________________ भाषाटीकासहित.. 175 वाहबहादुर कलियुग भैयातेरी महिमा गूद। क्यों नहबाढै राज तुह्मारा कियो विप्रको मदामला यह जुगति तुह्यारी चोखी है।॥१५॥ खेर तुह्यारी तबतक कलियुग जबतक विप्रअचेत / होश समारा तुमहि पछरिहै महाप्रलय के खेत // मला तुम रहेउ सदा हु. शियामि // 16 // पंडित सिगरे खण्डित हुइगे चलतीनहिं कछचाल // पोथी पत्रा खालत मूंदत देखत सबको हाल // // भला सब अपनी अपनी रास्ता है // 17 // धर्मग्रन्थसे भेंट नहीं है किया न कुछ सत्संग।। विप्रकर्म क्या जाने मूड्यू पियें रातदिन भंग // भला ये अवरा हिन्दको बोरेंगे // 18 // लाखल अडगं सडगं गारी बकै अनेक // न मुनि सज्जन मूंड लचावै यह भल