Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ द्वितीय अध्ययन : प्राथमिक भाव लोक का अर्थ है- क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषायों का समूह / यहाँ उस भाव लोक की विजय का अधिकार है। क्योंकि कषाय-लोक पर विजय प्राप्त करने वाला माधक काम-निवृत्त हो जाता है / और कामनियत्तमई खलु संसारा मुच्चई खिप्पं / -177 काम-- निवृत्त साधक, संसार से शीघ्र ही मुक्त हो जाता है 3 प्रथम उद्देशक में भाव लोक (संसार) का मूल-शब्दादि विषय तथा स्वजन आदि का स्नेह बताकर उनके प्रति अनासक्त होने का उपदेश है / पश्चात् द्वितीय उद्देशक में संयम में परति का त्याग, तृतीय में गोत्र आदि मदों का परिहार, चतुर्थ में परिग्रहमूढ की दशा, भोग रोगोत्पत्तिका मूल, पाशा-तृष्णा का परित्याग, भोग-विरति एवं पंचम उद्देशक में लोक निश्रा में विहार करते हुए संयम में उद्यमशीलता एवं छठे उद्देशक में ममत्व का परिहार प्रादि विविध विषयों का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है।' 3 इस अध्ययन में छह उद्देशक हैं। सूत्र संख्या 63 से प्रारम्भ होकर 105 पर समाप्त होती है। 1. प्राचाशंग गीलांक टीका, पत्रांक 74-75 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org