________________ भाषाटीकासाहत. 169 इसप्रकार दोनोंके कथनोपकथनको सुनकर जो लोग अक्षरार्थ समझे वेभी गूढाशयतक न पहुँचकर आतुर होनेलगे, और जो कुछभी न समझे उनका मन तो हाथों उछलने लगा, परन्तु महाराज तो सब वृत्तान्त आदिसे अन्ततक जानतेथे, अतः मन्दमुसक्यानसमेत दोनोंका अकृत्रिम प्रेम देखकर प्रसन्न होने लगे, तब तो महाराजके कोतुकको न जान और यह अपूर्व दृश्य देखकर सर्व दर्शकजन बडे विकल हुये. तथा आश्चर्जित और चमत्कृत होकर मंत्रिप्रवर बुद्धिविशारदजीने आतुर हो महाराजसे पूछा, महाराज ! ऐसी अद्भुतलीला हमने . आर्या / नहि शोक मे मरणे दृष्टा त्वां प्रेमरूपाभा आपच भविष्यति लोके संयोगो मे तयातेऽद्य // 2 // दाहा-नहीं शोक म्वहिं मरणमें, लखि तव मम स्वरूप // होवैगा जगमाहि तुव, मम सयोग अनूप // 3 // P.P.AC.Sunratnasuri M.S. / Jun Gun Aaradhak Trust