________________ 142 स्त्रीचरित्र. अंग आभूषणमंडित // ऐसी तियको तजें कौनसो है वह पंडित // 39 // दोहा-सुनी बात यक औरभी, मुख्य बात ये दोय। कैतिय यौवन में फंस, कैवनवासी होय // 40 // मदनमोहनका यह वचन सुनकर मुखदर्शनने कहा हे मित्र ! यहस्त्रीरूपी रत्न मूखोंके सेवन करने योग्य है पंडितोंने तो स्त्रियों के चरित्रोंको भली भांतिसे विचा. रकर निन्दाही की है. किसी कविका वचन है . छप्पय ! क्षीणलंक कुच पीन नयन पंकजसे राजत॥ भौं हैं काम कमान चन्द्रसों मुख छबि छाजत॥मत्त गयंदसी चाल चलत चितवन चित चोरत / ऐसी नारि निहारि हाथ पंडित जन जोरत // अतिही मलीन सब ठौर वह चितवनमें बहु कपटछल // ताको सुप्राण प्यारी कहत अहो मोह माया प्रबल॥४१॥ P.P.AC.Gunratnasuri M. Jun Gur' Aaradhak Tr