________________ स्त्रीचरित्र. कहसकूँ कि आप मेरा अपराध क्षमा करै, कभीनहीं मैं आपसे अपना अपराध क्षमा करना नहीं चाहती, अपने पापका प्रायश्चित्त करना चाहती हूं, पर वारम्बार यही विचार उठता है कि जिसने मेरी यह दुर्गति की है, मेरा पति छुडाया है, और मेरे मुखमें कालिमा लगाई है, उसका कच्चा खून जबतक न पीलूं तबतक मरनेपरभी मुझे चैन नहीं. - अब मारे दुःखके अपना पूग हाल मैं नहीं लिख सकती, हाथ कांपता है, आंसुवोंकी धारा नेत्रोंसे बह रही है, आशा यह है कि इस पत्रको पढकर आप एक बार दर्शन देजाइये, आपके चरणों के दर्शन करके जो मैं मरूंगी तो नरकमें भी कुछ सहायता मुझको अवश्य मिलेगी, कदाचित आप मुझको अपनी दासी समझकर अपने चरणोंमें ठौर देसकैं तो अच्छाही है, नहीं तो मै मरनेको तैयार हूं, यदि, आज आप दर्शन न देंगे तो कल मैं अवश्य अपने प्राणको परित्याग करदूंगी. आपकी अभागिनी मोहनी. PP.AC.GunratnasuriM.S..