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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को, यावत् जब तक उसमें एक प्रदेश भी कम हो, तब तक उसे, धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता । भगवन् ! तब धर्मास्तिकाय किसे कहा जा सकता है ? हे गौतम ! धर्मास्तिकाय में असंख्येय प्रदेश हैं, जब वे सब कृत्स्न, परिपूर्ण, निखशेष तथा एक शब्द से कहने योग्य हो जाएँ, तब उस को 'धर्मास्तिकाय' कहा जा सकता है । इसी प्रकार 'अधर्मास्तिकाय' के विषय में जानना चाहिए । इसी तरह आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय के विषय में भी जानना चाहिए । विशेष बात यह है कि इन तीनों द्रव्यों के अनन्त प्रदेश कहना चाहिए । बाकी पूर्ववत् ।
[१४४] भगवन् ! उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम वाला जीव आत्मभाव से जीवभाव को प्रदर्शित-प्रकट करता है; क्या ऐसा कहा जा सकता है ? हाँ, गौतम ! भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा है ? गौतम ! जीव आभिनिबोधिक ज्ञान के अनन्त पर्यायों, श्रुतज्ञान के अनन्त पर्यायों, अवधिज्ञान के अनन्त पर्यायों, मनःपर्यवज्ञान के अनन्त पर्यायों एवं केवलज्ञान के अनन्त पर्यायों के तथा मतिअज्ञान, श्रुत-अज्ञान, विभंग अज्ञान के अनन्तपर्यायों के, एवं चक्षु-दर्शन, अचक्षु-दर्शन, अवधि-दर्शन और केवलदर्शन के अनन्तपर्यायों के उपयोग को प्राप्त करता है, क्योंकि जीव का लक्षण उपयोग है । इसी कारण से, हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम वाला जीव, आत्मभाव से जीवभाव को प्रदर्शित करता है ।
[१४५] भगवन् ! आकाश कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! आकाश दो प्रकार का कहा गया है । यथा-लोकाकाश और अलोकाकाश ।
भगवन् ! क्या लोकाकाश में जीव हैं ? जीव के देश हैं ? जीव के प्रदेश हैं ? क्या अजीव हैं ? अजीव के देश हैं ? अजीव के प्रदेश हैं ? गौतम ! लोकाकाश में जीव भी हैं, जीव के देश भी हैं, जीव के प्रदेश भी हैं; अजीव भी हैं, अजीव के देश भी हैं और अजीव के प्रदेश भी हैं । जो जीव हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय हैं, द्वीन्द्रिय हैं, त्रीन्द्रिय हैं, चतुरिन्द्रिय हैं, पंचेन्द्रिय हैं और अनिन्द्रिय हैं । जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय के देश हैं, यावत् अनिन्द्रिय के देश हैं । जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं, यावत् अनिन्द्रिय के प्रदेश हैं । जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं यथा-रूपी और अरूपी । जो रूपी हैं, वे चार प्रकार के कहे गए हैं-स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्ध प्रदेश और परमाणुपुद्गल । जो अरूपी हैं, उनके पांच भेद कहे गए हैं । वे इस प्रकार-धर्मास्तिकाय, नोधर्मास्तिकाय का देश, धर्मास्तिकाय के प्रदेश, अधर्मास्तिकाय, नोअधर्मास्तिकाय का देश, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश और अद्धासमय है ।
[१४६] भगवन् ! क्या अलोकाकाश में जीव यावत् अजीवप्रदेश हैं ? गौतम ! अलोकाकाश में न जीव हैं, यावत् न ही अजीवप्रदेश हैं । वह एक अजीवद्रव्य देश है, अगुरुलघु है तथा अनन्त अगुरुलघु-गुणों से संयुक्त है; वह अनन्तभागःकम सर्वाकाशरूप है ।
[१४७] भगवन् ! धर्मास्तिकाय कितना बड़ा कहा गया है ? गौतम ! धर्मास्तिकाय लोकरूप है, लोकमात्र है, लोक-प्रमाण है, लोकस्पृष्ट है और लोक को ही स्पर्श करके कहा हुआ है । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय के