________________ भाषाटीकासहित. होय जबानी। लोग कुटुम परिवार लाज तज जसमैं रही दिवानी॥५४॥ मोर सुभाव अबै अलबेला दुइचेंगडिनकी नाईं। बकौं झों लडि मरौं अनाहक, मूंड पटक यह ठाई // जो मोहिं कहै अरे बकवादिन, चुपह बुद्धिया माई / अस मन लगै जारि देऊं दाढी, जियकि कसक मिटजाई // 56 // मैं कहुं ठगी कहूं कोउ पाहीं / मोरे नखरन जगतविकाही॥नमधर्म व्रत करा अनका। उपर चुपर दर्शाय विवेकाचलौं गैल बिचकौं बहुभांती / नाक सिकाडि अपन रंगमाती॥ जा कोउ मोर छऐं परछाहीं। शिरके बालबिनौं छिनमाहीं। भगतिन नाम मोर ठकुरानी। सबस अहै मोर पहिचानी॥ घर घर मोर सहज पैठारा। मोही कौन जग रोकन हारा॥तू क्यों सुनै मार उपदेशा / तुव लि.