________________ भाषाटीकासहित 179 कवीर। 'बालक गावें बूढे गावे गावें लोग लुगाई। हुइ निर्लज्ज गलिनमें डोलैं बेटे बहू जमाई। भला जय बोलौ होरी मैयाकी // 2 // महाराज ! हमतो साफ साफु कहियति हैं. होरी हमार त्यौहारु आइ यहु हमका मालुम हुई गया कि, केहू दुष्ट ने महाराजसे आइके कुछ कहि दिहिसी. पै हमार तो कुछ - दोष नाहिन. पुरिखनसे यहै रीति चली आई. और काई सबूत हमका जानी. यह सुनकर महाराजने उनको अलग -बैठनेको जाज्ञा दी और कायस्थोंको बुलाया. वे सब उस समय मदिरा पी रहेथे कि, इतनेमें पुकार हुई, पुकार रहातही सब दरबारमें पहुँचे, तब महाराजने कहा इनमेसे जा बुद्धिमान अथवा जवाब देनेमें साफ हो वह सामने आव, यह बात सुनकर उनमेंसे एक लालाप्साहन शिरपर बाघ, तम्बा ( पायजामा जो ढीला होताहै सो) पाहर, हासियादार रूमाल ओढे, इधर उधर पाव लडख.