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भगवती-१/-/६/७१
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द्वारा जो क्रिया की जाती है, वह क्या कृत है अथवा अकृत है ? गौतम ! वह पहले की तरह जानना चाहिए, यावत्-वह अनुक्रमपूर्वक कृत है, अननुपूर्वक नहीं; ऐसा कहना चाहिए । नैरयिकों के समान एकेन्द्रिय को छोड़कर यावत् वैमानिकों तक सब दण्डकों में कहना चाहिए । एकेन्द्रियों के विषय में सामान्य जीवों की भांति कहा चाहिए ।
प्राणातिपात (क्रिया) के समान मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, यावत् मिथ्यादर्शन शल्य तक इन अठारह ही पापस्थानों के विषय में चौबीस दण्डक कहना । “हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है" यों कहकर भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार करके यावत् विचरते हैं ।
[७२] उस काल और उस समय में भगवान महावीर के अन्तेवासी रोह नामक अनगार थे । वे प्रकृति से भद्र, मृदु, विनीत, उपशान्त, अल्प, क्रोध, मान, माया और लोभ वाले, अत्यन्त निरहंकारता-सम्पन्न, गुरु समाश्रित, किसी को संताप न पहुँचाने वाले, विनयमूर्ति थे । वे रोह अनगार ऊर्ध्वजानु और नीचे की ओर सिर झुकाए हुए, ध्यान रूपी कोष्ठक में प्रविष्ट, संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए श्रमण भगवान् महावीर के समीप विचरते थे । तत्पश्चात् वह रोह अनगार जातश्रद्ध होकर यावत् भगवान् की पर्युपासना करते हुए बोलेभगवन् ! पहले लोक है, और पीछे अलोक है ? अथवा पहले अलोक और पीछे लोक है ? रोह ! लोक और अलोक, पहले भी है और पीछे भी हैं । ये दोनों ही शाश्वतभाव हैं । हे रोह ! इन दोनों में यह पहला और यह पिछला', ऐसा क्रम नहीं है । भगवन् ! पहले जीव
और पीछे अजीव है, या पहले अजीव और पीछे जीव है ? रोह ! लोक और अलोक के विषय में कहा है, वैसा ही यहां समझना । इसी प्रकार भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक, सिद्धि और असिद्धि तथा सिद्ध और संसारी के विषय में भी जानना ।
भगवन् ! पहले अण्डा और फिर मुर्गी है ? या पहले मुर्गी और फिर अण्डा है ? हे रोह ! वह अण्डा कहाँ से आया ? भगवन् ! वह मुर्गी से आया । वह मुर्गी कहाँ से आई ? भगवन् ! वह अण्डे से हुई । इसी प्रकार हे रोह ! मुर्गी और अण्डा पहले भी है, और पीछे भी है । ये दोनों शाश्वतभाव हैं । हे रोह ! इन दोनों में पहले-पीछे का क्रम नहीं है । भगवन् ! पहले लोकान्त और फिर अलोकान्त है ? अथवा पहले अलोकान्त और फिर लोकान्त है ? रोह ! इन दोनों में यावत् कोई क्रम नहीं है । भगवन् ! पहले लोकान्त है और फिर सातवाँ अवकाशान्तर है ? अथवा पहले सातवाँ अवकाशान्तर है और पीछे लोकान्तहै ? हे रोह ! इन दोनों में पहले-पीछे का क्रम नहीं है । इसी प्रकार लोकान्त और सप्तम तनुवात, घनवात, घनोदधि और सातवीं पृथ्वी के लिए समझना । इस प्रकार निम्नलिखित स्थानों में से प्रत्येक के साथ लोकान्त को जोड़ना यथा
[७३] अवकाशान्तर, वात, घनोदधि, पृथ्वी, द्वीप, सागर, वर्ष (क्षेत्र), नारक आदि जीव (चौबीस दण्डक के प्राणी), अस्तिकाय, समय, कर्म, लेश्या । तथा
[७४] दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, संज्ञा, शरीर, योग, उपयोग, द्रव्य, प्रदेश, पर्याय और काल।
[७५] क्या ये पहले हैं और लोकान्त पीछे है ? अथवा हे भगवन् ! क्या लोकान्त पहले और सर्वाद्धा (सर्व काल) पीछे है ? जैसे लोकान्त के साथ (पूर्वोक्त) सभी स्थानों का