________________ 144 स्त्रीचरित्र ल॥सोच समझ घरको चलो, करौ न उस का ख्याल // 47 // ... मुखदर्शनके बैन सुन मदनमोहन कहने लगा. दो-जो होनी सोहोयगी, सुनौ मित्र सुज्ञान। कैलाबैं वह कामिनी,कै खावेंगे जान॥४८॥ चितवनमें मन हरि लियो, कहे नहीं कछ बैन // मुझको घायल करगई, मारि विरहके ' नैन॥४९॥कहां जाउं कैसी करूं, लगा विरहका तीर॥नयन लगेकी होत है, बाननकी सी पीर ॥५०॥जब लग कामिनी नैनके ल. गत न शर उह आन,तबलगही या देशम, दीखत सबके प्रान॥५१॥ जा नरके उरम लगे, नारिनयनके तीर // ऐंसों को जग शूरमा, मनमें धारै धीर // 52 // जो मिलि है प्यारी मुझे, रहिहै मेरी जान // उस प्यारा बिन यार सुन, जाय हमारे प्रान // 53 // Gumratnasuri.M.S Guin Aaradhak Trust