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भगवती-१/-/८/८५
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शतक-१ उद्देशक-८ [८५] राजगृह नगर में समवसरण हुआ और यावत्-श्री गौतम स्वामी इस प्रकार बोले-भगवन् ! क्या एकान्त-बाल (मिथ्यादृष्टि) मनुष्य, नारक की आयु बांधता है तिर्यञ्च की आयु बांधता है, मनुष्य की आयु बांधता है अथवा देव की आयु बांधता है ? तथा क्या वह नरक की आयु बांधकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है; तिर्यञ्च की आयु बांधकर तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है; मनुष्य की आयु बांधकर मनुष्यों में उत्पन्न होता है अथवा देव की आयु बांध कर देवलोक में उत्पन्न होता है ? गौतम ! एकान्त बाल मनुष्य नारक की भी आयु बाधता है, तिर्यञ्च की भी आयु बांधता है, मनुष्य की भी आयु बांधता है और देव की भी आयु बांधता है; तथा नरकायु बांध कर नैरयिकों में उत्पन्न होता है, तिर्यञ्चायु बांधकर तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है, मनुष्यायु बांध कर मनुष्यों में उत्पन्न होता है और देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है ।
[८६] भगवन ! एकान्तपण्डित मनुष्य क्या नरकायु बाँधता है ? या याक्त देवायु बांधता है ? और यावत् देवायु बांध कर देवलोक में उत्पन्न होता है ? हे गौतम ! एकान्तपण्डित मनुष्य, कदाचित् आयु बांधता है और कदाचित् आयु नहीं बांधता । यदि आयु बांधता है तो देवायु बांधता है, किन्तु नरकायु, तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु नहीं बांधता । वह नरकायु नहीं बांधने से नारकों में उत्पन्न नहीं होता, इसी प्रकार तिर्यञ्चायु न बांधने से तिर्यञ्चों में उत्पन्न नहीं होता और मनुष्यायु न बांधने से मनुष्यों में भी उत्पन्न नहीं होता; किन्तु देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! इसका क्या कारण है कि...यावत्-देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! एकान्तपण्ति मनुष्य की केवल दो गतियाँ कही गई हैं । वे इस प्रकार हैं-अन्तक्रिया और कल्पोपपत्तिका । इस कारण हे गौतम ! एकान्तपण्डित मनुष्य देवायु बांध कर देवों में उत्पन्न होता है ।
भगवन् ! क्या बालपण्डित मनुष्य नरकायु बांधता है, यावत्-देवायु बांधता है ? और यावत्-देवायु बांधकर देवलोक में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह नरकायु नहीं बांधता और यावत् देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! इसका क्या कारण है कि बालपण्डित मनुष्य यावत् देवायु बांध कर देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! बालपण्डित मनुष्य तथारूप श्रमण या माहन के पास से एक भी आर्य तथा धार्मिक सुवचन सुनकर, अवधारण करके एकदेश से विरत होता है, और एकदेश से विरत नहीं होता । एकदेश से प्रत्याख्यान करता है और एकदेश से प्रत्याख्यान नहीं करता । इसलिए हे गौतम ! देश-विरति और देशप्रत्याख्यान के कारण वह नरकायु, तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु का बन्ध नहीं करता और यावत्देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है । इसलिए पूर्वोक्त कथन किया गया है ।
[८७] भगवन् ! मृगों से आजीविका चलाने वाला, मृगों का शिकारी, मृगों के शिकार में तल्लीन कोई पुरुष मृगवध के लिए निकला हुआ कच्छ में, द्रह में, जलाशय में, घास आदि के समूह में, वलय में, अन्धकारयुक्त प्रदेश में, गहन में, पर्वत के एक भागवर्ती वन में, पर्वत पर पर्वतीय दुर्गम प्रदेश में, वन में, बहुत-से वृक्षों से दुर्गम वन में, 'ये मृग हैं', ऐसा सोच कर किसी मृग को मारने के लिए कूटपाश रचे तो हे भगवन् ! वह पुरुष कितनी क्रियाओं वाला कहा गया है ? हे गौतम ! वह पुरुष कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रियाओं