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भगवती-२/-/५/१२३
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परिचारणा नहीं करता, तथा अपनी देवियों को वश में करके या आलिंगन करके उनके साथ भी परिचारणा नहीं करता । परन्तु वह देव वैक्रिय से स्वयं अपने ही दो रूप बनाता है । यों दो रूप बनाकर वह, उस वैक्रियकृत देवी के साथ परिचारणा करता है । इस प्रकार एक जीव एक ही समय में दो वेदों का अनुभव करता है, यथा-स्त्री-वेद का और पुरुषवेद का । इस प्रकार परतीर्थिक की वक्तव्यता एक जीव एक ही समय में स्त्रीवेद और पुरुषवेद का अनुभव करता है, यहाँ तक कहना चाहिए । भगवन् ! यह इस प्रकार कैसे हो सकता है ?
हे गौतम ! वे अन्यतीर्थिक जो यह कहते यावत् प्ररूपणा करते हैं कि यावत् स्त्रीवेद और पुरुषवेद, उनका वह कथन मिथ्या है । हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बताता हूँ और प्ररूपणा करता हूँ कि कोई एक निर्ग्रन्थ जो मरकर, किन्हीं महर्द्धिक यावत् महाप्रभावयुक्त, दूरगमन करने की शक्ति से सम्पन्न, दीर्धकाल की स्थिति (आयु) वाले देवलोकों में से किसी एक में देवरूप में उत्पन्न होता है, ऐसे देवलोक में वह महती वृद्धि से युक्त यावत् दशों दिशाओं में उद्योत करता हुआ, विशिष्ट कान्ति से शोभायमान यावत् अतीव रूपवान् देव होता है । और वह देव वहाँ दूसरे देवों के साथ, तथा दूसरे देवों की देवियों के साथ, उन्हें वश में करके, परिचारणा करता है और अपनी देवियों को वश में करके उनके साथ भी परिचारणा करता है; किन्तु स्वयं वैक्रिय करके अपने दो रूप बनाकर परिचारणा नहीं करता, (क्योंकि) एक जीव एक समय में स्त्रीवेद और पुरुषवेद, इन दोनों वेदों में से किसी एक वेद का ही अनुभव करता है । जब स्त्रीवेद को वेदता है, तब पुरुषवेद को नहीं वेदता; जिस समय पुरुषवेद को वेदता है, उस समय स्त्रीवेद को नहीं वेदता । स्त्रीवेद के उदय होने से पुरुषवेद को नहीं वेदता और पुरुषवेद का उदय होने से स्त्रीवेद को नहीं वेदता । अतः एक जीव एक समय में स्त्रीवेद और पुरुषवेद, इन दोनों वेदों में से किसी एक वेद को ही वेदता है । जब स्त्रीवेद का उदय होता है, तब स्त्री, पुरुष की अभिलाषा करती है और जब पुरुषवेद का उदय होता है, तब पुरुष, स्त्री की अभिलाषा करता है ।
[१२४] भगवन् ! उदकगर्भ उदकगर्भ के रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक उदकगर्भ उदकगर्भरूप में रहता है ।
भगवन् ! तिर्यग्योनिकगर्भ कितने समय तक तिर्यग्योनिकगर्भरूप में रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट आठ वर्ष । भगवन् ! मानुषीगर्भ, कितने समय तक मानुषीगर्भरूप में रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट बारह वर्ष रहता है ।।
[१२५]भगवन् ! काय-भवस्थ कितने समय तक काय-भवस्थरूप में रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट चौबीस वर्ष तक रहता है ।
[१२६] भगवन् ! मानुषी और पञ्चेन्द्रियतिर्यश्ची योनिगत बीज योनिभूतरूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त ।
[१२७] भगवन् ! एक जीव, एक भव की अपेक्षा कितने जीवों का पुत्र हो सकता है ? गौतम ! एक जीव, एक भव में जघन्य एक जीव का, दो जीवों का अथवा तीन जीवों का, और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व जीवों का पुत्र हो सकता है ।
[१२८] भगवन् ! एक जीव के एक भव में कितने जीव पुत्ररूप में (उत्पन्न) हो सकते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो अथवा तीन जीव, और उत्कृष्ट लक्षपृथक्त्व जीव पुत्ररूप