________________ भाषाटीकासहित 127 समान मुखकी किरणोंसे दशों दिशाओंको प्रकाश करती हुई विचरने लगी. इतनेमें एक ब्राह्मणकुमार शास्त्री मदनमोहन नामके अपने एक परम मित्र सुखदर्शन शास्त्रीके संग विचरता हुआ उसी वाटिकाकी ओर पहुंचा. वहां अकस्मात् मदनमोहनकी दृष्टि सुन्दरी पर पड़ी. देखतही अपने मनमें विचार किया, कि आहा! ऐसी मुन्दरी हमने आजतक नहीं देखी, यह कोई गजकन्या है, अथवा देवलोककी अप्सराओंमें से साक्षात् . रंभा, उर्वशी या तिलोत्तमा अथवा मेनका है. जो मद. मत्त मातंगकी नाईं झूमती हुई इधरहीको नयनत्राण मारती हुई चली आरही है. इस प्रकार विचारकर ब्राह्मण कुमार मदनमोहन उस चन्द्रवदनीकी ओर टकटकी लगाय देखनेलगा और तनमनसे मोहित होगया. कवित्त / देखिके सु कामिनीको हियेमें भयो है घाव बाकहुं कटाक्ष लक्षी धीरहू धरायो है। कंच R.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust