________________ स्त्रीचरित्र. माल असवाब वेचकर गयाजीको प्रस्थान किया. वहाँ सब पितरोंके नामसे पिंडदान किया. गयासे निश्चित होकर मनमें सोचा, कि अपने कुलकी मर्यादाके अनु. सार में सब कुछ करचुकी. अब सत्संग करके अपने शरीरस्थ दोषोंको दूर करूं. और भगवद्भजन करती हुई पृथ्वीपर विचरूं. यह विचार कर मैं काशीजीको गई, और वहां पुत्रीपाठशालामें पढाने के लिये नियुक्त होगई, कभी 2 किसी 2 परमहंसका उपदेश सुनने जाया करतीथी. परंतु वहाँ मेरा चित्त पढानेसे हट गया. थोडेही दिन उपरान्त मैं विचरने लगी. आज दश वर्ष से मैं इसी प्रकार विचर रही हूँ, कि जिस प्रकार इस समय आप मुझको देखरहे हैं. यही मेरा जीवन समाचार है. सो आपके आगे वर्णन किया, यह कहकर बाई उठ खडी हुई और अपना कमंडलु उठाया हमारे पुस्तकालयमें स्थित महावीरजीको प्रणाम करके चलीगई. dnrath Jun.Gun.Aaradhak Trust .