________________ उपोद्धात. करते स्मरण आया कि, एक पुस्तक त्रियाचरित्र नामक छपचुकी है. जिसमें दुष्टस्त्रियों के चरित्र लिखे गये हैं, किसी पतिव्रतास्त्रीका चरित्र उसमें नहीं लिखा / जान पड़ता है कि, उसके कर्ताने त्रिसाचरित्र शब्दका यही अर्थ निकाला, और स्त्रियोंके छल कपटकोही त्रियाचरित्र / मान लिया है. कदाचित यही हो तो कुछ आश्चर्य नहीं, / क्योंकि 'सर्वे सर्व न जानंति' सबकोई सबबात को नहीं जानतेहैं और प्रायः मनुष्योंके ध्यानमें अनेक शब्दोंका - अर्थ एकही प्रकारका अँच जाताहै / यही समझकर हमने / इस पुस्तकका नाम “स्त्रीचरित्र" रख्खा और स्त्रियों के - दुश्चरित्र और सच्चरित्र, इन दोनों प्रकारके चरित्रोंको -लिखना उचित समझा तथा दोनों प्रकारके चरित्र लिखनेसे पुस्तक बहुत बड़ी हो जाने के कारण बहुतेरे मनुष्य अधिक मूल्य नहीं दे सकेंगे। यह समझकर हमने इस पुस्तकको प्रथम भाग, और द्वितीय भाग, ऐसे दो भागोंमें 'विभक्त किया है, तहां प्रथम भागकी एकही जिल्दमें दो खंड हैं, पूर्वार्द्ध और उत्तराई, पूर्वाद्धों दुष्ट स्त्रियों Jun Gun Aaradhak Trust