________________ भाषाटीकासहित.. अकते बाहर आये, और देखकर बोले, ऐं! यह क्या हमारे सपूत मदनमोहन शास्त्रीजी हैं, और नगररक्षक कोतवालभी साथ है. यह कह पूछा कि, यह क्या चरित्र है. तब नगररक्षक वेषधारी राजाने सब समाचार कहकर पूर्व कथित द्रव्यकी लालसा प्रगट की. पंडितजी सुनकर क्रोधमें भरगये, क्रोधके वशीभूत मनुष्यका चित्त स्थिर नहीं रहता. दुर्वासाके समान क्रोधित हो, पंडितजी बोले / * हे न्यायाधीश ! यद्यपि यह मेरा पुत्र है तयापि मैं इस समय इसका साथी नहीं हूं, क्योंकि यह आज कईदिनसे रातभर न मालूम कहां रहताहै,प्रभातहुये आजाताहै, मैंने बहुतेरा इसको समझाया बुझायाः परन्तु इसने मेरी एक शिक्षाभी नहीं मानी, पिता जन्म देकर पुत्रके कमका साक्षी नहीं होता, अत एव इस प्रपंचमें आपकी जो इच्छा हो सो कीजिये, इससे मुझसे कोई प्रयोजन नहीं. यहांका राजा परम धर्मात्मा और न्यायपरायण है, पाद इसने कोई अपराध किया है तो यह दंडका अधिकारी है, अवश्य इसको दंड मिलना चाहिये, मेरे पास एक PP.AC.GunratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradhaks Trust