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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
भगवन् ! क्या वह (वायुकाय) अपनी ही वृद्धि से गति करता है अथवा पर की वृद्धि से गति करता है ? गौतम ! वह अपनी कृद्धि से गति करता है, पर की वृद्धि से गति नहीं करता । जैसे वायुकाय आत्मवृद्धि से गति करता है, वैसे वह आत्मकर्म से एवं आत्मप्रयोग से भी गति करता है, यह कहना चाहिए ।
भगवन् ! क्या वह वायुकाय उच्छितपताका के आकार से गति करता है, या पतितपताका के आकार से गति करता है ? गौतम ! वह उच्छितपताका और पतित-पताका, इन दोनों के आकार से गति करता है । भगवन् ! क्या वायुकाय एक दिशा में एक पताका के समान रूप बना कर गति करता है अथवा दो दिशाओं में दो पताकाओं के समान रूप बना कर गति करता है ? गौतम ! वह एक पताका समान रूप बना कर गति करता है, किन्तु दो दिशाओं में दो पताकाओं के समान रूप बना कर गति नहीं करता ।
भगवन् ! उस समय क्या वह वायुकाय, पताका है ? गौतम ! वह वायुकाय है, किन्तु पताका नहीं है ।
__[१८६] भगवन् ! क्या बलाहक (मेघ) एक बड़ा स्त्रीरूप यावत् स्यन्दमानिका (म्याने) रूप में परिणत होने में समर्थ है ? हाँ गौतम ! समर्थ है । भगवन् ! क्या बलाहक एक बड़े स्त्रीरूप में परिणत हो कर अनेक योजन तक जाने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! समर्थ है ।
भगवन् ! क्या वह बलाहक आत्मवृद्धि से गति करता है या परकृद्धि से ? गौतम ! वह आत्मऋद्धि से गति नहीं करता, परऋद्धि से गति करता है । वह आत्मकर्म से और आत्मप्रयोग से गति नहीं करता, किन्तु परकर्म से और परप्रयोग से गति करता है । वह उच्छितपताका या पतित-पताका दोनों में से किसी एक के आकार से गति करता है ।
भगवन् ! उस समय क्या वह बलाहक स्त्री है ? हे गौतम ! वह बलाहक (मेघ) है, वह स्त्री नहीं है । इसी तरह बलाहक पुरुष, अश्व या हाथी नहीं है; भगवन् ! क्या वह बलाहक, एक बड़े यान के रूप में परिणत होकर अनेक योजन तक जा सकता है ? हे गौतम ! जैसे स्त्री के सम्बन्ध में कहा, उसी तरह यान के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए । परन्तु इतनी विशेषता है कि वह, यान के एक ओर चक्र वाला होकर भी चल सकता है और दोनों
ओर चक्र वाला होकर भी चल सकता है । इसी तरह युग्य, गिल्ली, थिल्लिं, शिविका और स्यन्दमानिका के रूपों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए ।
[१८७] भगवन् ! जो जीव, नैरयिकों में उत्पन्न होने वाला है, वह कौन-सी लेश्या वालों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जीव जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके काल करता है, उसी लेश्या वाले नारकों में उत्पन्न होता है । यथा-कृष्णलेश्यावालों में, नीललेश्या वालों में, अथवा कापोतलेश्यावालों में । इस प्रकार जो जिसकी लेश्या हो, उसकी वह लेश्या कहनी चाहिए । यावत् व्यन्तरदेवों तक कहना चाहिए ।
भगवन् ! जो जीव ज्योतिष्कों में उत्पन्न होने योग्य है, वह किन लेश्याओं में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके जीव काल करता है, वैसी लेश्यावालों में वह उत्पन्न होता है । जैसे कि तेजोलेश्यावालों में ।
___ भगवन् ! जो जीव वैमानिक देवों में उत्पन्न होने योग्य है, वह किस लेश्या वालों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके जीव काल करता है, उसी