________________ भाषाटीकासहित. 35 "प्रसन्न रहते थे, मैं अपने घरका काम बड़ी सावधानीसे करती थी, मेरे घरमें खेती होतीथी, ओर देनलेन होताथा, उसीसे दोनों प्राणियोंका निर्वाह भलीभांति होता था. जब मेरे स्वामीकी अवस्था अठारह वर्षकी हुई, तब मेरे एक पुत्र उत्पन्न हुवा, जो एक वर्षका होकर मरगया, और मेरे स्वामीको क्षयरोग होगया, छैमहीना उपरान्त रोगने अपना बल प्रगट किया, चलने फिरनेकी सामर्थ न रही, तब लाचार होकर शय्याकी शरण ली. आठ मास तक खटिया सेवन करके शरीर छोडदिया मेरे दुःख की कुछ सीमा न रही, जगत अंधेरा होगया, हृदयमें तीव्र वैराग्यने आकर बसेरा लिया, विलाप करतीहुई मुझको सबने आकर समझाया बझाया, पतिकी क्रिया कराई, तेरह दिन पर्यन्त मूतक मानना पडा, मृतक कर्म में पिण्ड दान और जगत्की रीतिके अनुसार ब्राह्मणोंको सब सामान देनापाडा. अब मेरा उस घरमें कौन था जिसको देखकर मैं रहती. परंतु ज्यों त्यों कर खेती से अपना पीछा छुटाया मकान पुरायकर दिया. घरका बचा बचाया P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust