________________ 134 . स्त्रीचरित्र पद्य-सर्व भांति सांसारिक मैत्री जगमें एककहानी है। नाममात्रसे अधिक आजतक नहीं किसीने जानी है // जब तक धन सम्पदा प्रतिष्ठा अथवा यश विख्यातीहै / तबतकसभी मित्र शुभचिन्तक निज कुलबान्धव ज्ञातीहै ॥अपना स्वार्थ सिद्ध करनेको जगत मित्र बन जाताहै। किन्तु काम पड़नेपर कोई कभी काम नहीं आता है // 18 // , यह मुनकर मदनमोहन कहने लगा, कि मित्र ! तुम को इस समय ऐसा वचन नहीं कहना चाहिये जगत में मित्रसे बढकर कोई नहीं- जो काम किसीके नहीं होता वह काम मित्रसे हो सकता है मित्र तो एक - परम पदार्थ है, जब कि छोटे समुदायसे बड़े काज सुधरते हैं यथा suriM.S. Jun Gun Aaradhak Truse