________________ andramdas. .. स्त्रीचरित्रधुवेश धारे गेरुआ वस्त्र पहरे, कमंडलु हाथमें लिये, छछ पुस्तकोंकी गठरी कांसमें दबाये सन्मुख आ खडीहुई. हम उसकी तेजोमयी मूर्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुये. और उससे बैठनेको कहा, बैठकर उसने हमसे पूंछा, कि क्या आपकाही नाम पंडित नारायणप्रसाद है ? हमने कहा, 'हां' तब वह साध्वी कहने लगी कि हमने अनेक संस्कृत व भाषा पुस्तकोंमें आपका नाम पढाहै. आपने अनेक पुस्तकें रची होंगी. कृपाकरके कोई हमारे योग्य पुस्तक हो तो दीजिये. हमने पूंछा कि किस विषयकी पुस्तक चाहिये ? तो उसने कहा कि भक्तिपक्षकी पुस्तक हमको प्रिय है. यह सुनकर हमने 'सुदामाचरित्र' नामक छोटीसी पुस्तक दी उसको पढकर वह साध्वी बहुत प्रसन्न हुई और बोली कि, अपने कोई बडी भी पुस्तक भक्तिपक्षकी बनाई है ? तो हमने / अपने धर्मपुत्र सीतारामसे श्रीमद्भागवतका पूर्ण अनुवाद "नूतन सुखसागर" निकलवाकर दिखलाया उसको देखकर साध्वीजीका मुखकमल प्रफुल्लित होगया और पुस्तकके बीच 2 में जो मनमोहिनी कविता है उसको