________________
भगवती-३/-1८/२०१
११५
इन (देवों) के विषय में भी समझ लेना चाहिए । सुवर्णकुमार देवों पर-वेणुदेव, वेणुदालि, चित्र, विचित्र, चित्रपक्ष और विचित्रपक्ष (का); विद्युत्कुमार देवों पर-हरिकान्त, हरिसिंह, प्रभ, सुप्रभ, प्रभाकान्त और सुप्रभाकान्त (का); अग्निकुमार देवों पर अग्निसिंह, अग्निमाणव, तेजस् तेजःसिंह तेजस्कान्त और तेजःप्रभ; "द्वीपकुमार'-देवों पर-पूर्ण, विशिष्ट, रूप रूपांश, रूपकान्त
और रूपप्रभ; उदधिकुमार देवों पर-जलकान्त, जलप्रभ जल, जलरूप, जलकान्त और जलप्रभ; दिक्कुमार देवों पर-अमितगति, अमितवाहन, तूर्य-गति, क्षिप्रगति, सिंहगति और सिंहविक्रमगति; वायुकुमारदेवों पर-वेलम्ब, प्रभजन, काल, महाकाल, अंजन और रिष्ट; तथा स्तनितकुमारदेवों पर घोष, महाघोष, आवर्त, व्यावर्त, नन्दिकावर्त और महानन्दिकावर्त (का आधिपत्य रहता है) । इन सबका कथन असुरकुमारों की तरह कहना चाहिए ।
दक्षिण भवनपतिदेवों के अधिपति इन्द्रों के प्रथम लोकपालों के नाम इस प्रकार हैंसोम, कालपाल, चित्र, प्रभ, तेजस् रूप, जल, त्वरितगति, काल और आयुक्त ।
भगवन् ! पिशाचकुमारों पर कितने देव आधिपत्य करते हुए विचरण करते हैं ? गौतम ! उन पर दो-दो देव (इन्द्र) आधिपत्य करते हुए यावत् विचरते हैं । वे इस प्रकार हैं
२०२] (१) काल और महाकाल, (२) सुरूप और प्रतिरूप, (३) पूर्णभद्र और मणिभद्र, (४) भीम और महाभीम । तथा
[२०३] (५) किन्नर और किम्पुरुष, (६) सत्पुरुष और महापुरुष (७) अतिकाय और महाकाय, तथा (८) गीतरति और गीतयश । ये सब वाणव्यन्तर देवों के अधिपति-इन्द्र हैं ।
[२०४] ज्योतिष्क देवों पर आधिपत्य करते हुए दो देव यावत् विचरण करते हैं । यथा-चन्द्र और सूर्य ।
भगवन् ! सौधर्म और ईशानकल्प में आधिपत्य करते हुए कितने देव विचरण करते हैं ? गौतम ! उन पर आधिपत्य करते हुए यावत् दस देव विचरण करते हैं । यथा-देवेन्द्र देवराज शक्र, सोम, यम, वरुण और वैश्रमण, देवेन्द्र देवराज ईशान, सोम, यम, वरुण, और वैश्रमण । यह सारी वक्तव्यता सभी कल्पों (देवलोकों) के विषय में कहनी चाहिए और जिस देवलोक का जो इन्द्र है, वह कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक-३ उद्देशक-९ २०५] राजगृह नगर में यावत् श्रीगौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा-भगवन् ! इन्द्रियों के विषय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! इन्द्रियों के विषय पाँच प्रकार के कहे गए हैं । वे इस प्रकार हैं-श्रोत्रेन्द्रिय-विषय इत्यादि । इस सम्बन्ध में जीवाभिगमसूत्र में कहा हुआ ज्योतिष्क उद्देशक सम्पूर्ण कहना चाहिए ।
शतक-३ उद्देशक-१० [२०६] राजगृह नगर में यावत् श्री गौतम ने इस प्रकार पूछा-भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की कितनी परिषदाएँ कही गई हैं ? हे गौतम ! उसकी तीन परिषदाएँ कही गई हैं । यथा-शमिता, चण्डा और जाता । इसी प्रकार क्रमपूर्वक यावत् अच्युतकल्प तक कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' ।
शतक-३ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण