________________ भाषाटीकासहित. चार हुवा, जब वरके सरथ शयन करनेकी नियमित रात्रि आई, एकांत कोठरीमें मेरोलिये खाट बिछाई गई. घरभरमें मरे कोई देवर जेठ नहीं था. श्वशुर और सास थी. सासकी आज्ञासे मैं शयनमन्दिरको गई और खाटपर लेट गई.. कुछ देरके बाद मेरे पतिदेवताभी मेरे समीप आकरः .. लेट गये. और आपनां चंचलभाव दर्शाकर कामको, जगाया परन्तु मेरे मनोरथको पूरा नहीं करसके, उसममय मेरा चित्त परमदुःखी हुआ. दोहा-कौन सुनै कासों कहौं, डारै मदन मरोर // अंग अंग प्रत्यंगमें, करै आफ्नो जोर // 1 // इसीप्रकार मेरे दिन व्यतीत होने लगे. चार महीने उपगन्त मेरे श्वशुरका देहांत होगया. उसके एक महीना पीछेमेरी सासकाभी परलोक होगया; उससमय मुझको ऐसा जान पडता था, कि सुखने मेरे घरको परित्याग कर दिया था, और दुःखने आकर मेरे घरमें डेरा किया. अनन्तर छै महीना व्यतीत हुये मेरे खामीको रोगन्ने आ घेरा. मुझको बड़ी चिन्ताहुई और मारे दुःखके मैं दिन P.P.ASGunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust