Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
भावबोधिनी टीका. प्रथमः समवायः
मृतवचनश्रवणं च नोपपद्यते । भगवया भगवता भगः-ज्ञानं सकलपदार्थविषयकम् (१), माहात्म्यम्-अनुपममहनीयमहिमसम्पन्नत्वम् (२), यशः-विविधानुकूलपतिकूलपरीषहोपसर्गसहनसमुद्भूता जगद्रक्षणप्रज्ञासमुत्था वा कीर्तिः (३) वैराग्यं= सर्वथा कामभोगाभिलाषराहित्यम्, यद्वा-क्रोधादिकषायनिग्रहलक्षणम् (४), मुक्तिःसकलकर्मक्षयलक्षणो मोक्षः (५), रूपं-सुरासुरनरनिकरहृदयहारि मौन्दर्यम् (६), वीर्यम्-अन्तरायान्तजन्यमनन्तसामर्थ्यम् (७), श्रीः-घनघातिकर्मपटल विघटनजनि तानन्तचतुष्टयलक्ष्मीः (८), धर्मः अपवर्गद्वारकपाटोद्घाटनसाधनं श्रुतचारित्रलक्षणस् से यह बात अपने आप लभ्य हो जाती है कि मैंने गुरु के समीप निवास किया है। क्यों कि गुरु के पासमें निवास किये विना उनके चरणकमलों का स्पर्शपूर्वक अभिवादन करना और उनके मुखारविन्द से निकले हुए वचनों का सुनना बन नहीं सकता है। 'भगवान्' पद में जो भग शब्द है उसके दश अर्थ हैं उनसे युक्त को भगवान् कहते हैं जैसे -ज्ञान-सकल पदार्थों को विषय करने वाले ज्ञान से २, माहात्म्य-अनुपम महनीय महिमा से२, यश-विविध अनुकूल एवं प्रतिकूल परीषह और उपसगों को सहन करने से उत्पन्न हुई कीर्ति से, अथवा जगत को रक्षण करने बाली प्रज्ञा से उत्पन्न हुई कीर्ति से३, वैराग्य-सर्वथा कामभोगों की अभिलाषा के त्याग से, अथवा क्रोधादिकषायों के निग्रह से४, मुक्ति-सकलकर्मक्षयरूप मुक्ति से५, रूप-सुर और असुरों के हृदय को हरण करने वाले सौन्दर्य से६, वीर्य-अन्तरायकर्म के अन्त होने से जनित अनन्त शक्ति से७, श्री-घनघातिक कर्मों क सर्वथा क्षय से जन्य अनतचतुष्टयरूप अन्तरंग लक्ष्मी से८ धर्म-मोक्ष के कपाट को उद्घाटन करने में साधन भूत છે. ગુરુની પાસે નિવાસ કર્યા વિના, તેમના ચરણકમલના સ્પર્શપૂર્વકનું અભિવાદન અને तमना भुमाविमाथी नितां यनानुं श्रवण १४५ सनतु नथी. "भगवान" પદમાં જે “મા” શબ્દ છે તેના દસ અર્થ છે,તે અર્થથી જે યુકત હોય તે ભગવાન કહેવાય छ. ते स स नीय प्रमाणे जे. [१] ज्ञान-सघणा पायाने विषय ४२नार ज्ञान. [२] "माहात्म्य"-अनुपम महनीय भडिमा. [3] यश-विविध अनुण मने प्रति५५ પરીષહ અને ઉપસર્ગો સહન કરવાથી પ્રાપ્ત થયેલી કીર્તિ અથવા જગતનું રક્ષણ १२नार प्रज्ञाथी उत्पन्न येली ति. [४] 'वैराग्य"-स। मलागानी ४२छाने। त्या ५५१पहिषायोनी निड. [५] "मुक्ति'-सस ना ६५३५ भुरित (६) रूप-सु२ ससुराना इयने २नार सोदय (७) वोर्य-२५-तराय माना नाश थवाथी पेही थयेस अनत शति (८) श्री घनघातिक-भनि। तदन क्षय थपाथी पेक्षा थयेस अनत यतु ८५३५ मत सभी (६) धर्म-मोक्षना Inti भार
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર