________________ प्रसेनजित के स्थान पा 'पएस' लगाकर प्रदेशी के साथ इस कथा का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास किया है। पर प्रबल प्रमाण नहीं दिया है, अतः हमारी दृष्टि से वह कल्पना ही है। प्रसेनजित महावीर और बुद्ध के समसामयिक राजाओं में एक राजा था / संयुक्तनिकाय के अनुसार उसने एक यज्ञ के लिए 500 बैल, 500 बछड़े, 500 बछड़ियां, 500 बकरियां, 500 भेड़ आदि एकत्रित किये थे। बुद्ध के उपदेश से बिना मारे ही उसने यज्ञ का विसर्जन किया / 31 उसने बुद्ध से छोटे-बड़े अनेक प्रश्न पूछे, उसका संकलन संयुक्तनिकाय के 'कौशलसंयुत्त' में हुअा है। दीघनिकाय के अनुसार 32 राजा प्रदेशी प्रसेनजित के अधीन था और राजप्रश्नीयसूत्र के अनुसार जितशत्र प्रदेशी राजा का प्राज्ञाकारी सामन्त था। क्योंकि जैन प्रागमसाहित्य में कहीं भी प्रसेनजित राजा का नाम प्राप्त नहीं है। श्रावस्ती के राजा का नाम उपासकदशांग3 3 तथा राजप्रश्नीय 34 सूत्र में 'जितशत्रु' है। यों वाणिज्यग्राम, चम्पा, वाराणसी, प्रालम्बिया आदि अनेक नगरियों के राजा का नाम जितशत्र मिलता है। हमारी दष्टि से यह ऐसा गुणवाचक शब्द है, जिसका प्रयोग प्रत्येक राजा के लिए प्रयुक्त हो सकता है। यह बहुत कुछ सम्भव है कि प्रसेनजित का ही अपरनाम 'जितशत्रु जैन साहित्य में पाया हो। प्रसेनजित पहले वैदिक परम्परा का अनुयायी था / उसके पश्चात् वह तथागत बुद्ध का अनुयायी बना। वह जैनधर्म का अनुयायी नहीं था, इसलिए उसका जैन साहित्य में वर्णन न पाया हो, यह भी सम्भव है। श्रावस्ती के अनुयायी निर्ग्रन्थ धर्म पर पूर्ण आस्थावान् थे। गणधर गौतम और केशीकुमार का मधुर संवाद भी वहीं पर हुआ था 6 तथा अन्य अनेक प्रसंग भी भगवान महावीर के जीवन के साथ जुड़े हुए हैं / 37 प्रस्तुत प्रागम प्रस्तुत आगम दो भागों में विभक्त है। इसमें प्रथम विभाग में 'सूर्याभ' नामक देव श्रमण भगवान् महावीर के समक्ष उपस्थित होता है और वह विविध प्रकार के नाटकों का प्रदर्शन करता है। द्वितीय विभाग में राजा प्रदेशी का केशी कुमारश्रमण से जीव के अस्तित्व और नास्तित्व को लेकर मधर संवाद है। प्रस्तुत प्रागम का प्रारम्भ 'चामलकप्पा' नगरी के वर्णन से होता है। यह नगरी पश्चिम विदेह में श्वेताम्बिका के समीप थी। बौद्ध साहित्य में वुल्लिय राज्य की राजधानी 'अल्लकप्पा' थी। सम्भव है, अल्लकप्पा ही ग्रामलकप्पा हो। यह स्थान शाहाबाद जिले में 'मसार' और 'वैशाली' के बीच अवस्थित था। आमलकप्पा के बाहर 'अम्बसाल' नामक चैत्य था। वह चैत्य वनखण्ड से वेष्टित था। वहां के राजा का नाम 'सेय' और रानी का नाम 'धारिणी' था। भगवान महावीर का वहाँ पर शुभागमन हुआ और वे अम्बसाल चैत्य में 30. संयुक्तनिकाय-कौशलसंयुत्त, यअसुत्त, 3 / 119. 31. धम्मपद-अट्ठकथा, 5-1: Buddhist Legends, Vol. II, P. 104 ff. 32. दीघनिकाय--२०१० 33. उपासकदशांग-प्रध्ययन-९/१० 34. राजप्रश्नीयसूत्र 35. उपासकदशांगसूत्र--अध्ययन 1/ अ. 2, अ. 3, अ. 5 36. उत्तराध्ययन, अध्ययन-२३. गाथा-३ 37. (क) भगवतीसूत्र, शतक-१५वां / (ख) भगवतीसूत्र-शतक-२, उद्देशक-१ [21] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org