Book Title: Stree Charitra Part 01
Author(s): Narayandas Mishr
Publisher: Hariprasad Bhagirath
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // श्रीः॥ स्त्रीचरित्र भाषा. - प्रथम भाग. लखीमपुर ( अवध ) निवासीपं• नारायणप्रसाद मिश्रलिखित. जिसमें स्त्रियों और पुरुषोंके सुधारनिमित्त मन बहलानेके मिस : - दुष्टा व सुभगा नियोंके चरित्र और प्रेमसरिता .. ... प्रवाहरूप अतुलं आनन्द दर्शाया है. / वही. हरिप्रसाद भगीरथजीने मुंबईमें नेटिव ओपिनियन "प्रेसमें मुद्रित कराय प्रगट किया. चैत्र संवत् 1976; शके 1842. / -AC.Guriratnasuri M.S Jun.Gun AaradhakTrust. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका श्लोकः। * राज्ञश्च चित्तं कृपणस्य वित्तं मनोरथं दुर्जनमानसस्य / स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं देवो न जानाति कुतो मनुष्यः॥ राजाका चित्त, कृपणका वित्त (घन ), दुर्जन मनुष्यके मनका मनोरथ, स्त्रियोंका चरित्र, मनुष्यका भाग्य, देवभी नहीं जानताहै, तो . मनुष्यका क्या कहना. यह "स्त्रीचरित्र" नाम पुस्तक स्त्रियों और पुरुषोंको मन बहलाने के निमित्त लिखी गई है. केवल. मन बहलानाहीं नहीं, किन्तु इसको पटकर दुष्ट स्त्रियोंके चरित्रसे सुशील रियों और सज्जनोंको बचना चाहिये. इस पुस्तक के लेख में यंत्र तंत्र उपदेश लिखे गये हैं. इस कारण यह पुस्तक 'रसिक जनोंके मनको प्रसन्न करनेवाली है. इसके द्वितीय भागमें पतिव्रता त्रियों और वीर वीर महारानियोंके चरित्र लिखे जायेंगे. कि जिस्से मियोंका बहा उपकार होगा. इस पुस्तकका सर्वाधिकार स्वर्गीय पंडित हरिप्रसाद भगीरथजीके पुस्तकालयाध्यक्ष वृजवष्ठम हरिप्रसादजीको दिया है। पं० नारायणप्रसादजी मिश्र। PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun.Gun Aaradhak Trust Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरिप्रसाद भगीरथजीके जगत्प्रसिद्ध पुस्तकालयमें विक्रयार्थ ग्रन्थ. हमारे पुस्तकालयमें वेद, वेदान्त, पुराण, इतिहास, धर्मशास्त्र, व्याकरण, न्याय, मीमांसा, वैशेषिक, सांख्य, योग, काव्य, कोष, अलंकार, नाटक, चंपू , भाण, प्रहसन, ज्योतिष, वैद्यक तथा प्रकीर्ण सांप्रदायिक विषयके संस्कृत ग्रंथ और हिन्दी भाषाके पूर्वोक्त विषयोंके सभी ग्रंथ तथा शालोपयोगी हिन्दी व अंग्रेजीकी वहुती पुस्तकें अत्यन्त शुद्धताके साथ सुपुष्ट सचिकण कागजपर सुपाच्य अक्षरोंमें छापकर विक्रयार्थ प्रस्तुत हैं. विशेष प्रशंसा करने से स्या ? स्वयं प्रतीति हो जायगी. यदि पुस्तकोंके नाम व मल्य आदि विशेष विषय जाननेकी इच्छा हो तो आधआनेका टिकट भेजकर हमारे पुस्तकाल यका "बड़ा सूचीपत्र " मंगाइये और जिन महाशयोंको किसी पुस्तककी . आवश्यकता हो वे निम्नलिखित पतेपर पत्र भेजकर मंगालेवें. पुस्तकोंके मिलनेका ठिकाना हरिप्रसाद भगीरथजी, ... कालिकादेवीरोद-रामबाढी-मुंबई. P.P.AC..Gunratnasuri M. ..JunGuh AaradhakTrust Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपोद्घात. कईवर्षों से हमारा विचार था कि, कोई ऐसी पुस्तक / (अपनी लेखनीसे लिवकर प्रकाशित करें जो स्त्रियोंको हितकारी हो. परन्तु सावकाश न होनेके कारण हम नहीं (लिखसके / हालमें मुम्बईनगरस्थ श्रीयुत पण्डित हरि प्रसाद भगीरथजीके प्राचीन पुस्तकालयाध्यक्षकी ओरसे एक आज्ञापत्र आया कि, आप स्त्रियोंके चरित्रकी एक // पुस्तक लिखकर भेजिय, तब उस आज्ञापत्रको पढकर , - हम बहुत प्रसन्न हुए / क्योंकि हमारा चित्त पहलेहीसे / ऐसी पुस्तक लिखनेके लिये उत्कण्ठित होरहाथा, इम- / कारण पत्र पढ़तेही विचारमें पडे कि, किस ढमे, - यह पुस्तक लिखना प्रारम्भ किया जाय विचार करते mutanesenter P.P.AC, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपोद्धात. करते स्मरण आया कि, एक पुस्तक त्रियाचरित्र नामक छपचुकी है. जिसमें दुष्टस्त्रियों के चरित्र लिखे गये हैं, किसी पतिव्रतास्त्रीका चरित्र उसमें नहीं लिखा / जान पड़ता है कि, उसके कर्ताने त्रिसाचरित्र शब्दका यही अर्थ निकाला, और स्त्रियोंके छल कपटकोही त्रियाचरित्र / मान लिया है. कदाचित यही हो तो कुछ आश्चर्य नहीं, / क्योंकि 'सर्वे सर्व न जानंति' सबकोई सबबात को नहीं जानतेहैं और प्रायः मनुष्योंके ध्यानमें अनेक शब्दोंका - अर्थ एकही प्रकारका अँच जाताहै / यही समझकर हमने / इस पुस्तकका नाम “स्त्रीचरित्र" रख्खा और स्त्रियों के - दुश्चरित्र और सच्चरित्र, इन दोनों प्रकारके चरित्रोंको -लिखना उचित समझा तथा दोनों प्रकारके चरित्र लिखनेसे पुस्तक बहुत बड़ी हो जाने के कारण बहुतेरे मनुष्य अधिक मूल्य नहीं दे सकेंगे। यह समझकर हमने इस पुस्तकको प्रथम भाग, और द्वितीय भाग, ऐसे दो भागोंमें 'विभक्त किया है, तहां प्रथम भागकी एकही जिल्दमें दो खंड हैं, पूर्वार्द्ध और उत्तराई, पूर्वाद्धों दुष्ट स्त्रियों Jun Gun Aaradhak Trust Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___उपोद्धात. दुश्चरित्र लिखे हैं, और उत्तरार्द्धमें एक सुन्दरी नामक स्त्रीका सच्चरित्र लिखकर एक होलिकानिर्णय” नामक प्रहसन लिखा है / इसप्रकार प्रथम भागकी समाप्ती हुई है. द्वितीय भागमें भी पूर्वाद्ध और उत्तरार्द्ध नामक दोखंड होंगे. पूर्वार्द्ध में कुछ पतिव्रताओंके संक्षिप्त चरित्र और उत्तरार्द्धमें भरतखंडकी विख्यात वीर महारानियोंके चरित्र यथार्थ रीतिसे लिखेंगे / क्योंकि इस पुस्तकका जैसा नाम है वैसाही गुण इसमें होना चाहिये. इससे पृथक् स्त्रियोंके धर्म और स्त्रियोंको अनेक प्रकारकी शिक्षा प्राप्त होनेके निमित्त 'स्त्रीसुखबोधिनी' नामक पुस्तक लिखकर प्रकाशित की जायगी और कन्याओं की शिक्षाके निमित्त 'कन्यासुबोधिनी' नामक पुस्तक लिखेंगे। अब इस (स्त्री चरित्र नामक ) पुस्तकका प्रारंभ करते हैं. तहाँ प्रथम एक व्याख्यान लिखते हैं. इस व्याख्यानके प्रभावका कुछभी अंश यदि पाठकोंके चित्तपर अंकित हो जायगा तो बहुत ही उपकार होगा. P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र--पूर्वार्द्ध. * मंगलाचरणम् * आर्या / सिन्दूरारुणभालंकालंविघ्नस्यशर्मगणपालम् - मोदकपूरितवदनंसत्सुखसदनंनमस्यामः।। पुष्पिताग्रा / वदनातिनिजितेन्दुबिम्बा ___चरणप्रान्त्यनताऽमरीकदम्बा। पुरुषोत्तमनागराऽवलम्बा जगदम्बा वितनोतु मङ्गलानि॥२॥ दोहा-एकरदन करिवरवदन, लम्बोदर गणराज / मदनदहनसुत गौसिंप्रेय, बसहु हृ 'P.P.AC.Gunratna Jun Gun Aaradhak Trust. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरटा। भाषाटीकासहित. दय मम आज // 3 // कमलनयन कलिकुलकदन, कमलाप.ते कर्तार / नारायण करुणा करहु, कामद कान्ह कुमार // 4 // श्रीगोविंद गोपाल, गोपीगोपबिहाररत / करहुअनन्दकृपाल,गोकुलेशगोकुलसुखद मनहर / सुन्दर सुजानपर मन्द मुसक्यान पर बांसुरीकी तानपर ठौरन ठगीरहै / सूरति विशाल पर उरवन मालपर, खंजनसीचालपर खौरन खगीरहै / भौंहैं धनु मैनपर लोने युग नैनपर शुद्धरसबैनपरवाहिद पगारहै / चंचलसै तननपर साँवरे वदनपर मूरति मदनपर लगन लगीरहै // 6 // मत्तगयन्द / अम्ब विलम्ब करौ कतहौं, जगदम्ब प्रलम्ब P.P. Ac. Gunratnaguri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust . Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . स्त्रीचरित्र' भुजाबल तोरे / क्यों न करौ भवफन्द अफन्द, अहौं फरफन्द विषैरस बोरे // दास चहै पदपंकज वास, करै नित आस रहै कर जोरे।मातु जप सरना तव नाम, वसै नित मूरति सो मन मोरे॥७॥ राधिकाछन्द / हे जननिसकल दुखहरणि, शरणि मैं तेरी / जनजानिद्रवहु महराणि, करहु जनि देरी॥ जगदम्ब अम्ब अवलम्ब, एकही तेरो। रिपुत्रास नाशकार, दास हृदय कर डेरो॥८॥ दोहा-श्रीगुरु चरण मनाय अरु, मातुसर स्वति ध्याय // स्त्रीचरित्र वर्णन करत, नारायण मनलाय // 9 // प. जाहि जे -नारिनर, अरु समझें धरिध्यान। कुटनिनके छलसोबचें, होवें चतुर सुजान // 10 // 6. P.P.AC..Gunratnasuri M.S. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. / अथ ग्रन्थारम्भ। / तत्रादौ ग्रन्थकारका व्याख्यान / जगन्नियन्ता परमात्माने जो जो वस्तुएँ मनुष्यों के उपकार निमित्त निर्माण की हैं, उन सबोंमें बुद्धि श्रेष्ठ है. बुद्धि के प्रतापसे पृथ्वीके अन्य सक्जीवोंमें मनुष्य उत्तम है. बुद्धिसेही छोटेशरीरवाला मनुष्य हाथी, गेंडा, चीता, तथा सिंह आदिकोंको अपने वशमें करलेताहै. और बडे बडे पर्वतोंको उल्लंघन करके समुद्रके पार हो जाता है. पृथिवीकी परिक्रमा करताहै. तथा प्रबलतर बेगवती नदियों के ऊपर और नीचे सेतु व पंथ निर्माण करता है. जीवरहित धूम्रसे सजीव अश्वादिकोंका असाध्य काम करता है. बाष्पीयशकट (आगबोट, रेलगाडी आदि) द्वारा छह महीने के पंथको छह. दिनमें सैकडों मनुष्यों सहित ते करताहै. विद्युत् और पवन शक्तिके बलसे संपूर्ण भूमंडलका समाचार एकदिनमें पासकताहै. इसी प्रकार अनेक कार्य जिनका होना असम्भवसा जान पडता है उन कार्योंको मनुष्य अपनी P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रः बुद्धिके प्रतापसे सुखपूर्वक साधन कर लेताहै. परन्तु जैसे सेनाहीन राजा अपना कार्य सुखसे साधन नहीं कर सकता, तैसेही विद्याहीन बुद्धि अपना पूर्ण प्रभाव नहीं दिखलासकती. इसकारण बुद्धिको निर्मल करने और बढाने के निमित्त विद्याही एक अनन्य उपाय है. - इस भूमण्डलमें हजारों वर्ष पहले जो जो बुद्धिमान् महात्मा वास करतेथे उनकी उक्ति उनका मनोगत भाव हमलोग विद्या के बलसे इस प्रकार जानसकतेहैं, कि जैसे पिताके अभिप्रायोंको पुत्र जानसकताहै. वस्तुतः इस जगतमें जिसने सम्यक् प्रकार विद्योपार्जन नहीं किया, - वह ज्ञानचक्षुसे हीन है, विद्याके सौन्दर्यको विद्वान ही देख सकता है. अविद्वान् नहीं देखसकता. जिसने विद्याकी ज्योति देखीहै वह अपने पुत्र कन्या और स्त्रियोंको अन्धकागवृत नयन रखनेकी इच्छा कभी न करे . बहुत लोग अपनी अपनी स्त्रियोंको नानाविधिरत्नालंकारोंसे भूषित करते हैं. परन्तु मुक्ति और ज्ञानका साधन विद्यारूप परमरत्नसे उनको वंचित रखते हैं। यह बहुतही अनुचित वर्ताव है. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Gurg Aaradhak. Trus Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. विद्यासाधितया नारी भूषयाऽलंकृता यदा // तदा विभूषितां मन्ये नतु हेना विभूषितामा __ अर्थ-जब जो स्त्री विद्यारूपीरत्नसे अलंकृत होती है तब उसको रत्नोंसे विभूषितं मानना. सुवर्णके आभूषणोंसे विभूषित स्त्रीको शोभावाली नहीं जानना // 1 // और जो लोग यह समझते हैं कि स्त्रियों के शरीरमें रिपु बलवान हैं, उनको विद्यासे औरभी सहायता प्राप्त होगी. यह समझना बड़ा भ्रम है. ऐसे लोग केवल चिट्ठी पत्री लिखनेकी सामर्थ्यको विद्या समझते है. यद्यति इतने अभ्याससेभी कुछ सांसारिक सहायता होती है, तथापि इसको प्रकृत विद्योपार्जन नहीं कहसकते. जबतक सत् असत्का विवेक न हो, धर्माधर्मका परिज्ञान न हे, आत्मा सांसारिक तुच्छ भावोंसे विमुक्त न हो, तबतक उसको विद्याप्राप्त नहीं कहसकते. विद्यारूपी वृक्ष सबसे ऊंचा है. इस वृक्षका व्याकरण स्कंध है, भूगोल, खगोल, और देश, लोक, व राज्यवृत्तान्त, स्मृति, दर्शन, पुराण, शास्त्र, चिकित्सा, शिल्पविद्या, अर्थविद्या, अंकविद्या, पदार्थविद्या, प्राणिविद्या, इत्यादि इस वृक्षकी शाखायें हैं P.P: Ac. Gunratnasuri M:S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. E mainemam छन्द, काव्य, अलंकारप्रभृति, इसकी लतायें हैं; पाठइसकी मूल है; ब्रह्मविद्या इसका शिखर है, लिखना इसका सार है, अभ्यास इसका वल्कल है, असंख्य वस्तुयें इसके पत्र है, ज्ञान इसका फल है और संस्कृत, बंगाली, हिन्दी, मराठी, गुजराती, अरबी,फारसी, अंग्रेजी, ग्रीक, लाटिन, हिब्रू इत्यादि भाषा इसकी जाति है. जबतक मनुष्य इस विटपके शाखाओं पर्यन्त आरोहण नहीं करता, तबतक इसका फल इसे क्यों कर प्राप्त होसकता है ? इस संसाररूप वनमें कामादि व्यालोंसे बचनेका उपाय विद्यारूप उच्च वृक्षही है, जिस ज्ञानसे कामादिकोंका दमन होताहै, वह ज्ञान विद्यासेही प्राप्त होताहै. इसकारण क्या स्त्री, क्या पुरुष सबको विद्योपार्जन करना चाहिये. बहुत लोग यह समझते हैं कि, विद्या सीखना केवल जीविकाके निमित्त है, यह उनकी भूल हैजीविका चाहे इसका आनुषंगिक फल हो, परन्तु मुख्य फल इसका ज्ञानप्राप्तिही है, यदि कोई प्रश्न करे किविद्याका जितना विस्तार आपने वर्णन किया, उतना सीखनेका कन्याओंको अवसर कहाँ है ? तो उनको PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * भाषाटीकासहित. समझना चाहिये कि, जैसे कोई फलप्रेप्सु मनुष्य दोचार शाखाओंमें चढनेसेही यथेष्ट फल पासकता है, वृक्षकी प्रत्येक शाखाऑपर परिभ्रमण करनेकी उसे बहुत आवश्यकता नहीं रहती, तैसेही विद्याका मध्य प्राप्त होनेसे अर्थात ज्ञानवानोंकी लिखित कोई पुस्तक हो, उसको अनर्गल पढकर उसके तात्पर्यको समझलेनेसे आवश्यक ज्ञान प्राप्त होजाता है. प्रायः देखाजाता है कि, स्त्री पुरुषोंकी सारी आयु संसारकी तुच्छ चेष्टाओंमें व्यतीत होजाती है तो इसलोक, परलोकके सहायक विद्यारत्नके लाभके निमित्त. चार पांच वर्ष व्यय करना क्या कुछ अधिक है ? बिना विद्याध्यन किये स्त्रियोंके स्वाभाविक दोषोंमें न्यूनता नहीं आसकती, स्त्रियों के स्वाभाविक दोष गोस्वामी तुलसीदासजीने रामायण, लिखे हैं कि, चौक-नारि स्वभाव सत्य कवि कहहीं। औगुण आठ सदा उर रहहीं॥ साहस. अनृत, चपलता. माया। भय, अविवेक, अशांच, अदाया // Ac. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - स्त्रीचरित्र. तथा नीतिशास्त्र भी लिखाहै कि, 'अन्तं साहसं माया मात्सर्यमतिलुब्धता। निर्गुणत्वमशौचत्वं स्त्रीणां दोषाःस्वभावजाः - अर्थ-पैठ, साहस माया, ईर्ष्या, अतिलोभपन, निर्गुणता और अपवित्रता, ये स्त्रियोंके स्वभाविक -दोष हैं // 2 // तथाचोक्तम् / विनयं राजपुत्रेभ्यः पण्डितेभ्यः सुभाषितम्। अनृतंबूतकारेभ्यःस्त्रीभ्यःशिक्षेतकैतवम् // 3 // - अर्थ-राजपुत्रोंसे सुशीलता, पण्डितोंसे मृदुवचन, जुवारियोंसे असत्य भाषण और स्त्रियोंसे छल (कपट) सीखे // 3 // / तथाच / स्त्रीणां द्विगुणअहारो लज्जा चापि चतुर्गुणा। साहसं षड्गुणं चैव कामश्चाष्टगुणः स्मृतः॥४ अर्थ-पुरुषोंसे स्त्रियोंका आहार दूना, लज्जा चौ. Jun Gun Aaradhak Trust .PP.AC.:Guriratnasuri M.S. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. 13 गुणी, साहस छह गुणा और काम आठ गुणा अधिक. होता है / / 4 // तथाच / जल्पन्ति साईमन्येन पश्यन्त्यन्यं सविभ्रमाः॥ ह्रदये चिन्तयन्त्यन्यं न स्त्रीणामेकतोरतिः॥५॥ अर्थ-दूसरेक साथ भाषण करती हैं, दूमरेको विलास पूर्वक देखती हैं, और हृदयमें दूसरेही की चिन्ता करती हैं, स्त्रियों की प्रीति एकसे नहीं रहती // 5 // _ स्त्रियोंके मूर्ख रहनसे दोषोंकी वृद्धि होजाती है, कि जिससे अंग प्रत्यंगमें दुष्टता भरजाती है, वह दुष्टः ता सबके दुःखका हेतु हो जाती है. मुखशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च // दुःखितैःसंप्रयोगेण पण्डितोप्यवसीदति // 6 // अर्थ-मूर्ख शिष्यको पढानेसे, अधमा नारीके पालनेसे और दुःखियोंके साथसे, पण्डित जनभी दुःख पाते हैं // 6 // P.PiAc. Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14. स्त्रीचरित्र. - अतः स्त्रियोंको विद्या अवश्य पढना चाहिये. विद्या के प्रभावसे ज्ञान उत्पन्न होनेके कारण स्त्रियोंका स्वभाव उत्तम होजाता है, और अपना पातिव्रत धर्म जानकर सर्वदा सुखी रहसकती हैं, क्योंकि पतिव्रताका धर्मही स्त्रियों के लिये सर्वस्व है. कोकिलानां स्वरो रूपं स्त्रीणांरूपं पतिव्रतम् विद्यारूपं कुरूपाणांक्षमा रूपं तपस्विनाम्७ - अर्थ-कोकिलाओंकी शोभा स्वर, स्त्रियोंकी शोभा 'पातिव्रत, कुरूपोंकी शोभा विद्या और तपस्वियोंकी शोआ क्षमा है // 7 // बाहुवीर्य बलं राज्ञो ब्राह्मणो ब्रह्मविदली। रूपयौवनमाधुर्यं स्त्रीणां बलमनुत्तमम्॥८।। - अर्थ-राजाका बल बाहुवीर्य है, और ब्राह्मण ब्रह्मज्ञानी, व वेदपाठी बली होता है, स्त्रियोंकी सुन्दरता, तरुणता और मधुरता अति उत्तम बल है / / 8 // साभार्यायाशुचिर्दक्षा साभार्यायापतिव्रता / साभार्यायापतिप्रीतासाभार्यासत्यवादिनी९ jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S: : Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. अर्थ-वही स्त्री है जो पवित्र और चतुर है, वही स्त्री है जो पतिव्रता है, वही स्त्री है जो पतिकी प्यारी है, तथा वही स्त्री है जो सत्य बोलनेवाली है // 10 // ये गुण स्त्रियोंमें विद्या के प्रभावसे होसकते हैं, और विद्याकेही प्रभाव पतिव्रतधर्मको जानकर पतिव्रता होती हैं. उत्तमस्वभाववाली स्त्री यथायोग्य सबसे प्रेम करती है और अपने पतिको देवस्वरूप मानती है. एक -युवतीका मन चंचल होते देखकर दूसरी युवती उसको समझाने लगी कि, सखि साहसिकं प्रेम दूरादपि विराजते // चकोरीनयनद्वन्द्वमानन्दयति चन्द्रमा।। - अर्थ-हे साखि ! साहसिक प्रेम दूरसेही शोभा पाता है और सर्वदा स्थिर रहता है. देखो ! चन्द्रमाको दूरहीसे देखकर चकोरी अपने दोनों नेत्रों को तृप्त करती है और आनन्दित रहती है // 9 // स्त्रियों को योग्य है कि सन्ध्या समयसे अपने चंचल Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Guriratnasuti M.S. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 स्त्रीचरित्र. मनको रोककर अपने पति के चरणोंमें लगावें क्योंकि दिन व्यतीत हो जानेपर सन्ध्या समय स्त्रियोंके शरीरमें कामदेव धीरे धीरे प्रवेश होने लगता है, यथा-- परिपतति पयोनिधौ पतंगः सरसिरहामुदरेषु मत्तभंगः उपवनतरुकोटरे विहंगो युवतिजनेषु शनैः शनैरनंगः // 11 // अर्थ-दिनगत होनेपर पतङ्ग ( सूर्य ) पयोनिधि. (समुद्र ) में धीरे 2 गिरते हैं. अर्थत् अस्त होते हैंकमलोंके उदरमें, मतवाले भौरे धीरे 2 गिरते हैं. उपवन वृक्षोंके कोटरमें विहङ्ग (पक्षी) शनैः 2 गिरते हैंएवं युवतियोंमें अनङ्ग ( कामदेव ) शनैः शनैः प्रवेश करता है // 11 // . स्त्रियोंके हाव भाव कटाक्षमें एक यह अद्भत गुण है। कि पुरुषका मन शीघ्र उनकी ओर दौड जाता है. P.P.AC.Gunratnasuri: M.S. n Aaradhak Trust Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. सुजानशाहने एक वेश्यापर मोहित होकर उसको अपनी सेवामें रखना चाहा, तब रायप्रवीनने समय पा-- कर शिक्षाकी भाँति यह दोहा सुनाया कि, दोहा-विनती रायप्रवीनकी, सुनिये शाह सुजान / जूठी पतरी खात हैं, वारी वायस श्वान // 11 // ... अनन्तर एक दिन उसी वेश्याका नृत्य हो रहाथा और वह वेश्या अपने मनोहर गान व हावभावकटाक्षों से शाह सुजानको मोहित कर रही थी उस समय पवनके. झकोरेसे वेश्याका अंचल ऊपरको उडा तो उसके दोनों स्तन जो अधिक आयु होनेके कारण नीचेको झुक रहेथे उन स्तनों को देखकर शाह सुजान मुसक्याकर रायप्रवीनसे बोले कि, कविजी ! इस वेश्याकी प्रशंसा कुछ कहिये. तब रायप्रवीनने यह दोहा कहा कि, दोहा-पहलेसुरपुरवशकियो,पुनि नरलोकमहान।अव पताल वश करनको, नीचे कियो पयान // 12 // A PP.AC.Gunratnastri.M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . स्त्रीचरित्रइन दोनों दोहोंको सुनकर रायप्रवीनके अभिप्राय. को समझकर शाह सुजानने उस वेश्याको यथायोग्य पारितोषिक देकर विदा किया. उस दिनसे फिर कभी किसी वेश्याका नाम तक नहीं लिआ.. ___एक वासुदेव नामका कामीजन अपनी स्त्रीके वशमें -होकर सुसरालमें जाय रहा, वहां अपना अनादर देखकर - वासुदेवने कहावत बनाई कि, पहले तो हम वासुदेव थे अब हम हो गये बसुआ। पीठी ऊपर पांव धरके ऊपर चढ गइ ससुआ। औरोंको तो बूरा पूरी हमको दीन्हें सतुआ।जल्दी जारे वसुआ मेरेबी निलाउर महुआ // 13 // . - कुटिलास्त्रियोंकी भांति बहु तेरे दुष्ट मनुष्य स्त्रियोंपर . - छोटीही अवस्थासे कटाक्ष करने लगते हैं. यथायथास्यात् कुचयोःसमुन्नतिस्तथा तथा लोचनमेति वक्रताम्॥ अहो सहन्ते बत नो परोदयं निसर्गतोन्तर्मलिनाह्यसाधवः।।१४॥ PP.AC. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित... 19 . अर्थ-जैसे जैसे इसके कुच उठते जाते हैं, तैसे तैसे . कामीजन कटाक्ष चलाते हैं. अहो! असाधुजन पराया उदय नहीं सह सकते. क्योंकि असाधुजन स्वभावसेही मलिन अन्तःकरणवाले होते हैं // 14 // - बहुतेरे असाधु जन स्वभावसेही दुष्ट होते हैं. के किसी भांति सुधारे नहीं सुधर सकते. दो०-कोइलाहोय न ऊजरो, सौ मन साबुन लाय // मरखको समझाइये, ज्ञानगाँठको जाय // 15 // बिनाकुचनकी कामिनी, बिनमूछनको ज्वान // ये तीनो फीके लगें, बिना सुपारी पान॥१६॥त्रियाचरितमें जो फंसत,सो खोवत निजमान॥ जगमें निन्दा करत सब, लगत कलेजे बान // 17 // सोमानरहै तौ प्रान, भानहीन जीवन वृथा राखौ दृढकरिमान, जोजीवन च हौसुखद॥ 18 // दोहा-बडे बडे पंडितगुणी,नारीके वश होय॥ P.P. Ac. Gunratnasuri M's Jun Gun Aaradhak Trust Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र वनवनमें भटकत फिरें, अन्त प्राण दै खोय॥ 19 // नारीनार गंभीर जल, इनकी थाह नहोय। जो जाके मनमें वसे, जानिसकै नहिं कोय॥ 20 ॥धर्म धीर जवहीं तलक, जबतक लखै ननार / नारिनैनके लगतही, साहस देत विसार // 21 // जाके तन लागे नहीं, नारिदृगनके बान / तबहीतक वह बनिरह्यो, पंडितचतुर सुजान // 22 // जबतक तन लागे नहीं, चतुर नारि गतीर // तवहीं तक जानै नहीं, विरही मनकी पीर // 23 // नारि नैनकी मारते. बचे न कोऊ वीर। बडे बडे योधागिरे, लगतनारि हगती॥२४॥ गोरोतनशशिसमयघर,नवलवयसि वोबाला दृगखंजनअंजनभरे,तिनपरडोरालाल॥२६॥ कुचकुमकुममें लसतअति,कामकलिक पुंज। मृगमदके लवलेशते, भँवर करत बहु गुज P.P.AC..GunratnasureM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. ॥२६॥कमल कलीसम कर ललित,जंघ केलसम देख / उदर नाभिगम्भीर अति, त्रिवली भँवरीरेख // 27 // ललित कपोल सुगोलयुग, कछुक अरुणताधारराविरहीके मन वश करन, राखे नारिसँभार॥ 28 // कुंदकलीसम अ. घरयुग, रही सुअतिछविछायासुघड दशनकी हँसनिलखि, कामीकाम जगाय // 29 // भृकुटि धनुषसुरराजको,ता बिचवेंदीश्याम। ताहि लखतको वीर अस. जाहि न वेधै काम।। 30 // सजी पीतसारी सरस, जुगल जंघकह घेर।सो जनुकंचन खंभसों मिली मालती फेर॥ 31 ॥पहिरेही मणिकिंकिणी, छीनसुकटिछबिलाय। सो शंगार मंडप विधि, वदनमालती सुहाय // 32 // गोरे कर 'कारी चुरी, चुनिपहिराई तो। लिपटरही नागिनिमनौ, चन्दन बिरवाय आय // 33 // P.P. Ac. Gunratn Juri Gun Aaradhak Trust Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रकुचउतंग कुंचकि कसी, भंवर करत गुंजार / मानौं बैबुरजी सरस, रची आय करतार 34 . यह स्त्रियोंके शरीरकी शोभा है, इप्त शौभाको देख. कर कामीजन मोहित होजाते हैंदोहा-आशक बनत छिनालके, जो बेहूदी नार॥मालिक अपना छोंडके, करती कैयो 'यार // 35 // कहा न अबला करसकै, कहा न सिंधुसमाय॥कहा न पावको जरै, कहा काल नहि खाय // 36 // पुरुषोंको योग्य है कि, दुष्ट स्त्रियोंके कुसंगसे सर्वदा बचे रहें; क्योंकि-- दोहा काम जात निजदेहसे, दाम गांठसे जात। कुलके उत्तम धर्मसब,सो तुरन्त नशि जात॥३७॥ यासों दुष्टा नारिको, भूलि करौ तथा Ac. Gunratnasuri M.S, Jun Gun Andhak Trus Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . भाषाटीकासहित. 23 नहिं संग। नारायण निज बुद्धिसे, समुझि करौ सत्संग // 38 // और स्त्रियोंको योग्य है कि, अपने धर्मके अनुसार वर्ताव करें और विद्या पढकर ज्ञान प्राप्त करें. स्त्रियोंके ध. म कर्म हम 'स्त्रीसुखबोधिनी' नामक पुस्तकमें लिखेंगे.. और कन्याओंको भलीभाँति शिक्षा प्राप्त होनेके निमित्त. 'कन्या सुबोधिनी' नामक पुस्तक हम लिखेंगे.. * अब हम आगे व्यभिचारिणियोंके चरित्र लिखते हैं.. इन चरित्रों को पढकर शीलवती स्त्रियोंको योग्य है कि ऐसी व्यभिचारिणीयों के कुसंगसे अपनेको बचाये रहे और पुरुषोंको योग्य है कि, इन चरित्रोंको पढ़कर व्यभिचारि-- णियोंके दुश्चरित्रोंसे अपनी रक्षा करते रहैं, तथा अपनी और कुलकी स्त्रियोंको ऐसी व्यभिचारिणियोंकी संगतिसे सर्वदा बचाये हैं. ____ अब हम व्याख्यान समाप्त करके व्यभिचारिणियोंके चरित्र लिखेंगे. तहाँ प्रथम एक साध्वी स्त्रीके सत्संगका वृत्तांत लिखते हैं. एक दिन हम अपने पुस्तकालयमें बैठेहुये उपरोक्त व्याख्यान लिखरहे थे इतनेमें एक स्त्री सा P.P.AC..GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ andramdas. .. स्त्रीचरित्रधुवेश धारे गेरुआ वस्त्र पहरे, कमंडलु हाथमें लिये, छछ पुस्तकोंकी गठरी कांसमें दबाये सन्मुख आ खडीहुई. हम उसकी तेजोमयी मूर्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुये. और उससे बैठनेको कहा, बैठकर उसने हमसे पूंछा, कि क्या आपकाही नाम पंडित नारायणप्रसाद है ? हमने कहा, 'हां' तब वह साध्वी कहने लगी कि हमने अनेक संस्कृत व भाषा पुस्तकोंमें आपका नाम पढाहै. आपने अनेक पुस्तकें रची होंगी. कृपाकरके कोई हमारे योग्य पुस्तक हो तो दीजिये. हमने पूंछा कि किस विषयकी पुस्तक चाहिये ? तो उसने कहा कि भक्तिपक्षकी पुस्तक हमको प्रिय है. यह सुनकर हमने 'सुदामाचरित्र' नामक छोटीसी पुस्तक दी उसको पढकर वह साध्वी बहुत प्रसन्न हुई और बोली कि, अपने कोई बडी भी पुस्तक भक्तिपक्षकी बनाई है ? तो हमने / अपने धर्मपुत्र सीतारामसे श्रीमद्भागवतका पूर्ण अनुवाद "नूतन सुखसागर" निकलवाकर दिखलाया उसको देखकर साध्वीजीका मुखकमल प्रफुल्लित होगया और पुस्तकके बीच 2 में जो मनमोहिनी कविता है उसको Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. अतिमधुर वाणीसे पढकर साध्वीजीने कुछ समय बिताया. अनन्तर क्षणमात्रमें साधीजीका मुखकमल मुरझा गया और बोली कि, पंडितजी ! वास्तवमें यह पुस्तकु बहुत उत्तम है, परन्तु बहुत बोझा होने के कारण हम इसको लेकर चल नहीं सकती, क्योंकि हम तीर्थाटन करती हुई सर्वदा विचरती रहती हैं, अधिक बोझा लेकर चलनेवालेको चोर उचक्कोंका भय बहुत रहता है, इस कारण इस पुस्तकको हम ले नहीं सकतीं. यह कहती हुई साध्वीजीके मुखमंडलपर सहसा प्रसन्नता छागई, और कहनेलगी कि पंडितजी ! इस पुस्तक वा. रम्बार अवलोकन करनेकी युक्ति हमने सोचली है. वह य-* है कि, श्रीधर शिवलाल 'ज्ञानसागर' छापाखाना बंबई की छपीहुई यह पुस्तक है. जिस नगरमें हम जाया करेंगी, वहाँके पुस्तकालयमेंसे इस पुस्तकको खोजकर दोचार घडी पढलिया करेंगी. यह सुनकर हमने कहा कि, यह उपाय आपने बहुत उत्तम सोचा है. परन्तु हम और एक उपाय आपको बतलाते हैं. वह यह है कि, बंबईमें पंडित R.P.AC..Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 स्त्रीचरित्र. हरिप्रसाद भगीरथजीके पुस्तकालयाध्यक्षकी ओरसे एक . -- * गोविन्दविलास' ( नारायणचरित्र ) नामक पुस्तक शीघ्र छपकर तैयार होनेवाली है " उससे बढकर रसीली कविता किसी पुस्तकमें हमने नहीं देखी" आधुनिक गायकों और हरिभक्तोंके लिये ऐसी रसीली पुस्तक एक अमूल्यरत्न हैं. जिसमें श्रीभगवान्के दश आवतारों के चरित्र अनेकानेक रागरागिनियोंमें अत्यन्त मधुर ध्वनिसे गानकिये गये हैं। ऐसी पुस्तक सब स्त्रीपुरु. षोंको अपने पास रखनी चाहिये. इसप्रकार हमारी बात सुनकर साध्वीजीने कहा, कि अवश्य हम ऐसी "पुस्तकको अपने पास रक्खेंगी, और हर स्त्रीपुरुषको सु. नाकर हरिभक्तिको बढावेगी. इतनी बातचीत होनेके अनन्तर साध्वीजीने हमसे पूछा कि' पंडितजी! आजकल आप कौनसी पुस्तक लिख रहे हैं. हमने कहा कि, हम आजकाल एक स्त्रीचरित्र पुस्तक लिखनेकी इच्छा करते हैं, यदि कुछ चरित्र स्त्रियोंके आपको मालूम हो तो सुनाइये, जो कि इस Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. पुस्तकमें लिख जानेके योग्य हों / यह सुनकर साध्वीने दो व्यभिचारिणियोंके चरित्र हमको सुनाये कि जो हम मोहनी और चमेली चरित्रके नामसे लिखेंगे, अनन्तर कुटनी चरित्र नामक छोटीसी हस्तलिखित पुस्तक दिखाई और एक सुंदरी स्त्रीका उतम चरित्र सुनाया उसको हम इस पुस्तकके अन्तमें 'सुन्दरीचरित्र' नामसे लिखेंगे. तदनन्तर साध्वीने एक हस्तलिखित पुस्तक हमको ऐसी दिखाई, कि जिसमें अनेक वीर रानियोंके चरित्र लिखेथे. हमने पूछा कि आप यहाँ कितने दिन निवास करेंगी, साध्वीने कहा, कि हम यहाँ पाँच दिन ठहरेंगी, तब हमने पाँचदिनके लिये वह हस्तलिखित पुस्तक माँगली, और पाँचहीदिनमें पुस्तकमेप्ते सारांश लिखकर चलते समय वह पुस्तक साध्वीजीको देकर पूंछा कि, यदि आपका चरित्र पुस्तकमें लिखने योग्य हो तो बताइये / साध्वीजीने उत्तर दिया कि, हमारा चरित्र पुस्तकमें लिखनेयोग्य नहीं. पुस्तकमें प्रसिद्ध लिखनेयोग्य वेही चरित्र होते हैं जिनसे कुछ लाभ होसके. यदि आपकी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. .. Jurt Gun Aaradhak Trust Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. रुचि हो तो वीर रानियोंके चरित्र लिखकर छपादीजी येगा, कि जिससे स्त्रियोंका चित्त पढकर प्रसन्न होगा. हमने कहा कि, अवश्य हम इस पुस्तकके द्वितीयभागमें लिखेंगे. परन्तु आप आपना कुछ समाचार तो अवश्य बताइये. तब साध्वीने अपना नाम लक्ष्मीबाई बतलाया और अपना समाचार बहुत संक्षेप रीतिसे सुनाया. जिसको हम नीचे लिखते हैं. लक्ष्मीबाईका संक्षिप्त जीवन चरित्र। मैं जिला कानपुरमें श्रीगंगाजीके तट एक गांवकी रहनेवाली हूँ. और कान्यकुब्ज ब्राह्मणोंमें प्रसिद्ध महस्कुलीन छंगके शुक्लकी कन्या हूँ. मेरे पिताका नाम शिव नारायण था. मैं अपने पिताकी एकमात्र कन्या होने के कारण बहुत दुलारी थी. बडे लाडचावसे मैं रहाकरतीथी मेरे पिता बहुत अच्छे पंडित थे. इस कारण मुझको भी पढाने लगे मेरी बुद्धि बहुत तीव्र थी नौ वर्षकी अवस्थामें 'सुखसागर' पढनेकी मुझको पूर्ण सामर्थ्य होगई. और 'चाणक्यनीति' के श्लोकभी पढने लगगई. तब पि: P.AC.Gunratmasan Suit Aaruhan Trus Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. ताजीने मुझको सारस्वत पढाना प्रारंभ किया. एकदिन मेरी माताने पिताजीसे मेरे विवाहकी बात चलाई और कहा कि हमने सुनरक्खाहै कि 8 वर्षकी कन्या पार्वतीके समान,नौ वर्षकी कन्या रोहिणी, और दशवर्षकी कन्या साक्षात देवीके समान होती है। उपरान्त रजस्वला होने पर कन्यादान करनेका कुछ फल प्राप्त नहीं होता.. आप पंडित हो, मैं आपको शिक्षा नहीं देती, किन्तु अपनेको आपकी दासी समझकर विनय पूर्वक कहतीहूं, कि. आप इस कन्याका विवाह इसीवर्ष करदीजिये / क्योंकि अब कन्या नव वर्षकी हो चुकी यह दशवां वर्ष है. माताजीके वचन सुनकर पिताजी बोले कि, छोटी अवस्थामें विवाह करना शास्त्रोक्त नहीं शास्त्रमें तो षोड. शवर्षकी कन्या और पचीस वर्षके पुत्रका विवाह उत्तम कहा है. पुत्रका विवाह उस समय करना चाहिये जब वह स्रांकी इच्छा करै. और कन्याका विवाह उस समय कर जब उसको पतिकी चाह हो. सो आजकलभी सोलह वर्षसे कमके बालकको स्त्रकिी और बारह वर्षसे कमकी . .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. .. Jun Gun Aaradhak Trust * , Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. कन्याको पुरुषकी चाह नहीं होती. कुसंगमें पडकर बिगड़जानेकी तो बातही जुदी है. परंतु इससे कम आयुचाले स्त्री पुरुषके शरीरमें ठीक 2 कामोद्दीपन नहीं होता. और पूर्ण प्रेम नवही होसकता है, जब स्त्री पुरुष दोनों परस्पर एक दुसरेको मनसे चाहतेहों. पहले हमारे देशमें लडका लडकी का विवाह अधिक अवस्थामें करनेकी रीति थी. अधिक अवस्था होनेपर लडकालडकीके गुणदोष सबपर प्रगट होजाते हैं, इसीसे बडे होनेपर विवाह किया जाथाता. ___पर जबसे यहाँ मुसल्मानोंका राज्य हुआ तबसे छोटी अवस्थामें कन्याका विवाह करना उचित समझा गया. कारण यह कि, यवनलोग जब पहलेही इस दे. शमें आये तब जिसकी लडकी रूपवती देखते और सुनते थे तो उसके मातापिताको धमकाकर बलात्कार छीनलियाकरते थे इस कारण छोटी अवस्थामें लडाके योंका विवाह करने लगगये. क्योंकि मुसलमानों के यहां उस स्त्रीका छीनना मना है कि, जो किसीके DGunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. .. 31 साथ व्याही जाचुकी हो. सो अब तो हमको परमेश्वरने अंग्रेजबहादुरकी प्रजा बनाया है कि जो किसी समयभी अन्याय नहीं करना चाहता. फिर अब छोटी अवस्थामें लडका लडकीका विवाह क्यों कियाजाय ? हम तो अब अपनी लडकी लक्ष्मीका विवाह बारह वर्षकी होजाने उपरान्त करेंगे, तबतक उसका सारस्वत अर्थसहित पढकर समाप्त होजायगा यह सुनकर मेरी माता चुप होरही. जब मैं बारह वर्षकी हुई तब पिताजी ने मेरेलिये वर खोजना प्रारंभ किया. कान्यकुब्ज महत्कुलीनोंमें छोटे छोटे बालकोंका विवाह होजाता है, इसकारण वर मिलताथा तो घर नहीं, और घर मिलताथा तो वर ठीक नहीं मिलताथा, दूसरे मेरे सातवें स्थानमें मंगल था. मंगली होनेसे वरका मिलना दुर्लभ होगया. तबतक मैं तेरहवर्षकी होगई. मेरे मातापिताको रातदिन वरकी चिन्ता हुई. चौदहवीं वर्ष मुझको चौथी बृहस्पति थी. पंरतु मेरेलिये बड़ी कठिनाईसे ग्यारह वर्षका एक वर मिला. पन्हवर्ष की अवस्थामें बारहवर्ष P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र वाले वरके साथ मेरा विवाह कियागया. पांचसौकी ठहरौनी पर श्रीकान्तके दीक्षित मुझको व्याहने आये. सातसौ रूपयेकी निकासी हुई. और सवासौ रुपये ऊपरी सामानमें खर्च हुये, सब मिलाकर सवा आठौ रुपये हमारे विवाहमें लग गये. पिताने जो कुछ पूंजी जमाकर रक्खीथी सो सब समाप्त होगई. मैं बरके संग विदा होकर मातापिताके वियोगसे दुःखितमन नयनोंसे आंसू बहाती विलाप करती हुई चली. उस समय मेरे दुःखका कुछ अन्त नहीं था. जब रोते 2 मैं थकगई तब लाचार होकर चुप होरही. जब ससुरे पहुंची तब मैं चावसे पालकी परसे उतारी गई. कई दिनतक मुझ दुलहिनको गाँवकी लुगाई देखने आई और मेरे रूपकी प्रशंसा करने लगी, आगे जो कुछ हुवा सो आपके सन्मुख कहने योग्य तो नहीं. परंतु हम कहेही डालती हैं. माता पिताके घर तो मुझको कुछ मालूम नहीं हुआ. परंतु पतिके घर पहुंच नेके दो चारही दिन उपरान्त मेरे शरीरमें कामका सं. PPEAC.Gunratnasuri M.S: ** Jun.Gun Aaradhal Trust Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. चार हुवा, जब वरके सरथ शयन करनेकी नियमित रात्रि आई, एकांत कोठरीमें मेरोलिये खाट बिछाई गई. घरभरमें मरे कोई देवर जेठ नहीं था. श्वशुर और सास थी. सासकी आज्ञासे मैं शयनमन्दिरको गई और खाटपर लेट गई.. कुछ देरके बाद मेरे पतिदेवताभी मेरे समीप आकरः .. लेट गये. और आपनां चंचलभाव दर्शाकर कामको, जगाया परन्तु मेरे मनोरथको पूरा नहीं करसके, उसममय मेरा चित्त परमदुःखी हुआ. दोहा-कौन सुनै कासों कहौं, डारै मदन मरोर // अंग अंग प्रत्यंगमें, करै आफ्नो जोर // 1 // इसीप्रकार मेरे दिन व्यतीत होने लगे. चार महीने उपगन्त मेरे श्वशुरका देहांत होगया. उसके एक महीना पीछेमेरी सासकाभी परलोक होगया; उससमय मुझको ऐसा जान पडता था, कि सुखने मेरे घरको परित्याग कर दिया था, और दुःखने आकर मेरे घरमें डेरा किया. अनन्तर छै महीना व्यतीत हुये मेरे खामीको रोगन्ने आ घेरा. मुझको बड़ी चिन्ताहुई और मारे दुःखके मैं दिन P.P.ASGunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. दिन तनुक्षीण मनमलीन होने लगी. मेरे स्वामीको देखनेके लिये गांवके लोग लुगाई आया करते और देखकर दुःख प्रकाश करते थे. - लुगाइयोंमें कोई कोई लुगाई मुझसे कुटनीपनका वर्ताव करने लगी. परन्तु मैंने समझा बुझाकर टाल दिया. मनुष्यों में कई एक लोग औझकसे मेरा रूप देखकर कटाक्ष चलाते थे.. / दोहा-बिनभूषणही सोहही, चतुर नारिकर भाव / चहियत नाहीं अंगूरको, मिश्रीमधुर मिलाव॥२॥जहं सुगन्ध भौरा तहां, उडत रहैं करि प्रीति / मानुष लोभी रूपको, करै नारिसों प्रीति // 3 // करि सुगन्धसो प्रीति अति, बैठे कमल न जाय। अस्तभये रविके भवर, बैठ प्राण गंवाय // 4 // ... कुछ दिन सेवा करते करते जब मेरे स्वामीको आराम होने लगी, तब मेरी चित्त कुछ कुछ प्रसन्न हुवा, और मेरी सेवासे स्वामीजीभी मुझपर Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 35 "प्रसन्न रहते थे, मैं अपने घरका काम बड़ी सावधानीसे करती थी, मेरे घरमें खेती होतीथी, ओर देनलेन होताथा, उसीसे दोनों प्राणियोंका निर्वाह भलीभांति होता था. जब मेरे स्वामीकी अवस्था अठारह वर्षकी हुई, तब मेरे एक पुत्र उत्पन्न हुवा, जो एक वर्षका होकर मरगया, और मेरे स्वामीको क्षयरोग होगया, छैमहीना उपरान्त रोगने अपना बल प्रगट किया, चलने फिरनेकी सामर्थ न रही, तब लाचार होकर शय्याकी शरण ली. आठ मास तक खटिया सेवन करके शरीर छोडदिया मेरे दुःख की कुछ सीमा न रही, जगत अंधेरा होगया, हृदयमें तीव्र वैराग्यने आकर बसेरा लिया, विलाप करतीहुई मुझको सबने आकर समझाया बझाया, पतिकी क्रिया कराई, तेरह दिन पर्यन्त मूतक मानना पडा, मृतक कर्म में पिण्ड दान और जगत्की रीतिके अनुसार ब्राह्मणोंको सब सामान देनापाडा. अब मेरा उस घरमें कौन था जिसको देखकर मैं रहती. परंतु ज्यों त्यों कर खेती से अपना पीछा छुटाया मकान पुरायकर दिया. घरका बचा बचाया P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. माल असवाब वेचकर गयाजीको प्रस्थान किया. वहाँ सब पितरोंके नामसे पिंडदान किया. गयासे निश्चित होकर मनमें सोचा, कि अपने कुलकी मर्यादाके अनु. सार में सब कुछ करचुकी. अब सत्संग करके अपने शरीरस्थ दोषोंको दूर करूं. और भगवद्भजन करती हुई पृथ्वीपर विचरूं. यह विचार कर मैं काशीजीको गई, और वहां पुत्रीपाठशालामें पढाने के लिये नियुक्त होगई, कभी 2 किसी 2 परमहंसका उपदेश सुनने जाया करतीथी. परंतु वहाँ मेरा चित्त पढानेसे हट गया. थोडेही दिन उपरान्त मैं विचरने लगी. आज दश वर्ष से मैं इसी प्रकार विचर रही हूँ, कि जिस प्रकार इस समय आप मुझको देखरहे हैं. यही मेरा जीवन समाचार है. सो आपके आगे वर्णन किया, यह कहकर बाई उठ खडी हुई और अपना कमंडलु उठाया हमारे पुस्तकालयमें स्थित महावीरजीको प्रणाम करके चलीगई. dnrath Jun.Gun.Aaradhak Trust . Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित मोहनीचरित्र। हरद्वारके समीप एक नगरमें एक अग्रवाल वैश्य लाल हजारीलाल नामक रहता था. उसकी स्त्रीका नाम मोहनी था. हजारी लालकी कपड़ेकी बहुत बड़ी दुकान थी, तगादा बहुत फैला रहता था. अपने चचेर भाई गुलजारीलालको अपनी सहायता करनेके लिये नौकर रख लियाथा. हजारीलाल अपने नौकर गुलजारीलालको अपने सगे छोटे भाईका समान मानतेथे. गुलजारीलाल रूपरंगमें बहुत सुन्दर था, और मोहनीभी बहुत रूपवती थी. कुछही दिन उपरान्त दोनोंमें प्रेम उत्पन्न होने लगा, परन्तु व्यभिचार करनेका समय नहीं मिलाता था; कारण यह कि गुलजारीलाल दुकानहीपर रहा करता था और हजारीलाल घरपर बैठे अपनी दूकानका हिसाब किताब लिखा करते थे, दिन भर पीछे संध्या. समय लालाहजारीलाल रोकडको अपने सामने समालतेथे और दिनभरकी विक्रीका कच्चा चिट्ठा जो गुलजारीलाल बनारखताथा, उसको लालाहजारीलाल घरपर ले .P.P.AC. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. आते थे और दूसरे दिन पक्की वहीपर चढालेते थे. और ऐसी सावधानीसे रहा करतेथे कि मोहनीको किसी समय अवसर नहीं मिलताथा, केवळ चिट्ठी पत्रीसे. मोहनीका दिल बहलाव रहताथा. और परस्पर एक दूसरेके प्रेममें चकनाचूर रहते थे. लालाहजारीलालको गुलजारी लालका सब तरहसे निश्चय था. और मनसे बहुत चाहते थे जैसा कपडा आप पहिनते थे वैसाही गुलजारी लालको बनालेनकी आज्ञा देदेते थे. जब लालाहजारी लालको दिसावर अर्थात दिल्ली जानकी आवश्यकता दुई तो एकदिन पहले मोहनीसे कहा कि प्यारी ! हम कल दिल्लीको जानेवाले हैं तुम घरमें अकेली होक्या प्रबन्ध कर जाये. यह बात सुनकर मोहनी अपने मनमें तो बहुत प्रसन्न हुई. परन्तु ऊपरसे मुख मुरझाय उदास होकर बोली, कि आपके बिना देखे तो मेरा चित्त व्याकुल रहा करेगा, परन्तु बिना आपके गये बनताभी नहीं आपको बाहर कितने दिन लोंगे. हजारीलालने जबाब दिया, कि दो दिन लगेंगे तीसरे दिन घरपर आ -TB Unrathasur M.S un Aaradhak THUSE Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. . 39 जाऊँगा. यह सुनकर मोहनीने कहा, कि स्वामी ! दो दिनके लिये प्रबन्ध करनेकी आवश्यकता नहीं, भीतरसे जंजीर बन्द करके ताला लगालँगी, और परोसमें जो बुढिया रहती है। उसको अपने समीप रातको रखलिया, करूँगी. लाला हजारीलालको मोहनीपर कुछभी सन्देह नहीं था' मोहनीकी बातको तुरन्त अंगीकार करलिया.. अब मोहनीके मनमें अनेक तरंगें उठने लगी, प्रेम सरिताका प्रवाह होने लगा. चिट्टीद्वारा गुलजारीलालले उसदिन सब वातचीत पक्की होगई, दूसरे दिन हजारीलाल एक इक्का किराया करके एक घंटा पहले रेल गाडीपर पहुँचे, रातके नौ बजे गाडी छुटनेका समय था, लाला हजारीलालके जातेही गुलजारीलाल आगया, और मोहनीसे अनेक प्रेमकी बाते करने लगा. दिल खोलकर बातचीत करनेका वही पहला दिन था. स्टेशनपर पहुंचतेही लाला हजारीलालको स्मरण हुआ कि दूकानसे हिसाबकिताबका. चिट्ठा जो अढतियाको समझा देनेके लिये बनाकर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Gun Gun Aaradhak Trust Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. गुलजारीलालने दियाथा वह घरपर भूल आये हैं। साथही उसके दूसरा चिट्ठा मेलकाभी है, बड़े दूकानदार प्रायः जो मेल अपनी दूकान कमती हो जाता है उसको एक चिट्ठापर लिखते जाते हैं जब वीस ‘पचीस मेल कमती हुये तब दिसावरको लिखकर मंगा लेते हैं, दूकानपर मेलको बनाये रखनाही दूकानदारी है, स्मरण आतेही लाला हजारीलाल इक्कापर चढकर 'घर लौटे द्वार खटखटाया और द्वार खोलनेको पुकारा मोहनीने आकर किंवाड खोल दिये. घर जाकर वह चिट्ठा लेकर अपने अंगरखेकी जेवमें डाल लिया, इतनेमें दस्तकी शंका हुई- चट कपडे उतारकर पाखानामें पहुंचे। वहां सफाई करके निकल रेलकी सीटी सुनकर घबडागये झटपट हाथपाँव धोय कुल्लाकरके कुर्ता पहना, और धोखे में गुलजारीलालका अंगरखा जो वहीं खूटीपर टंगाथा, उठाकर भागे. द्धारपर आय इकापर बैठ स्टेशनकी गहली. वहाँ पहुँचतेही मालूम हुआ, कि मालगाडीके इंजनने सीटी दीथी, सवारी गाडी आनेमें पन्द्रह मिनट PP.AC.GunratnasturiM.S...' Jun Gun Aaradhak Trust Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. बाकी है, लाला हजारीलालकी. घबराट दूर हुई, सावधान होकर अंगरखा पहिनने लगे, तब जान पड़ा कि यह अंगरखा हमारा नहीं है, जेबमें हाथ डाला तो चिट्ठा नहीं मिला, एक चिट्ठी हाथ आई, उसमें यह लिखाहुआ था.. प्रियतम ! मेरे स्वामी आजरातके आठवजे दिल्ली जायँगे सो तुमको मालूमही है मैं घरमें अकेली हूँ बहुतही अच्छा अवसर हाथ आया है, स्वामीके जातेही तुरन्त आजाना विलम्ब नहीं करना. तुम्हारी प्यारी-मोहनी. इस चिठ्ठीको पढतेही लाला हजारीलालके मनमें बडा दुःख उत्पन्न हुआ. और सोचने लगे. हा ! जिस स्त्रीको हम पतिव्रता मान रहे थे और लाड प्यार करते हुये उसको सर्वदा प्रसन्न रखते थे, उसका यह कुलटापन उसकी यह नीच बातें, अरे वह पापी दुष्ट गुलजारी कि जिसे हम अपना छोटाभाई मानकर दया करते और विश्वास मानते थे जिसके स्वभाव चाल चलन और : PP Ac. Gunratnasuri M Jun' Gun Aaradhak Trust Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रः सचाईकी सराहना हम प्रतिदिन करते रहते थे उसकी ग्रह बातें ? इस सोचविचारमें लाला हजारीलाल दिल्ली जाना भूल गये. सीधे घरकी ओरको चलपडे. _ अब यहांकी बात सुनो. लाला हजारीलालके चले जाने उपरान्त गुलजारी लाल जो छिप रहे थे, सोनिकल कर उसी शयनमन्दिरको गये. जहां खुंटीपर अंगरखा छोड गये थे, देखा तो खूटीपर अंगरखा नहीं. कलेजा काँपने लगा, होश उड गये दूसरी बूटीपर लाला हजारी लालका अंगरखा देखा, तो मनमें गुलजारीलाल ताड़गये कि लाला हजारीलाल आते होंगे, अब हम दोनों को जीता न छोड़ेंगे, आज प्रलयका दिन है. बहुत सोच विचार करनेका समय नहीं रहा, शीघ्रही प्यारीको लेकर भाग चलनेके सिवाय दूसरा उपाय बचनेका नहीं है. यह समझ मोहनीसे झटपट भाग चलनेकी सम्मति उहराई. मोहनीने शीघ्रही नगदी और गहना लेकर तैयारी करदी. उसी समय एक इक्काका शब्द सुनपडा गुलजारीलालने चट इक्का किराया करके मोहनीको बुलाय PP.AC-Gunratnasuri M.S.. .Jun.Gun Aaradhak Trust | Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 43 उसपर बिठाया और आपभी उसमें बैठकर चलदियेशहर बहुत बड़ा था. कई दिनसे अपने रहने के लिये " मकान किराये ले रक्खा था. उसीके द्वारपर इक्का खडा 1.कराया और मालिक मकानसे ताली लेकर मकान खोला और मोहनीको उसमें उतारदिया. इक्कावाला अपना किराया लेकर चला गया. गुलजारीलालने मालिक मकानसे कहा कि आजही हमारे नामसे मकानमें रहनेका मुहूर्त था. इस कारण हम अपनी स्त्रीको लेकर चले आये. कल सब सामान आवैगा. आज रातभरको एक चारपाई रहनेको देदीजिये. यह कहकर चारपाई ली और मकान बन्दकर दोनों बैठकर अनेक प्रकारकी बातें करते हुये रात बिताने लगे. __लाला हजारीलाल स्टेशनसे चलकर अपने घर आये तो देखा अँधेरा गुप्प पडाहुवा है. घरभरमें मोहनीका पता नहीं क्रोध दुःख और घृणासे कलेजा जलने लगा.. अपने आपेमें न रहे उस शहरके इन्स्पेक्टर लालाहजारी OS . P.P.AC..Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. लालके रिश्तेदार थे, उनके पास सीधे चले गये और सब हाल कहकर पूंछा, कि बाबूजी! अब हम क्या करें ऐसा उपाय बतलाइये कि उस दुष्टको अपने पापका फल भोगना पडे. और हमको हमारी स्त्री मिलजावै. यह सुनकर बाबूजीने उत्तर दिया कि आप कुछ सोच विचार न कीजिये. जैसा आप कहते हैं, वैसाही होगा. आपका चोर अभी बाहर नहीं गया होगा. आज रातभर शहरमें ही रहेगा. हमको आपका हाल सुनकर बहुत रंज हुआ. आप अपने घरपर जाइये रातभरमें प्रबन्ध करके "सबेरा होतेही हम आपको बुलवालेंगे. यह सुनकर लालाहजारीलाल अपने घरपर लौट आये, परन्तु सोच विचार करते हुये रात बीतगई. उधर इन्स्पेक्टर बाबूने गुलजारीके एक मित्रद्वारा पता लगा लिया. प्रातःकाल होतेही कई सिपाहियोंको साथ लेकर इन्स्पेक्टर बाबू स्वयं उस मकानके द्वारपर जा खडे हुये, और मकानको भीतरसे खुलवाकर गुलजारीलालको पकडवाकर बांध लिया और मोहनीके ऊपर चार पहरेदार नियत कर दिये Gon Aaradhak Trust PR.AC..GunratnasuriM.S. Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. और हुक्म देखिया कि जस्तक ठीक 2 जांच पडताल " न हो जाय, तबतक न इस स्त्रीको बाहर जाने देना. और न इसके मकानमें इसके पास कोई जाय. बहुतेरा कुछ गुलजारी और मोहनीने बातें बनाई. परन्तु इन्स्पेक्टर बाबूने एक बातभी नहीं सुनी, क्योंकि बाबूजीका सब हाल जाना हुआ था. इन्स्पेक्टर साहब गुलजारी लालको साथ लेकर पुलिसमें पहुंचे और लाला हजारी. | लालको बुला भेजा, जब लाला हजारीलाल आये | और गुलजारीलालको बैठे देखा तो मारे क्रोधके मुख "लाल होगया. उसको मारनेके लिये झपटना चाहते थे कि इन्स्पेक्टर साहबने रोक दिया और कहा, कि आप कानूनके विरुद्ध कोई काम न कीजिये. नहीं तो बात बिगड जायगी. अब यह दोनों आपके चोर हमारे हाथ आगये हैं. यह अपनी करनीका फल पावेंगे. आप धीरज रखिये, ऐसे उतावले न होइये. अब इधर लाला हजारीलाल, इन्स्पेक्टर और गुलजा. रीलाल इन तीनोंमें बात चीत होरही थी. उस समय गुल. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. jun Gun Aaradhak Trust... Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. जारीलाल अपनेको अपराधी नहीं ठहरता था मोहनीका अपराध ठहराकर अपने बचावकी वात कररहा था. और उधर मोहनीका समाचार यह था, कि वह अपने मनमें यह सोचने लगी कि अब जो कुछ होनहारथा सो होगया अब मान अपमानका कुछ भय न करना चाहिये. जिससे मैं और गुलजारीलालका वचाव हो सो उपाय करूं. जिससे कुछ उपद्रवभी न हो और साफ बचजाउँ. मेरा पतिभी बहुत सीधा है, उसका हृदय बहुतही कोमल है निश्चय है कि मेरी विनतीको वह मान जायगा, उसको मना लेनेसे हमारा सब काम बन जायगा. और गुलजारीलाल मुझको कभी न छोडेगा, जीवन्त पर्यन्त मेरा पालन पोषण करेगा, और प्रेम रक्खैगा; परन्तु इससमयकी विपत्ति टलजाना चाहिये, स्त्रियोंमें बात बनाने और माया विस्तार करनेकी चतुराई पुरुषोंसे अधिक होती हैं. विशेषकर मोहनी धोखेबाजीमें पण्डिता थी, इसकारण मोहनीको सोच विचार करते हुये बहुत देर नहीं लगी कुछही देरमें उसके मनका भाव पलट गया. जब उसने P.P:AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित 47 विपत्तिसे अपनेको बचानेका उपाय निकालना स्थिर करलिया, तब उसने सुरमेकी पिंशलसे एक कागजके टुकडेपर अपने पतिको यह पत्र लिखा, मेरे स्वामी ! मैंने जो आपके साथ अनुचित व्यवहार किया वह मेरे मनसे कभी भूलनेवाला नहीं है, उसकी आग मेरे जीको जलरही है अब एक पलभरभी जीनेकी इच्छा नहीं है मेरे पापका फल यही है कि मैं अपना प्राणत्याग दूं पर मुझको इस पापके कारण नरकमें भी जगह न मिलेगी, इसीसे अब मरनेसेभी डर लगताहै, अब मुझे समझ आई कि मैं आपके शरणमें रहकर आपकी सेवा करनेसे परम सुखी रहसकतीथी, पर अब समझ आनेपर क्या होताहै, और पछतायेभी कुछ हाथ नहीं आता, “अब पछिताये कहा होति, जब चिडियां चुनाई खेत' जैसा भारी पाप मैंने कियाहै उसके आगे आत्महत्त्या क्या वस्तु है, इतनी बडी पृथिवीके आगे वालूका कण क्या चीज है, पहाडके सामने एक तिनका क्या पदार्थ है, मारे दुःख के मेरा कलेजा जलरहा है, किस मुखसे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. कहसकूँ कि आप मेरा अपराध क्षमा करै, कभीनहीं मैं आपसे अपना अपराध क्षमा करना नहीं चाहती, अपने पापका प्रायश्चित्त करना चाहती हूं, पर वारम्बार यही विचार उठता है कि जिसने मेरी यह दुर्गति की है, मेरा पति छुडाया है, और मेरे मुखमें कालिमा लगाई है, उसका कच्चा खून जबतक न पीलूं तबतक मरनेपरभी मुझे चैन नहीं. - अब मारे दुःखके अपना पूग हाल मैं नहीं लिख सकती, हाथ कांपता है, आंसुवोंकी धारा नेत्रोंसे बह रही है, आशा यह है कि इस पत्रको पढकर आप एक बार दर्शन देजाइये, आपके चरणों के दर्शन करके जो मैं मरूंगी तो नरकमें भी कुछ सहायता मुझको अवश्य मिलेगी, कदाचित आप मुझको अपनी दासी समझकर अपने चरणोंमें ठौर देसकैं तो अच्छाही है, नहीं तो मै मरनेको तैयार हूं, यदि, आज आप दर्शन न देंगे तो कल मैं अवश्य अपने प्राणको परित्याग करदूंगी. आपकी अभागिनी मोहनी. PP.AC.GunratnasuriM.S.. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. यह चिट्ठी लिखकर मोहनीने एक पहरेदारको बुलाकर दी और पांच रुपये देकर कहा कि, यह चिट्टी हमारे स्वामीके हाथमें दे आओ. मेरे स्वामीका नाम इस चिट्ठीपर लिखा है पढकर देखलो. पहले घरपर जाना यदि वहां न मिले तो जहां मिल ढूंढकर एकान्तों यह चिठ्ठी देना. तुम होशियार हो, अधिक क्या समझाऊ.. यह सुन चिट्ठी ले पहरेदार सिपाही लाला हजारीलालके मकानपर आया और एकान्तमें पाय वह चिट्ठी हाथमें दी और तुरन्त लौट गया. लाला हजारलाल उस समय इन्स्पेक्टर बाबूके पाससे स्नान भोजन करनेके निमित्त चले आयेथे, चिट्ठीको देखतेही पढने लगे, मोहनीने जिस प्रयोजनके साधन करनेको वह चिट्ठी अपने स्वामीके पास भेजीथी, धीरे धीरे उसका ढंग जमने लगा, मोहनीके कोमल बचनोंको पढ पढकर लाला हजारीलालका मन पिघलने लगा, और अपनी स्त्रीकी करनीको भूल कर आपनेको धिकारने लगे, कि हमने नाहक अपनेही - आप अपना मुख काला किया. पुलिसतक खबर पहुं. PPEC.Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. - चाई, हमारी स्त्रीका क्या दोष उसकी अवस्थाही क्या है उस दुष्टने हमारी भोली भाली स्त्रीके रूपपर मोहित हो. ' कर उसको बहकाया, और उसको धोखा दिया है. स्त्रीको अपने भले बुरेका ज्ञान नहीं होता, इस कारण उस बिचा. रीका कुछ दोष नहीं, यह उसी छलिया गुलजारीका दोष है वही इस उपद्रवकी जड है. उस विचारी मोहनीका अपराध क्षमा करना चाहिये, क्योंकि वह अपने किये पर पछता रही है. कहीं वह आत्मघात न कस्बैठे आजही उससे मिलकर उसका मनोगत भाव जान किसी अला. हदा मकानमें लाकर रखदेंगी और खाने पहिरनेकी सुधीलेते रहेंगे. अबसे वह सुधर जाय तोभी कुछ चिंताकी बात नहीं है। - इस प्रकार अपने मनमें सोच विचारकर लाला हजारीलाल उसी समय मोहनीके पास पहुंचे. - अपने पतिको देखतेही मायाविनी मोहनीने बहुत आंसू बहाये. स्वामी के चरणोंको आंसुवोंसे भिगोदिया. Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gurfratnasuri M.S. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. बडे दुःखके साथ नेत्रोंमें आंसू ढवटवाती हुई बोली. नाथ ! मैंने अपने कियेका फल पाया. आप चाहें मुझ पापिनीको अपने चरणोंमें रक्खें पर मैं नहीं रहूंगी. अब में इस जगतमें पिशाचिनीके समान होगई हूं. आपके चरणोंसे हजारकोश दूरभी रहने योग्य मैं नहीं रही हूं. अब जो आप मेरा अपराध क्षमाकर मुझे अपने समीप रखोगे तो मुझको अब वह सुख नहीं मिलेगा. जो सुख अबतक मिला, जब प्यारसे आप कोई बात . मुझसे कहोगे तब मुझको अपनी करनीका स्मरण होते ही सैकडों बिच्छुओंके डंक लगने के समान क्लेश होंगे. जिस सुखको मैंने आपही भगाया है, वह सुख क्या आपके पास रहके मुझको मिल सकता है, कभी नहीं. अब आप यहांसे जाइये, यहां रहनेसे आपकी बुद्धि बिगड जायगी, और बिगडने लगी है, क्योंकि मुझपापिनपर आपको दया आगई. यदि दया न आती तो आप मेरी चिट्ठीको पढतेही यहा न आतें. जिसपर आप दया करना चाहते हो वह रत्तीभर दया करने के योग्य P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - स्त्रीचरित्र. - नहीं है. मेरा पाप सरकारतक फैल चुका. और समाचार - पत्रों में भी छप जायगा, अब किस सुखके लिये प्राण रक्खू. - इस जीनेसे मरनाही भला है, इतनी बातें करके मकारा * मोहनी शिर नीचा करके चुप होरही. मोहनीकी बातें सुनकर उदारहृदय क्षमापरायण लालाहजारीलाल बोले.. प्यारो ! तुह्मारा अपराध हमने क्षमा किया. अब आगे इम कुछ न करेंगे. पुलीसके इन्स्पेक्टर हमारे रिश्तेदार हैं कहा मान जायं. सब उपद्रव शांत होजायगापतिको प्रसन्नजान बाम बनाकर चतुराईसे मोहनी वोली.. स्वामी ! उपद्रव तो शान्त होजायगा और आप कुछ न करेंगे. पर वह छली गुलजारी तो साफ बच जायगा - उसको उसकी करनीका फल तो अवश्य मिलना चाहिये- यह मैं नहीं चाहती कि, वह साफ बचजाय. लाला हजारीलाल बाबू इन्स्पेक्टरके पास आये और सब समाचार कह सुनाया. इन्स्पेक्टर बाबू बोले आप क्या चाहते हैं. हमारी समझसे तो इन अपराधियोंको P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. छोडना चाहिये. आगे आपकी इच्छा. लाला हजारी लाल बोले कि, अब आप क्षमा कीजिये. हमने दोनोंको माफ किया. स्त्री हमारे घर रहेगी और इस गुलजागको हमने नौकरीसे छुड़ादिया. अब आप इसको छोड दीजिये. इन्स्पेक्टरने लाला हजारीलालके कहनेसे गुलजारी‘पर कुछ मुकद्दमा नहीं चलाया. _ गुलजारीलाल छूटतेही मोहनीके पास पहुंचे और मोहनीको लेकर कलकत्ता चले गये. लाला हजारीलाल सन्ध्यासमय मोहनीको ले आनेके निमित्त वहां गये जहां मोहनीसे फिर बातचीत हुई थी. देखा तो मकान खाली पडा है, पूछनेपर मालूम पडा कि गुलजारीलाल मोहनीको लेकर दो बजे चले गये इसी दुःखसे दुःखित होकर हजारीलाल पागल होगये और पागलखाना पहुंचाये गये. उधर गुलजारीलालके साथ मोहनीके कलकत्तेमें पहुंची एक मकान किरायापर लेकर उसमें रहने लगी. एक nasi Aararak Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रसालभरतक दोनोंने रडे आनन्दसे दिन काटे. मोहनीके पास जो कुछ नगद रुपया था वह सब खर्च होगया. उपरान्त मोहनीका गहना कपड़ा विकने लगे. गुलजारीलालके चालचलनसे थोडेही दिनमें सब माल असवाक स्वाहा होगया, तब गुलजारीलाल कहींको चुपचाप चम्पत होगये. जब चार पांच दिन गुलजारीलाल नहीं आये, तब मोहनीने जाना कि, गुलजारीने मुझको धोखा दिया. अपने कियेपर पछतावा करने लगी, और पतिका स्मरण करकरके रोने लगी, दशपांचदिन दुःखसे बिताये. एकदिन मोहनीने विचार किया, कि अब जो कुछ होनहार था सो हुआ, परन्तु अब कुछ उपाय करना चाहिये जिससे दिन कटैं. यह सोचकर शृंगार किया और मकानके कोठेपर खिडकीमें जो गली को थी, वहां जा बैठी, और उस गली में निकलते हुये पुरुषोंपर कटाक्ष चलानेलगी, कुछ देखाद एक छैलछबीला वीस बाईस वर्षका लडका अपने सुन्दर स्वरूपसे मोहनीको P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. मोहित करताहुआ निकला. मोहनीने एक कंकड उठाकर उसकी ओर फेंका, तब उस लढकेकी दृष्टि कोठेपरको उठी, तुरन्त उस लडकेको मोहनी बुलाने लगी. लडकाभी मोहनीको देखतेही मोहित होगया, लाजशरम छोड़कर कोठेपर आया और प्रेमकी बातें करने लगा. मोहनीने, इस चतुराईसे बातचीतकी कि, उस लडकेने अपने पा• कटसे निकालकर एक रुपया दिया, और मोहनीकी चाहके दुपट्टेको अपने समागमके शाहावसे लालोलाल कर दिया. मोहनीनेभी उसको अपनी रानोंमें दबाके ऐसा निचोडा कि, आप तो लाल होगई, और वह. लडकाभी ऐसा होगया, जैसे कोई खारदेके रंग उतारले.' इसीप्रकार वह लडका दूसरे तीसरे दिन आकर अपना और मोहनीका मन प्रसन्न कर जाताथा. एक दिन उस लडकेको आता देखकर दूमरे लडकेने देख. लिया, और समझगया कि अवश्य कोई स्त्री इस मका नमें हम लोगोंको चाहनेवाली रहती है. दूसरे दिन कई बार वह दूसरा लडका उस मकानकी गली में आकर खडा UPPCc. mrathasuriMS. . .. Jun Gun Aaradhak Trust Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. हुआ आर मोहनीको बैठे देखा. मोहनीनेभी उसकी ओर देखा,यह दूसरा लडका पहले लडकेसे बहुतही सुन्दर मानों कामदेवका रूप था, देखतेही मोहनीने बुलानेका संकेत किया वह लडका तुरन्त कोठेपर पहुंचा और मोहनीको 'पाच रुपये देकर समागमका आनन्द लूटने लगा. तीन चार 'घंटे पर्यन्त वह लडका आनन्द मनाकर अपने स्थानको चलागया. अब उस लडकेकी मोहनीमूर्ति मोहनीके ह्रदयमें बसगई. पहले लडकेको मोहनी एकदम भूलगई थोडी देखाद जब वह पहला लडका आया तो मोहनीने ऐसी बातें बनाई कि, फिर उस दिनसे वह लड़का नहीं आया. उसके दूसरे दिन जब दूसरा लडका आया तब मोहनी कहने लगी, कि प्यारे ! तुह्मारी जुदाई हमसे सही नहीं जाती. ऐसा उपाय करों कि, जिससे हम तुम कुछ दिन रातकोभी. एकही साथ सोवें, तुह्मारी मोहनी मूर्ति हमारे हृदयमें बसगई,इसकारण तुमारे चले जाने पर हम बहुत व्याकुल होजाती हैं. लडकेने जवाब दिया कि प्यारी ! बहुत अच्छी बात है. हम आजरात u un Aalbork IV AC,Gunratnasuri.M.S. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AN भाषाटीकासहित. हीसे तुमारे घर आरहेंगे. यह कहकर लड़का अपने 'घर गया. और ननिहाल जानेके बहानेसे मोहनीक घर आरहा. मोहनीकी आयु उस समय अठारह वर्षकी थी, और उस लडकेकी आयु बाईस वर्षकी थी. संयोग अच्छा बनपड़ा. अकेले घरमें रातदिन बहार उडने लगी. यहां तक बहार उडी कि जिसका कुछ ठीक ठिकना नहीं. ____ पन्द्रह दिनके उपरान्त मोहनीके शरीरमें रोग उत्पन्न होगया, योनीके द्वारा रुधिर गिरने लगा. दुर्गन्धि आने लगी. मारे पीडाके मोहनी तडफडाने लगी. वह लडका तो मोहनीका यौवन लूटनेवाला था. मोहनीके दुःखसे उसको क्या प्रयोजन, जब मोहनीकी बहुत दु ति देखी तब छोडकर चम्पत होगया. मोहनी उस मकानमें अपना पाप फल भोगकर मरगई. जस करनी तस पार उतरनी' जैसा कुछ कर्म मोहनीने किया वैसा उसको फल मिला. 'स्त्रीबुद्धिः प्रलयङ्करी' स्त्रीकी बुद्धि प्रलय करनेवाली होती है सो ठीकही है जो स्त्रियां मोहनीकी भांति अपने पतिदेवताको धोखा देकर व्यभिचार करती हैं उनकी P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. यही दशा होती है, जैसी कि मोहनीकी हुई. मोहनी जब तब यह शायरी पढाकरतीथी. जो नीचे लिखते हैंदोहा-सदा न फूलै तोरई,सदान सावन होय। सदा न यौवन धिररहै,सदान जीवैकोय॥१॥ गह यौवन थिर नारहै,दिनदिनछीजत जात। चारदिनाकी चांदनी, फेर अंधेरी रात // 2 // हायदई कैसी भई, अनचाहतको संग। दीपकको भावै नहीं, जरि जरि मरै पतंग॥३॥ होनहार होकर रहै, मिट न विधिके अंक / राई घटैन तिलबढे, रहर जीव निशंक॥४॥शैरऐफलक तुझको सदारंग बदलते देखा। अपनीकिस्मतके नविस्तेको नटलते देखा॥५॥ तथाशिकवान यारसे न शिकायत रकीबसे / जो कुछ हुआ शुदासे हुआ या नसीबसे // 6 // un-Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. तथा - तथा आप आतेभी नहीं दमको बुलातेभी नहीं। वायस तर्क मुलाकात बतातेभी नहीं // 7 // मरतीहूं आमें मरनेके।मौत आती है पर नहीं आती॥ है कुछ ऐसीही बात जो चु· पहूं। वरना क्या बात कर नहीं आती। आगे आतीथी हालदिलपै हंसी। अब किसी बातपर नहीं आती // 8 // दिलेरंजीदा कहता है न बोलूं यारसे हरागज। जब आंखें चारहोती हैं मुरव्वत आही जाती है // 9 // आपही जुल्म करो आपही शिकवी उल्टा। सच है साहब रविश् उल्टी है जमाना उल्टा ॥१०॥चैनतुझको नमिलै मेरे सतानेवाले। तभी ठंढा नरहे जीके जलानेवाले // 11 // इति // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. -Jun Gun Aaradhak' Trust Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीचन्त्रि कुटनी चरित्र 2. दोहा-एक वन्यिनिक मदन, आई वृद्धा नार। तिलक लगाये भालपर, करमाला निरधार!जानुलनीनाला हाय लाख.कियो बहुत मन्मान वटायो अति प्रेममों, उत्तम मा. धिनि जान॥२॥ कामधाम निज तजिमती, वटी बुडियापान कक सत्य उपदेश हित.पछतिचित हुलाना३॥कहाँ मातु वेभामिनी. कमी हे जगमाहि। पढे लिखेनहिकोटिविधि पुजनयनकराहिं जातेज्ञानविवेक सब पालोकनमाहिनेमधर्मकुललाजतजि परपुमानिनादि। प्रश्नमुनतहीवहचतुर, तिवनमहागनि सतीसत्तमनडिगनहित निचलीबवानि // 6 // परपुरुषके मिलन म.उपजत्रधिकमनहातू क्याजानैबाबरी, तजै "P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. ननिशिदिनगेह॥॥सुनहमार जीवनचरित, जो विचित्र संसार। तुरततोर भ्रमभागही उपग्रीतिअपार॥८॥मात पिताकीलाडिली, नान्है कीन्ह विवाह / तबसे पर्दैन रहिचली, जी चह गौन उछाह // 9 // पर्दन रख कोड क्या करे.मन हमार दारयाव / बहतन पार उतारहीं, अपने सुगुन सुभाव // 30 // पढन लिखनको भल को हम नगरके लोग। मातपिता क्या बावले, जानि देहि यक रोग // 11 // हम आपै जग चातुरी, रहीं छटीली बाल। संगपडी एकनारिके, जी मन्मथको जाल // 12 // हमर्हि सिखायो बहुत गुन, सो वर्णी तुमपाहिं / तो सम हितू हमार कोउ, और नहीं जगमाहि // 13 // जोकहिं बाजै ढोलकी, तुरतजायँ वहिठाम। फूहर पातर गीत बहु, गावें लैलै नाम // 14 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. .. Jun Gun Aaradhak Trust Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रहँसें हंसावै रंगरस, बाते करें बनाय / सुनै कोइ कादरपुरुष आप आय सकुचाय॥१५॥ सौख रही बडसिखनकी, टोना मंत्रटपार। नटी सटीनट माटसे, मिलत्यूं नैन उ. घौर // १६॥भाइ भतीजा जो कोऊ, रॉक कहूँ भुलाय। तादिन महना मथकरौं, खा. टपरौं सुरझाय // 17 // रहौं प्रचंडा सबै विधि, नाम धरै नहिं कीय / रामकर पितु मातु घर, सबको अस सुख होय॥१८॥वीस वर्षपर व्याहेक, गौना भयो हमार। ज्वानका सुख हमहिको, नैहर मिल्यो अपार // 19 // रोय गाय गड सजनघर, उहाँ नलागैनीका। खान पान सन्मान बहु,कछुक दिननरह फीक // 20 // तिय चरित्रकी मुधि भई, धीरज धयो शरीर।अपने गुन ढंग रंगसे, मिटी सकल भयभीर // 21 ॥खाय P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhakrust. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. मालतिहुं काल हम, छिनछिन पान चबायं / तेल फुलेल लगाय मुख, झकियनसे मुसकांय॥२२॥ बुढवन लखि दुइहाथका, लेइ धूंघट लटकाय / देखि छैलको रसभरे. नैन देहिं झमकाय॥२३ // महरन संग बडि प्रीतिथी, महरिन संग व्यौहार / छैल सुनरवा मी तथा, और एक मनिहार // 24 // जब - 'घर आवें साजना, प्रगट करें बहुरोग / गये सजनसुख चैनसे, करविविधरसभोय // 25 // - गीतिन्छन्द। मेंदीथोपि हाथपियके ढिग जात्यूमुंह लटकाइ / मोर गुमान देखि बहुरंगी ओऊ जातसकाई // 26 // करिपीछा सोउ त्यूं उसांसभरि सुनेमोरिचतुराई। यही तरह निशि टाल बताके देत्यूं सहजबिताई // 27 // / दोहा-सजन हमारेथे भले, हमें बहुत . .P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र सकुचायं / हम चाहें जो कुछ करें, कबहुं / न ट्रकरिसिपाय॥२८॥आप चहें जाडन मरें, हम दुशाला देहिं / नित उठिगोत उचारहूं, तभूबलेया लेहि।।२९॥आपचहें भूखे रहैं; सागपात भरि पेट।मम हित लावे वस्तु सब, चद्दरमाहिं लपेट। ३०॥आप न पहिरै पानही, ओ वसन पुरान / जरीकिनारीदार हम, धरै थानके थान॥३१॥ रही कमाई ससुरकी,सो सब लीन बेचाय। नखशिखगहना हमलदी, तभून हृदय जुडाय // 32 // , नथनी पहिरौं जसचाक कुम्हारको, मूगां रु मोती नगीननवारा / दालसी हालरही झुलनी,पुनि नाक कटी फटि केतिक वारा॥फूलीखुली मानो शूलहुली, दिलदारनके हियरे खरधारा। साहै बुलाक झलाक मलाक, ति. लाक हमें पल नेक उतारा // 33 // P.P.'Ac: Gunratriasuti M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. गीति-छद / / सौ सौ छेद कानमें मेरे पहिरौं गुच्छनवाला। गले हासुली सेरभरेकी बिच बिच कंचनमाला // 34 // कड़ा छडा पग बजै बूंघुरू सुनत नीक मन लागै / चहैं जहां कोउ रहै / रसिकजन सोवतह उठि जागै // 35 // वदन मोर जसरहा चीकना पहिरौं झीनी साडी। पडे खडे चलते चलतेको तनमन देहु उ भाडी // 36 // गोदना में सबगात गोदायो - सुर्मा सिंदुर निराले / पांव महावर चोख वतीसी अबहुं दांत. मोर काले // 37 // दोहा-सासश्वशुर लतमारथे,जेठ देवर मुंहचोर / रांध पडोसी दवसटे, कौन करै वत झार // 38 // होत भोर पौ फाटते, नित उठि गंगनहायं / राहपाट ठलु आनसे; झ. -झवि. झूमि अठिलायं // 39 // साधुनके "P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust . Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66 . स्त्रीचरित्र दिगजायके, पग धरिधरि मुसकाहिं / दर्श पर्श करि सबैविधि, कबहुं न काहु लजाहिं४०॥ माला ठेला जब पडै पैसा लेयं गिनाय / चलें झपटि दिलदार संग, बहुविधि बात बनाय // 41 // अस अस सुख बडि भागसे, मिले हमैं इहलोक / यही लोक सुरलोक है, तज बावरितनशोक॥४२॥हमारो ढंगलखि कुटिलजन, करनलगे कनफूस / पडै सा. मना जीनदिन, लेडं हाड धरचूस // 43 // सखी कहै तुम वांझहौ,भयो सोच मनमाहि। मंत्रयंत्रमिसकछुअदिन,जातलख्योकोउना हिं॥४४॥ गई जवानी चैनसे, भयो गोदमें लाल। लाल झरा वनइतै उत, चलौं मत्तगज चाल // 49 // आगे आगे सजनलै, चलें गोदभरि पूत।तापाछे मुसक्यात हम, दशावत करतूत // 46 // सजन हमारे दु P.AC..Gunratnasuri Jun Guin Aaradhak Trust. Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. खभरे हम भीतर हर्षाय / ऊपरसे सुसकै कबहुं, कबहुं अधिक घबडाय॥४७॥ टटका टोना बहु कियों दिह्यों फकीरनदान। नौतनके दिगजायके, किह्यों बहुत सन्मान॥४८॥ - चौपाई। मैं लडिका मसजिदपर जाऊं। तुरत मियासे फूंक डराऊं // चलत ताजिया भेट कराऊं। शर्व तर उडि भोग लगाऊं॥ मरद शहीद सुनौं कहिं कोई। वहां गये बिन चैन न होई // इहि विधि कियौं अनेक उपाऊ। जिये न लालनछूट मुभाऊ // कौनिउ जतन बचायक लाला।पीरू नाम धरउं जग आला // सिखयउंताहि जुवां अरु चोरी।चोरी व्यवसा यन काहु निहोरी। औरहु एक सहज बदमासी।परतिय हरन सरन सुख रासी॥४९॥ -दोहा-राजभला अंगरेजको, सच्चा होय नि ""p.P.AC..Gunratuasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. याव। चौर जुआरिन बहुत कम, सजा होय मन भाव // 50 // डधनी अरु ज्ञानी मानी।सबसे कंपट करें हठवानी ॥बडो भाग असमिलेसपूता। चहुं दिशि हमैं अमृत रस चूता॥ वाको व्याह भयो नहिं गोरी / तुम समान बहुऐं सब मोरी // मोरह एक यही रुजगारा / प्रेमिनके द्विग करौं गुजारा // लै मालाप्रमुनामउचारौं।निशिके पाप घाँटि सब डारौं // 51 // दोहा-वृथा लेउं नहिंदाम कछु, करौं चौगुना काम। मोर चौकसी अहै जस, जानत सीताराम // 52 // इहिविधि गयो सुहाग मम, छट न बाल सुभाउ / रांडभई तबहूं सखी, सोचेउं सुखद उपाउ॥५३॥ कबहुं कबहुं जिय होय हुलासा, फिर वह - गीत। / P.P...AC.GunratnasuriM.S..... Gun Aaradhak Trust Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. होय जबानी। लोग कुटुम परिवार लाज तज जसमैं रही दिवानी॥५४॥ मोर सुभाव अबै अलबेला दुइचेंगडिनकी नाईं। बकौं झों लडि मरौं अनाहक, मूंड पटक यह ठाई // जो मोहिं कहै अरे बकवादिन, चुपह बुद्धिया माई / अस मन लगै जारि देऊं दाढी, जियकि कसक मिटजाई // 56 // मैं कहुं ठगी कहूं कोउ पाहीं / मोरे नखरन जगतविकाही॥नमधर्म व्रत करा अनका। उपर चुपर दर्शाय विवेकाचलौं गैल बिचकौं बहुभांती / नाक सिकाडि अपन रंगमाती॥ जा कोउ मोर छऐं परछाहीं। शिरके बालबिनौं छिनमाहीं। भगतिन नाम मोर ठकुरानी। सबस अहै मोर पहिचानी॥ घर घर मोर सहज पैठारा। मोही कौन जग रोकन हारा॥तू क्यों सुनै मार उपदेशा / तुव लि. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. लार विधि लिखो कलेशा॥ सुनिसुनि कुटनी कर इतिहासा। मनमहं सती कीन्ह उपहासा॥वाली मुदल मनोहर वानी। निज करनी तुम सत्य बखानी पै सबकर स्वभाव यकनाहीं। बिलग बिलग सब जतन कराही॥ 57 // दोहा-जो जाहीसो रमि रह्यो. तेहि ताहीसों काम / जैसे किरवा नीमको, नहीं आमसों काम // 98 // यह सुनि कुटनी फिर चली, लाग्यो नहि कछु दांव / बहुरि न आई तासु दिग, जानि सतीको भाव // 59 // पढे सुनै जो नारि नर, कुटनीकेर चरित्र / सोचि समुझि त्यागैतुरत, नारी होय पवित्र॥६०॥ चमली चरित्र 3... एक सुनारकी स्त्रीका नाम चमेली था, वह रूपरंगमें बहुत सुन्दर थी, इस कारण सुनार अपनी स्त्रीको बहुत P.P.AC. Gunratnasuri Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. प्यार करता था, और आंखोंसे ओट नहीं होने देता था, अपने दरवाजेपर एक कमरा बनालिया था उसी में बैठाहुआ आभूषण बनाया करता था. चमलीके पास कभी किसीको नहीं जाने देता था, न चमेलीहीको कहीं जानेकी आज्ञा थी. इसप्रकार स्त्रीपुरूष दोनोंमें बहुत प्रेम था, और सुखसे दोनों रहते थे, परन्तु अति बन्धनमें रहने के कारण चमेलीका चित्त कभी कभी दुःखी हो जाता था. सुनारको जब किसी आवश्यक कामके लिये बाहर जाना पडता था, तब बाहरसे ताला लगाकर चला जाता था, एक दिन सुनार किसी कामके लिये ताला लगाकर चलागया, इतनेमें एक चयेना बेचनेवाला पुकाराअपनी गलीमें चबेना बेचनेवालेकी पुकार सुनकर चमेली द्वारपर आई जोही वह बेचनेवाला किंवाडोंके पास होके निकला. त्योंही चमेलीने कहा एक पैसेका चबेना तोलकर किंवाडोंके दरारमेंसे फेंक दे, और यह पैसा ले. उसने वैसाही किया और पैसा लिया, दरारमें होकर चबेना फेंकनेमें बहुत देर लगी, इतनेहीमें सुनार .P.AC.Gunratnasuri. M.S.. Jun'Gun Aaradhak Trust Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र अपना काम करके लौट आया, और ताला खोलकर अपनी स्त्री चमेलीसे क्रोधित होकर कहने लगा, कि अरी नादान ! अच्छे घरोंकी स्त्रिया कहीं इसतरहसे सौ. दा लिया करती हैं, तुझको जो वस्तु दरकार हुआ करें वह हमसे क्यों नहीं कहदिया करती, जो हम'ला दिया करें. चमेलीने आंखें तरेर कर कहा. क्योंजी वृथा क्रोध किस कारण करते हो ? चबेनाका नाम सुनकर चबानेकी इच्छा हुई, बहुतेरी वस्तुयें ऐसी हैं कि जिनका नाम सु. नकर खाने पहिरनेको मन चलायमान होता है. एक तो तुमने मुझको बन्धनमें रखकर दुःखी कर रक्खा है, दूसरे जिस किसी वस्तुको मन चाहै तो खानेसे रोकते हो. यह सुनकर सुनार आपेसे बहार हो गया और बोला, मुझको किसी स्त्रीका विश्वास नहीं स्त्रियोंमें बहुत औगुण भरे होते हैं, स्त्रियों के छल कपट मैंने बहुत कुछ सुन रक्खे हैं, इसकारण मैं तेरे पास किसी स्त्रीको नहीं आने देता हूं. यह सुन चमेली बोली, सब स्त्रियां एकसी नही होती. यदि मुझको छल करना होगा. तो तुमारे P.P. Ac. Gunratimasuri M.S. Jun Gun Aaradtak tu! Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितः सामने ही सब कुछ कर दिखाऊंगी, चाहे तुम मुझको सात कोठरियोंके अन्दर क्यों न बन्द करदो; इस कारण स्त्रियोंकी चौकसी करना वृथा है. सुनार कहने लगा कि, वे पुरुष नामई होते हैं जिनको स्त्रियां व्यभिचार करती हैं। चतुर मनुष्योंकी स्त्रियोंकी क्या समर्थ जो किसीसे आंख मिलासकें. यह सुन चमेली बोली कि, जो मैं चतुर होती तो तुमको अपना चरित्र करदिखाती. सुनार बोला कि ठीक है, तू देखनेमें तो भोली भाली जान पडती है परन्तु हम जानते हैं, कि कुछ तू चर्चल है. चमेलीने कहा, कि रे मूर्ख ! तू मुझको इस बन्धनसे छुडादे, नहीं तो तेरेही सामने तेरेही हाथसे सब कुछ करदिखाऊंगी. सुनारने कहा कि अच्छा देखें अब तू क्या करदिखाती है. हमतो तेरा कभी विश्वास नहीं करेंगे, और न तुझको कभी इस बन्धनसे छुडावेंगे. यह सुनकर च. मेली चुप हो रही और मन में कहने लगी कि देवू तू कितना चतुर है और कितनी चौकसी कर जानताहै. " इसबातको जब छै महीना बीत गये, तब एक दिन वह P.P. Ac. Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. चमेली पेटमें दर्दका बहाना करके लेट रही. कभी कहती कि मेरे पेट और पेडूमें पीडा होरही है. कभी कहती कि अब कलेजा फटा जाता है, कभी कहती कि छातीपर तीर चल रहे है ऐसा दर्द होता है. कभी छिनछिनपर चिल्ला उठती और कराहती थी. कईएक अच्छे अच्छे, वैद्योंको लाकर सुनारने दिखाया, पर किसीको उसके / रोगका पता नहीं लगा. हार मानकर जब वैद्यलोगोंने उसको छाडदिया तब सुनार बोला कि प्यारी ! तेरे दर्दसे तो मुझको बडा दुःख होरहा है. किसी प्रकार तू अच्छी हो जाती तो हमारा जीवन सफल था, नहीं तो तेरे बिना हमारे दिन कैसे करेंगे. - यह सुनकर चमेलीने कहा कि स्वामी ! स्त्रियोंके रोगको स्त्रियां जान सकती हैं जो हमको अच्छा करना / चाहते हो तो किसी चतुर दाईको बुलालाओ वह हमारे रोगको पहिचानकर दवा देगी तभी आराम होगा. यह बात सुनकर सुनार बहुत प्रसन्न हुआ और एक बुढिया : PP. Ac. GunrathasuriM Gun Aaradhak Trust Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित को अपने घर बुला लाया. आतेही बुढियाने चमेलीको देखा, तो कोई रोग समझ नहीं आया. बुढिया आश्व. र्यमें होकर चमेलीसे बोली, कि तुझको ऐसा मुनासिब नहीं, नाहक छल करके अपने मर्दको दुखी कर रक्खा हैं. तब चमेलीने कहा, कि इस मेरे पतिने मुझको महा दुःख दे रक्खा है, रात दिन चौकसी रक्खा रहता है, और किसी स्त्री पुरुषको घरमें नहीं आनेदेता है, न मुझको कहीं जाने देता है, यद्यपि मैंने आजतक इसके सिवाय किसीमर्दका मुंह नहीं देखा तथापि यह मुझको बन्धनमें रखकर दुःखी करता है, आज छै महीना हुये हैं तब इसने मेरे आगे एक बडा बोला बोलाथा, सो मैं इसको अपना चरित्र दिखाना चाहती हूं, तुम मेरी सहायता करो बुढियाने कहा, कि तुमारे हुकमकी देरी थी, तू किसी बातकी चिन्ता मत करे, देख तेरे लिये कैसा छैल छबीला अलबेला हलका और सुन्दर वीस बाईस. वर्षका पट्टा लातीहूं, धीरज धर. यह कह दरवाजेपर उस. सुनारके पास जाकर बुढिया बोली कि तूने नाहक अपनी PPAC. Guhratriasuri M.S, Juri Gun Aaradhak Trust Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 76 स्त्रीचरित्र - पतिव्रता सुन्दरीको इतने दिनतक सताया, और रोगिनी बनाया, क्या तू नहीं जानता कि स्त्रियोंकी औषधी स्त्रियांही जानती हैं स्त्रीके रोगको कोई वैद्य अच्छा नहीं करसकता, तूने नाहक अपनी स्त्रीको इतने दिनतक / घुलाया, मैंने उसका रोग पहचान लिया है, ईश्वरकी कृपासे एकही दिनमें अच्छाकर सकतीहूं परन्तु चारों =: रुपये खर्च होंगे, जब तेरी स्त्री अच्छी होजाय तब देना. क्योंकि मैं किसीके साथ छल कपट नहीं करतीहूं यह बात सुनकर उस सुनारने मनमें सोचा कि यह बुढिया तो मेरी स्त्रीको अच्छा करदेने उपरान्त रुपये मांगती है तो क्या हर्ज,है, यह सोचकर बोला, माई ! इतने रूपये क्या वस्तु है, यदि हमारे प्राणतक काम आवे तो अपनी स्त्रीके लिये देसकताहूं हमारी स्त्री हमको अपने प्राणोंसे भी अधिक प्यारी है. बुढिया बोली कि एकसमय यही रोग मेरी लडकीको होगया था. और यही हाल उसकाभी था तब अनायास एक फकीर मुझको मिला मैंने अपनी लडकीका हाल कहा, तब फकीरने आकर लडकीको : Jun Gun Aaradhak Trust .P.P.AC.Gunratnasuri Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित... 77 देखा, और चारसौ रुपये मेरे बेटेसे लेकर एक टोना बना दिया, उससे एकही दिनमें मेरी लडकी अच्छी होगई, वही टोना अबतक मेरे घर रक्खा है. बिना चारसौ रुपये लिये मेरा बेटा उस टोनेके मटकेको नहीं देगा, परन्तु वह मटका तुमको अपने शिरपर रखकर लाना होगा. सुनारने बुढियाकी बातको मान लिया, और कहा, कि बूढी माई ? जिससमय तुम मुजे लिवा ले जाओगी, तुरन्त तुम्हारेसाथ चलकर मटकेको उठा लाऊंगा. यह सुनकर बुढिया अपने मनमें बहुत प्रसन्न हुई, और अपने घरजाकर एक बडासा मटका मंगाया: और एक सुन्दर बीस बाईस वर्ष के पढेको मटकेमें बिठाकर ऊपरसे कपडा बांधकर सीं दिया, और सुनारने आकर बोली कि चलकर मटकेको ऊठा लाओ, परंतु बड़ी सावधानीसे मटका शिरपर रखकर लाना, सबेरेही तुमको फिर वह मटका मेरे घरपर पहुंचा देना पडेगा. यह मुनकर वह काठका उल्लू बुढियाके संग गया, और जाकर वह मटका अपने शिरपर रखकर घर लाया. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मी मटकेको रखकर बुढिया बोली कि तुम आज रातभर / दरवाजेपर रहो हम रातभरमें दवाकरके तुम्हारी जोरूको अच्छा करदेंगी. यह कह सुनारको बाहर निकाल दिया E और भीतरसे कुंडी देकर बुडियाने चमेलीसे कहा, कि अब क्या देखतीहो, जल्दी उठो, और अपना शृंगारकर तैयार हो जाओ. सुनतेही चमेलीने अच्छे मुथरे कपडे पहन, पान खाय इतर लगाय एक साफ सुथरा पलंग : बिछाय तकिया लगादी, और कपूरकी कई एक बत्तियां चमेली ऐसी जान पड़तीथी मानों कोई साक्षात इन्द्रकी अप्सरा स्वर्गसे उतरी है, बुढियाने जब देखा कि चमेली पलंगपर बैठ चुकी, तब उस मटकेको खोला. उसमेंसे वह मस्ताना पट्टा निकल आया. और चमेली के पास पलंगपर जाबैठा, और चमेलीका मोहनी मूर्तिका देखकर बहुत प्रसन्न हो मनमें कहने लगा कि आज _इस बुढियाने बहुत अच्छी सुन्दरीसे मुझे मिलाया है, चमेलीभी उस खूबसूरत जवानको देखकर मो PP. Ac. Gunratnasuri Jun Gun Aaradhak Trust Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . भाषाटाकासाहत. रहित होगई, और मनमें कहने लगी कि, यह तो कोई राजकुमार जान पडता है, यह सोच, हावभाव कटाक्ष कर प्रेमकी बातें करने लगी बातें करते करते उस मस्तानने पहले तो बहुत देरतक आलिंगन चुम्बन किया, फिर अपने कामदेवको शांत कर दिया और सबेरा होतेही बुढियाकी आज्ञासे मटके में जा बैठा, तुत बुढियाने मटकेपर कपडा बांध सुनारको दरवाजेसे पुकारा और कहा, देख तेरी जोरू अच्छी होगई, लाओ चारसौ रुपये गिन दो. सुनतेही चमेलीने अपने हाथोंसे सोनेके कडे उतारकर बुढियाके आगे फेंक दिये, और कहा कि, माई ये दोनों कडे बीस तोलेके हैं, पांचसो रुपयेसेभी कुछ अधिक के अवश्य हैं, इनको तुम लेजाओ, भने प्रसन्न होकर तुमको दिये, फिर कभी जरूरत होगी तब तुमको बुलालूंगी, वुढिया उन कडोंको पाकर बहुत प्रसन्न होगई. वे कडे पीतल के थे और उस सुनारने बडो चतुराईसे उनपर सोनेका पानी फिराया था, बुढियाको उससमय पहचान नहीं मिले. झट उन कडोंको अपनी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुर्तीकी जेवमें डालकर मुनारसे बोली, अभी सवेग है, जल्दी इस मटकेको इमारे घर पहुँचादो. उन विनासींग पूंछके बैलने वह मटका अपने शिरपर रखलिया. जब बाजारमें पहुंचा तो पूरी कचेरी बनानेवाला एक ब्राह्मण अपनी दूकानपर बेटा कडाही थाली आदि बर्तन धो रहाथा, इस सुनारको सुथरे कपडे पहिने शिरपर एक कोरा मटका धरे आता हुआ देखकर विचार करने ल aa कि, इस मटके में क्या है, एक बुढिया भी इसके आगे आगे चली आरही है, यह बात क्या है, ऐमा सोचकर सुनारकी ओर टकटकी बांधकर देखने लगा, सुनार दूरहीसे उस ब्राह्मणको टकटकी लगाये देखकर मनमें सकुचाया. क्योंकि उस ब्राह्मण और सुनारकी जान पहिचान थी. जब सुनार उसकी दूकान के नीचे आया जहाँ वर्तन धो. नेसे कीच होरहीथी, वहां आतेही सुनारने दूमरी ओरको . मुंह फेर लिया ज्योंही मुंह फेरा त्योंही कीचमें पांव फिसला, और धड़मसे पृथ्वीपर गिर पडा, मटका गया, उसमेंसे वह मस्ताना छैला निकाल पढ़ा, और झटपट P.P. Ac. Gunratnasuri Jun Gun Aaradhak Trust Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 81 भाषाटीकासहित. अपनेको समाल उस सुनारकी गर्दन पकडकर बोला, कि.. रे नादान इसतरह कोई किसी भले मानसपर मटका पटस देता ! ईश्वग्ने मुझको बचाया नहीं तो आंख फूट जातीयह सुन वह उल्लू घबडागया, हात जोड़ पैरों पड़ जमे. तैसे विनतीकर उस मस्तानसे अपना पीछा छुडाया. तर उस बुढियाने कहा, कि यह मटका मेरे बड़े कामका था, मेरा बेटा सुन पावैगा तो मुझको घरमें नहीं रहने देगा. - और न जाने तेगे क्या गति करै. यह सुनकर उस. सुनारने बुढियाको पचीस रुपये देकर कहा कि यह रुपये तुम लो अब हमारे पास कुछ नहीं है, नहीं तो और देते, हमारा अपराध क्षमा करी. यह सुनकर बुढिया चली गई. ब्राह्मण दुकानदार,इस चरित्रको देखकर मनमें कहनेलगा कि, ऐसा तमाशा हमने आजतक नहीं देखा सुनारंने अपके घर जाकर सब हाल अपनी स्त्रीसे कह सुनाया. तब स्त्री बोली कि, तुम बडे नादान हो. नाहक. बुढियाको 25 पचीस रुपये दे आये, देखो मैंने पीतल के. कडे बुढियाको दिये और चारसौ रुपये बचाये, यह P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82 स्त्राचरित्र. सुनकर सुनार चमेलीकी बुद्धिकी प्रशंसा करने लगा, अपने स्वामीको प्रसन्न जानकर चमेली बोली कि, स्वामी जो तुमने छै महीने पहले बोल बोलाथा, कि चतुर परूघाँकी स्त्रियाँ क्या मजाल है जो दूसरोंसे आंख मिलासके उसी बातपर हमने यह चरित्र तुमको दिखलाया, वह मर्द जो तुह्मारी गर्दन पकडकर तुमको धमकाने लगाथा वही उस मटकेमें बन्द था, तुह्मारेही शिरपर मेरे पास आया और तुम्हारेही शिरपर बैठकर चलागया, परन्तु मुझको हाथ नहीं लगा सका. यह सुनकर सुनार भौचक रहगया और बोला कि, वह पुरुष तो थोडी उमरका बहुत सुन्दर था, उससे तुम बची होगी. चमेलीने कहा जैसे तुम पापी हो वैसेही दूसरों को समझते हो, एक वह क्या, यदि उसके साथी सो पचास छैल मेरेपास आ तोभी तो मुझको हाथ नहीं लगा सकते. रातभर मैंने उसको मीठीबातों में बहलाया, सबेरा होतेही वह चलागया, यदि वह छैल हमारे पसन्द होता, तो हम उस बुढियाको पीतलके कडे क्यों देती.देखने तो तुम बडे चतुर हो, परन्तु तुममें बुद्धि नाममात्रभी -- P.P.AC.Guriratnasuri Jan Gun Aaradhak Trust Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. नहीं है. स्त्रियोंकी रक्षा इसप्रकार नहीं की जाती, कि जैसे तुम दरवाजा घरे बैठे रहते हो और किसीको जाने आने नहीं देते. ऐसी चौकसी और रखवाली करना मूरों का काम है जो स्त्री बत्रै तो अपने आपसे, नहीं - तो वापसेभी नहीं. सुनों स्त्रियोंकी रक्षा करनेका मुख्य उपाय यह है, कि उनको पढावै, लिखाचे, पतिव्रताओंका धर्म सिखावै, और पुराणोंमेंसे शुभ लक्षणवाली स्त्रियों के इतिहास सुनावै, इस उपायसे स्त्रियोंका सुधार हो सकता है. चमेलीकी यह बात सुनकर उस सुनारका सब भ्रम जाता रहा, उसदिनसे फिर कभी अपनी स्त्रीकी चौकसी नहीं की ऐसेही स्त्रियों के चरित्र होते हैं / / इति // मुखदेई चरित्र 4. एक साहूकारकी स्त्रीका नाम मुखदेई था. वह रूपमें बहुतही सुन्दरी थी. साहूकारका नियम था, कि दिनके दश बजेतक स्नान, ध्यान, पूजन, भोजनसे निश्चिन्तहोकर दूकानपर जा बैठता था. फिर किसी आवश्यक .PP. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 84. iran n स्त्रीचारत्र. कामके लिये कदाचित् घरपर आजाय, नहीं तो सर्वदा सन्ध्यासमय दूकानसे आया करताथा. दिनभर बैठे। रहने के कारण रातको आतेही भोजन करके साहूकार सो रहता था. कभी कभी बहुत खिझानेसे उठकर सेठानीजी बात चीत करलेताथा पातु सेठानीजीका मन महीं भरता था. कारण यह कि साहूकारकी अवस्था पचास वर्षकी थी, और सेठ नीजी वीम वर्षकी पट्टी, एक तो अवस्था अधिक, दूमरे दिनभर बैठे रहनेके कारण साहूकार नपुंसकसा होगया था. प्रायः सुना जाता है, कि जो पुरुष पलथी मारकर बहुत बैठा रहता है वह नपुंसकसा हो जाता है, साहूकारका हाल देखकर उसकी स्त्री सुखदेईका चित्त दुःखी रहता था. एक दिन सुखदेईने अपने मन में विवार किया कि, सुख भोगकी अवस्था यही है, क्यों यह अ. पनी अवस्था मैं व्यर्थ दुःखमें बिताऊं. कुछ दिन तो मुख से भोग विलासकर लूं, अभी मेरा पतिभी जीता है, इस अपने पतिरूप टट्टीकी आडमें होकर सब तरहकी शि. कार खेल सकती हूं. यह विचार कर सेठानीने कोठेपर Gun Aaradhak,Trust.. naSUIMS. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. बैठ बैठकर तीन चार यार बना लिये, जब साहूकार दूकानपर चला जाता था तब सेठानीजी अपने यारोंके साथ रमणकरके मनही मन प्रसन्न रहतीथीं. परन्तु इस चतुराईसे काम करती थीं कि एककी मुधि दूसरे यारको नहीं होती थी. क्योंकि साहूकारका घर बहुत बड था, और सेठानीजी इसकाममें बहुत चतुर होगई थीं. जब इच्छा होती थी तब रातकोभी किसी यारको बुलालिया करती थी. ऐसेही विहार करते हुये सेठानीजीको कई महीना बीतगये. कभी कभी सेठजी अपनी दूकानकी वही साथ लाकर दिनका भूला हुआ हिसाब उसपर ठीक करके लिख लेतथे. वह वही एक दिन घरपर भूलकर दूकानको चले गये. वहां बैठे तो याद हुई कि, वही घरपर रहगई, इतने में सेठजीके पुरोहितका लडका दूका. "नके सामने होकर निकला. देखतेही सेठजीने पुकारकर कहा कि हमारे घर चले जाओ. आज हम वहीखाता भूल आये हैं, सो हमारे लिये लादो. नौकर कानपर कई एक हैं परन्तु हमैं किसीका विश्वास नहीं तुम हमारे पुरो .P.P.AC.Gunratnasuri-MS Juh Gun Aaradhak Trust.. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. हितजीके बेटे हो और सेठानीजीको तुह्माग पर्दाभी नहीं है, इससे तुमको भेजते हैं. यह मुनकर वह पुरोहितका लडका सेठजीके मकानपर जा पुकारा. सेठानीजी उसी समय आये हुये अपने यारको साथ भोगविलास कर रही थीं. उस यारको छिपाकर द्वारके किंवाड जाय खोले / पुरोहितका लडका भीतर आया और सेठानीजीसे कहने लगा कि, आज दूकानका वहीखाता जो कल रातको सेठजी लाये थे वह घरपर भूलगये हैं, सो हमारे हाथ मंगाया है, जल्दी देदो. सेठानीजीने पूछा कि तुम कौन हो और कहाँ रहतेहो वह लडका बोला कि सेठानीजी! क्या आप हमको भूलगई हो, मैं आपके पुरोंहितका लडका हूं छोटेपर अपने पिताके साथ तुमारे घर आया करता था, फिर मैं अपने ननिहालको चला. गया अब दशवर्ष पीछे लौटकर आया हूं. उस समय मेरी अवस्था दश वर्षकी थी. अब मैं वीसवर्षका हूं. यह सुनकर सेठानी अपने सब यारोंके मूलगई और उस लडकेपर मोहित होकर बोली, कि पहले जब तुम हमारे Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri-M.S. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ भाषाटीकासहित. 85 यहां आया करतेथे तब तो इतनेमुन्दर न थे. पर अब तुह्मारा स्वरूप ऐसा जान पडता है कि, मानो साक्षात् कामदेवका अवतार हो. लड़केने जवाब दिया, कि सेठा नीजो ! पन्द्रह वर्षकी अवस्था तक लडकेदुबलशरि रहा करते हैं. इसका कारण यह है, कि जन्म होतेही लडकेका शरीर तीनवर्ष तक बहुतही कोमल रहताहै. सर्दी, गर्मी बहुत जल्दी सताती हैं. गरिष्ठ वस्तु पचती नहीं. और जब दांतनिकलते हैं, तबभी बालकका शरीर दुबला होजाता है और भूख कम लगती है, अच्छी तरह खाया नहीं जाता.. अनन्तर पढने लिखनेका जब समय आता है, तब पढने लिखनेमें चित्त नहीं लगता, खेल कूदमें सदा मन लगा रहता है, इसीसे घरवाले पढ़ने लिखने के लिये मारते पीटते हैं, और अनेक भय दिखाकर शिक्षा देते हैं, जिससे बालकका चित्त पीड़ित रहता है, कान्ति मलीन हो जाती है, शरीर दुबला हो जाता है. परन्तु जह बालक कुछ कुछ समझने लगताहै कि मेरे माता पिता आदि सब मेरी भलाई के लिये शिक्षा देते हैं, पढाते हैं, P.P.AC..Gunratnasuri M. Jun Gun Aaradhak Trust Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. तब बालक मुखी रहकर विद्या पढने में मन लगाता है, दिन दिन उसकी कान्ति बढती है, सेठानीजी ! जब पहले मैं तुमारे यहां अपने पिताके साथ आया करताथा तब मैं कमसमझ था, पढ़ने लिखने के लिये मुझको ता. डना दी जाया करतीथी. फिर जब मैं ननिहालको गया वहां मेरे नाना बडे भारी पंडित हैं, उनके पास में पढने लगा और दोचार वर्षमें विद्याका कुछ आनन्द आया. तब मैं प्रसन्नतासे विद्या पढने लगा, शरीरमें बल बढने लगा, मस्तकपर तेज झलकने लगा, वायकी रुकावटसे दिन दिन हमारी कांति बढने लगी, नानाके घर किसी बातकी कमी नहीं है, खाने पहिरनेका क्लेश हमको कभी नहीं हुआ यही हमारे सुन्दर होने का कारण है. यह सुनकर सेठानीजी बोली कि, तुह्मारा कहना बहुत ठीक है. तुह्मारा रूप देखकर हमारा मनं हमारे काबूम , नहीं रहा. उचित है, कि तुम मुझको रतिदान देकर / जाओ. सुनतेही लडका बोला सेठानीजी ! तुह्मारा कहना हमको अंगीकार नहीं. सुनो P.AC: Gunrathasuri Sun Aaradhak Trus Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __भाषाटीकासहित __ “लंकेश्वरो जनकजाहरणेन वाली तारापहारकतयाप्यथ कीचकाख्यः // पाञ्चालिकाग्रहणतो निधनं जगाम तच्चेतसापि परदाररतिं न कक्षित् // ___ अर्थः-श्रीजानकीजीको हरलेजानेसे लंकापति (रा. वण) और तागका अपहरण करनेसे वाली वानर, तथा पांचाली (द्रौपदी) को ग्रहण करनेसे कीचक (राजा विराटका साला) मारागया, इसकारण मनसेभी पराई. स्त्रीके सात रमण करनेकी इच्छा नहीं करना चाहिये।।१।। . यह सुन सेठानी बोली, यह तुम्हारा कहना ठीक है, परंतु तुम्हारा दृष्टांत घटित नहीं होता. रावण सीताको बलात्कारसे हरण किया, और वालीनेभी सुग्रीवको निकालकर ताराका अपहरण किया, एवं कीचकनेभी द्रौपदीको बलात्कार पकड लिया था, सो यहां हमारे तुम्हारे बीच यह कोई बात नहीं.. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. तब वह लडका कहने लगा कि, जो पुरुष जिस स्त्रीकेसाथ रमण करता है, उसीकी चिंता उसको सर्वदा रहती है, जैसे-- "उर्वशीसुरतचिन्तया ययौ संक्षयं किल पुरूरवा नृपः // रक्षणाय निजजीवितस्य तत्संभजेत्परवधूं न कामतः" // अर्थः-राजा पुरूरवा उर्वशी अप्सराके साथ निरंतर रमण करनेकी चिंतासे क्षयी होगया, अत एव सजन अ. पने जीवन की रक्षाके निमित्त पराई स्त्रीके साथ रमण करनेकी इच्छाभी नहीं करते // परस्त्रीगमन करनेसे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है. सेठानी बोली, जगत्में प्रेम अद्भुत पदार्थ है. मैं बहुत प्रेमके साथ तुमको बचन दे. तीह, कि कभी किसी प्रकारका क्लेश तुमको नहीं होने दूंगी, और अपने स्वामीसे अधिक तनमनसे तुम्हारी सेवा करूंगी, क्योंकि मेरी तुम्हारी अवस्था भी एकही है. ईश्वरने संयोग अच्छा बनाया है. P.P.AC.Gunratnasuri M.S.... Jun Gun Aaradhak Trust Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. सेठानीकी बात सुनकर लडका बोला, पराई स्त्रीगमन करनेमें कईएक दोष हैं सो सुनो "आयुःक्षयं विकलतात्युपहास्यता च निन्दार्थहानिलघुता कुगतिः परत्र // स्यादेव यद्यपि रतेन परांगनायाः प्राहस्तथाप्यनघमित्यापि कारणेन' // - अर्थः-पराई स्त्रीके संग रमण करनेसे आयुका क्षय होताहै, मनमें विकलता होती है, और संसारमें हंसी होती है, तथा निन्दा (बदनामी) धनहानि, तुच्छता, मरने उपरांत दुर्गति होती है. इस कारण कभी परस्त्रीगमन नहीं करना चाहिये, यह सुन सेठानीने अपने मनमें विचार किया कि समय निकला जाता है, बात बिडी जाती है, और यह लडका अपनी पंडिताईसे हमारी बा-- तपर ध्यान नहीं करता, अब तो जैसे बने तैसे इस लडकेको अपने वशमें करलूं तो सब काम सुधर जायगा.. यदि इस लडकेको आज मैं अपने वशमें न करसकी .P.AC.Gunratnasuril Jom Gun Aaradhak Trust Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र तो मेरी चतुराईपर धिक्कार है, देखू मुझसे अब यह कैसे बच सकता है. इस प्रकार सोच विचारकर सेठानी बोली, प्यारे ! तुम्हारा कहना ठीक है, तुम बड़े पंडित और ज्ञानी हो, कि तुमने बहुत कुछ पढा और सुना है, परन्तु जान पडता है, कि तुमने और तुमारे गुरुने कोई ग्रन्थ काम शास्त्रका नहीं पढा. जो मनुष्य जिस विद्याको नहीं पढा होता, वह उस विधामें अज्ञानी होता है, तु. मने जो कहा कि पास्त्रीगमन किये आयुका क्षय होता है, इसमें हम पूछती हैं कि क्या अपनी स्त्रीसंभोग किये आयुका क्षय नहीं होता? सुनो इसका मुख्य अर्थ यहहै कि जो मनुष्य निर तर स्त्रीगमन करता रहता है और दुग्धादि पान नहीं करता, उसकी आयु थोडी होती है. कारण यह कि शरीरमें वीर्य प्रधान है वह वीर्य निकाल दियाजाय और उसके बढानेका कोई उपाय न किया जाय तो वीर्य न होनेसे आयुका क्षय हो जाता है. सो __ अभी तुम्हारे शरीरमें वीर्य बढरहा है. दूसरे परमेश्वरने वीर्य बढानेके लिये घरमें सब प्रकारके पदार्थ दे रखे हैं .P.P.AC.Guriratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. कामशास्त्रमें लिखा है कि, “घृतेन वर्द्धते वीर्य घृते. नायुः प्रवर्द्धति" ____घीसे वीर्य बढता है, घीसेही आयुकी वृद्धि होवे है,. ईश्व की कृपा है चाहै जितना घी खाओ. और जो तुमने कहा, कि परस्त्री रमण करनेसे मनमें विकलता हेतिा है. सो मनमें विकलता तो जब होती है कि परस्त्री रमण करने जाओ; और वह प्राप्त न तो अवश्य मन विकल तो जाता है. यहां तो मैं सदा तुम्हारी बाट देखा * करूंगी तुम्हारा घर है चाहै जब चले आना. और हंमी. निन्दा, तुच्छता, धनहानिको जो तुमने कहा, सो तु. मारी हंसी और निन्दा करनेवाला यहां कोई नहीं है, न तुम्हारी तुच्छता है क्योंकि तुन पुगेहितके लडके हो, यजमानके घरपर सदैव जा सकते हो, और धनहानिकी बात जो तुमने कही सो हमारे यहांसे तुमको सदा धन प्राप्त होता है, धनहानि नहीं होती, मुझको तुम्हारे ध. नकी कुछ परवाह नहीं, / और जो तुमने कहा कि, पर ..R.P.AC. Gunrathasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | 94 . स्त्रीचरित्र. स्त्री रमण करनेसे मरने उपरान्त दुर्गति होती है सों यह वृथा भय है, मरने उपरान्त किसने किसकी दु. गति देखी है. सत्य तो यह है, कि कोई स्त्री किसी पुरुषके सामने अपने मुखसे रतिदान नहीं मांगती. और जो मांगती है उसको जो कोई पुरुष रतिदान नहीं देता उस पुरुषको कामशास्त्रमें महापापी कहते हैं, इससे हे प्यारे! हमारे कहनेका अंगीकार करो हम तुमको प्रतिदिन एक रुपया दिया करेंगी. __ यह सुन वह लडका मनमें सोचने लगा कि सेठानीका कहना बहुत ठीक है, स्त्री रमण सम्बन्धी बातें कामशास्त्रमें लिखी हैं सो हमने पढा नहीं. सेठानीके -संग रमण करनेमें कुछ दोष नहीं. क्योंकि सेठानी एक तो अवस्थामें भी हमारे समान है, दूसरे धनधान्यसे पूर्ण है, और हमको एक रुपया प्रतिदिन देने कहती है, इससे बढकर और क्या चाहिये, हमारे लिये भोजन और _भोग दोनों पदार्थ तैयार है. यह रिचारकर वह लडका VAC. Gunratnasuri M.S. Jun'Gun Aaradhak Trust Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. बोला, सेठानीजी ! यदि तुह्मारी यही इच्छा है तो कुछ चिन्ता नहीं. सेठानीजी यह बात सुनतेही प्रसन्न होगई, और मनमें कहने लगी, कलियुगका समय है, क्या पं. डित, क्या गुणी, क्या चतुर सबही स्त्री और लक्ष्मीके वशमें हैं. कवित्त / नख बिनकटा देखे शीश बहु जटा देखे जोगी कनफटा देखे छार लाय तनमें। गुणी अनबोल देखे बड़ा शिरखोल देखे करत कलोल देख बनखंडी बनमें // पीर देख सूर देखे गुनी और क्रूर देखे माया भरपूर देखे भूलरहे धनमें। आदि अन्तसुखी देख जन्महोके दुखी देखे पर वे न देखे जिनक लोभ नाहि मनमें // 1 // लक्ष्मी देवी बडी बलवती है, जिसका नाम लेतेही मनुष्य वशीभूत हो जाता है, लक्ष्मीही आंख रहते मनु P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 96 स्त्रीचरित्र व्यको अन्धा, कान रहते बहिरा, और वाणी रहते मूक बना देती है. - “मूकत्त्वं बधिरत्वं लक्ष्मीःकरोति नरस्य को दोषः॥ गरलसहादरभ्राता तच्चित्रं यन्न मा रयति'। __ वाणी रहते मृक और कान रहते बधिर लक्ष्मी करती है, मनुष्यका कोई दोष नहीं. क्योंकि समुद्रमे निकली हुई लक्ष्मीका छोटा भाई विष है. यह आश्चर्य है कि लक्ष्मवि'न् पुरुष लक्ष्मीके घमंडसे निर्धनीकी ओर भली भांती न देखता है, न बोलता है,न उमकी बातको ध्यान देके सुनता है, अन्धों और बहिरो की नाई टाल देता है। . सेठानी अनेक बातें सोच समझ अपना भाग्योदय जान ब्राह्यणदेवताका दाथ पकड एकान्तमें लेगई... उसने फिर एक पलंगपर बैठा हाव भाव कटाक्षकर प्रेमभाव दर्शया, तब उस पवित्रमूर्ति छलने अपना कामदेव रूप जल पान कराय सेठानीजीकी प्यासको बुझाया, और P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित भलीभांति तृप्तकिया, इतनेमें सेठानीजीका और एक यारु ' आपहुंचा उसकी आहट पाय सेठानीजीने उस लड़के को वहीं छिपाया, और झट उस अपने यारके पास आय मठिी मगि बातें करने लगी, उसी समय साहूकार किसीसे बातें करते हुये अपनी गलीमें आपहुंचे. सो सुनकर सेठानीजी,बोली कि आज सेठजी आगये हैं सुनतही सेठानीका यार बोला, हमको किसीप्रकार बचाओ, और * अपनीभी रक्षाकरो. सेठानीने कहा कुछ चिंता मतकरो अपने शिरकी चोटीके बाल अभी खोललर फैलादो और यह अपना कटार हाथमें दिखाते और हिलाते हुये पागलों की तरह बकते झकते निकल जाओ, फिर मैं सब बात "बनालूंगी. यह युक्ति सुनकर उसने वैसाही किया. साहूकारने उसको जाते देखकर सेठानीसे पूछा कि यह कौन पुरुष थाजो हमारे बराबर होकर निकल गया. तब सेठानी बोली आज परमेश्वरने तुम्हारि और हमारी दोनोंकी रक्षा कि, अच्छाहुवा जो इस समय तुम आगये नहीं तो आज मेरे प्राण नहीं बचते. पहले इस हमारी गलीमें PP.AC.Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - -- स्त्रीचरित्र. दो मनुष्य लडते हुये सुनपडे, फिर एक मनुष्य हमारे घरमें घुसकर इस कोठरीमें चला गया. पीछेसे यह पागल आकर हमसे बोला कि, हमारे इस साथी को अपने घरसे निकालदे जो तेरे घरमें आके छिपाहै, नहीं तो यह कटार तेरे पेटमें घुसादूंगा, और जान निकाल डालूंगा, इसको देखकर मैं घबडागई और तुह्मारे पुरोहितका लड़का जो हमसे वहीखाता मांगरहाथा वह भी इस पागलको देखकर डरगया और भाग कर दूसरी कोठरीमें जाघुसा. मेरा कलेजा मारे डरके अब तक कांप रहाहै. यह कहकर अपने यारको कोठरीसे निकाल दिया, वह सेठजीके आगे निकला चलागया. सेठानीने कहा उस पागलके डरसे यही आदमी भाग कर हमारे घरमें घुसपडाथा. तब सेठने कहा कि, वह ल. डका कहां है ? सेठानीजीने उसको बुलाया, बुलातेही वह कोठरीसे निकल आया, उससे सेठजी बोले, तुम हमारे पुरोहितके लडके हो और अच्छी तरह पढलिखकर बहुत दिनों पीछे ननीहालसे लौटकर आये हो, उचित P. P. Aci Gunratnasuri Jun Gun Aaradhak Trust Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . भाषाटीकासहितः / समझो तो सेठानीजीको आकर पढा जायाकरो, औ पतिव्रताधर्म सुनाया करो. ब्राह्मण देवताने सेठजीकी बातको तुरंत अंगीकार करलिया, 'जोई रोगीके मनभावे, सोई वैद बताई आय // , अब तो ब्राह्मण देवता नित्य . सेठानीके पास आकर अपने दिन सुख चैनसे बिताने लगे. सेठानीभी परमआनन्दसे रहने लगी. देखिये स्त्री चरित्र कि दोयारोंको अपने पतिके सामने निकालदिया और एकको पतिकी आज्ञासे सदाके लिये अपने समीप रखनेका प्रबंध करलिया धन्य स्त्रीकी चतुराई, भला स्त्रियोंसे कौन पार पासकता है ? // इति // गोपीचरित्र 5. है. एक सौदागरकी स्त्रीका नाम गोपी था वह सुन्दरी बडी चतुर और चचंल थी, सौदागर सर्वदा सौदागरी के लिये बाहर जाया करताथा और गोपीके पास एक बुढियाको रखदियाथा. जब सौदागर बाहर चला जाताथ तब गोपी उस बुढाको भेज कर अपने यारोंक बुला 2 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रकर सुखभोग किया करतीथी. कई कुटनियोंसे गोपीने मेल मिलाप करलियाथा और सबको प्रसन्न रखतीथी। जिस कुटनीको किसी सुंदरीकी चाहहोतीथी वह गोपी को बुलाले जायाकरतीथी. गोपी अपनी घरकी रखवाली करनेवाली बुढियाको सबतरहसे प्रसन्न रखतीथी, बहुत दिन बीतजाने पर वही सौदागर भूलकर अपनेही नगरमें लौटआया, और रात होजानेसे सरायमें जा उतरा. प्रायः मनुष्य जो बाहर सौदागरी करने जाया करते हैं और वर्षोंतक परदेश भ्रमण करते रहते हैं। उनको अपने नगरकी पहिचान नहीं रहती. अपने घरके समीप दो चार चि होंके सिवाय और पहि चान उनको नहीं रहती-दूसरे रात हो जाने के कारण सौदागरको अपने नगरकी कुछभी पहिचान न होसकी। भठियारीने एक पलंग डाल दिया उसपर सौदागरने अपना बिस्तर जमाया जब कुछ रातबीते खापीकर सौदागर निश्चिन्त हुवा, तब भठियागसे बोला कि, तुमारे शहरमें कोई नवेली सुन्दरी हो तो लाओ. आज बहुत P.P. Ac. Gunratnasuri Jun Gun Aaradhak,Trust Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितदिनोंसे हमने किसी स्त्रीके साथ भोगविलास नहीं किया है. यह सुनतेही भठियारी बोली कि, मैं कुटनीके काममें बहुत चतुर हूं. ऐसी सुन्दरी नवेली अलबेली - तुम्हारे लिये लाऊं कि जिसको देखतेही तुम फडक जाओ अपना घर भूल जाओ. यह कह वह भटियारी बिना जाने उसी सौदागरकी स्त्री गोपीके पास आकर बोली कि, आज हमारे यहां एक सोनेकी चिडिया आई है. यदि तुमसे फांनते बनपडै तो फांसलो. आज सरायमें एक सौदागर नौ जवान आके उतरा है. देखनेमें वह बडा मालदार जान पड़ता है, और कुछदिन यहां ठरहना चाहता है, उसने मुझसे कहा कि कोई सुन्दरी छबीली हमारे लिये ले आ, सो मैं तुम्हारे पास आई हूं. चलकर उस सौदागरको अपने वशमें करलो. यह सुन गोपीने कहा कि, चलो मैं अभी चलती हूं. देखो कैसी चतुराईसे मैं 'एक पंथ दो काज' करतीहूं. उस सौदागरसे भोगविलासभी करूंगी और उसको प्रसन्न करके उसका माल असवाबभी अपने वशमें कर लूंगी. यह कह गो ..AC..GunratnasuriM.S Jun-Gun AaradhakTrust Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 98103 स्त्रीचरित्र. नौने बनठनकर अपना श्रृंगार किया, और डोली मंगाया बडी सजधजसे उसमें जाय बैठी. जब डोली सरायमें पहुंची तो उस सौदागरको दूरसेही देखकर पहिचान लिया कि यह तो हमाराही पति है, तब झट भटियारीको पांच रुपये देकर बोली कि तू कुछ मत बोलना. देख कैसा __ अपन चरित्र दिखातीहूं. ऐसे भटियारीको टालकर अप ना शृंगार बिगाड डोलीसे कूदकर सौदागरके पास जाय दो. घूसे जमाये और बोली कि, रे कुकर्मी, तुझको लाज नहीं आती कि मुझे छोडकर रंडीबाजी करता फिरता है. तेरे पीछे विरहसे व्याकुल होकर मैं एक एक दिन वर्षभरके बराबर काटतीहूं और तेरा यह हाल है. अप शहरमें आकरकेभी कुकर्म करना चाहता है, भला हो इस भठियारीका, जिसने तुझे पहिचानकर तेरा समाचार मुझसे जाकर कहा, मैं तुरन्त डोली मंगाय उसपर चढकर यहां दौडी आई, यह मुनतेही सौदागर मारे लाजके कुछ न कह सक, तुरन्त अपनी स्त्री गो- पीके साथ अपने घर अया. यह वही मसल हुई कि, C.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104 भाषाटीकासहित. 'चोरी और सीना जोरी, लौटि चोर कुतवाले डांटै / स्त्रियोंके चरित्र अपार हैं / इति // शिवदेई चरित्र 6. एक बनियेकी स्त्रीका नाम शिवदेई था, वह रूप रंगमें बहुत सुन्दर थी और अपने कोठेपर बैठके अपने नैन बाण चलाय बहुतोंको घायल किया करती थी. एक दिन सन्ध्यासमय कोठेपर बैठी थी, इतनेमें एक छैल छबीला पचीस तीस वर्षका पट्टा वहाँ होकर निकला. देखतेही शिवदेईने ऊपरसे एक कंकरी उसके आगे फेंकदी, ज्योंही उसने ऊपरको निगाह उठाई, त्योंही शिवदेईने नैन बाण चलाय छैलको घायल कर दिया. और द्वारपार आनेका इशारा करके झटकोठेपरसे उतरकर दरवाजेपर आगई किंगाड खोल छैलका हाथ पकड घरमें ले आई और उसकेसाथ भोग विलास करने लगी. जब कुछ देर तक आनन्द लूट चुकी, इतनेहीमें शिवदेईका पति आकर पुकारने लगा कि, किंवाड खोलदो. सुनतेही शिव .P.P.AC..Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . स्त्रीचरित्र ईने दीपक बझाय अपने यारको अपने पीछे बिठालिया और अपनी संखीसे कहा कि, जाकर किंवाड खोलदो. भीतर आतेही शिवदेईका पति कहने लगा कि, - प्यारी ! आज क्या बात है ? जो अभीतक दीपक नहीं जलाया और अँधेरेमें बैठीहो. शिवदेई बात बनाकर बोली स्वामी ! क्या कहूं. परोसकी स्त्रियोंके चरित्र देख देखकर मेरा मन घबरा रहा है यही चित्त चाहता है कि, इस मु. .. हल्लेसे निकलकर और कहीं जारहूं. बनियां बोला कुशल तो है. तब वह बोली अभी एक स्त्री अपने यारको संग लिये भोगविलास कर रहीथी, इतनेमें उस स्त्रीका पति आपुकारा, तब उस छत्तीसी स्त्रीने झटपट दीपक बुझाय अपने यारको पीछे बिठा लिया और अपनी सखीसे कहा जाकर किंवाड खोलदो. जब उसका पति भीतर आया तब जैसे मैं तुम्हारे शिर परसे दुपट्टा डाल “तुम्हारा शिर दवातीहूँ, ऐसेही उसने छलकर अपने यारको __बाहर निकाल दिया, शिवदेईकी यह बात सुनतेही वह छैल समझ गया. और झटपट घरसे निकलगया, तब PP.Ac. Sunratnasuri M.S.... Jun Gun Aaradhak.Trust' ... ... Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 106 17 शिवदेईने पतिकी आंखें खोलकर कहा कि स्वामी ! ऐस.. स्त्रियोंके परोसमें रहना अच्छा नहीं. शिवदेई के इस -चरित्रको वह अन्धावनियां कुछभी न समझसका, और कहने लगा कि प्यारी ! तुम अपने आप मनसे भली रहो. दूसरी स्त्रियोंकी अच्छाई बुराईसे तुम्हारा क्या प्रयोजन है. हमको तो तुम्हारी अच्छाईसे मतलब है. दूसरी ‘जो जैसा करेगी, वो वैसा भरेगी' यह कह सुनकर स्त्री पुरुष दोनों चुप होरहे. ऐसेभी मनुष्य होते हैं जो स्त्रियोंके छलको न देख सकते हैं, और न बुद्धिसे जानसकते हैं, ऐसे पुरुषको बिना पूंछ व सींगोंका पशु कहना चाहिये // इति // - चम्पकली चरित्र 7. एक तंबोलीकी स्त्रीका नाम चम्पकली था. वह बडी चालाक चतुर और व्यभिचारिणी थी. जब तम्बोली अपनी दूकानपर चला जाता तब अपने यारके साथ आनन्द भोग किया करतीथी. परन्तु तम्बोलीने कभी इसको . P.P.AC.:Gunratnasuri M.S. Jun-Gun Aaradhak Trust Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 95 101 स्त्रीचरित्र. ही पकड पाया, वह यही जानता था कि, मेरी स्त्री बडी पतिव्रता है. एकदिन तम्बोली दिसावरको पान लेनेके लिये चला, तब अपनी स्त्रीसे कहने लगा कि मैं परदेश- को जाताहूं, तीन चार दिन पीछे आ जाऊंगा. तुम बहुत अच्छी तरहसे रहना, किसी बातकी चिंता नहीं करना. यह सुनकर चम्पकलीने कहा, प्यारे मैं बिना तुम्हारे कैसे तीन चार दिन काढूंगी. तुम जानते हो, कि तुम्हारे बिना किसी पुरुषका मुंह नहीं देखा, एकएक पल मैं तुम्हारे नागिनती रहतीथी, जब तुम सांझको आतेथे तब आते ही तुमको देख अपना मन प्रसन्न करलेतीथी. दिनभर की उदासी सांझ होतेही दूर होजाती थी, सो चारदिन में कैसे विताउंगी? यह मुझको बडा भाग खटका होगया तम्बोली बोला प्यारी ? तुम नाहक इतनी उदास होती हो, क्या किसीके पति विदेश नहीं जाते हैं. धीरज धरना और प्रसन्नतासे हमारे आनेकी बाट देखना. हम विदेशसे तुम्हारे लिये अनेक अच्छी अच्छी बस्तुयें लावेंगे. चम्पकलीने जवाब दिया कि अच्छा तुम्हारे गये बिना नहीं .P.P.AC.GunratnasuriM.S., Jun Gun Aaradhak Trust. / Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1081017 * भाषाटीकासहित. बनता तो अवश्य जाओ. मैं आशा लगाये बैठीरहूंगी और धरिज धरलूंगी. चम्पकलीकी बात सुनकर आशा भरो.. सा दे तम्बोली चलागया. तब चम्पकली मनमें प्रसन्न होकर कहनेलगी, कि अब चारदिनके लिये मैं सुचित होगई, तबतक तो बेखटक आनन्द करलूं. फिर देखा जायगा. यह सोच समझकर कोठेपर चढगई और जो खिडकी गलीमेंको थी, उसमें बैठकर ताक झाक लगाने लगी. इतनेमें एक साहूकारका लडका बहुत सुन्दर अ. च्छे अच्छे कपडे पहने इतर लगाये पान खाये धीरेधीरे टहलता हुआ उसीगलीमें होकर निकला. उसकी चाल. और उसके रूपकी छटाको देखकर तम्बोलिन उसपर ऐसी मोहित होगई कि उसको अपने तनमनकी सुधि भूलगई, फिर तुरन्तही समलकर सोचने लगी कि, यदि यह हाथसे निकल जायगा तो फिर इसको हम कहां खोजेंगी, पीछेसे पछतानेके सिवाय कुछ हाथ, नहीं आवेगा. यह सोच समझ खिड़कीसे अपना शिर बाहर निकाला, तुरन्त उस साहूकार जादेकी निगाह P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9.108 स्त्रीचरित्र. परको उठी, तब तम्बोलिन हाथ जोड़कर अपने = मकानमें बुलाया. उसने कहा, तुम कौनहो ? जो बिना - पहिचाने हमको अपने घर बुला रही हो. तम्बोंलिन बोली, आपकी नई तवेली प्यारी हूं इसी समय तुमको देखकर मोहित हुईहूं. मेरा पति पर देशको चलागया है और घर अकेला है. आप -- कीसी बातकी चिन्ता न कीजिये, बेखटके मेरे घर चले आइये. इतनी बात सुनतेही साहूकार जादा मनमें सोचने लगा, कि यह औरत अभी थोडी - आशक होकर बुला रही है, तो हम क्यों न इसकेपास जाकर इसकी इच्छा पूरी करें. हमको ईश्वरने रूप दिया है और मर्द बनाया है, इसका यही फल है. कि किसीके काम आवै. जो हम इस समय इसका मन दुखी करेंगे तो हमको पाप होगा. परंतु हम भले मानस हैं, किसीके घरपर जाना और छिपकर ऐसा काम करना उचित नहीं. आज चलकर घंटे दो घंटेभर बिहार करलूं, फिर देखा P. Ac Gunratnasuri.M.S, Jun Gun Aaradhak Trust Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित... 1.10 117 जायगा. यह सोच विचारकर साहूकारका लडका तभ्यो लिनिके घरमें घुसगया, और तम्बोलिनिके मनको दो घंटातक प्रसन्न करता रहा चलते समय साहूकारके लड.. केने कहा कि आज हम तुम्हारे बुलानेसे तुम्हारे घर आये परंतु अब हम नहीं आवेंगे, तुम्हारी इच्छा हो तो हमारे घरपर तुम नित्य आजाया करना. यह बात सुनकर तम्बोलिनिने कहा प्यारे! अपना स्थान मुझको बताना कि, मैं वहाँ आजाया करूं. साहूकार बेटेने कहा कि - ज्यौहरी मुहल्लेमें जो सबसे ऊंचा मकान है वह मकान - हमाराही है उसके फाटकपर ऊपर हवावाला पहला कमरा हमारे रहनेका है ऊपर जानेके लिये बाहरसे खिडकी लगी है उसीमें ऊपर चढने के लिये सीढियां बनी हैं हम अपने नौकरसे कहदेंगे, तुम्हारे आनेकी रोक ठोक किसी समय नहीं होगी. यह कहकर साहूकारका लडका चला गया. तब तम्बोलिनि / उसदिन तो अपने घरही पर रही. दूसरे दिन शृंगार - कर बनउनके साहूकारजादेके कमरेमें पहुंची दोनों P.P.AC. Gunrathasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - स्त्रीचरित्र. में कुछ देरतक आनन्द रही, फिर वह अपने घर - लौट आई, रात होनेपर फिर वहीं पहुंची, साहूकार जा; देने अपने मनमें कहा कि अच्छी चिडिया हमारे हाथ आई, कि अनायास आपही समयपर आ जाती है. एक दिन साहूकारजादेने तम्बोलिसे कहा कि प्यारी ! हमारेपास आनेमें तुमको बड़ा क्लेश जान पडता होगा. क्योंकि उतनी दूरसे अकेली रातमें आती हो, यह सुन तम्बोलिनिने कहा कि प्यारे ! प्रेमका पंथही निराला है, इस पंथमें न कांटा है, न कंकर, न लाज है, न शरम है, न किसीका डर है. जिससमय मेरे शरीरमें आग उठ तीहै और आपकी याद आती, उस समय आपकेपास बेखटके चली आती हूं मेरे शरीरसे प्रगट हुई आगको बुझानेके लिये आपकेपास बहुत अच्छा आला है. जिससमय वह अपना आला निकालकर आप मेरे शरीरपर फेंकते हैं उसीसमय आग बुझ जाती है और मेरा मन शान्त होजाता है. अधिक क्या कहूं, रात दिन आपकी मोहनीमूर्ति मेरे मनमें बसी रहती है, कभी भूलती P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak frust. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. भाषाटीकासहित 112 117 नहीं है. इसीप्रकार पांचदिन बीतगये. छठे दिन तम्बा, लिनी ज्योंही शृंगारकर चलनेको हुई त्योंही विदेशसे तम्घोली आगया, उसको देखतेही तम्बोलिनिका मन उदास होगया. तम्बोलीने उसको देखकर कहा, प्यारी ! - तुम क्यों उदास बैठीहो ? देखो हम तुम्हरे लिये विदेशसे कैसी कैसी अच्छी वस्तुयें लाई हैं, लो यह हाथोंमें प. हिरनेके कडे हैं, ये कानों में पहिरनेकी. बालियां हैं, ये नथमें डालने के लिये सच्चे मोती हैं, ये कंठो पहिरनेका चन्द्रहार है, ऐसेही तम्बोली बडे प्रेमकी बात करताथा, : परंतु चम्पकलीका मन दूसरी ओर लगाथा. दिनभर तो तम्बोलिनिका जाना साहूकारजादेके पास नहीं हुवा. जब रातको तम्बोली सोगया, तब तम्बोलिनि अवसर पाय साहूकारजादेके पास गई, साहूकारजादा दिनभरका झुंझलाया हुआ बैठाया. तम्ओलिनिको देखतेही बोला, हरामजादी तू आज दिनभर कहां रही जो इससमय आकर मुंह दिखाया. तब तम्बोलिनि बोली प्यार! आज मेरा पति परदेशले आया, उसकी टहलो P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 98 (3 स्त्रीचरित्र. लंगी रही. इससे मेरा आना दिनमें नहीं हुआ, अब वह सेंगिया है, तब मैं आपके पास आई हूं. यह सुन साहूकारजादेने कहा, आज हम तुमसे तबही बात करेंगे कि जब तू अपने पतिको मारकर हमारे पास आवेगी. यह सुन चम्पकली बोली, प्यारे! यह कौनसी बडी बात है यह कह वहांसे लौटकर अपने घर आई और अपने पतिको मारकर साहूकारजादेसे जा कहा, कि मैं आपकी आज्ञासे पतिको मार आई हूं. तब साहूकारजादेने सोच बिचारकर उससे कहा, कि हरामजादी ! अब तू हमारे कामकी भी न रही. क्योंकि जब तूने अपने पतिहीको न समझा तो हम क्या वस्तु है ? यह कह अपने यहांसे निकाल दिया. तम्बोलिनि वहां से आकर अपने पतिके पास बैठकर विलाप करने लगी कि हाय, कोई परदेशसे पीछेही लगाहुआ चला आया और मेरे पतिको मारकर चलागया, ऐसी अनेक बात कहती हुई रातभर विलाप करती रही, दूसरे दिन पतिकेसाथ सती होगई. 'स्त्रीया चरित्र जाने नहीं कोई, पुरुष मारिके सत्ती होई // इति / P.PRAC. ISUEEMS Jun Gun Aaradhak Trust Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 27 117 4 हैं, भाषाटीकासहित महदेई चरित्र एक सौदागरकी स्त्रीका नाम महदेई था. वह बडी चालाक और चंचल थी. उसका पति सौदागरकी करने के लिये विदेश जाकर महीनोंके महीनों अपने घर नहीं आया करता था, और अपनी स्त्रीके पास एक दासीको रखदियाथा. वह दासी महदेईकी आज्ञामें रहकर सदा उ. 'सकी टहल किया करतीथी. महदेईका मकान बाजारमें था नीचेके दरजेमें किरायेपर दुकानदार बैठता था. महदेईका यह नियम था, कि जिस समय खाने पीनेसे निश्चिन्त होती तब शंगार करके बाजार ओर जो खिड़की थी उसमें आ बैठती, और अपने क्ष बाणोंसे अनेकों मनुष्योंको घायाल करती थी. दिन एक पंडित शिरपर पगडी बांधे, जामापहरे, कन्धेपर दुपट्टा डाले, बगलमें पत्रा दाबे, हाथमें एक बहुत बडी पोथी लिये महदे इके सामनेवाली दूकानमें बैठा हुआ, अपनी पोथी - खोलकर पढने लगा. महदेईने कान लगाकर सुना ... P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1980 10 स्त्रीचरित्र जानपडा कि, यह पंडित स्त्रीचरित्रकी पुस्तक सुनारहा है. कुछदेर पीछे जब वह पंडित उस दूकानसे उठकर चलनेको हुआ. तब महदेईने अपनी दासीसे कहा कि, नीचे जाकर हमारे पास इस पंडितको बुला लाओ. महदेईकी आज्ञासे वह दासी नीचे उतरकर जीनामें खडी होरही, और दूकानसे उतरतेही पंडितसे कहा कि, पंडितजी ! तुमको हमारी सेठानीजी मुहूर्त यूछनेके लिये बुलाती हैं, कृपा कर ऊपर हमारे साथ चलिये. सुनतेही पंडितजी उसके साथ ऊपर चढ गये और महदेईको देखतेही दिल फडक गया. मनमें सोचा कि, यह तो कोई बड़ी चंचल, चतुर और सुन्दरी जाना पड़ती है. समीप आतेही महदेईने पंडितजीको बड़े आदरसे बिठाया, और कटाक्ष बाण चलाकर बोली, पंडितजी ! मेरा पति सौदागरी करनेके लिये परदेशको जायकरताहै और तीसरे चौथे महीने आकर दश . वीस दिन घरपर रहकर फिर लौट जाता है. परंतु अबकी बार ॐ महीने होगये, सो मुझको रात दिन चिन्तरहती है. P.P.AC. Gunratnasuri Me Jun Gun Aaradhak Trust Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. आप पंडित हो, कृपाकरके बतलाइये कि मेरा पति के विदेशसे लौटेगा, "यह सुनतेही पांडतजीने अपना पत्रा खोल अंगुली गिनकर बताया कि, सेठानीजी !' तुम किसी बातकी चिन्ता मत करो, हमारे विचारमें " आताहै, कि तुह्मारा पति आनाचाहता है. _ अनन्तर महदेईने पूछा, कि पंडित जी ! यह बंडीसी पोथी जो आपके हाथमें है, इसमें क्या लिखाहै ?पंडितने सकुचाकर जवाब दिया, कि, यह पाथी हमने स्त्रीचरि की बनाई है. इसमें सैकडों स्त्रियों के चरित्र इस कारण लिखे हैं, कि कोई स्त्रियोंके जालमें न फँसे. यह सुनकर महदेईने कहा, कि पंडितजी ! आपने स्त्रीचरित्रकी पुस्तक तो बनाई, परंतु पुरुष चरित्रकी कोई पुस्तक नहीं बनाई क्या पुरुष किसी बातमें स्त्रियोंसे कमती होते है ? आपही लोगोंने नीतिमें लिखाहै कि स्त्रियों के शरीर पुरुषसे अठगुणा काम होता है. विचार करनेकी बात है। - कि जब एक गुणा कामवाले पुरुषका मन हम सदैव चंचल देखती हैं, जहां किसी नवयौवना स्त्रीको देखा 'P.P.AC. GunratnasuriM.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... स्त्रीचरित्रः आपेसे बाहर हो गये, लँगोटीका सच्चा कोईभी पुरुष जटातमें मुझको नहीं जान पड़ता, आपही लोगोंने लिखा है कि, 'नसोऽस्ति पुरुषोलोके योन कामयतेश्रियम् परस्य युवती रम्यां सादरं नक्षतेत्र कः // 1 // लोक (संसार) में वह कौन पुरुष है जो लक्ष्मीकी कामना नहीं करता, और ऐसा कौन पुरुष है जो पराई स्त्रीको रमण करनेकी इच्छा नहीं करता // 1 // तुलसीदासजीनेभी कहा है कि, दो०-तुलसी या जगआयके, कौनभयोसमरत्थ॥इक कंचन अरु कुचनपै, किन न पसारेहत्थ // 2 // इसी प्रकार अनेक दृष्टान्त में ऐसे सुनासकतीहूं जा तुह्मारी इस पुस्तकसे कहीं बढकर एक पुस्तक बनसकती है. पुरुषोंकी तो यह गति है तो बतलाइये कि, पुरुषसे आठगुणा कामवाली स्त्रीका क्या दोषहै. यह सुनकर पंडितजी बोले, कि सेठानी तुझारा यह कहना बहुत P.P.AC.Gunratnasuri M.S: Gun Aaradhak Trus Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित... 117 ठीकहै, परंतु इस काममें स्त्रियोंसे बढकर पुरुष नहीं हैं, * इसी कारण हमने इस पुस्तकको तैयार कियाहै. महदेईने कहा, कोई चरित्र इसमेंका मुझकोभी सुनाइये, सुननेसे मैंभी आपकी चतुराईको जानूंगी. यह बात मुनकर / पंडितजी वह पुस्तक खोलकर सुनाने लगे. दोचार स्त्रि. योंके चरित्र सुनकर महदेईने अपने मनमें विचार किया, कि इस पंडितको कुछ चरित्र अवश्य दिखलाना चाहिये. . हमारे यारके आनेका समयभी आचुकाहै कुछ लोभ देकर इस पंडितको अपना कर्तब दिखाना चाहिये. ऐसे सोच समझ पाँच रुपये निकासकर पंडितजीके हातमें देके बोली, कि आप जानते हैं, हमारा पति विदेशमें रहा करता है और हम घरपर अकेली रहा करती हैं, जब आपका चित्त चाहा करै तब आप दर्शन दे जायाकरें, और इस घरको आप अपनाही घर समझें इतनी बात सुनतेही पंडितजी का मन हराभरा होगया. सोचा कि इससे बढकर और क्या चाहिये. सूने मन्दिरमें एक कान्ता रमण करनेको मिली और पांच रुपयेभी मिले. यहां किसी पुरुषकाभी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. 118 खटका नहीं. यह समझ ज्योंही पंडितजी कुछ कहना चाहते थे, त्योंही महदेई पंडितका हाथ पकडकर अपने . पलंगपर लेगई और हावभाव दर्शाय प्रेमकी बातें करने लगी. पंडितजीभी महदेई के प्रेममें ऐसे मग होगये, कि अपने तनमनकी सुधि न रही. इतनेमें महदेईके एक यारने द्वार खटखटाया और पुकारा कि किंवाड खोलदो.. पंडितजीने पूछा कि द्वारपर कौन आया है. मह. देईने कहा, हमारा भाई आया है. तब तो पंडितजी घबरा कर कहने लगे, मुझको किसीतरह बचाओ. तब महदेईने पंडितजीको सन्दूकमें बन्दकर दिया, और ताली अपने पास रखली, दासीसे कहा कि जाकर किवाडा खोल दे. जब यार घरके भीतर आया तो महदेईसे कहने लगा, कि प्यारी आज दखाजेके किंवाडे क्यों बन्द कर लिये और इतनी देरके बाद क्यों खोले गये. महदेईने कहा, प्यारे आज हमारे यहां एक पंडित आया है उससे हमने अपने पतिके आनेका विचार कराया, फिर कुछ मेरे मनमें आया तो उसके साथ भोगविलास करने P.P.AC. Gunratnasuri M. Jun Gun Aaradhak Trust Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 119 लगी, इतनेमें तुम आगये तब हमने उस पंडितको इसस सन्दूकमें बन्द कर दिया है, जो तुमको निश्चय न हो तो लो तालीसे ताला खोलकर देखलो. पंडितजी सन्दूकके भीतर बैठे महदेईकी बातें सुन रहेथे सो थरथर काँपने लगे, कि आज इस स्त्रीके जालमें हम आकर फंसगये... इतने बड़े पंडित होकर आज हम गोता खागये, दूसरे को शिक्षा देते हम इस स्त्रीके आलमें फँसे. पंडितजी इसीप्रकार सोच विचार कर रहेथे. ज्योंही, महदेईके यारने ताली लेकर ताला खोलना चाहा, त्योंही महदेई ठटा मारकर हंसने लगी और बोली कि मर्दोके बराबर कोई नादान नहीं होता, देखो इस मेरे यारने यह न सोचा कि जो मैं ऐसा काम करती तो क्योंकर किसीके सामने कहती. उसकी यह बात सुनकर ताली डालदी और महदेई. से लजित होकर कहने लगा, प्यारी ! तुम बडी चतुर हो, जो हमकोभी धोखा देती हो. यह कहकर प्रेमकी बातें करने लगा. उसी समय महर्देईका पति परदेशसे आगया. आहट पाय महदेईने अपने यारको कोठरीमें P.P.AC.Gunratnasuri, Jun Gun Aaradhak Trust Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र बन्दकर एक ताला लगा दिया, और विमन हो. कर चार पाईपर लेट रही, जब उसका पति आया तो पूछने लगा, प्यारी! तुम्हारा चित्त कैसा है. महदेईने उत्तर दिया, स्वामी ! मैं बहुत अच्छीतरहसे हूं, तुम्हारे गये पीछे मैंने बहुत. मुखभोग किया कईएक नये यार मैंने बनाये, आजभी एक नया यर बनाया है, उसका समाचार यह है कि एक पंडित मेरे मकान के नीचे होकर निकला, उसको रूपवान् देखकर मैंने इस दासीको भेजकर जब वह पंडित मेरे पास आया तब मैंने उसके साथ भोगविलास किया. इतने में मेरा पुराना यार आपहुंचा, तब मैंने पंडितको इस सन्दूकमें बन्दकर ताला लगादिया, और पुराने यारके संगविलास करने लगी. अब तुम्हरे आजानेपर उसको इस कोठरीमें बन्दकर ताला लगादिया है. इतनी बात सुनतेही सौदागर घबरा गया, आंखें लाल लाल होगई. मारे क्रोधके होंठ फडकने लगे, मुंह तमतमा कर बोला. 'हरामजादी! ताली ला, देखतो तुझको और तेरे यारोंको कैसा मजा चखाताहूं. एक एकका शिर P.P.AC..Gunratnasuri M.S.... Jun Gun Aaradhak Trust Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 121 काटकर फेंक दूंगा यह सुनतेही महदेईने दोनों तालियां . अपने पतिके आगे फेंकदी. ज्योंही ताली लेकर सौदागरने कोठरीके तालेमें ताली लगाई, त्योंही महदेई ताली बजाने लगी, ओर खिलखिलाकर हंसपडी, और बोली मैं तो जानतीथी, कि मर्द बडे अक्लमन्द होते हैं, लेकिन आजसे जान गई कि, मद में कुछ अक्ल नहीं होती. यह - न समझ कि, मैं ऐसा काम करती तो क्योंकर * दूसरेसे कह सकतीथी ? मैंने आपकी परीक्षा लीथो, कि देखें आप क्या कहोगे, इसी अक्लसे विदेशमें आप सौदागरी करतेहैं, और जैसे आप हैं. वैसेही दूसरेको समझते हैं. इससे तो मुझको यही जान पडता है, कि आप विदेशमें परस्त्री रमण करते हैं, इसीसे महीनों घरपर नहीं आते, बस अब मैंने जान लिया कि तुम बडे पापी हो, * नहीं तो मेरी बातका निश्चय कभी न करते. महदेईकी बातें सुनकर साहूकार लजित होगया, और दोनों ताली लौटाकर कहने लगा, कि प्यारी ! क्रोध मत करो, मैंने तुम्हारी बात सचमानी. मेरा अपराध क्षमा करो, महदे. .P.AC.Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradbak Trust Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 122 स्त्रीचरित्र. ईने कहा, स्वामी ! तुमने मुझको महादुखी कर रक्खा है परदेशको जाकर महीनों मेरी सुधि नहीं लेतेहो तुम्हारी यादमें आज चार दिनसे मेरा शिर दुखता है. इसीसे मैं आज उदास पडी थी, दिनभर होगया, अभीतक भोजन नहीं किया है. यह बात सुनकर सौदागरने कहा, प्यारी ! घबडानेकी बात नहीं हम अभी बाजारसे शिरकी दवाई लिये आते हैं. यह कह सौदागर दवाई लेने गयामहदेईने कोठरीका ताला खोलकर अपने यारको निकाल , दिया, फिर सन्दूकका ताला खोलकर पंडितजीको . निकाला, और पूछा कि पंडितजी ! आपकी इस बडी पोथीमें कहीं यह चरित्रभी लिखा है कि जो चरित्र हमने तुमको दिखलाया. यह सुनकर पंडितजी बोले, कि धन्य है, स्त्रीचरित अपार है, कोई कहातक पार पावै. यह कहकर पंडित वहां से भागा और अपने घर आकर स्त्री. . '. चरित्रकी जो पोथी बनाईथी, उसको पटक दिया।इति।। इति श्रीमत्पंडितनारायणपसादमिश्रलिखित स्त्रीचरित्रका पूर्वार्द्ध समाप्त / PP. Ac. Gunratnasuri M.S. I Jun Gun Aaradhak Trust Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // श्री // Crane के बीचरित्र-उत्तरार्द्ध. * प्रेमसरिता. * मङ्गलाचरण-दोहा / श्रीगणेश पदध्याय उर.नारायण मनलाय॥ स्त्रीचरित्र उत्तरकथा,कहत प्रेम दर्शाय॥१॥ इश्कचमन / दोहा-बूंदनचाटे ओसके,नहीं बुझती है प्यासाजो है प्यासा प्रेमका, कैसे बुझेपियास 2 राग चिकित्सा करनको, वैद्यनको अवतार। PP.AC.Gunratnasuri M.S: . Jun Gun Aaradhak Trust Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 124 स्त्रीचरित्र. इश्करोगको क्या करें बे गरीब निरधार॥३॥ इश्करोगकी औषधी प्यारेहीके नैन। जासौंजाकी लगन है ताही देखे चैन // 4 // इश्कतीरके घावका जतन न जानै कोय॥ 'जाको दुख वोही लखै, जेहितनलागीहोय सुन्दरी चरित्र 1, - पूर्वसमय चम्पावती नाम नगरीमें विद्याभूषण नामक राजा राज्य करताथा. वह राजा सर्व गुणोपेत, प्रजावसल, यथार्थरीतिसे प्रजाका पालन करनेवाला था. प्रजाकी तादृश अवस्था देखे बिना उसका उचित पालन नहीं होसकता. जब कि प्रजा पुत्रवत है और उसका पालन पुत्रके तुल्यही करना राजाका धर्म है, तो धर्मज्ञ महीपाल स्वयं उनका निरीक्षण किये बिना क्योंकर तदनुरूप व्यवहार करसकताहै, यही निश्चय करके कि जब सर्व शक्तिमान् जगदीश्वरने मुझको पृथिवी पोषणकी क्षमता दीहै, तो केवल निम्न कर्मचारियों के भरोसेही * P.P.AC. Gupratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 125 नहीं रहना चाहिये किन्तु अपने आपभी यथाशक्ति. यत्न करते रहना चाहिये; इसप्रकार सोच विचारकर - राजा विद्याभूषण प्रायः अर्द्धरात्रि के समय अपना वेष बदलकर नगररक्षकोंकी भाति वस्त्र पहिन चंपावती नगरीके चारों ओर निरन्तर भ्रमण किया करता था. कभी कभी भिक्षुककेवेषसे तथा अन्यान्य उपायोंसे नगरीके म.. न्दिरों सभाओं तथा गानमण्डलियोंमें प्रवेश करके प्रजाका समाचार जाननेकी पूर्णतः चेष्टा किया करता था. .. ऐसे प्रजाके आशयोंको हृदयंगम करनेवाला राज्यभार.. वाहक्षम, न्यायपरायण महीपतिके राज्यमें क्या चोर.. बदमाश, शठ, लम्पट, उठाईगीरे, डाकू, कुकर्मी रहसकतेहैं, अथवा उसकी प्रजा दुष्टोंसे विविध कष्ट पाय दुःखी-- दरिद्री, पीडित और अन्यायग्रस्त रह सकती है ? कभी नहीं रात्रिके परिभ्रमणसे राजा विद्याभूषण कदापि विरत नहा रहता था और अपने राज्यमें सुप्रबन्ध देखकर अपने श्रमसिन्धुमें मग्न हो गवरहित राजा सदा परमेश्वरहीको धन्यवाद दिया करता था. आहा ! वह पुरुष . .. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun.Gun Aaradhak Trusti Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126 स्त्रीचरित्र धन्य है जो जगदीश्वरदत्त वस्तुकी रक्षा करके उसकी आज्ञापालनही श्रेयस्कर समझता हैं, तभी निजकार्यों में रत मनुष्य कभी न कभी अवश्य प्राप्तमनोरथ होताही है. राजा विद्याभूषणका प्रधानमंत्री बुद्धिसागर नाम था, उसकी सुन्दरी नामक कन्या परमसुन्दरी थी. प्रधानमंत्री बुद्धिसागरकी एक वाटिका थी, जिसमें भांतिभांतिके वृक्ष लहलहा रहे थे, अनेक प्रकार के सुगन्धित फूल खिल रहे थे, जिनकी सुगन्धिसे वह वाटिका चन्दनवनके समान सुगन्धित हो रही थी; जनसमूह उस वाटिकाके समीप होकर निकलता था, वह सुगंधित वायुके झोकेसे प्रसन्न होकर मार्गकी थकावटको दूर करनेके लिये वहां बैठ जाताथा, नानाप्रकारके पक्षियोंकी मधुर ध्वनिसे समीपीजनोंके कर्ण पवित्र हो जाते थे, ऐसी मनोहर वाटिकामें प्रधानमंत्रीकी कन्या सुंदरी कभी 2 अपनी सखीसहेलियोंके साथ चित्तको प्रसन्न करनेकेलिये जायाकरतीथी. एक दिन सुन्दरी वसन्तऋतुका आगम जान अपना सब शृंगारकर उस वाटिकामें अपने चन्द्र P.P:ACGunratnasuri Jun Gun Aaradhak Trust Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित 127 समान मुखकी किरणोंसे दशों दिशाओंको प्रकाश करती हुई विचरने लगी. इतनेमें एक ब्राह्मणकुमार शास्त्री मदनमोहन नामके अपने एक परम मित्र सुखदर्शन शास्त्रीके संग विचरता हुआ उसी वाटिकाकी ओर पहुंचा. वहां अकस्मात् मदनमोहनकी दृष्टि सुन्दरी पर पड़ी. देखतही अपने मनमें विचार किया, कि आहा! ऐसी मुन्दरी हमने आजतक नहीं देखी, यह कोई गजकन्या है, अथवा देवलोककी अप्सराओंमें से साक्षात् . रंभा, उर्वशी या तिलोत्तमा अथवा मेनका है. जो मद. मत्त मातंगकी नाईं झूमती हुई इधरहीको नयनत्राण मारती हुई चली आरही है. इस प्रकार विचारकर ब्राह्मण कुमार मदनमोहन उस चन्द्रवदनीकी ओर टकटकी लगाय देखनेलगा और तनमनसे मोहित होगया. कवित्त / देखिके सु कामिनीको हियेमें भयो है घाव बाकहुं कटाक्ष लक्षी धीरहू धरायो है। कंच R.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128 . स्त्रीचरित्र. नके कलशहू मानौं हियेपै समार धरे देखके. नवीन वयसि हीय उमंगायो है // केराके खंभसम जंघा सुढारबने केहरिकटि देखी देखी मन ललचायो है। भौंहैं कमान तान नयन शर चढाय लियोहंसनिकी चोटते कुमारको गिराया है // 1 // दो०-नवयौवनगजगामिनी,अतिस्वरूपकी रेख।बिज्जुछटासी वामकू,रहे विग्रजी देखर / इधर तो ब्राह्मण कुमार उस सुन्दरीको देखकर मो-- हित होगया उधर सुन्दरीने ब्राह्मणकुमारको टकटकी लगाये देखकर उसको प्रीतिसे देखा, तो उसके रूपकी अलबेली छटा और रसीले नयनोंकी चितवनको देखकर तनमनसे मोहित होगई, और ब्राह्मणकुमारको देखतीही रही. सुन्दरीका यह चरित्र देख संगकी सहे लियोंने जान लिया कि यह सुन्दरी इस ब्राह्मणकुमा PRAc. GunratnasuriM.S. . Jun Gun Aaradhak, Trust Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. - को देखकर इसपर आशक होगई-उधर उसके मित्रने जा न लिया कि, मदनमोहन इस सुन्दरीपर आशक होगयाँ हैं.. दोहा-लगन लगगई नेहकी, गयोधीरहूभागि॥ कैसे दिलवर रूपमें, छिपै इश्ककी, आगि // 3 // एक सखी सुन्दरीसे कहने लगी, किदोहा-नैना लागै नहिं छिपत, करौ अनेकन ओट। चतुर नारिऔशूरमा, करत लाख में चोट // 4 // १दूसरी सखी बोली कि, हे सुदरी ! अपने तनको समालो ऐसी बेधीरज मत हो जाओ.. दोहा-नैननकोयहधर्महै,जो कहुं ये लगजाय लोकलाज कुल कानिका जलमें देत वहायर यह सुन सुन्दरी झुंझलाकर कहने लगी, कि सखियो ! क्या तुमलोगोंने मुझको दीवानी समझ लिया है, जो मुझसे छेड़छाड़ कररहीहो, ऊपरसे ऐसा भाव दर्शायु सुन्दरीका मन विकल होनेलगा. :.rti ... ...PRAC. Gunratnasuri M.S: . Jun Gun Aaradhak Trust Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. दो-कठिनप्रीतिकीरीतिहै, जोकहुंयहलगजायाखानपानआराम सब,ताहिनकछ सुहाय सुन्दरीको विकल होते हुये देखकर सब सहेलियोंने सुन्दरीको ज्यो त्यों करके घर पहुंचाया, तब सुन्दरीने अपनी सुध बुध बिसार यह दोहा पढ़ाःदो-विरहासमनहिंजगत में,औरदर्दकुछआय। क्षणभर कलदेव नहीं नहीं प्राण निकसाय 7 ..गह सुनकर सखियोंने सुन्दरीको बहुत समझाया बुझाया, कि आप ऐसी बुद्धिमती सुन्दरी होकर बिना जाने पहचाने एक विदेशी पुरुषपर मोहित होके अपनेकोली जातीहो. तब सुन्दरी बोलीदोहा-जेहि तनलागी हे सखी,सोई जानत पीर। दूजेको दरशै नहीं जिगर घाव गम्भी हे सखियो ! जबसे मैंने उस कुमारको देखा है तबसे उसके रूपकी छटा, और उसकी प्रीतिकी घटा मेरे हृद. R.P.Ac: Gunratnasuri M.S.. in Aaradhak' Trust Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 131 न्यपर छाई है. वह उसकी चितवन मन्द हंसनि व मोतीसे दशन मेरे इस मनको लुभारहे हैं उसकी मोहनी मूर्ति मेरे दिलमें समाई है, बहुतेरा में उसको भुला रहीहूं परंतु नहीं भूलती. हे सखियो ! यदि तुम मेग प्राण बचाना चाहती हो तो वहीं मोहनी मूर्ति मुझको दिखाओ; यह कहकर सुन्दरीने यह दोहा पढ़ा दोहा-हे प्यारेकितको गयें नेह नवीनलगाय। - अंखियां प्यासीरूपकी, देहु दर्श किन आ य॥९॥ . इसप्रकार सुन्दरीको अधीर देखकर एक सहेली कहने लगी, हे प्यारी सुन्दरी ! धीरज धरो, बिना सोच विचारे इतना प्रेम करना उचित नहीं हैदो०-नारायण धीरज धरेधीरेसबकुछहोय। माली सींचे वृक्ष नित, ऋतु आये फल होय ॥१०॥काजमाहिं धीरज धरै,सो कारज फ.. लदाय ॥जलदी करनो काजमें, काजहि देत नशाय॥११॥ सोच समझलीजै हृदय, जब P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun.Gun Aaradhak Trust Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. - कछु कीजै काज॥ बिनाविचारे काजमें आ वत अति डरलाज // 12 // - सखीकी यह बात सुनकर सुन्दरी बोली दोहा। जा तनमें लागी अधिक कठिन इश्ककी मारासो दुख वोही जानता जाके होगइ पार // ॥१३॥लागीलागी सब कहैं,लागीबुरी बलाय॥लागी जबही जानिये, वारपर व्है जाय ॥१४॥इश्क आगतनमें लगी, धुवां प्रगट नहि होय // याको दुख वह जानि है, जात न लागी सोय // 15 // -- यह गति तो उस मुन्दरीकी थी कि, जिसको देखकर सब सहेलियां विचार करने लगीं कि, इसको इस इश्करूपी बलासे बचानेका क्या उपाय करें, बडा संकट आन पडा है। उधर उस ब्राह्मणकुमार मदनमोहनने देखा कि, प्यारी सुन्दरी अपनी सहेलियोंके साथ ज्यों P.P.AC. Gunratnasuri Jur Gun Aaradhak Trust Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. भाषाटीकासहित. ही चली गई, त्योंही विरहसे व्याकुल होकर पृथ्वीपर गिरपडा और यह दोहा पढने लगादो-हाय दैव कैसी भई,कहा विचारी आज॥ नयनन तेग चलायके, गई कहांकों भाज // // 16 // हे प्यारी कितको छिपी, मार विरहके बान ॥वचनअमी समप्याइये, निजकरअपने आन // 17 // _ मित्रकी यह दशा देखकर सुखदर्शनने कहा, हे "प्यारे मदनमोहन ! इतने बडे शास्त्री होकर तुह्मारी यह क्या गतिहुई. क्या विद्या पढनेका यही फल है, कि बना सोच विचारे एक साधारण स्त्रीको देखकर तुमारा मन हाथसे जाता रहा. देखो वसन्तऋतुका आगम जानकर हम तुमको इस वाटिकाकी सुगन्धित पवनसे तुह्मारे चित्तको प्रसन्न कराने के लिये अपनेसाथ लायेथे, .. सा तुमने यहां आकार ऋतुकी बहारको छोडकर यौवनकी बहार देखी, और अपने धर्मसे विरुद्ध काम किया देखो P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134 . स्त्रीचरित्र पद्य-सर्व भांति सांसारिक मैत्री जगमें एककहानी है। नाममात्रसे अधिक आजतक नहीं किसीने जानी है // जब तक धन सम्पदा प्रतिष्ठा अथवा यश विख्यातीहै / तबतकसभी मित्र शुभचिन्तक निज कुलबान्धव ज्ञातीहै ॥अपना स्वार्थ सिद्ध करनेको जगत मित्र बन जाताहै। किन्तु काम पड़नेपर कोई कभी काम नहीं आता है // 18 // , यह मुनकर मदनमोहन कहने लगा, कि मित्र ! तुम को इस समय ऐसा वचन नहीं कहना चाहिये जगत में मित्रसे बढकर कोई नहीं- जो काम किसीके नहीं होता वह काम मित्रसे हो सकता है मित्र तो एक - परम पदार्थ है, जब कि छोटे समुदायसे बड़े काज सुधरते हैं यथा suriM.S. Jun Gun Aaradhak Truse Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित 135 'सर्वेषामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका। तृणैर्गुणत्वमापन्नैर्बद्ध्यन्तमत्तदान्तनः॥१९॥ अर्थ-दोहा-छोटेहू समुदायसे, सरत बड़ेहू काज॥खरतृणके रसरानते, बँधतमत्तगजराज // 20 // - यद्यपि मैं पढा लिखा सब बातोंको जानता और समझताहूं, तथापि दैव इच्छासे प्रेरित होकर मेरा मन अपनेसे बाहर होगया, इससमय वसन्तऋतुभी मुझको सता रहीहै. कवित। फूले हैं पलाश मोहिं जीवेकीन आश मैं तो भयो हूं निराश चिन्ता लगी जीव जानकी जोर करें कोयल मरोर करें कोकिल अरु शोर करें भौंरा मरोर उठेमानकी॥चलत है *P.P. Ac. Gunratnasuri M. Jun Gun Aaradhak Trust Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. 136 . स्त्रीचरित्रः बयार शीतल अंगमें भई है पार जीमें न करार घटा डटी है विरहानकी / मारे डारै मदन मरोरे डारै कामदेव चोरे डारै लाज ऋतु आई लेन प्रानकी // 21 // .. हे मित्र ! क्याकरूं उस प्यारीकी मोहनी मूर्ति मेरे ... मनमें समागई. मानों ब्रह्माने मेरे हृदयमें उसको अं. कित कर दिया है. छप्पय / कमल अमल दलवरन नैन चंचल अनि यारे / अमृत रूपवर वचन केशकंचन कुंच कारे॥ चन्द्रछटा समरूप सकल तन सुभग सुहावत / मयावन्तसी नारि हार उर पुष्प विराजत // ग्रीवा कपात शुक नासिकागति गयंदिनी / चालजहैं शीलवन्त सु. न्दर अधिक जंघकरके खंभतहं // 22 // P.AC.GunratnasuriM.S Jun Gun Aaradhak Trust .. Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. भाषाटीकासहित. 137 तथा-सवैया। - नैन विशाल मनोहर मूरति सूरत जासु मेरे मनभाई / केसर लाल विराजत भाल--सोभानगरे मन लेत चुराई / बैननमाहिं सुधा वर्षे अंगअंगन छाय रही तरुणाई। - चन्द्रमुखी छबि आनि वसी उर भूलत नाहिं न क्योंहू भुलाई // 23 // तथा-सवैया / गोरो सो रंग उमंगभरो चित अंगअनंगको मंत्र जगायो / काजररेख लसै दृगमें दोउ भाहन काम कमान चढायो॥आवनि बोलनि डोलनि ताकी चढी चितमें अति चोप चढायो। नैननमें यह रूप वस्यो मम भूलत नाहिं न क्योंह भुलायो // 24 // तथा-सवैया / मत्तगयन्दकीचालचलैकटिकिकिणिनूपुरकी P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradha Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 138 स्त्रीचरित्र. ध्वनि बाजै // मोतिन हार हिये अतिशय हूं. लसात हुलास विराजत साजै॥सारी सुहीमतिरामलसै सुखरंगकी सारी सोयों छबि छाजै॥ पूरणचन्द्रपियूख मयूख मनों परिवेषकी रेख बिराजै // 25 // तथा दोहा। शशिसम मुख दृगकुमुदसे, करपद कमल समान / चम्पासोतनदेखिके, विकल भये मम प्रान॥२६ालाल अधर अंजन गन, कर मैं: हदी छबिदेत / श्यामबिन्दु मस्तकलसै,कामीको मन लेत ॥२७॥हँसन दशनकी फवन लखि मुखभंवरनकी भीर / ऐसी नारिनिहारिके कोन तजत उरधीर // 28 // - मदन मोहनकी ये बातें सुनकर मुखदर्शनने कहा, हे मित्र ! तुमने नाहक इस पंथमें पांव धरा. . दोहा-इश्क फन्द जगमें बुरा,इश्ककरै सोकूर। इश्क चमनमें जायके,छानत जगकी धूर 29 P.P:AC.Gunratnasuri M.S..... Jun Gun Aaradhak itust Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. इश्ककिया मजनूं मिया, वा लैलीके साथ // राजपाट सब तजदिया, नहीं लगा कुछ हाथ // 30 // फंसा हीरके इश्कम, रांझासा - महबूब / तख्त हजारा तजदिया, खाक उडाई खूब // 31 ॥फंसा इश्कके फन्दमें, जो कोइ चतुर सुजान // आखिर हो वदनाम - फिर, खोई अपनी जान // 32 // सो हे मित्र ! पुरुषको इतना असमर्थ नहीं होना चाहिये. क्योंकि जबतक किसी कामको भली भांति - सोच समझ न लेवै तबतक उस कामके फंसना ठीक नहीं देखो नीतिका बचन है। दो०-विना विचारे जो करे सो पीछे पछताया काम बिगारे आपनो, जगमें होत हँसाय३३ राजा भर्तृहरिजीका बचन है, किदाहा-रसम त्योंही रोषमें दर्शत सहज आ प // बोलत वचन चितौनिमें, वनिता बन्धनरूप 34 // Jun Gun Aaradhak. Trust Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 140 स्त्रीचरित्र. मित्र सुखदर्शनका वचन सुनकर मदनमोहन बोला दोहा-नूपुर कंकण किंकिणी, बोलत मधुरे बैन। काके मन नहीं वश करें, मृगनयन के नैन // 35 // / " यह मुन सुखदर्शन कहने लगा, हे मित्र / यह तुह्मारा कहना ठीक है, परन्तु जो पंडित है, वे स्त्रियोंके कटाक्षरूपी बाणोंकी मार नहीं खाते, किसी कविका वचन है. 'छप्पय / करत योग अभ्यास आपमन कसकर राख्यौ / पारब्रह्ममें प्रीति प्रगट जिन यह सुख चाख्यौ // तिनको तियके संग कहा सुख बातन व्है है // कहा अधर मघुपान कहा लोचन छबि कै हैं / मुखकमल श्वास सौगन्धकहा कह कठिन कुचको परस॥ परिरंभन चुम्बन कहा जोगी जन मन एकरस // 36 // दोहा-तीनिलोक तिहुकालमें, मना मनोहर P.P.AC.Gunrat Jun Gun AaradhakTrust .. .. Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. नारि। सब दुखकी दाता यही, देखौं सोच विचार // 37 // __मुखदर्शनकी यह बात सुनकर मदनमोहन कहने लगा कि, हे मित्र / इस संसारमें स्त्रीके सिवाय आनन्द रूपी वस्तु और कोई नहीं है, जिस मनुष्यने इस संसारमें आकर स्त्रीरूपी रत्न सेवन नहीं किया. उस मनुष्यका जीवन वृथा है किसी कविका वचन हैदोहा-परमानन्द सनेहमय, युवतीजनको संग // बड़े पुण्यते पाइये, नारि मनोहर अंग // 38 // कुण्डलिया। पंडित जन जब करत हैं, तिय तजिवेकी बात / करत वृथा बकवाद वह, तजी नेक नाह जात // तजीनेक नहीं जात गात छबि कनक वरन वर / कमलपत्रसम नयन बैन चालत अमृत वर // सोहत मृदु मुखहाथ P.P.AC.Guhratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 142 स्त्रीचरित्र. अंग आभूषणमंडित // ऐसी तियको तजें कौनसो है वह पंडित // 39 // दोहा-सुनी बात यक औरभी, मुख्य बात ये दोय। कैतिय यौवन में फंस, कैवनवासी होय // 40 // मदनमोहनका यह वचन सुनकर मुखदर्शनने कहा हे मित्र ! यहस्त्रीरूपी रत्न मूखोंके सेवन करने योग्य है पंडितोंने तो स्त्रियों के चरित्रोंको भली भांतिसे विचा. रकर निन्दाही की है. किसी कविका वचन है . छप्पय ! क्षीणलंक कुच पीन नयन पंकजसे राजत॥ भौं हैं काम कमान चन्द्रसों मुख छबि छाजत॥मत्त गयंदसी चाल चलत चितवन चित चोरत / ऐसी नारि निहारि हाथ पंडित जन जोरत // अतिही मलीन सब ठौर वह चितवनमें बहु कपटछल // ताको सुप्राण प्यारी कहत अहो मोह माया प्रबल॥४१॥ P.P.AC.Gunratnasuri M. Jun Gur' Aaradhak Tr Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . भाषाटीकासहित. 143 - हे मित्र ! पंडितजनोंको स्त्रीके फंदमें फंसना नहीं. चाहिये. यदि तुम्हारा चित्त ऐसाही है तो शीघ्र तुह्मारा विवाह इससे भी अच्छी सुन्दरीके साथ करादेंगे. - यह सुनतेही मदनमोहनने उत्तर दिया. दो-मनमें हमरे बतगई, सुनो हमारे यार। बिन देखे उसके मुझे, आवै नहीं करार ॥४२॥चात्रक प्यासो मरत है, रहै नदीके पास // उस जलको पावै नहीं, करें स्वातिकी आस॥४३॥ इश्करंग हमने रँगा, अब चाहै सो होय॥ प्यारीके दीदार बिन, केहि विधि जीतब होय // 44 // नाहक तुम मूरख बने, होके चतुरसुजान॥ सोच समझ घ. रको चलौ, तजौ इश्ककीवान ॥४९॥इश्क कन्दमचित्तको, मती फँसावौ यार कहा हमारामानलो,क्यों होते हो ख्वार // 46 // मिलना उसका कठिन है, सुनलो सारा हा P.P. Ac. Gunratnasari.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 144 स्त्रीचरित्र ल॥सोच समझ घरको चलो, करौ न उस का ख्याल // 47 // ... मुखदर्शनके बैन सुन मदनमोहन कहने लगा. दो-जो होनी सोहोयगी, सुनौ मित्र सुज्ञान। कैलाबैं वह कामिनी,कै खावेंगे जान॥४८॥ चितवनमें मन हरि लियो, कहे नहीं कछ बैन // मुझको घायल करगई, मारि विरहके ' नैन॥४९॥कहां जाउं कैसी करूं, लगा विरहका तीर॥नयन लगेकी होत है, बाननकी सी पीर ॥५०॥जब लग कामिनी नैनके ल. गत न शर उह आन,तबलगही या देशम, दीखत सबके प्रान॥५१॥ जा नरके उरम लगे, नारिनयनके तीर // ऐंसों को जग शूरमा, मनमें धारै धीर // 52 // जो मिलि है प्यारी मुझे, रहिहै मेरी जान // उस प्यारा बिन यार सुन, जाय हमारे प्रान // 53 // Gumratnasuri.M.S Guin Aaradhak Trust Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. . 145 . ऐसी बातें मदनमोहनकी सुनकर सुखदर्शन मनमें विचार करने लगा, कि यह हमारा मित्र नारीनयूनरूपी तीरसे घायल होचुका है, समझाना बुझाना वृथा है, अब ऐसा उपाय सोचना चाहिये जिससे इसकी प्यारी इसको मिलै, क्योंकि उपाय करनेसे सब कुछ मिल जाता है. यह सोच समझ सुखदर्शनने कहा, हे मित्र मदनमोहन ! हमने समझ लिया, कि तुझारा चित्त ठिकाने नहीं है, इससे हम तुमको यह सम्मति देते हैं, कि इससमय हमारेसाथ घरको चलो, वहां चलकर तु: - मारी प्यारीके मिलनेका उपाय सोचेंगे. मदनमोहनने कहा, मित्र ! मैं यहांसे हटकर कहीं न जाऊंगा, यहीं पड़पड़े प्यारीके विरहमें प्राणत्याग करदूंगा. मुखदर्शनने कहा, कि उठकर घर चलो. वहां पाथकोंकासा भेष बनाया घोडोंपर चढकर इस वाटिकामें आवेंगे और इस बागके मालीको लोभ देकर काम बनावेंगे, तुम किसी बातकी चिन्ता मत करो. इतनी बात सुनकर मदनमोन अपने मित्रकेसाथ घरको गया, वहां जाय दाना मित्र पथिकोंकासा भेष बनाय.घोडेपर सवार होकर वा P.P.AC.Gunratnasuri M jun Gun Aaradhak Trust Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. टिकामें पहुँचे, इन दोनोंको देखतेही माली कहने लगा, कि यह प्रधानमंत्रीजीकी वाटिका है, तुम लोग कहां रहतेहो, जो बिनापूछे बताये इस वाटिका बेखटक चले आ रहेहो. मालीकी बात सुनकर सुखदर्शनने एक सु. वर्णमुद्रा देकर मालीसे कहा, कि इस वाटिकामें हम जि. तनेदिन म्हेगे, उतनीही सुवर्णमुा तुमको देंगे. तुम ह. मको यहां ठरनेको स्थान दो, यह सुनतेही मालीने अ. पने मनमें कहा, कि एतो कोई बड़े धनवान् पुरुष देख पडतेहैं, इनसे मुझको बहुत कुछ लाभ होगा. यह सोचकर मालीने बडे आदर सन्मानसे उस वाटिकाके एका• न्तमें ठहराया, वहां बैठकर ये दोनों मित्र विचार करने लगे, कि क्या उपाय करना चाहिये जिससे काज सुधरै. इतनेमें उस वाटिकाकी मालिन आती हुई देखपडी, मा. लिनने दूरहीसे पुकारकर कहा, कि इस वाटिका में तुमारा क्या काम है, जो निडर होकर यहां बैठे हो. मालिनके समीप पहुँचनेपर मुखदर्शनने कहा, कि हमलोगोंका इस बागके मालीने यहां टिकायाहै. यह कहकर पांच मुहर मालीनके हाथ धरी, सुहरै पातेही मालिनका मन EP.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __भाषाटीकासहित. परमानन्द होगया. मालिनको प्रसन्न देख मुखदर्शनने पछा कि यह किसकी वाटिका है. और कौन यहांका राजा है. यह सुन पालिनने उत्तर दिया, कि यहांका राजा विद्याभूषण नाम बडा न्यायी और धर्मात्मा राजाहै, और उसके प्रधान मंत्रीका नाम बुद्धिसागर है, उसीकी यह वाटिका है. बुद्धिसागरकी कन्या सुन्दरीनाम इस वाटिकामें तीसरे चौथे दिन मन बहलाने आया करती है. यह बात मालिनकी सुनकर सुखदर्शनने पूँछा कि, वह सुन्दरी कबसे यहां नहीं आई ? मालिनने कहा, कि वह कल यहां आईथी. यहां उसने एक पुषको जबसे देखाहै, तबसे अपना तन मन भुलाये . उसकी मुरत करके कभी अचेत हो जाती है, कभी जो जीमें आता है, बकने लगती है. उसकी सहे. लिया सब कुछ समझाती हैं, परन्तु उस सुन्दरीका मन सन नहीं होता, न उसके मनसे वह पुरुष भूलता है. अभा उसकी यह दशा देख चली आरही हूँ. मालिन बात सुनकर सुखदर्शनने कहा, हे मालिन ! उस उन्दराके मनको लुभानेवाला यह मदनमोहन हमारा ..AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. मित्र है इसने भी जबसे उस सुन्दरीको देखाहै, तबसे अपने आपमें नहीं है. इसीसे हम दोनों इस वाटिकामें पथिकोंकी भांति आ टिकेहैं, अब कुछ ऐसा उपाय करो. जिससे दोनोंका प्राण बचे. यह सुन मालिनने कहा कि, जो काम मेरे करनेका है, वह करनेको मैं मौजूदहूं. तब मुखदर्शनने मदनमोहनसे कहा, मित्र! अब सब काम बन जायगा, तुम अपनी प्यारीके लिये एक पत्र अपने हाथसे लिखो, यह बात सुनकर मदनमोहन अपनी प्यारीको पत्र लिखने लगा. दो०-प्यारी तेरे नेहकी,नदी विमल गम्भीरा मन अरु नयन पियासही, मरत न पावत नीर // 54 // प्यारी बिन तोसों मिले, गयो धीरहू भागि / कैसे दिल वा रूपमें, छिपे इ. श्ककी आगि // 15 // चौक। कहदो सोच विचार पियारी अब तुमको क्या करना। दिन देखे दीदार तुझारे होय ह. KP.P.AC. Gunratnasuri.M.S.: ...Jun Gun Aaradhak Trust Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. मारा मरना / सुलगत है तन आग इश्ककी उसमें निशिदिन जरना। कौन तरहसे तेरा मेरा होय काजका सरना 56 // मदनमोहनने यह चिठी लिखकर मालिनको दी, तब मुखदर्शन मालिनसे कहने लगा, कि इस वाटिकामेंसे जो फूल बहुतही सुगंधित हों, उन फूलोंके साथ इस चि. टीको लेकर जाओ, मालिनने ऐसाही किया. जब वह चिट्ठी सुन्दरीने खोलकर पढी, तब छातीसे लगाकर मालिनसे पूंछा, कि यह चिट्ठी तुझको हमारे प्यारीने दी है। यद्याप मैं इस बातको जानती हूं. तथापि तुझसे पूछती हूं कि इस चिट्ठीका लिखनेवाला कैसा है ? उसके रूपका बखान कर, तब मालिनने मदनमोहनकी मूर्तिका ब. खान किया. सुनतेही सुन्दरीको निश्चय होगया कि 16 मरा प्याराही है. अनंतर सन्दरीने नीचे लिखे अनु. -सार चिट्ठी लिखी. दाहा-इस फुलवाडीकेतुहीं.प्यारे सींचनहा क्या ताकत है औरकी,देखै नैन निहार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 150 स्त्रीचरित्र. ॥२७॥तुम चन्दा मैं चांदनी,रची आप करतार॥अब वन्दीको जानिये, अपनी ताबेदार॥२८॥जबसे दरखाहै तुझे. तलफत मेरे नैन // जैसे जल बिन माछली, तलफत है दिनरैन // 59 // चौक। तलफत है दिनरैन पियारे नैन नींद नहिं आती। कर कर तेरी याद पियारे नैन नींद नहि आती॥ आठ पहर दिनरैन पियारे तुझीसे ध्यान.लगाती / तेरे इश्कमें फँसकर प्यारे रैन दिना दुख पाती // 60 // : मुन्दरीने इसप्रकार लिखकर मालिनको देकर कहा 'कि, यह पाती हमारे प्यारेको देकर हमारी ओरसे कह देना, कि मेरे जीवन प्राण तुमही हो. फिर कहा हे मालिन ! तुम मेरे पीतम प्यारेको किसी तरह मुझसे - मिलावो. तब मालिनने कहा, कि मैं किसीके मिस जनाने भेषसे लाकर तुमको मिलाऊंगी, धीरज धरो. P.P.AC. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Adladhak Trust Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. यह कहकर मालिन चली आई. वाटिकामें आतेही - मुन्दरीकी पाती मालिनने मदनमोहनके हाथमें देदी. उस पातीको पढ़कर मदनमोहनका मन हराभरा हो गया और मालिनसे कहा, कि किसी युक्तिसे मुझे मेरी प्यारीसे मिलादे. मालिनने कहा, कि कल तुम - मेरे साथ जनाना भेष बनाया अपनी प्यारीके पास चलो. और कोई उपाय प्यारीसे मिलनेका नहीं है. यह सुनकर मदनमोहन चुप होरहा. दूसरे दिन अपने.. मित्रकी सम्मतिसे जनाना भेष बनाया मालिनने संग अपनी प्यारीके समीप पहुँचा. जब दोनोंकी चार आंखें हुईं, उस समयके प्रेमकी शोभा वर्णन नहीं की जाती.. अनेक प्रकारकी प्रेमसनी बातें करते करते दोनोंका मन प्रसन्न होगया, विरहका सन्ताप दूर होकर हृदय शीतल. होगया. निदान चलते समय सुन्दरीने कहा हे प्यारे ! - इसीभवनमें रहतीहं, और यह खिडकी जो गलीकी भार है, यहीं पर हमारा पलंग रहता है, समीपही दीपक सम्पूर्ण रात्रि प्रज्वलित रहताहै, जिस रात्रिको आपको मानाहा, तब इसी खिड़कीमें कबन्ध डालकर आप P.P.AC.Gunrathasuri Jun Gun Aaradhak Trust Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आसकते हो,ऐसे कहकर उस समय अपने प्यारेको विदा किया और कहा बरवा। प्रेम प्रीति का बिरवा चलेहु लगाय // सींचन की सुधि राखेहु मुरझि न जाया६॥ _ मदनमोहन अपनी प्यारीके पाससे चलकर मालिनके संग वाटिकामें आय अपने मित्रकेपास आया और सब हाल कह सुनाया. मित्रने कहा, अब तुह्मारा काम हो गया इस समय घर चलो, फिर देखा जायगा. यह कह सुनकर दोनों मित्र वाटिकासे चलकर अपने स्थानको आये. एक दिन आधी रातके समय मदनमोहन अपने मित्रको बिना पूछे प्यारीसे मिलनके लिये उसके निवास मन्दिरपर पहुँचे. अपनी प्यारीके कथनानुसार कबन्ध डालकर खिडकीमें चढकर जानेकी ज्योंही इच्छा कर रहाथा, त्योंही राजा विद्याभूषण जो कोतवालके - भेषमें नगरकी चिन्ताको निकला था. मदनमोनको कवन्ध डालते देखकर राजाने डपटकर कहा. PP: Ac. Guriratnasuri M.S: Jun Gun Aaradhak Trust' Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 153 दोहा-अरे चोर तू कौन है,लगारहा है घात / चोरी करने महलमें,आया आधीरात॥६॥ __सुनतेही मदनमोहनका कलेजा कांप उठा. वहीं खडा रहगया. राजाने उसकी दशा देख और उस खिड़कीकी ओर दृष्टिकर दीपकके प्रज्वलित प्रभावसे सब हाल म. नमें जान लिया, और सोचने लगा कि यह मनुष्य चोर नहीं है. परंतु इस समय इसको योंही छोडदेना उचित नहीं है, विचार कर राजा उस मनुष्यके समीप जाकर बोला रे दुष्ट ! क्या तुझको इस संसारमें दूसरी कोई आजीविका नहीं है, जो तू ऐसा घृणित कर्म करताहै, अरे राजाकाभी कुछ भय नहीं है, हा ! तू यह नहीं जानता कि ऐसे कर्म करनेमें प्राण जाते हैं, रे निर्दयी! तुझको अपना प्राणभी प्यारा नहीं है, देख ! अब तेरी उ समीप आगई अब क्या तू मुझसे बच सकता है? यह कहकर राजाने उसको पकड लिया और कहने लगा कि, तू कौन है जो ऐसा काम करता है. तूने PORAccinatnas Jun Gun Aaradhak Trust Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 154 स्त्रीचरित्र. इस कर्मसे अनेकोंका प्राणधन लिया होगा, चल तो सही कलं राजाके समीप तुझे अपने कर्मोंको स्वीकार करना पडेगा, और क्या किसी प्रकारभी अब तेरा प्राण बचसकता है. नगररक्षककी यह बात सुनकर मदन मोहन घबडाकर मनमें विचार करने लगा, कि हा देव! इस समय मैं चोर जानकर पकडा गया, मेरे आनन्दशैलपर ऐसा वज्रघात ! क्या सचमुच, यहांका न्यायपरायण राजा मुझको चोर समझकर प्राणदंड देदेगा ! क्या जगदी श्वर परमात्मा मुझ निरपराधीकी कुछभी सहायता नहीं करे ? भरे ! राजाके सेवकोंकी ऐसी उत्कृष्टता ? यह बलात्कार ? इन अन्याइयों के मारे अनेक निरपराधियों अमूल्य प्राणधन जाते होंगे यदि ईश्वर सत्य और मैं नि: दोषी, तथा राजा न्यायपरायण हैं, तो इन व्यर्थ भूकने: वालोंसे मुझको क्या हानि पहुँच सकती है, परंतुं ऐसे समयमें धैर्य धारण करना चाहिये, आगे 'हरेरिच्छाबलीयसी' हरिकी जो इच्छा है वही होगा, क्योंकि हरिकी इच्छा सबसे अधिक बलवती है. अब मुझको . P.P:AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. अपनी शक्तिके अनुसार आत्मरक्षा करनी उचित है.. यह सोच विचारकर मदनमोहन अत्यन्त विनीतभावसे बोला-महाराज ! आपने जो मुझे इस समय अपने वि.चारानुसार चोर जानकर पकडा, सो मैं चोर नहीं हूं, मैं एक सुप्रतिष्ठित ब्राह्मणका पुत्र हूं, यदि इस समय दया करके आप मुझको मेरे पिताकेपास ले चलें तो वे आपको सत्कारपूर्वक धन देकर सन्तुष्ट करेंगे. यह कहकर मदनमोहन चुप होरहा. यद्यपि मदनमोहनने पहले सब विचार मनमेंही करके धीर 2 वचन कहे थे तथापि वे अपने विरुद्ध वचन कोतवालवेषधारी राजाने प्रकाशरूपसे सुन लियेथे, राजा आश्चर्यमें होकर विचार करने लगा, कि यदि यह पार नहीं है, तो इस समय यह मुझको लोभ क्यों दिखा रहा है। क्या राजकर्मचारी ऐसे लालचसे बच सकते हैं। कर तब क्या अनर्थ न्यून होनेकी सम्भावना होस। कता है? यदि मैं इस समय न होता तो अन्य न्यायाधीश - अवश्यही घूस लेकर इसे छोड़ देते. सच कहा है, कि sunraESI Jun Gun Aaradhak Trust Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र राजाके राज्यमें कुप्रबन्ध, और नाश होनेका कारण नृपका आलसी होनाही है. _ . अब इसको इसके पिताके पास लेचलना चाहिये देखें वह क्या सहायता करता है, यह विचार राजा उस - चोरको लेकर आगे चला, उस समय रात्रि अन्धकार- मय होरहीथी, परंतु लाल टैनों की रोशनी कहीं कहीं कुछ - कुछ चमचमारहीथी, जहां तहां कुत्ते बँक रहेथे, और सन्नाटा छारहाथा, राजा अपने कुछ अनुचरोसहित चार - को लिये उसके निर्दिष्ट मार्ग होकर ब्राह्मण देवताके घर - पहुँचा. पहूँचतेही चोरने अपने पिताको पुकारा. उस समय पंडितजी घोर निद्रामें निमम थे, पर कोलाहल चमत्कृत वस्तु है. द्वारपर मनुष्योंका शब्द सुनकर चौंकपडे साथही अपने पुत्रके पुकारकी ध्वनि कानमें पहुँची ब्राह्मणोंमें क्रोधकी पराकाष्ठा किंचित् विशेष पूर्व समयसेही चली आई है. इसमेंभी कुसमयमें जागपडनेके कारण पुकार सुनकर कोधने पंडितजीके हृदयको जाज्वल्यमान कर दिया. बरन् किसी प्रकार बकते RP.AC. Gunratnasuri.M.S.. Jun Gun Aawadhak Trust Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. अकते बाहर आये, और देखकर बोले, ऐं! यह क्या हमारे सपूत मदनमोहन शास्त्रीजी हैं, और नगररक्षक कोतवालभी साथ है. यह कह पूछा कि, यह क्या चरित्र है. तब नगररक्षक वेषधारी राजाने सब समाचार कहकर पूर्व कथित द्रव्यकी लालसा प्रगट की. पंडितजी सुनकर क्रोधमें भरगये, क्रोधके वशीभूत मनुष्यका चित्त स्थिर नहीं रहता. दुर्वासाके समान क्रोधित हो, पंडितजी बोले / * हे न्यायाधीश ! यद्यपि यह मेरा पुत्र है तयापि मैं इस समय इसका साथी नहीं हूं, क्योंकि यह आज कईदिनसे रातभर न मालूम कहां रहताहै,प्रभातहुये आजाताहै, मैंने बहुतेरा इसको समझाया बुझायाः परन्तु इसने मेरी एक शिक्षाभी नहीं मानी, पिता जन्म देकर पुत्रके कमका साक्षी नहीं होता, अत एव इस प्रपंचमें आपकी जो इच्छा हो सो कीजिये, इससे मुझसे कोई प्रयोजन नहीं. यहांका राजा परम धर्मात्मा और न्यायपरायण है, पाद इसने कोई अपराध किया है तो यह दंडका अधिकारी है, अवश्य इसको दंड मिलना चाहिये, मेरे पास एक PP.AC.GunratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradhaks Trust Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र - पैसाभी नहीं है. जो व्यर्थ दिया जावै. इसप्रकार कहते हये 'घरमें चलेंगये, और भीतरसे किंवाड बंद करलिये. पंडितजीका यह रूखापन देखकर राजा अपने मनमें आश्चर्ययु. क्त होकर सोहने लगा, ओहो ! कुकर्म ऐसी वस्तु है, प्रिय पुत्रकी सहायता पिताके किंचिन्मात्रभी अंगीकार नहीं. E न्याय ऐसा पदार्थ है कि घूस लेनातो क्या, देनाभी कोई स्वीकार नहीं करसकता, आहा! अविचल न्यायका अद्भुत चमत्कार है यह सोच विचार राजा चोरका हाथ पकड लेचला. उस समय मदनमोहनके दुःखकी सीमा न रही दुःख सहित कहने लगा, कि इस संसारमें कोई किसी का नहीं और जो है सो मतलबका यार है. हा!" कालस्य कुटिला गतिः।"कालकी कुटिल गति है. जब खोटे दिन आतेहैं, तब पिताभी पुत्रकी सहायता नहीं करता, अब क्योंकर कन्याणकी आशा हो सकती है. यह सब कुछ है, परन्तु प्रीतिका पंथ निरालाही है. उसमें कभी कोई भयही नहीं तो फिर क्यों न एकबार अपनी भाग्यकी परीक्षा करलू, अन्तमें भावी तो मुख्यही है, यह P.AC.GunratnasuriM.S. Jun-Gun Aaradhak Trust Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 159 भाषाटीकासहित. स्मरण करके मदनमोहनने न्यायाधीशसे कहा, महाशय! एकबार फिरभी आप मुझपर अनुग्रह करे, मेरे एक सुखदर्शन नाम मित्र है, वे आपका मनोरथ पूर्ण प्रकारसे करेंगे, और मुझको इस बन्धनसे अवश्य छुडा-येंगे ! यह सुनकर राजाने अपने मनमें सोचा कि माता पितासे श्रेष्ठ जगतमें दूसरा कोई नहीं है जब पितानेही - इसकी सहायता नहीं की, तो फिर दूसरा कौन इसका सहायक हो सकता है 'जो हो. ईश्वरकी महिमा अद्भुत है, प्रेमपथ निराला है और इसका नाश कभी नहीं होता -इस प्रेमके प्रतापसे अपने पराये होजाते हैं और पराये * अपने बनजाते हैं यदि किसीको कुछ कहनेकी जगह नहीं है तो प्रेममार्ग में. इत्यादि विचार कर राजाने कहा अच्छा चलो. तुमारे मित्रकीभी करतूत देखलें, यह कहकर आगे बढ़े मित्रके द्वारपर पहुँचकर मदनमोहनने किंवाड खटखटाये और पुकारा, सुनतेही सुखदर्शनकी आँख खुलगई, झट द्वारपर आय कोतवाल के संग अपने मित्र मदनमाइनको देखकर कहा, ऐं? यह क्या कौतुक है, कोतवाल * PP.AC.Gunratnasuri M.S. ' ..Jun Gun Aaradhak Trust... Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. 'वेषधारी राजाने सब वृत्तान्त कह सुनाया. तब सुखदर्शनने कहा, महाशय ? यदि परमेश्वर सत्य है तो उसको मध्यस्थ मानकर मैं शपथपूर्वक कहता हूं कि जिस समय आप मेरे इस मित्रको जहां चाहेंगे, मैं वहीं अपने साथ लेकर आजाऊंगा. इस प्रकार कातर वचन सुनकर राजाने अं. गीकार किया, और मदनको वहीं छोडकर अपना मार्ग लिया. तब ये दोनों मित्र अन्तरगृहमें पधारे. मदनमोहनने अपने मित्रसे कहां. मित्र ? जिसके लिये संसारका सब सुख तृणवत् परित्यागकरदिया है, आज उसासे मिलनके लिये मैं ज्योंही कबन्ध डालकर ऊपर चढ़ना चाहताथा, त्योंही यह जीवित यमदूत आगया, परंतु कुछ सन्देह नहीं करना चाहिये, प्रेममार्ग संसारसे निरा. लाहै.इसके आनन्दका अनुभव बिना प्राणपन किये कौन कर सकता है ? आहा ! वह प्रेममाधुरी मूर्ति नयनोंके आगे नृत्य कर रही है. भला ! यह कभी भुलायेसे भूलसकतीहै? जिसके क्षणिक वियोगमें असंख्य यमयातना अनुभव होती हैं जिसके मिलापमें साम्राज्य और महेन्द्र पदवभिी PPPAC: Sunratnasuri.M.S.... Jun Gun Aaradhak Trust Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - भाषाटीकासहित. 161 - तच्छ जचती है; अहा ! वह विशालभाल, वह भ्रकुटिकटिल शरजाल, वो तीक्ष्ण आश्रवणावलम्बित नेत्राल, वह सर्वदा प्रसन्नचरणारविन्द, वो मधुर कोकिलस्वर, वो पीनोन्नत कुचकलश, वो मत्तमतंगगमन, वो हंसपद विन्यास, अवलोकन मात्रसेही किसे नहीं निरीह कर देता है ? क्या इसके आगे और कोई दुःख मुझे व्याप - सकता दै ? इतनी बातें कहकर मदनमोहन बोला, हे मित्र ! अब तुह्मारी आज्ञा पाऊं तो मैं इस समय अपनी - प्राणप्रियासे अन्तिम भेंटकर आऊं.. ... यह सुनकर सुखदर्शनने कहा मित्र! तुह्मारी व्यवस्था.. - देख सुनकर मेरा चित्तही ठिकाने नहीं रहा, यदि तुमको नहीं जाने देताहूं, तोभी नहीं बनता और फिर जानेमें . कोई अन्य आपत्ति आजाय तो फिर क्या करूंगा. मदन' माहनने कहा.मित्र! संसारमें प्राण जानेसे बढकर और कोई.. आपत्ति नहीं है, आप किसी बातकी चिंता न कीजिये, निस्सन्देह मुझको जाने दीजिये, मैं शीघ्रही लौटकर आ जगा. यह कह मदनमोहन वहांसे चलदिया. रात . P.P.AC.GunratnasuriM.S..... . . Jun Gun Aaradhak Trust Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1162 / स्त्रीचरित्र. अँधेरी थी, हाथ पसारा नहीं सूझताथा, मदनमोहनने उसी समय जाकर कबन्ध डाला, और झट ऊपरको चढगया, और खिडकी बंद कर प्यारीके समीप गया, वहां उसको सोता हुआ पाया. उस समय मनमें अनेक तर्कवितर्क किये कि जिससे मदनमोहनके नेत्रोंसे अश्रुधारा बहने लगी, और प्यारीके मुखारविन्दपर अश्रुवर्षण होनेसे निद्राभंग होगई. देखा तो प्राणेश्वरके नेत्रोंसे जलवर्षण हो गया है. यह अकस्मत् आश्चर्य देखकर , ललना निन्तात . बडागई, और बड़ी आतुरतासे उठकर अपने पीत. मके गलेसे लिपटकर नयन जलकण बरसाने लगी. कुछ समयके उपरान्त धैर्य धारण कर पूछने लगी कि प्यारे ! तुह्मारी यह क्या दशा है ? क्या मुझ. दासीसे कोई अपराध बनपड़ा, तुह्मारा हृदय ऐसे वेगसे / क्यों धडक रहाहै, क्यों इतने रुष्ट होगये, इसप्रकार पूछने. पर मदनमोहनने यह विचार किया, कि इससमय सब . बात सत्यही कह देना चाहिये. यह सोच मदनमोहनने सम्पूर्ण वृत्तान्त कह सुनाया. सुनतेही प्यारीके कष्टकी PP AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust . Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 163 . भाषाटीकासहित सीमा न रही, आधिक क्या कहा जाय, दोनोंमें बहुत कुछ बातचीत हुई, इस अन्तिम भेटका क्लेश लिखनेको लेखनीमें बल नहीं है. यहांपर इतनाही लिखना योग्य है, कि मदनमोहन शास्त्री, अपनी प्राणवल्लभाको वहीं / परमेश्वरके भरोसे छोडकर अपने मित्र मुखदर्शनको आय मिले, और शेष रात्रि निद्रामें निमम होकर विताई। अहा ! प्रभातहालकी शोभाभी अतुल है, अंशुमाली भगवान् भास्कर उदयाचल चूडावलम्बी हुये, संसारी जीव यावत् निजव्यापारमें प्रवृत्त हुये क्या इससमय प्रजापतिके निद्राका समय है ? अत एव बन्दीजनोंसे संस्तूयमान महाराजाधिराज जागृत हुये. और ईश्वराभि बादनादि नित्यकृत्यसे निवृत्त होकर गजसभामें अतीवो. मत सिहासनपर विराजमान हये. मंत्रिप्रवरादि राजकर्म पारा अपने 2 कार्योंकी उत्कृष्टता दिखाने के लिये पहले. हास स्थित थे. सकल सभासद्गुण समय उपस्थित हो कर नृपतिको प्रमाण करकर अपने अपने उचित स्थान पर विराजमान होने लगे, और उस दिनका P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. भाव जाननेकी इच्छासे सबकी दृष्टि महाराज के सन्मुख 'लगरही थी, उससमय महाराज अपने मनमें विचार कर रहेथे, कि अहा ! जो मैं इतना यत्न न करता, - और दोनों स्थानों में छिपकर प्रिया प्रीतमका अलौकिक प्रेम न देखता, तथा समस्त भेद न जानता, अथवा केवल दूतोकेही भरोसेपर रहता, तो आज अवश्य एक -निरपराधी व्यक्तिका प्राणजाता, राजाके आलसी होनेसे कितनेही निरपराधी जवोंका अमूल्य प्राण राजकर्मचारियोंकी लीलासे जाया करता है. यदि कोई वास्तवमें वधिकभी हो तो उसेभी प्राणदंड देना सर्वथा अयोग्य और सभ्यसमाजमें दूषित है. क्योंकि प्राणदंड क्षणिक है, - इससे शिक्षा लाभ पूर्ण प्रकारसे नहीं हो सकता. इस लिये यदि ऐसे ऐसे घोर पापियोंको सकठिन परिश्रम -- कारागृह निरोध हो तो प्रजासंख्याभी कम न हो और अहर्निश उसका दृष्टान्त प्रत्यक्ष रहनेसे औरोंको भये - बाहुल्यद्वारा तमोगुणकी उत्पत्तिभी कमहो, तथा घोर व्य भिचारकी संख्याभी कमहो जायः धन्य है उस परमात्मा Ac:Gunjatnasuril Jun Gun Aaradhak Trust. Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. को. कि जिसने मुझको न्यायपूर्वक राज्य करनेकी बुद्धि प्रदान की है, अतः उस परमात्माका जितना धन्यवाद दूं थोडा है. ___महाराजको विचार करते देखकर सकल सभासद्गण - परम विस्मित हुये, कि आज महाराज क्या विचार कररहे - हैं, क्षणक्षणपर भाव पलट जाताहै. महाराजने भी सबकी - आकृती देखकर जानलिया कि ये सब हमारे तर्कवितर्क पर विस्मित होरहे हैं तो अब इस कौतुकका दृश्य इन -सबकोभी अवश्य दिखाना चाहिये यह विचार स्थिरकर - महाराजने कहा मंत्रीवर ! इसी समय कोतवालको आज्ञा दीजिये कि महाराजगंज नामक महल्लेमें सुखदर्शन नामक पंडित जो सरकारी चोर है उसको प्रतिष्ठापूर्वक शीघ्र न्यायालय में उपस्थित करें. मंत्रीने कोतवालसे कहा पक, तुमने महाराजकी आज्ञा सुनी ? शीघ्र आज्ञानुसार -काये करो. सुनतेही कोतवाल महाराजगंजमें पहुंचा। उखदर्शन शास्त्रीको पुकारा, मुखदर्शन के बाहर मातही कोतवालने कहा, महाराजने आज्ञा का ह P. Guatlasun ". Jum Gun Aaradhak Trust ... Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रः सुखदर्शन शास्त्री जो सरकारी चोर है, उसे शीघ्र लाओ सो चलो. सुखदर्शनजी पहलेही नित्यकृत्यसे निवृत्त - होकर तैयार होरहे थे. महाराजकी आज्ञा सुनतेही कोतवालके साथ होलिये, यह चरित्र देखतेही नगरके लोग कोलाहल करने लगे, कि अरे ! यह विचार सुपात्र ब्राह्मण आज सरकारी चोर बनाया गया. प्रथम तो 'पुलिस' ही महाराज है देखा! यह क्रूरप्रकृति कोतवाल - इस पंडितको कैसे असभ्य व्यवहारसे लिये जाताहै, क्या महाराजने इसको ऐसे कुव्यवहारकी आज्ञा दी होगी. इधर मदनमोहनजी कोलाहल सुनकर जागपड़े जो प्रेमप्रमादमदसे अचेत सो रहेथे, मित्रको गया सुन सहसा उठे दौडे, मार्गमें कोतवाल के साथ मित्रको देखकर कहा, कोतवालसाहब ! कृपा करके आप इन्हें छोडदें. क्योंकि सरकारी चोर हम हैं, हमको लेचलो. प्रेमवृत्तिके प्रबल होनेसे सुखदर्शनने कहा, महाशय ! ये झूठे हैं हमही चोर हैं. इस प्रकार दोनोंका वचन सुनकर कोतवालसाहब 'बछवाके ताऊ' बनगये. बुद्धि चकरागई, बहा धर्मसंकट P.AC..Gunratnasuri un Badhah Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहितः आ पडा, यही बुद्धिनाशक कौतुक है. अब विचारा कोतवाल किसे चोर समझे और किसे लेजाय; परंतु उसको उचित था, कि जिसको राजाने बुलायाथा, उसे लेजातायहां अपनी चातुरी दिखानेकेलिये दोनोंहीको महाराज के -सन्मुख लाय खडा करदिया. और मार्गका समाचारभी कह सुनाया. परन्तु अपने कुव्यवहारका नामतक नहीं - लिया उचित अपराधको भलेप्रकरर जांचकर दण्ड देना राजाका स्वत्त्व है न कि अन्य कर्मचारी पुलिसप्रभृतियों--- का परन्तु इस बातके कहनेकी शक्तिही किसे है. अस्तु, ___ दोनों मित्र राजाके खन्मुख खडे हैं अहा ! स्वार्थपर ताको छोडकर निष्कपट प्रीति इसका नाम है. क्या - सुखदर्शनके देवता होनेमें अबभी कुछ सन्देह है। परन्तु यहां राजाको तो औरही अभीष्ट था. शीघ्रही आज्ञा दी मदनमोहनही वास्तविक चोर है, इसको शृलीके सन्मुख लेजाओ आज्ञाकी देरीथी, शीघ्र शूलीके सन्मुख समाहनजी खडे करदियेगये. यह आश्चर्य कौतुक सकर नगरभरमें शोकध्वनि छागई. समस्त राजकमें Jun Gun Aaradhak Trust Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 168. स्त्रीचरित्र. चारी व सभासद्गण प्रजावर्गसहित चित्रलिखेसे रहगये. - बस अब केवल राजाकी आज्ञाहीकी देरी थी, कि यकायक एक श्याम वसनधारे अस्त्र शस्त्र परिपूर्ण युवा अश्वारूढ आकर मदनमोहन शास्त्रीके सन्मुख खडा होगया उसका अद्भुत वेष और तेज. मुखकी कान्ति, तथा -पराक्रम देखकर दर्शकगणोंके मनमें अनेक भाव प्रगट होने लगे, इतनेहीमें अश्वारूढके मुखसे यह वचन निकला. ___ आर्या छन्द / इति निजबन्धुवियोगादग्नेर्वाला दहति मे देहम् // अहह समागमयोगादायातस्मि विसृज्य वै गेहम् // .. दोहा-प्राणप्रिय विरहाग्निसे, दग्ध होत मम अंग // मिलन हेत अत्रागमन, त्यागि. सबनको संग॥१॥ उसका यह वचन सुन, उसको पहचानकर मदन मोहनने उत्तर दिया, कि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासाहत. 169 इसप्रकार दोनोंके कथनोपकथनको सुनकर जो लोग अक्षरार्थ समझे वेभी गूढाशयतक न पहुँचकर आतुर होनेलगे, और जो कुछभी न समझे उनका मन तो हाथों उछलने लगा, परन्तु महाराज तो सब वृत्तान्त आदिसे अन्ततक जानतेथे, अतः मन्दमुसक्यानसमेत दोनोंका अकृत्रिम प्रेम देखकर प्रसन्न होने लगे, तब तो महाराजके कोतुकको न जान और यह अपूर्व दृश्य देखकर सर्व दर्शकजन बडे विकल हुये. तथा आश्चर्जित और चमत्कृत होकर मंत्रिप्रवर बुद्धिविशारदजीने आतुर हो महाराजसे पूछा, महाराज ! ऐसी अद्भुतलीला हमने . आर्या / नहि शोक मे मरणे दृष्टा त्वां प्रेमरूपाभा आपच भविष्यति लोके संयोगो मे तयातेऽद्य // 2 // दाहा-नहीं शोक म्वहिं मरणमें, लखि तव मम स्वरूप // होवैगा जगमाहि तुव, मम सयोग अनूप // 3 // P.P.AC.Sunratnasuri M.S. / Jun Gun Aaradhak Trust Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17. स्त्रीचरित्र आजतक नहीं देखी, यह क्या अपूर्व कौतुक हैं सो कहिये. तब महाराजने मुसक्याकर कहा, कि यह भेद पीछे जानना, पहले यह देख आओ कि मदन मोहनके समीप श्याम वसनधारी अश्वारूढ कौन वीर खडा है ? पश्चात् इसका निर्णय हो जायगा. - यह वचन महाराजका सुनकर नीतितत्त्वज्ञ मंत्री बुद्धिसागरजी तुरन्त उस अश्वारूढ बीरके सन्मुख जाय उसको पहचानकर लौट आये और धीरसे बोले, महाराज! बड़ा अनर्थ हुआ.सब बनी बनाई प्रतिष्ठा धूलमें मिलगई. अरे ! यह कुलकलंकिनी कन्या दासहीकी है. हां! - आज इसने हमारेलाजका जहाज डुबादिया, यह सुन महाराजने हँसकर कहा, कि कुछ सन्देह मतकरों यह जो शूलीके सन्मुख युवक खडा है, सो अद्वितीय पंडित, राजमान्य शास्त्री विश्वेश्वरानन्दजीका प्रियपुत्र है, इसका नाममदनमोहन शास्त्री है, तुम्हारा स्वजाति है, अबइसको हम अपने साक्षात पुत्रके समान मानते Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित 171 * तुह्मारी कन्याकी और इसकी अतुल अलौकिक प्रीति है, अतः अब उचित यही है, कि इन दोनोंका ल्यिानुसार विवाह कर दिया जाय. यह कहकर राजाने सब गुप्तभेद गुप्तरीतिसे कह सुनाया, और यहभी कहा कि यदि ऐसा प्रवन्ध और भय न देते, तो औरौंको शिक्षा न होती, और ये दोनों प्रेमी आश्चर्य नहीं कि प्राण छोड देते. अहाहा ! अब क्या था ? यह सुखसम्बाद सुनकर मंत्री बुद्धिसागरजी अति प्रसन्न हुए, और उसी समयसे विवाहोत्सवका प्रारंभ किया, मंगल पूर्वक दोनोंका विवाह होगया. नगरभरके हर्षकी सीमा न रही. एकमात्र आनन्दका सागर उमड पडा. सुख सारता प्रबल प्रवाहसे वहने लगी, आनन्द कादम्बिनी गई, और मंगल वर्षा होने लगी, हृदयभूमि हरी सहुई, प्रेमवल्ली लहलहा उठी, अनुराग पवन बहने साहाद्रप्रसूनकी सुगन्धसे आशा पूर्ण हो गई. + मारे हठात् मेरी लेखनीभी रुकगई, क्या इससभा कर किसी प्रेमसरिताका प्रवाह होगा. परमात्मा इसी कर सर्वेदा सच्चे प्रेमियोंकी अभिलाष पूर्ण करे. इति / / un Aaradhak Trust Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 272 स्त्रीचरित्र. अथ होलिकानिर्णय ___ अर्थात् , होली (फाग ) का निर्णय / दोहा-श्रीजगदीश्वर ध्यानधरि, सदुपदेश दर्शाय / - होलीका निर्णय लिखत, नारायण मन लाय // 1 // अररररररर कबीर सुनियो लोगो मोर कबीर। पहले सुमिरौं गुरु गणेशको पुनिदेवनशिरताज॥जिनके सुमिरनते सुखबाढे सिद्धहोत सवकाज। भला मैं भर्म पन्थको क्यों छोडूं॥२॥ फाल्गुनमें सब होरी खेलौ लूटौ अजब बहार भला यह कौनबात भलमनसीकी // 3 // गेहूं जौके पेड़ न बाढे भई उपज घनघोर। अन्न समय तो पाथरवरसा चढी घटा घनघार / भला अब परजा कैसे जीवगी॥४॥ suri.M.S JunGun Aaradhak Trust Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. 173 / वर्षा करिके वेसमय जोन्हरी बजरी खोय। चारानाज मिलै नहिं ढूंढे मरैरि आयारोये। भला यह मरजी अजब गुसैयांकी // 5 // खूब मजेसे होली खेलौगावौ गीत सुगीत / गांव गवेलौं को मत छेडो मेटौ सकलकुरीति। भला यह क्योंकर तुम सब मानाग॥ 6 // चौका चूल्हा बहुत लगावत रांधत बटुली मांसाल्याव रुपैया दुइहजार जब बुझै हमारी प्यास।भला यह रीति हमारेषटकुलकी॥७॥ पानी पीवों तब लुटियाकोजबरुपया गिनदे-यबिटवा व्याहौ जब धाकर घर तबहीं जस ललय / फला क्या नई कुलीनी है हमरे॥८॥ धारता समर वीरता रही कायरी एक // नारद जो हुक्का होली औ कसबीके टेक // मला तो सबी बात बन जावैगी // 9 // 15 सबेरे वडी मारें चन्दन खारें माथ। Ben Gunratnasu Yun Gun Aaradhak Trust Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 174 . स्त्रीचरित्र. बढी भक्तिसे संगति जोरीपनिहारीके साथ। मला कोउ सुनि है ससुरा का करिहै // 10 // इन बातनमें लाज कहां है सदा जुगतव्यौहार जहां कचौरी पुरी महकै कूदिरै सरुवार // भला यह सारा खेल रुपैयाको // 11 // सभाकमेटीसुरस लपेटी लेक्चरललितललाम।कथा सकल सुरधाम सिधारी ज्यों उठि कियोसलाम॥भला यह देश भलाई दुर्घटहै // 12 // सुन्दर चालचलौ तुम निशिदिन करहु विप्रसन्मान॥धर्म कर्ममें चित्त लगावौत्यागि देहु अभिमान // भला नहि अन्त नतीजा पा. वांगो // 13 // कई कल्पसे हम देखत हैं अस नहिं भयोसपूत अबके विप्र नचावत कसबी बडे धर्म मजबूत॥भला यह सोहत तीरथवासिनको // 14 // P:P. Ac: Gunratnasuri M.S. Jun. Gun Aaradhak Trust Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित.. 175 वाहबहादुर कलियुग भैयातेरी महिमा गूद। क्यों नहबाढै राज तुह्मारा कियो विप्रको मदामला यह जुगति तुह्यारी चोखी है।॥१५॥ खेर तुह्यारी तबतक कलियुग जबतक विप्रअचेत / होश समारा तुमहि पछरिहै महाप्रलय के खेत // मला तुम रहेउ सदा हु. शियामि // 16 // पंडित सिगरे खण्डित हुइगे चलतीनहिं कछचाल // पोथी पत्रा खालत मूंदत देखत सबको हाल // // भला सब अपनी अपनी रास्ता है // 17 // धर्मग्रन्थसे भेंट नहीं है किया न कुछ सत्संग।। विप्रकर्म क्या जाने मूड्यू पियें रातदिन भंग // भला ये अवरा हिन्दको बोरेंगे // 18 // लाखल अडगं सडगं गारी बकै अनेक // न मुनि सज्जन मूंड लचावै यह भल Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 176 . स्त्रीचरित्र. मनसी टेक // भला जय बोलौ कलियुग बाबाकी // 19 // फागुन आया मस्त महीना प्यारीधरत न धीर // मदन वदनमें सदन करत है उठे करेजवापीर / भला कोउ बुरा न मनियो होली है // 20 // __फागुनमासमें ऐसे परमपुण्यनय भरतखंडमें दिल्लगी, गाली, गुहार आदिका असह्य व्यवहार अत्यन्त अनर्थजनक है. यह सब बातें अविद्यान्धकारसे तन्मय हैं, असमर्थ जनोंके प्रति तो कहनाही नहीं. परन्तु सामर्थ्यवान् जनोंको योग्य है कि इस अन्धपरम्पराको. दूर करनेका प्रयत्न करें. अब आगे होलीके निर्णय विषयमें एक ऐतिहासिक प्रसंग लिखते हैं। श्रीमन्महाराजा विक्रमादित्यजीकी उन्नीसवीं शताब्दीके आरंभमें पूर्वोत्तर देशके एक छोटेसे राज्यक आधिपति राजा रतनसिंह नामक प्रसिद्ध वीर राजा राज्य करताथा. महाराज रतनसिंहके न्याय और उत्तम P.P/Ac. Gunratnasuri MS. Jun. Gun Aaradhak Trust Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N भाषाटीकासाहित. 177 स्वभावमें किसी प्रकारको न्यूनता नहीं थी, सारी प्रजा महाराजको अपने तनमनसे अपना प्रभु साहाती थी, अनेक मनुष्यों के मुखसे हमने महाराज रतन. सिंहकी प्रशंसा सुनी है. वास्तवमें जिस पुरुषकी प्रशंसा सैंकडों मनुष्योंके मुखसे सुनने में आवे, और उस प्रशंसामें किसी बातका दोष न पाया जा, तो वह मनुष्य योग्य प्रशंसाके समझा जा सकता है. एक समय महाराजने होलीकी गुहार और फागकी अ: हुत बहार देख सुनकर अपने मनमें विचार किया कि, आज कल प्रायः मनुष्य आपेसे बाहर होकर यही पुकारते हैं कि-होली है, होलीहै, होली है, होली हमारी. इसका निणय करना चाहिये कि होली किसकी है. अधिक ... सात जातिके पुर्विया, 2 कायस्थ, 3 अइंहार. वटा जाति, 5 रामजनी. निकाल(भांड) 7 हीजडा. प लाग बहुत गुलगपाडा मचाते हैं. योग्य है कि, इन पृथक् पृथक् बुलराकर पूछना चाहिये, देखें ये क्या कहते हैं, पीछेसे देखा जायगा. यह पियार कर . P.AC. Gunratasuri IS Jun Gun Aaradhak Trust Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 278 स्त्रीचरित्र. महाराजने पृथक् 2 उन सबका कथन सुननेके लिये अज्ञादी. सुनतेही राजकर्मचारियोंने प्रबन्ध किया. तहां . पहले सात जातिके पुर्वियोंका झुंड आया, उसमेंसे / - एकने अपना कथन प्रारंभ किया कि, महाराज! _कवीर। अरररररर लोगौ सुनहु कबीर // -बूढे बाबा देवर लागै लड़िका लागें यार // सबैमिहरियां सरहज लागें लूटौअजबबहार। भला जय बोलो होरी मैयाकी // 1 // हमार देश क्यार चालि अस चली आवति हैं कि, होरीमें कछु विचार नाहिन रहतु आपहू जा बातको जानत आई, कि-होरी, धमार, राग, रंग अबीर, गुलाब, कबीर, गारी, इनकी फाईमा बहार रहतिरही. मुद्दा आजुताई किसहूं ने विचार नायं कीनो पै आजु आपु इमहि बुलाय कस पछत आई... P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित 179 कवीर। 'बालक गावें बूढे गावे गावें लोग लुगाई। हुइ निर्लज्ज गलिनमें डोलैं बेटे बहू जमाई। भला जय बोलौ होरी मैयाकी // 2 // महाराज ! हमतो साफ साफु कहियति हैं. होरी हमार त्यौहारु आइ यहु हमका मालुम हुई गया कि, केहू दुष्ट ने महाराजसे आइके कुछ कहि दिहिसी. पै हमार तो कुछ - दोष नाहिन. पुरिखनसे यहै रीति चली आई. और काई सबूत हमका जानी. यह सुनकर महाराजने उनको अलग -बैठनेको जाज्ञा दी और कायस्थोंको बुलाया. वे सब उस समय मदिरा पी रहेथे कि, इतनेमें पुकार हुई, पुकार रहातही सब दरबारमें पहुँचे, तब महाराजने कहा इनमेसे जा बुद्धिमान अथवा जवाब देनेमें साफ हो वह सामने आव, यह बात सुनकर उनमेंसे एक लालाप्साहन शिरपर बाघ, तम्बा ( पायजामा जो ढीला होताहै सो) पाहर, हासियादार रूमाल ओढे, इधर उधर पाव लडख. Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 180 / बीचरित्र-डाते हुये दरबार में बिछौनेपर आकर बीचो बीच भद्दमे बैठग और बोले, कि होलीम हमारी हमारे बुजुर्गो. हमारी औलाद सबकी खता म्वाफ़ रही है. हमने किसी मसखरेका कुछ नुकसान नहीं कियाहै, जो हमको बाहर निकालदेगा. अपना खाते अपना कमाते. शराष पी पीकर मजे उडातेहैं, इसवक्त हमारे सामने तमाम दुनि -यांकी बादशाही हेच है, ऐसा कौन धन्नासेठ है जो इस. -बिछौनेसे हमको उठावेगा. लिखिये हमारा इजहार, यह कहकर लालासाहब फर्शपर लेट गये और बोले, हमारा नाम शिवववश, बायका नाम रामबखश, या यूं लिखिये हमारा नाम हाथीचन्द बालिदका नाम घोडचन्द, अअअब हहहमारा इइइइइजहार लिइइइ लिखिये.” जजज जो न पी शराब, अअअ उसका खाना खराब.” हम जातके कायथ और पेशा हमारा बडा लम्बा चौडा नापमें जरवों चला गया. वही रतनपुराका हलका हमारे नाम है. उन सब होलीके भडुआ' हमारी सवारीमें एक घोडी. दोपहरमें दोकोस चलनेवाली- हमारा काम यह कि, ..PP.AC. Gunratnasuri.M.S... Jun Guri Aaradhak Trust. Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 181 दिनभर खेतों में फिरते. शामको अद्धाभर शव पीकर / खाना खाते और नशेकी हालतमें सोरहते हैं. दिनभर ' हम हिलाते हैं दादी, रातभर हम करते हैं बादशाही. ___ हमारे सामने अफलातूनभी एक पशम है. हमारी रोज होली, रोज दिवाली. जबसे फाल्गुन शुरू होता है. एक बोतलसे कम हम नहीं पीते हैं. और बढते के ते सब गर्जी हैं. हमारी उमर करीब पचासी वर्षकी हुई. बडी बडी कचहरियां हमने देखडालीहैं, तुम सरीखे लडके - हमारी गोदके खिलाये हैं. कसम शराबकी, कि दिवाली बानयोंकी, दशहरा राजपूतोंका,सलोनौ ब्रह्मनोकी, वसंत रेडियोका और होली खास हम(कायथ) लोगोंकी है, बाज: ना नावा किया लोग ऐसे शैतान पैदाहुये हैं, जो -बापदादोंको बेवकूफ बतलाते हैं जो हमारा परमधर्म है उसका हलफनाम लिखते फिरते हैं, गोश्त, कवाब और छलियोंका खाना बेरहमीमें शुमार करते हैं. स्काई। / जो हमको रोक रहेहैं शराब पीनेसे / F.P.AC.Gunratnasuri Jun Gun 'Aaradhak Trust Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -..-: . -: स्त्रीचरित्र वह हमको भाते नहीं हैं किसी करीनेसे।। हम तो भाती नहीं ऐसी जिन्दगी सुन्सां। इलाही मौतमली बे शराबपनिसे // - तंत्रशास्त्रका वचन देखिये पहिये / पीत्वा पीत्वा पुनःपीत्वा यावत्पतति भूतला. पुनरुत्थाय वैपीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते॥॥ अर्थ-शराब पीतेपीते यहांतक पिये कि, जमीनपर गिर पड़े फिर उठकर पिये तो फिर जन्म नहीं होताहै, यानी वह शक्स आवागमनसे छूटजाता है // 1 // मुबूत देते देते अब हमारी जबान थक गई. जिस्म थकगया, बोलनेकी ताकत नहीं रही, 'नन नहीं है दद दखल बब बंदोंका खख खुदाके कक कारखानेमें यह कहते हुये लालाजीकी जबान बन्द हो गई, पेटमें आग पडनेलगी, फर्शपर लोटने लगे, नाक ओर मुँहमें मक्खियां घुसने लगी, यह हालत देख लालाजीको महाराजने ज्यों त्योंकर घरपर पहुँचानेका हुक्म दिया. आज्ञा . P.B. AC: Gunratnasuri M 1. Jun Gun AaradhakTrust Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित 183 पातेही लालाजी वहांसे घर पहुँचाये, शेते के हुई. कपडे लत्ते भीगकर लतपत होगये. नई पोशाक लोया इतरकी खुशबू और गुलाब छिडक गया. तीसरी बार भुइंहारोंका झुंड बुलाया गया. उनमें से एक भुइंहार सबकी ओरसे बोला, महाराज ! हम सब आपकी गौवें, आप हमारे कल्पवृक्ष अन्नदाता हैं हरसाल हम हो पुजा होरी जरावें तपार्वे, पूरी पिचकियां और दक्षिणा पावें, सात साखिसे हमारो यही कामु है, खेत माफी जागीर इसीकी बदौलत, राजो रईस अमीरों जिमींदारासे खाते पाते और चैन करते. सांझ सबेरे लोटा भांगका चढाये तरमाल भोग लगाते हैं, 'न ऊधौकी लेने न माधाकी देने' हमारपास पक्के कागजपर पट्टा लिखे धरे हैं. यह कहकर सब भुइंहार एक ओर बैठगये. चौथीवार छोटीजातका झुंड बुलाया गया. वे सब जाघातक धोती पहरे,नंगे पांव,शिर नंगा, कोईकोई शिरपर मुरैठा बांधे कोई 2 टोपी दिये, कोई सब देह कोई मुंह काला किये, कोई 2 माथेपर कालखकी, खोर बीच में सिं PP.Ac. Canratnasuri M:S.. Jun Gun Aaradhake Trust Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 184 स्त्रीचरित्र / दूरका टीका लगाये, कोई डंडा, कोई लह, कोई डफ,कोई खंजी कोई मोरका पंख, कोई झांझ, हाथमे लिये आये. उनमेंसे एक निकलकर सामने आया और बोला, महाराज ! झूठी बात कहिवो लच्चन गुंडनको कामु है हमलोग भले मानस सांची सांची बात कहतुहै, है कि नाहीं साहब, हमैं सदा कचहरी दरबारसे कामु रहतिहै, फौजदारीके मुकदमा हमपर बनेई रहत है. है कि नाही साहब, गंगादुहाई अधरमलगती बात हम कहत नाही है या होरी पर लट्ट चलिगये, मुंड फूटनि हुइगई. हवालात जेलखान सब कुछ हुइगओ. पै गमदुहाई हमने होरी नाही छोडी, काहे साहब इह कि नाही. हमसे बडो ऐसो कौनु रसिया है जो होरी अपनी बतावै. हम सब छतीसाँ जातिके लोग हिलि मिलि गाउं गांउं. गली गली मारे मारे डौलत हैं. आगे आगै हिजरा ताके पाछे पतुरिया, ताके पाछे लौंडा. सबसे पीछे हम सब मृदंग, झांझ, मँजीरा, ढोल, डफ, करताले बजाय 2 रसीली धमारे गावत हैं. बीच बीच दारू, चर्स, भांग, Aaraunst P.P.AC.GunratnasuriM.S Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित गांजा, पियत खात हैं, सबठाई हमारी खार होती आपने ऊतौ सुनो हुइहै के नाही साहब. होरी हा हम सबकी, सुनौ साहब. जाने प्यालासे आंख बचाई // ताहि खाय चंडिका माई // भंग कहै ते बावरे विजया कहें तेशूर // जाहि पियें कमलापती नैन रहें भरपूर। जिसने न पी गांजेकी कली // तिस लडकेसे लडकी भली // हमारे पुरिखनसे जो रसूम चली आई सोई हम करतहँ कोई नई बात नाही है. हइ कि नाही साहब जानो आपुने अब हमारी सलाम जुहार रामराम सबकी लेड हम जातहैं. यह कह एक छलांग मार अपने झुंडमें जायमिला. और हाथ हाथभर सब उछलने कूदने और -गाने लगे. Gunratnasuri M.S Gun Aaradhak Trus Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. पांचवीं वार रामजनी और रंडी बुलाई गई. वे सब मंगल नुखी, सदासुखी, शिरसे पांवतक जडाऊ गहनेसे लदी हुई. जालीकी सारी ओढे, पेशवा पहने, पान चावती हुई, बडी शानसे आपहुंची और बोली महाराजकी बढती बनीरहे बोल बाला रहे. हम लोग तो बढतीकी साथी हैं. इस दिनका हमेशा आसरा करती रहती है कि कब होली आवै. हम गावें सुना आपलोगोंसे कुछ पार्दै और मजा उडावे. सो हमारी तो होली बनी बनाई है. दोचार. मुरीद इस त्योहारमें मूंडे धरेहैं. इसकी वदौलत हम जेवर, मकान बनाती, 'उमदा 2 कपडे बनाती पहिरती हैं. हमारी बराबरी कोई नहीं कर सकता. जहां कहीं नाच मुजेरेमें बुलाई गई मानो हमने उठती जवानीवाले पट्टे मालदारको मूंडा फिर क्या वह हमारे पंजेसे निकलकर जासकताहै. कभी नहीं ऐसा कोई मर्द हम दुनिया नहीं देखतीं कि जिसको हम अपने कटाक्षसे न वेधलें. ख्याल करलीजिये कि होली स्त्री और हम लोगभी स्त्रियां हैं होली हमारी सखी है / फिर Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunrathasuri M.S. Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाकिासहित. १८७इमारी होली होनेमें क्या कुछ शक बाकी टी. बहु तेरे | घरोंमें हमारी बहिनैं मालकिन बनी बैंग हैं मत करती और ऐश उडाती हैं. अब आप हमारा एक मुजरा सुन लीजिये.. कालिंगडा। प्यारी बिन कटत न कारी रैन, पल छिन न परत जिय हाय चैन / तनपीर बढी सब छुटयो धीर, कहि आवत नहीं कछ सुखहु वन // जिय तरफरात सब जरतगात, टप टप टपकत दुखभरै नैन / दुख मेटनहारो काउ है न, सजि विरह सैन यह जगत जन / मारत मरोरि. मोहिं पापी मैन, प्यारी बिन कटत न कारी रैन // 1 // छठीबार नकाल ( भांड )बुलाये गये. उनमेंसे कुछ आगे बढ, ही, ही, ही, मेरा घोडा रंडीका जोडा खाय बहुत चलै थोडा. महाराजकी जय हो, बात बनी रहे AC.Gunratnasuri MS Jun 'Gun Aaradhak Trust Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 188 स्त्रीचरित्र. यह घोडा अनमोल असल जानवर है. कुछ भाड शिर / खोले पट उघाडे. पायजामेंसे पेडू बाहार निकाले हुये। चांद और सिनापर हाथ फेरते हुये कुचल घोडाकी चाल - चलते हुये आफैं, आफै, आफैं, यह घोडा यह घोडा. बडी तारिफों गुलाब खाता, गुलकन्द हगता, महुवे खाता शराब मूतता. घोडा क्या पूरा कारखाना है. __सब भांडोंकी तरफसे एक भांडं कमर बांध गोटेदार दुपलड़ी टोपी ओढ अपना बायन लिखानेके लिगे - आगे बढा मुँहब जाकर अगडबम्-महाराज लिखिये. शैर-परदार तोउड़ते हैं बे परका खुदा हाफ़िज़॥ जरदारका सौदा है बेजरका खुदा हा मेरा नाम चट्कीला, बापका नाम सट्कीला, जोरूका नाम मकीला, कोम आनिरुद्धके मिसिर घर वैकुंठ, पेसा तीरथ करना, उमर अट्टाईस कम चालीस वरसकी, चाहे इसमें दोएक कमती बढती कर दीजिये क्योंकि हमकोई लालालोग नहीं जो कौडी कौडीका - Jun Gun Aaradhak Trust. P.P.AC.Gurmatnasu M.S.. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 189 / हिसाब लिखते जाया करें: जब कहें तब ईमानरे हाँठके लिये जरासा तिनका मुँहमें दबाये रक्खें. महाराज ! | होली भांडोकी महारे बुजुर्ग इसीकी बदौलत इस घरनसे दोलक भराय भराय रुपया ले गये- सदा होरी हमारी भई. बाजी बाजी होरीमें सौ सौ रुपया तोला भांड बिना भांड होरी सूनी. 'रंडीको देय भडुआ कहाय,, भाडको देय सीधा वैकुंठ लेजाय ' गाने बजानेमें हम रंडीयोंको. मात करें हमारी नकलोंमें बड़े बड़े गुन लडके सुनै जवान हो जाय जवान सुनै खरादपर चढ जायं. बुढे सुनै पूरे सन्त होजाय, हिन्दुओंमें सेठमहाजन, बनियें, वकाल, लाला कायथ, ब्राह्मण, ठाकुर सब जानते हैं. इनके सिवाय अहेल इसलाम भारसाहेब, - खां साहब, शेखसाहब, मौलवीसाहब, मुफ्तीसाहब, काजी साहब, नवाबसाहबसे बन्द कमीशन भेजकर दरियाफ्त कर लीजिये. होली भांडोकी. हम भांड तो खुदाके - आसरे मजबूत बैठे हैं. हमारा त्यौहार कौन छीन सकता हैं. कायथोंको छोडेंगे. बनियोंके घर जा घुसँगे. .P.P.AC.Gunratnasuri:M.S. .. Jun" Gun Aaradhak TA Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र और भाई भांडी सुनौ जब किसी तरह न बनेगी, तब ; एक तदबीर खाने कमानेकी हमने सोच रक्खी है कि, वकालत मुख्त्यारीका इम्तिहान देंदेंगे, फिरतो रोजमर्रा शुकराना, मिहन्ताना, कागजाना, नोकराना, सबमें यौं बारह रहेंगे. दूसरा भांड बोला अबे इसमें इन्ट्रन्स एफ-ए बी.ए. पास होनेकी शर्त है. हम बतलावै पटवारगरीका इम्तिहान देदेंगे. एक घोडी दो भेस हलकामें बनी रहेंगी. हमेशा गरमागरम खाना मौजूद. मुकदमोंकी खर्ची खु. राको वगैरामें यौं बारह रहेंगे. तीसरा भांड बोला. चलबे, सर्कारी कायदासे बिल्कुलना वाकिफ. तीसरे दर्जा मदर्साकी सनद चाहिये, इस परभी पटवारियोंके मदर्समें चार पांचमहीने पढना फिर खुदा जाने.पहले इम्तिहानमें पास हुये न हुये खर्च खुराक खुशामद दर आमद. बाडी जरेवारी. और कुत्ता खसी, अगर पासभी होगये तो अच्छा हल्का खाली होनेकी दुआ मांगना. कानून गोयोंकी बेगारे भुगतना, फिर रजामन्दी लियेके जिमी दारोंकी खाया बरदारी करना- दस्तावेज लिखना इस PP.AC.Gunratnasuri-M.S. Jun Gun Aaradhakrust Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. 19 परभी अगर सदरसे मुकर्रर हो गये तो खैर वा सारी मिहनत बरबाद. हम बनावें कोई दुकान करलेंगे. | फिरतो ड्योढे दूने हमेशा नफा होते रहेंगे, रुपयाका रुपया वेढेगा और गद्दी तकिया लगाये बैठे रहेंगे. न कहीं आना न कहीं जाना, इसमें सबतरहके पोबारह रहेंगे. यह सुनकर चुलबुला नामवाला भांड उसके एक चपत जमाकर बोला अबे उल्लूका पछा! रोजगार के लिये अव्वल तो रुपया चाहिये. फिर रुपयाभी कर लिया और राजगारछेडा, कुछ मुनाफा हुवा तो झट दस लाये टेक्स अधगये. यह बड़ी खराब चीज है, बहुतसे हिन्दुस्तानी टक्सके डरसे दो दो सौ रुपया मुनाफा का रोजगार छोड़ देते हैं, फिर सारी सिपाहियों की रोजकी धमकी रसदकी लेथन, और जो कहीं घाटा हो गया तो धोबीके कुत्ते घरक रहे. न घाटके. लेनेक देनेके पड़गये पांडे हलुवाः रहे न मांडे हम ऐसा जतन बतावै जिसमें हरो लगन फटकरी. रंग चोखा आवे. मजेसे तकिया लगाये घर - बैठे रहें और तर्रमाल दोनों वक्त उडावे. यह सुन सब P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्रः - भांड बोल उठे. भाई ! वाह तो फिर यह तजवीज जरूर / बतलाइये, चुलबुला भांड बोला मैं बतलाताहूं. हुसेनी / भाई तुमारे के लडकियां हैं: हुसेनीने कहा, चार और भाई ! मुंडू तुमारेक लडकियां हैं. मुंडूने कहातीन, और , -भाई पीरू तुमारेके लडकियां हैं, पीरूने कहा पांच, चुलबुला बोला मेरेभी दो लडकिया है सब मिलाकर चौदह लडकियां हुई. इनके व्याहके लिये हम ऐसे बड़े बडे अमीरों सेठ साहूकारों वकील बैरिस्टरोंके घर तलाश - करें जिनके लड़कोंकी शादी व बजह किसी अर्जा जिस्मानीके न होती हो, या जिनके दो दो तीन तीन शादियां हो चुकी हों और औरतें मरगई हों साठि साठि सत्तर सत्तर वरसकी उमर हो. या जिनकी मां और . कोमकी हो या जो किसी फेलना किसके वायस विरादरीसे खारिज होंपप्त, उनके लडकोंके साथ लडकियोंको :व्याते जाय, और पूरे एक एक कह हजारकी थेली इमानदारीसे लेते जायं, चौदह हजार चित्त इसमें से एक हजार रुपये नाई और पुरोहितोंके खर्चमें रखलो जो Jun Gun.AaradhakTrust PP.AC..Gunratpasuri Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित लडके तलाश करेंगे और विधि मिलावेंगे, जाकी तेरह || हजार घर बैठे बचेंगे. शादीका खर्च खानापीना लडके वाले खुद कर लेंगे, इतने में कुछ बरस मजा उड़ेगा. और लड़कियां जो पैदा होंगी वह आयन्दाके लिये काम चलता रहेगा. छोटे बडे लडके लडकीसे कुछ काम न रक्खें. चाहे चूल्हेमें जलो, चाहे भाडमें गिरो. रुपया लेने - और व्याह देनेसे काम, अगर हम तुम चारौं आदमी - साझा कर लेंगे और ईमानदारीसे काम करेंगे तो पूरी कीमत मिलेगी, इसके सिवाय जितने लडके हैं उनकी करारदादकी तादाद मुकर्रर करलें. लेकिन डेढहजारसे कम नहो और जादराह अलावा इसके. मगर याद रक्खो कि, लडकियोंसे ज्यादा फायदा लडकोंमें न होगा, क्योंकि लडकेके व्याहमें सवारी, शिकारी, नाच, रंग, आतशबाजी, तेल तमाखू, शराब, बखेर इन झगडोंमें खर्च होकर कुछ नहीं बचेगा. यह सुनकर -सक भांडोंमें वाह वाह करके उसकी अक्ल सराहके कहा, -कि यह तदबीर खाने कमानेकी सबसे अच्छी है. इसमें nanasuri MS Jun. Gur Aaradhak Trust Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीचरित्र. - ऐवही कया है. ऊंचे ऊंचे घरोंमें अब यह रोजगार सुना जाता है. तो भांडोंकी कौन गिनती. नकालोंकी बातें सुनकर महाराजने कहा कि इनका नम्बर रंडियोंये बढा - हुआ है / लखनौकी बादशाही तो इन्होंने मिट्टीका खिलौना कर दिया. ऐयाशी, अगलाम, बदतहजीबीकी जड हिन्दुस्तानें यही फिर्का है. इनको रंडियोंके पीछे दूर हटाकर विठलादो बहुक्म ऐसाही कियागया... सातवीवार हीजडोंका झुंड सामने आया. खौफ और कमजोरीकी सबबसे मुंहसे बात नहीं निकलती मगर ताली बजा बजाकर सिर्फ इतना कहा कि महाराजको खुदा सलामत रक्खे. हम हीजडे हैं. इसी 'होलीकी बदौलत हजारों रुपये खातें कमाते रहे है। सकारने हमारे आगेकी बढताउ बन्द कर दी है. नहीं तो इसीकी बदौलत हम देहातोंमें सबको हंसते हंसाते रहते हैं. और अपने बढतेभी बना लेतेहैं, कभी कभी शहरों कसबोंमेंभी शिकार मारलिया करते हैं: यह कह तालियां बजाकर गानेलगे. G nraum * Jun Gun Aaradhak Trust, Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित दादरा। क्यों हमसे होगयेहो खफा, बतलादो हमारी क्याहै खता॥क्यों करतहो जोरोजफा, बतलादो हमारी क्याहै खता॥१॥ होली हमारी हुईहै सदा, इसमें कहो किसका इजारा भला।। फिर क्यों रोके हमको सभा,बतलादो हमारी क्या है खता // 2 // हम तुमपर मरतेहैं मियां, तुम हमसे बोलतेभी नहीं हां // इसका सब. ब क्या है मेरी जां, बतलादो हमारा क्याहै खता // 3 // आगया हमारा है आंखोंमें दम, किसी मसरफके नहीं अब रहे हम // हाय मरोंपर ऐसा सितम, बतलादो हमारी क्या है खता // 4 // अरज हमारी दिलसे सुनो, महाराजजी हम पै इनायतकरो // वारी हमें मत गालियादो, बदलादो हमारी क्याहै खता // 5 // Jun Gun Aaradhak Trust Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 196: स्त्रीचरित्र. यह कह तब भांड एक आहसर्द भर मुंह नीचेको हाल एक तरफको जाबैठे. आठवीं बार पंडित लोग बुलाये गये, उनको स्वरूपन और तेजस्वी देखकर महाराजने बडे आदरसे विठाया उनसे एक पंडितजी बोले, महाराज ! शास्त्रोंमें लिखाहै के, मनुष्यका धर्म परोपकार करनेका है, सो यज्ञोंदारा हो सकता है. यथालो०॥आचारहीनस्य तु ब्राह्मणस्य वेदाः वडंगा अखिलाः संयज्ञाः। कां प्रीतिमुत्पाद येतुं समर्था ह्यन्धस्य दाराइव दर्शनीया॥१॥ इति वसिष्ठस्मृति अ० 6. - अर्थ-जैसे अन्धे मनुष्याको स्वरूपवती स्त्रीके दर्शन का कुछ सुख प्राप्त नहीं होता. ऐसेही जिसके आचार अच्छे नहीं हैं उसको वेद और वेदके छः अंग पढ़ने और सम्पूर्ण यज्ञोंके करनेसे कुछ फल प्राप्त नहीं होता Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित - यह होली (ब भारतवासियोंका त्यौहार है. परमास्माकी आज्ञा है कि पर उपकार करो. यह मनुष्यदेह . का फल है कार यज्ञसे बढकर कोई पर उपकार नहीं है. यज्ञमें जो ठे चिकने, सुगन्धित, रोगनाशक और पुष्टिकारक पदार्थोंसे हवन होताहै, उससे संसारको महान ला होताहै. वायुकी दुर्गन्धि दूर होकर अन्न, जल और स्थान, थे पवित्र होकर संसारका उपकार होता है,देखो मनुजी अपनी स्मृतिमें अध्याय तीसरेमें लिखते हैं: // श्लोक // अग्नी प्रास्ताहुतिः सम्यगादित्यमुपतिष्ठति। आदित्याज्जायते दृष्टिीष्टेरनं ततःप्रजाः॥ ' अर्थ-अनिमें डाली हुई आहुति सूर्यको प्राप्त होती है, सूर्यसे वर्षा होतीहै, वर्षासे अन्न उपजताहै, अन्नसे सब संसारका पालन होताहै. क्योंकि सूर्य सब रसोको अपनी किरणोंद्वारा खर्चितेहैं और वर्षाद्वारा उन्हीं रसोंकी वृष्टि करते हैं. तथा होलीके विषयमें पूरा प्रमाण यह है, कि PP.AC.Gonratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 198 स्त्रीचरित्र. मनुस्मृतिके चौथे अध्यायमें दो स्थानोंपर ऐसा लिखाहै कि, पुराना अन्न समाप्तहो और नया अन जब उत्पन्न हो तब मनुष्य अन्नयज्ञ करैः जबतक नवीन अबसे आग्रयण इष्टि ( यज्ञ) न करलेवै तबतक नवान्न भोग्न न करै. होलीके समय नवीन अन्न उपजता है, इसकारण नये अन्नसे यज्ञ करके संसारका उपकार करें या होलीका त्यौहार है. जो ठीक ठीक नियम यज्ञ करनका प सो जातारहा. केवल आग जलाकर नवीन अन्न डालनेको - रस्म अवतक मोजूद है. होलिकाष्टक शब्द जो प्रायः तिथिपत्रोंमें लिखा रहता है. उसका यही प्रयोजन है। कि, होलीके आठ दिन पहलेसे यह करने के निमित्त सामग्री एकत्र करे. और होलिका अर्थात् फाल्गुनशुदी पूर्णिमाके दिन यज्ञ करै. होली अधपके अन्नके गुच्छे जोको कहते हैं वृक्षसे पृथक् न हुआ हो 'अर्द्ध पक्कान्नम होलिका'। अधपके अन्नको होलिका कहते हैं. यज्ञ समाप्त __करके दूसरे दिन प्रसन्नता पूर्वक खाना, खिलाना. Gunturi M Maraliak Tust Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासहित. मिलना, मिल ना, योग्य है. उसी अनुसार अबतक वर्ताव होता. असली बात तो यही है जो हमने लिख कर प्रगट किया. - अब कोई कोई यह कहते हैं कि, होली प्रहादकी बुआका नाम था जो प्रह्लादको आगमें लेकर बैठी थी वह जलगई. प्रहाद बचगये, इससे देवता लोगोंने आनन्द मनाया, और राक्षस लोग धूल उडाने लगे- यह इतिहा. सभी प्रसिद्ध है. परन्तु बुद्धिमान् लोग ऐसी बातकों ठीक प्रमाण नहीं मानते. हां. यह बात सत्य है कि, देवताओंके यज्ञमें राक्षस लोग विघ्न डालते चले आये. तुलसीकृत रामायण बालकांडमें वाल्मीकीय रामायणके अनुसार लिखा है कि, विश्वामित्रजी अपनी यज्ञकी रक्षाके निमित्त महाराजा दशरथजीसे राम, लक्ष्मणको अपनी यज्ञरक्षाके निमित्त कहकर लेगयेथे. वहां उनकी रक्षाके द्वारा अपना यज्ञ समाप्त किया. 2. होलीमें धूल उडानेवाले, और शराब व नशा पीने वालोंकी गणना यदि असुरोंमें करलो तो कुछ दोष नहीं. Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 200 स्त्रीचरित्र. क्योंकि धूल उडाना, गोबर, कीचड दूसरोंपर फेंकना, नशा पीकर मत्त रहना यह राक्षसी स्वभाव है. यदै त्यौहार होलीका प्रायः सबका है, परंतु नियमानुसार करे, उसीका है. नियम विरुद्ध चलनेवालोंका यह त्यौहार नहीं हैं. शोक है, कि समयके हेरफेरसे हम लोगोंमें विद्याका अभाव होगया. जगतमें कुसंगकी वृद्धि होगई, प्रजापर अनेक उपद्रव होने लगे, जिससे प्रजाका मन सावधान नहीं रहा, बहुतसे पुराने व्यौहार छूटगये, रीत बदलगई, केवल नाम शेष रहगया. परन्तु जबसे महाराज अंग्रेजका यहां राज्य हुवा तबसे प्रजाको अपने अपने धर्म कर्मका सुबीता है. महाराजकी ओरसे किसी प्रकारकी रोकटोक नहीं. निश्चयहै कि अब धीरे धीरे हम सब लोग ठीक टीक अपने धर्ममार्गपर चलने लग जायंगे. क्योंकि सु. भीता होनेहीसे सब काम सुधर सकते हैं. आजकल सुभीता होनेके कारण यत्रतत्र सभाओंद्वारा कुछ कुछ सुधार होने लगाहै, एवं शनैः शनैः सब सुधार हो जायगा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S Sur Aaladnak Trust Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . भाषाटीकासहित. - यह सुनकर महाराजने कहा, पंडितजी! आपका कथन शास्त्रान कूल है, इसीसे हमारे चित्तपर अंकित हागया है, वास्तवमें नवीन अन्नसे यज्ञ करनेका नियम ध्वसमयमें शुर, वर्तावसे यह बात सत्य प्रतीत होती है. आर ऐसा प्रतीत होता है, कि धनी पुरुष विषय भोगमें आसक्त होगये, योर निर्धनी पुरुष लाचार होगये, केवल लकडी इकट्ठी कर उसको जलाय नवीन अन्न उसमें फेंकनेकी प्रथा शेष रही, और यह जो गाली गुहार व असभ्यताका व्यवहार है, सो मूखाँकी मूर्खता है, क्योंकि मूर्ख लोग हंसी दिल्लगी मसखरीमेंही आनन्द समझते हैं. शिष्टजन कदापि ऐसी बातोंको उत्तम नहीं समझते और अपने अपने , घर होलीमें हवन करते सुने जाते हैं." अब हम निर्णय करते हैं कि, होली उन्हीं पुरुषोंकी ठीक समझना चाहिये जो उस दिन अपने अपने घर हवन करें, और परमात्माका स्मरण करते हुये जगवके P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun.Gun Aaradhak Trust Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 202 स्त्रीचरित्र. उपकारमें उद्यत रहनेका प्रयत्न करते हैं. और परम -- आनन्दको प्राप्त होवें // इति // - इति श्रीमत्पण्डितनारायणप्रसादमिश्रलखीमपुरनिवासीलिखित स्त्रीचरित्रोत्तरभाग समाप्त // . . स्त्रीचरित्र प्रथमभाग समाप्त। xपोलेकी समाप्ति हा॥. उननस प्रथम माग भार है. इसको पढ़नेसे आपको विदित हो जायगा कि, यह उपेन है. एक और भी यहांपर लिखना परमावश्यक है कि, उपन्यासमें संयोग और वियोगान्तताका विचार किया जाता है. यह "श्रीकान्ता " उपन्यास * : सैयोगान्त उपन्यास है...... " इतनाही बतलाना पाठकोंके लिये हम योग्य समझते हैं कि ज्यों ज्यों इस उपन्यासको पाठकजन पढते जायगे त्या त्यों उसमें रुचि बढ़ती जायगी.. चार भागोंमें यह पुस्तक समाप्त होनेके कारण चारों भागोंका परस्पर स्वम्बन्ध है चारों भाग शीघ्रही छपकर प्रकाशित होंगे. ऐसी आशा है. की०॥) - आ. ट. ख. 2 आ. .. पुस्तक मिलनेका ठिकानाहरिप्रसाद भगीरथजी, कालिकादेवीरोड-रामवाडी-मुंबई P.P.AC. Gunratnasuri M.S.