है । जैसी दिव्य देव-ऋद्धि, दिव्य देव-कान्ति और दिव्य देवप्रभाव आप देवानुप्रिय ने उपलब्ध, प्राप्त और अभिमुख किया है, वैसी ही दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकान्ति और दिव्य देवप्रभाव देवेन्द्र देवराज शक्र ने उपलब्ध, प्राप्त और अभिमुख किया है; जैसी दिव्य वृद्धि दिव्य देवकान्ति और दिव्यप्रभाव देवेन्द्र देवराज शक्र ने लब्ध, प्राप्त एवं अभिमुख किया है, वैसी ही दिव्य देवकृद्धि, दिव्य देवकान्ति और दिव्य देवप्रभाव आप देवानुप्रिय ने उपलब्ध, प्राप्त और अभिमुख किया है । (अतः अग्निभूति अनगार भगवान् से पूछते हैं-) भगवन् ! वह तिष्यक देव कितनी महा ऋद्धि वाला है, यावत् कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ?
___ गौतम ! वह तिष्यक देव महाऋद्धि वाला है, यावत् महाप्रभाव वाला है । वह वहाँ अपने विमान पर, चार हजार सामानिक देवों पर, सपरिवार चार अग्रमहिषियों पर, तीन परिषदों पर, सात सैन्यों पर, सात सेनाधिपतियों पर एवं सोलह हजार आत्मरक्षक देवों पर, तथा अन्य बहुत-से वैमानिक देवों और देवियों पर आधिपत्य, स्वामित्व एवं नेतृत्व करता हुआ विचरण करता है । यह तिष्यकदेव ऐसी महाकृद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, जैसे कि कोई युवती युवा पुरुष का हाथ दृढ़ता से पकड़ कर चलती है, प्रथवा गाड़ी के पहिये की धुरी आरों से गाढ़ संलग्न होती है, इन्हीं दो दृष्टान्तों के अनुसार वह शक्रेन्द्र जितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है । हे गौतम ! यह जो तिष्यकदेव की इस प्रकार की विकुर्वणाशक्ति कही है, वह उसका सिर्फ विषय है, विषयमात्र है, किन्तु सम्प्राप्ति द्वारा कभी उसने इतनी विकुर्वणा की नहीं, करता भी नहीं और भविष्य में करेगा भी नहीं ।
___ भगवन् ! यदि तिष्यक देव इतनी महाकृद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा करने की शक्ति रखता है, तो हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के दूसरे सब सामानिक देव कितनी महाकृद्धि वाले हैं यावत् उनकी विकुर्वणाशक्ति कितनी है ? हे गौतम ! तिष्यकदेव के समान