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भगवती-२/-/५/१३१
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[१३१] उस काल और उस समय में पापित्यीय स्थविर भगवान् पांच सौ अनगारों के साथ यथाक्रम से चर्या करते हुए, ग्रामानुग्राम जाते हुए, सुखपूर्वक विहार करते हुए तुंगिका नगरी के पुष्पवतिकचैत्य पधारे । यथानुरूप अवग्रह लेकर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए वहाँ विहरण करने लगे । वे स्थविर भगवन्त जातिसम्पन्न, कुलसम्पन्न, बलसम्पन्न, रूपसम्पन्न, विनयसम्पन्न, ज्ञानसम्पन्न, दर्शनसम्पन्न, चारित्रसम्पन्न, लज्जासम्पन्न, लाघवसम्पन्न, ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी और यशस्वी थे । उन्होंने क्रोध, मान, माया, लोभ, निद्रा, इन्द्रियों और परीषहों को जीत लिया था । वे जीवन की आशा और मरण के भय से विमुक्त थे, यावत् वे कुत्रिकापण-भूत थे । वे बहुश्रुत और बहुपरिवार वाले थे ।
[१३२तदनन्तर तुंगिकानगरी के श्रृंगाटक मार्ग में, त्रिक रास्तों में, चतुष्क पथों में तथा अनेक मार्ग मिलते हैं, ऐसे मार्गों में राजमार्गों में एवं सामान्य मार्गों में यह बात फैल गई । परिषद् एक ही दिशा में उन्हें वन्दन करने के लिए जाने लगी।
जब यह बात तुंगिकानगरी के श्रमणोपासकों को ज्ञात हुई तो वे अत्यन्त हर्षित और सन्तुष्ट हुए, यावत् परस्पर एक दूसरे को बुलाकर इस प्रकार कहने लगे-हे देवानुप्रियो ! (सुना हे कि) भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्यानुशिष्य स्थविर भगवन्त, जो कि जातिसम्पन्न आदि विशेषण-विशिष्ट हैं, यावत् (यहाँ पधारे हैं) और यथाप्रतिरूप अवग्रह ग्रहण करके संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विहरण करते हैं । हे देवानुप्रियो ! तथारूप स्थविर भगवन्तों के नामगोत्र के श्रवण से भी महाफल होता है, तब फिर उनके सामने जाना, वन्दननमस्कार करना, उनका कुशल-मंगल पूछना और उनकी पर्युपासना करना, यावत्...उनसे प्रश्न पूछ कर अर्थ-ग्रहण करना, इत्यादि बातों के फल का तो कहना ही क्या ? अतः हे देवानुप्रियो! हम सब उन स्थविर भगवन्तों के पास चलें और उन्हें वन्दन-नमस्कार करें, यावत् उनकी पर्युपासना करें । ऐसा करना अपने लिए इस भव में तथा परभव में हित-रूप होगा; यावत् परम्परा से अनुगामी होगा ।
इस प्रकार बातचीत करके उन्होंने उस बात को एक दूसरे के सामने स्वीकार किया । स्वीकार करके वे सब श्रमणोपासक अपने-अपने घर गए । घर जाकर स्नान किया, फिर बलिकर्म किया । तदनन्तर कौतुक और मंगल-रूप प्रायश्चित्त किया । फिर शुद्ध, तथा धर्मसभा आदि में प्रवेश करने योग्य एवं श्रेष्ठ वस्त्र पहने । थोड़े-से, किन्तु बहुमूल्य आभरणों से शरीर को विभूषित किया । फिर वे अपने-अपने घरों से निकले, और एक जगह मिले । (तत्पश्चात) वे सम्मिलित होकर पैदल चलते हए तंगिका नगरी के बीचोबीच होकर निकले और जहाँ पुष्पवतिक चैत्य था, वहाँ आए । स्थविर भगवन्तों के पास पांच प्रकार के अभिगम करके गए । वे इस प्रकार हैं-(१) सचित्त द्रव्यों का त्याग करना, (२) अचित्त द्रव्यों का त्याग न करना-साथ में रखना; (३) एकशाटिक उत्तरासंग करना, (४) स्थविर-भगवन्तों को देखते ही दोनों हाथ जोड़ना, तथा (५) मन को एकाग्र करना ।
यों पांच प्रकार का अभिगम करके वे श्रमणोपासक स्थविर भगवन्तों के । निकट आकर उन्होंने दाहिनी ओर से तीन वार उनकी प्रदक्षिणा की, वन्दन-नमस्कार किया यावत् कायिक, वाचिक और मानसिक, इन तीनों प्रकार से उनकी पर्युपासना करने लगे । वे हाथपैरों को सिकोड़ कर शुश्रूषा करते हुए, नमस्कार करते हुए, उनके सम्मुख विनय से हाथ