Book Title: Panchpratikramanadi Stotrani
Author(s): 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Catalog link: https://jainqq.org/explore/003024/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेष्टि-देवचन्द्र लालभाई-जैनपुस्तकोद्धारे-ग्रन्थाङ्कः-१९. श्रावकस्य पञ्चप्रतिक्रमणादिसूत्राणि. प्रख्यातिकारकः- शाह नगीननाई घेलालाई जव्हेरी, अस्यैकः कार्यवाहकः. मुम्बय्याम्. प्रति १०००. दं पुस्तकं मुम्बय्यां शाह नगीननाई घेलालाई जव्हेरी बाजार इत्यनेन निर्णयसागरनामके यन्त्रालये कोलनाटवीथ्यां २३ तमे गृहे रा. य. शेडगेधारा मुजयित्वा प्रकाशितम्। वीरसंवत् २४४०, विक्रमाङ्क १९७०, इसुसन् १९१४. निष्क्रयः ४ आणका:. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Published by Naginbhai Ghelabhai Javeri, 325, Javeri Bazar, Bombay, for Sheth Devchand Lalbhai, Jain Pustakoddhar Fund, Bombay. Printed by R. Y. Shedge, at the Nirnaya-sagar Press, 23, Kolbhat Lane, Bombay. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The Late Sheth Devchand Lalbhai Javeri Born 1853 A. D. Surat. Died 1906 A. D. Bombay. D श्रेष्ठी देवचन्द लालभाई जव्हेरी. जन्म १९०९ वैक्रमाब्दे निर्याणम् १९६२ वैक्रमाब्दे कार्तिक शुक्ले कादश्यां,सूर्यपुरे पौषकृष्ण तृतीयायाम, मुम्बय्याम्. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SHETH DEVCHAND LALBHAI JAIN PUSTAKODDHAR FUND SERIES. No. 19. PREFACE. The contents of the following pages are the Sutras of the Panch Pratikramana (Gaga HOT) a sort of expiatory ritual to be undergone by Jains, twice a day, every fortnight, every four months, and annually. The importance of a book like this for the Jains can hardly be exaggerated. As a work like this is necessarily of daily use, there have been numerous editions of the same, already available for use. But in the edition we are bringing out, we have introduced such changes and additions as our learned priests have advised us to do, on comparison of old manuscripts and Sanscrit commentaries. The utmost possible care has been taken to avoid insertion of any mistakes in print and otherwise ; yet we crave the indulgence of our readers for any that may yet be remaining through oversight. Our thanks are due to those Sadhus who have helped us in this publication in more ways than one, but our special thanks are to Mr. Valabhdas Hava of Shrimad Yashovijayji Jain Sanskrit Pathshala of Mehsana. This volume is the 'nineteenth' of our series. 325, Javeri Bajar, 7 NAGINBHAI GHELABHI JAVERI, Bombay. April 1911. for himself and co-trustees. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ ३१ ३ ३७ ४७ ६१ १५२ १७३ १७६ १८२ लीटी M D 6 १ १२ १ (६) शुद्धिपत्रकम्. १२ १७ १३ अशुद्धम् उ श्री জ্‌ श्रर्हत जमी शुद्धम् . उ झीं अर्हन्त भूमी चखतीस चनसीस उन्निद्रहमे - उनिहेमविमूर्वि विजुर्विधातुम् - नमत्रि - नमन्त्रि Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. नाम. नवकार ( नमस्कारसूत्रम् . ) .... पंचिदित्र सुत्तं खमासमण सुत्तं सुगुरुने शाता सुखपृष्ठा इरियावहियं सुत्तं तस्स उत्तरी सुत्तं अन्नत्थ ऊस सिणं सुत्तं लोगस्स सुत्तं सामायिकनुं पञ्चरकाण सामायिक पारवानुं सूत्रम् जगचिंतामणि चैत्यवन्दनम् जंकिंचि सुत्तं नमुत्थुणं वा शक्रस्तवः जावंति चेश्याएं सुत्तं जावंत के विसाहू सुत्तं परमेष्ठि नमस्कारः उवसग्गहरंस्तवनं .... .... .... .... 4004 .... .... **** .... .... .... *440 .... .... **** .... .... .... .... 6.00 .... .... .... #464 .... .... .... 9000 पानुं. .... .... WWW १ २ DY DY MRP २ श् ४ 2wDb2/2 ६ ง Ե U १० १० ११ ११ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवीयरायसुत्तं अरिहंत चेश्याणं सुत्तं कहाणकंदंस्तुतिः स्नातस्यानी स्तुतिः संसारदावानी स्तुतिः पुरस्करवरदीसुतं सिसाणं बुझाणंसुत्तं वेयावच्चगराणं सुत्तं नगवानादि वन्दनम् देवसिथ पमिकमणे गढ़ .... स्वामि गमिसुत्तं .... अतिचारनी आठ गाथा .... सुगुरुवांदणा सूत्रम् देवसिअं श्रालोलं सातलाख अढार पापस्थानक सबस्सवि सुत्तं श्रावकवंदितासूत्र স্বরচিত ___ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) आयरिश्रमवज्काए .... नमोऽस्तु वर्षमानाय .... विशाललोचनदलम् .... श्रुतदेवताकेत्रदेवतास्तुती .... कमलदलस्तुतिः .... नुवनदेवतादेत्रदेवतास्तुती अलाइजेसु मुनिवंदन सूत्र वरकनक लघुशान्तिस्तवः .... चउकसायसुत्तं जरहेसरनी सज्जाय .... मण्ह जिणाणं सज्जाय तीर्थवंदना सकलार्हत् श्रीपादिकादि संदेप अतिचार श्रीपादिकादि अतिचार ..... .... प्रजातना पञ्चरकाण (नमुक्कारसहिy) .... १०१ पोरिसि साढपोरिसितुं .... बियासणा एकसणानुं .... .... १०२ ..... १०१ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .... १०३ .... १०४ १०५ .... १०६ .... १०६ । १०७ (१७) थायंबिलनु पञ्चकाण तिविहार उपवासद् चनविहार उपवासनुं सांजनां पच्चरकाण (पाणहारनुं) चटविहार, पच्चरकाण तिविहार, पच्चरकाण सुविहार, पच्चरकाण देसावगासिकनुं पच्चरकाण पोसहनु पच्चरकाण पोसह पारवानी गाथा संथारा पोरिसी चैत्यवंदनस्तवनवगेरेनो समुदायसीमंधर जिन चैत्यवंदन सीमंधर जिन द्वितीय चैत्यवंदन सिझाचलनुं त्रीजु चैत्यवंदन सिहाचलनुं चोथु चैत्यवंदन परमात्मानुं पांचमुं चैत्यवंदन प्रथम सीमंधर जिनस्तवन द्वितीय श्रीसुबाहु जिनस्तवन तृतीय श्रीदेवजसाजिनस्तवन .... १०७ .... १०७ .... १०७ .... १०० १० ११२ ११५ ११६ ११६ .... ११० .... ११५ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० १२२ १२३ १२४ १२६ १३२ ३ (११) चोथं वीश विहरमाननुं स्तवन पांचमुं श्री सिझाचलजीनुं स्तवन षष्ठ श्रीसिकाचलस्तवन सप्तम सिझाचलस्तवन अष्टम सिझाचलस्तवन श्रीतीर्थमाला स्तवन श्रीमहावीरजिनबंद श्रीगौतमाष्टक बंद पञ्चतीर्थ चैत्यवंदन पञ्चमीनी थोयो (संस्कृत) एकादशी स्तुति (संस्कृत) पञ्चतीर्थ थोयो शवेश्वरपार्श्वजिन स्तुतिः प्रथम श्रीविनयअध्ययननी सज्जाय .... द्वितीय शिखामणनी सज्काय अनाश्री मुनिनी सज्जाय श्री नेम राजुल नी सज्जाय आपवनावनी सज्काय नव स्मरणनवकार-जवसग्गहरं १३० १३७ १३ १४१ १४२ १४३ १४५ - Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ १५० १५६ १६६ १७६ ८ ... .... १६ १एर (१२) संतिकरस्तवन तिजयपहुत्त नमिऊण अजितशान्ति जक्तामरस्तोत्र कल्याणमन्दिरस्तोत्र म्होटी शान्ति रत्नाकरपञ्चविंशिका सामायिक देवानो विधि सामायिक पारवानो विधि चैत्यवंदन करवानो विधि गुरुवंदन करवानो विधि पच्चरकाण पारवानो विधि पमिलेहण करवानो विधि देवांदवानो विधि देव सिप्रतिक्रमण विधि राप्रतिक्रमण विधि परिकप्रतिक्रमण विधि चलमासी प्रतिक्रमण विधि संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि २०० २०१ ६ . . . २०२ २०३ २०४ २०५ २१२ २१६ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KIRRORAM SANDS ॥अथ ॥ ॥ श्रावकस्य पञ्चप्रतिक्रमणादिसूत्राणि ॥ १ प्रथमं नमस्कारसूत्रं (पंचमंगलरूपम्)॥ नमो अरिहंताणं॥१॥नमो सिहाणं ॥२॥ नमो आयरियाणं ॥३ ॥ नमो नवज्छायाणं॥४॥ नमो लोए सबसाहूणं ॥५॥ एसो पंचनमुक्कारो ॥६॥ सबपावप्पणासणो ॥७॥ मंगलाणं च सवेसिं ॥ पढमं दवइ मंगलं ॥७॥इति ॥१॥ पद [ए] संपदा[] गुरुवर्ण[७] लघुवर्ण [६१]सर्ववर्ण [६४] ॥ अथ पंचिंदिअसुत्तं ॥ __पंचिंदिअसंवरणो, तद नवविदबंनचेरगुत्तिधरो ॥ चनविदकसायमुक्को, श्य अहारसगुणेदिं संजुत्तो ॥१॥ पंचमदवयजुत्तो, पंचविदायारपालणसमत्यो ॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) पंचसमि तिगुत्तो, छत्तीसगुणो गुरू मज्छ॥३॥ इति ॥२॥ गाथा [२] पद [-] गुरु [१०] लघु [७०] सर्ववर्ण[४०] ३॥ अथ खमासमणसुत्तं ॥ श्वामि खमासमणो ! वंदिलं, जावणिजाए निसीदिआए, मत्थएण वंदामि ॥ इति ॥३॥ ___गुरु [३] लघु [ २५] सर्ववर्ण [२०] ४॥अथ सुगुरुने साता सुखपृडा ॥ ॥श्चकार सुदराई सुहदेवसि, सुखतप शरीर निराबाध ॥ सुखसंजमजात्रा निर्वहो गेजी, स्वामी साता जी ! नातपाणीनो लाल देजो जी ॥ इति ॥४॥ ५॥ अथ इरियावदियसुत्तं ॥ ॥नाकारेण संदिसह नगवन् ! हरियावदियं पमिकमामि ? श्बं, बामि पडिकमिजं ॥१॥ इरियावदियाए, विराद१ बपोर पहेलाना वखतमां कहेवू. २ बपोरपछीना वखतमां कहे. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) पाए ॥ २ ॥ गमागमणे ॥ ३ ॥ पाणकमणे व यक्कमणे दरियक्कमणे, उसानत्तिंगपणगदगमट्टी मकमा संताणासंकमणे ॥४॥ जे मे जीवा विरादिया ॥ ५ ॥ एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चनरिंदिया पंचिंदिया ॥ ६ ॥ दिया वत्तिया लेसिया संघा - इया संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्दविया गार्ड गणं संकामिया जीविया ववरोविया तस्स मिचामि डुक्कडं || I || Şfa|| Y || पद[२६] संपदा[७] गुरु [१४] लघु [१३६] सर्ववर्ण [१५० ] ६ ॥ अथ तस्सउत्तरी सुत्तं ॥ तस्स उत्तरी करणं, पायचित्तकरणेणं, विसोदी करणेणं, विसल्ली करणेणं, पावाणं कम्माणं, निग्धायणठाए, गमि काउस्सग्गं ॥ ८ ॥ इति ॥ ६ ॥ पद [६] संपदा [१] गुरु [१०] लघु [३९] सर्ववर्ण [ ४७ ] Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) ॥ अथ अन्नत्थकससिएणंसुत्तं ॥ अन्नत्थ ऊससिएणं नीससिएणं खासिएणं गएणं जनाइएणं जड्डएणं वायनिसग्गेणं नमसीए पित्तमुबाए ॥१॥ सुकुमेहिं अंगसंचालेटिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेदि, सुहुमेहिं दिसिंचालेदिं ॥॥ एवमाश्एहिं आगारेदि, अन्नग्गो अविरादिउ, हज मे कानस्सग्गो ॥३॥ जाव अरिहंताणं नगवंताणं नमुक्कारेणं नपारेमि ॥४॥ ताव कायं गणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥६॥इति ॥ ७ ॥ पद[२०] संपदा[५] गुरु [१३] लघु[१७] सर्ववर्ण[१०] G॥ अथ लोगस्ससुत्तं ॥ ॥लोगस्स नजोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे ॥ अरिहंते कित्तइस्सं, चनवीसंपि केवली॥१॥जसनमजिअं च वंदे, संनवमनिणंदणं च सुमई च ॥ पउमप्पदं ___ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) सुपासं, जिणं च चंदप्पदं वंदे॥शासुविहिं च पुप्फदंतं,सीअल सिजंस वासुपुऊंच॥ विमलमणंतं च जिणं, धम्म संतिं च वंदामि ॥३॥कुंथु अरंच मल्लिं वंदे मुणिसुवयं नमिजिणं च ॥ वंदामि रिम्नेमि, पासंतद वक्षमाणं च॥४॥एवं मए अनिथुआ, विद्यरयमला पदीणजरमरणा ॥ चनवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु॥॥ कित्तियवंदियमहिया, जेए लोगस्स उत्तमा सिद्धा ॥ आरुग्गबोदिलानं, समादिवरमुत्तमं दितु ॥ ६॥ चंदेसु निम्मलयरा, आश्च्चेसु अदियं पयासयरा ॥ सागरवरगंजीरा, सिहा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥ इति ॥ ७ ॥ गाथा [७] पद [२] संपदा [२०] गुरु [२७] लघु [२२ए] सर्ववर्ण [२५६] ए॥ अथ सामायिकसूत्रम्॥ ॥ करेमि नंते! सामाश्य, सावजां Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) जोगं पच्चरकामि ॥ जाव नियमं पज्जुवासामि, उविदं तिविदेणं, मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि, तस्स नंते ! पडिकमामि निंदामि गरिदामि अप्पाणं वोसिरामि॥ इति ॥ ए॥ ___ गुरु [७] लघु [ ६ए ] सर्ववर्ण [ ७६ ] २०॥ अथ सामायिक पारवानुं सूत्र ॥ ॥सामाश्यवयजुत्तो, जाव मणे दो नियमसंजुत्तो ॥ बिन्न असुई कम्मं, सामाश्त्र जत्तिा वारा ॥१॥ सामाश्अंमि उ कए, समणो इव सावर्ड दव जम्दा ॥ एएण कारणेणं, बहुसो सामा अंकुजा ॥शासामायिक विधेलीधुं विधे पायु, विधि करतां जे कोइ अविधि हुई दोय ते सवि हुं मनवचनकायाए करी मिलामि उक्कम ॥दशमनना, दश वचनना, बार कायाना, ए बत्रीश दोषमांदे जे कोश Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोष लाग्यो दोय ते सवि हुँ मन-वचनकायाए करी मिनामि उक्कम ॥ इति ॥२॥ गाथा [२] गुरु [७] बघु [ ६७ ] सर्ववर्ण [४] ११॥ अथ जगचिंतामणिचैत्यवंदनम् ॥ श्बाकारेण संदिसद भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? श्वं ॥ जगचिंतामणि जगनाद, जगगुरु जगरकण ॥ जगबंधव जगसत्यवाद, जगन्नावविअरकण ॥ अहावयसंविध-रूव कम्मळविणासण ॥ चनवीसंपि जिणवर, जयंतु अप्पडिदयसासण ॥१॥ कम्मन्नूमिदिं कम्मन्नूमिदि, पढमसंघयणि॥उकोसय सत्तरिसय, जिणवराण विदरंत लब्न॥ नवकोडिहिं केवलिण, कोदिसदस्स नव साहु गम्मश् ॥ संप जिणवर वीस मुणि, बिहुँकोडिदिं वरनाण ॥ समणहकोमि सदसज्अ, थुणिका निच्च विदाणि ॥२॥ जयन सामिय Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 6 ) जयन सामिय, रिसद सत्तुंजि ॥ उति पहु नेमिजिए, जयन वीर सच्चरिमंड ॥ नरुच्चदिं मुणिमुवय, मुदरिपास उदरअखं ॥ वरविदेदिं तित्थयरा, चिहुं दिसि विदिसि जिं केवि ॥ ती प्राणागयसंपइ, वंदू जिए सवेवि ॥ ३ ॥ सत्तावइसदस्सा, लका उप्पन्न कोडि ॥ बत्तिसय बासिच्चाई, तिच्लोए चेइए वंदे ॥ ४ ॥ पनरसको डिसयाई, कोडिबा - याल लरक अडवन्ना ॥ बत्तीससदस सिई, सासयबिंबाई पणमामि ॥ ५ ॥ इति ॥ ११ ॥ - १२ ॥ चप्रथ जंकिंचित्तं ॥ ॥ जं किंचि नाम तित्यं, सग्गे पायालि माणुसे लोए ॥ जाईं जिणबिंबाई, ताई सवाई वंदामि ॥ १ ॥ इति ॥ १२ ॥ गाथा [१]पद[४] संपदा[४]गुरु [३] लघु[२७]सर्ववर्ण [३२] Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) २६॥अथ नमुत्थुणंसुत्तं वा शक्रस्तवः॥ ॥नमुत्थुणंअरिहंताणं, नगवंताणं॥२॥ आगराणं,तित्थयराणं, सयंसंबुझाणं॥२॥ पुरिसुत्तमाणं,पुरिससीदाणं,पुरिसवरपुंडरीआणं, पुरिवसरगंधहत्थीणं ॥३॥ लोगुत्तमाणं, लोगनादाणं,लोगदिआणं, लोगपश्वाणं, लोगपजोअगराणं ॥४॥ अन्नयदयाणं, चकुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोदिदयाणं, ॥५॥धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचानरंतचक्कवट्टीणं ॥६॥ अप्पडिदयवरनाण-दसणधराणं, विहानमाणं ॥७॥ जिणाणं जावयाणं,तिन्नाणं तारयाणं, बुझाणं बोदयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं ॥ ॥ सवन्नूणं, सबदरिसीणं, सिवमयलमरुअमांतमरकयमवाबादमपुणरावित्तिसिगिश्नामधेयं गणं संपत्ताणं,नमो जि Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) णाणं, जिअनयाण ॥॥ जे अ अईआ सिहा, जे अ नविस्संतिणागए काले ॥ संपश् अ वट्टमाणा, सवे तिविदेण वंदामि ॥१०॥ इति ॥१३॥ पद [ ३३ ] संपदा [ 9 ] गाथा [ १ ]गुरु [३३] लघु [२६४]सर्ववर्ण [ए] १४ ॥ अथ जावंतिचेश्आइंसुत्तं ॥ ॥ जावंति चेश्आ ई, न अ अदे अ तिरिअलोए अ॥ सवाई ताई वंदे, श्द संतो तत्थ संताई॥१४॥ गाथा[१]संपदा [] पद[4] गुरु[३] लघु[३२]सर्ववर्ण[३५] २५॥ अथ जावंतकेविसाहूसुत्तं ॥ ॥जावंत केवि साहू, नरदेवयमहाविदेदे अ॥ सवेसिं तेसिं पण, तिविदेण तिदंडविरयाणं ॥१॥ इति ॥ पद [५] संपदा[४] गाथा[१]लघु[३५] गुरु[१]सर्ववर्ण[३०] Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) २६॥ अथ परमेष्ठिनमस्कारः ॥ ॥ नमोऽर्दत्सिदाचार्योपाध्यायसर्वसाधुन्यः ॥२६॥ २७ ॥ अथ उवसग्गदरंस्तवनम् ॥ उवसग्गदरं पासं, पासं वंदामि कम्मघणमुकं ॥ विसदर विसनिन्नासं, मंगलकलाणावासं ॥१॥ विसदरफुलिंगमंतं, कंठे धारे जो सया मणु ॥ तस्स गहरोगमारी-उहजरा जति नवसामं ॥२॥ चिट्ठन दूरे मंतो, तुज्ज पणामोवि बहुफलो दोश् ॥ नरतिरिएमुवि जीवा, पावंति न जुरकदोगचं ॥३॥ तुद सम्मत्ते लहे, चिंतामणिकप्पपायवब्नदिए ॥ पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं गणं ॥४॥ इस संथुङ मदायस!, नत्तिब्नरनिब्नरेण दिअएण॥ता देव! दिज बोहि, नवे Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) ॥ नवे पास जिचंद ! ॥ ५ ॥ इति ॥ १७ ॥ गाथा[५] लघु [ १५६ ] गुरुवर्ण [२५] सर्ववर्ण [ १८५ ] १८ ॥ अथ जयवीयरायसुत्तं ॥ ॥ जय वीराय ! जगगुरु !, दोन ममं तुद पत्रावर्ज जयवं ! || जवनिवे मग्गासारिया इफल सिद्धी ॥ १ ॥ लोगविरुच्चार्ज, गुरुजणपूच्या परत्यकरणं च ॥ सदगुरुजोगो तar - सेवा नवमखंडा ॥ २ ॥ वारिक जइवि निया-एवंधणं वीयराय ! तुद समए ॥ तदवि मम हुआ सेवा, नवे नवे तुम्ह चलणाणं ॥ ३ ॥ डुक्खखर्ज कम्मखर्ज, समादिमरणं च बोदिलानो, संपऊन मद एयं, तुद नाह! पणामकरणेणं ॥४॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम्॥ प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ८ ॥ इति ॥१८॥ गाथा [५] पद [२०] संपदा [२०] गुरु [ १७ ] लघु [ १७२ ] सर्ववर्ण [ ११ ] Van Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) रए ॥अथ अरिदंतचेझ्याणंसुत्तं ॥ अरिदंतचेश्याणं, करेमि कानस्सग्गं ॥ १॥ वंदणवत्तिआए, पूअणवत्तिाए, सकारवत्तिाए, सम्माणवत्तिआए, बोदिलानवत्तिाए, निरुवसग्गवत्तिाए ॥२॥ सहाए मेहाए घिईए धारणाए अणुप्पेदाए वडमाणीए गमि काउस्सग्गं ॥३॥ अन्नत्थ० ॥ इति ॥१५॥ संपदा [३] पद [१५] गुरु [१६] बघु [७३] सर्ववर्ण [ए] २०॥ अथ कल्लाणकंदंस्तुतिः॥ __ कल्लाणकंदं पढमं जिणिदं, संतिं त नेमिजिणं मुणिंद, पासं पयासं सुगणिकगणं ॥ नत्ती वंदे सिरिवक्ष्माणं ॥१॥ अपारसंसारसमुद्दपारं, पत्ता सिवं दिंतु सुश्कसारं ॥ सवे जिणिंदा सुरविंदवंदा ॥ कल्लाणवल्लीण विसालकंदा ॥२॥ निवाणमग्गे वरजाणकप्पं, पणासियासेसकुवा Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) श्दप्पं ॥ मयं जिणाणं सरणं बुहाणं, नमामि निचं तिजगप्पदाणं ॥३॥ कुंदिउगोक्खीरतुसारवन्ना, सरोजदत्था कमले निसन्ना ॥ वाएसिरी पुत्थयवग्गहत्या, सुहाय सा अम्ह सया पसत्था ॥४॥ १॥अथ स्नातस्यास्तुतिः ॥ ॥ स्नातस्याप्रतिमस्य मेरुशिखरे, शच्या विनोः शैशवे ॥ रूपालोकनविस्मयाहृतरसन्चान्त्या ब्रमच्चक्षुषा ॥ जन्मृष्टं नयनप्रनाधवलितं, दीरोदकाशङ्कया ॥ वक्त्रं यस्य पुनः पुनः स जयति, श्रीवईमानो जिनः॥१॥ हंसांसादतपद्मरेणुकपिशदीरार्णवाम्नोनृतैः ॥ कुम्नैरप्सरसां पयोधरजरप्रस्पर्दिनिः काञ्चनैः॥ येषां मन्दररत्नशैलशिखरे जन्मानिषेकः कृतः॥ सर्वैः सर्वसुरासुरेश्वरगणैस्तेषां नतोऽहं क्रमान् ॥२॥ अर्दछत्रप्रसूतं गणधररचितं द्वादशाङ्गं Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) विशालं, चित्रं बह्वर्थयुक्तं मुनिगणनै र्धारितं बुझिमग्निः॥ मोदानद्वारनूतं व्रतचरणफलं ज्ञेयनावप्रदीप, नक्त्या नित्यं प्रपद्ये श्रुतमहमखिलं सर्वलोकैकसारम् ॥ ३ ॥ निष्पङ्कव्योमनीलद्युतिमलसदृशं बालचन्शानदंष्ट्र, मत्तं घण्टारवेण प्रसृतमदजलं पूरयन्तं समन्तात् ॥ आरूढो दिव्यनागं विचरति गगने कामदः कामरूपी, यदः सर्वानुनतिर्दिशतु मम सदा सर्वकार्येषु सिदिम् ॥ ७॥ इति चतुर्दशीया श्रीमहावीरजिनस्तुतिः॥१॥ २२॥ अथ संसारदावानलस्तुतिः॥ ॥संसारदावानलदादनीरं, संमोहधूलीदरणे समीरम् ॥ मायारसादारणसारसीरं, नमामि वीरं गिरिसारधीरम् ॥१॥ नावावनामसुरदानवमानवेन-चूलाविलोखकमलावलिमालितानि ॥ संपूरितानिन Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) तलोकसमीदितानि, कामं नमामि जिनराजपदानि तानि॥२॥ बोधागाधं सुपदपदवीनीरपूरानिराम, जीवादिंसाविरललहरीसङ्गमागाददेदम् ॥चूलावेलं गुरुग. ममणीसङ्कुलं दूरपारं, सारं वीरागमजलनिधिं सादरं साधुसेवे ॥३॥आमूलालोलधूलीबहुलपरिमलालीढलोलालिमाला, झङ्कारारावसारामलदलकमलागारनूमिनिवासे॥ गयासम्नारसारे वरकमलकरे तारदारानिरामे, वाणीसन्दोहदेदे नवविरहवरं देहि मे देवि ! सारम् ॥ ७॥ गाथा [४] पद [१६] संपदा[१६] सर्व (लघु) वर्ण [२५] २३॥ अथ पुरकरवरदीसुत्तं ॥ पुस्करवरदीवडे, धायसंडे अ जंबुदीवे अ॥ नरदेवयविदेदे, धम्मागरे नमंसामि ॥१॥ तमतिमिरपडलविई-सएस्स सुरगणनरिंदमदिअस्स ॥ सीमाध Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) रस्स वंदे, पप्फोडिअमोदजालस्स ॥२॥ जाईजरामरणसोगपणासणस्स, कल्लाणपुरस्कल विसालसुहावदस्स ॥ को देवदाणवनरिंदगणचिअस्स, धम्मस्स सारमुवलब्न करे पमायं ॥३॥सिनो ! पयर्ड णमो जिणमए, नंदी सया संजमे ॥ देवंनागसुवण्ण किन्नरगण-स्सब्लूअनावच्चिए।। लोगो जत्थ पाहिजे जगमिणं, तेलुकमच्चासुरं ॥ धम्मो वड़न सास विजय, धम्मुत्तरं वड़न ॥४॥ सुअस्स नगवर्ड करेमि कानस्सग्गं, वंदएणवत्तिए इति ॥१३॥ गाथा [४] पद [१६] संपदा [१६] गुरु [३४] बघु [१२] सर्ववर्ण ( २१६) २४॥ अथ सिक्षाणंबुाणंसुत्तं ॥ सिझा बुझाणं,पारगयाणं परंपरगया। लोअग्गमुवगयाणं, नमो सया सबसिहाणं Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ॥१॥जो देवाणवि देवो,जं देवा पंजली नमसंति ॥ तं देवदेवमदिअं, सिरसा वंदे मदावीरं ॥३॥इकोवि नमुक्कारो, जिणवरवसहस्स वक्ष्माणस्स ॥ संसारसागराज, तारेइ नरं व नारिं वा॥३॥ जतिसेलसिदरे,दिरका नाणं निसीदि जस्स ॥तं धम्मचकवहि, अरिहनेमि नमसामि ॥४॥ चत्तारि अह दस दो, य वंदिया जिणवरा चनवीसं॥ परमहनिहिअहा, सिक्षा सिम्ि मम दिसंतु॥५॥इति॥२४॥ गाथा [५] पद [२०] संपदा [२०] गुरु [२५] लघु [ १५१ ] सर्ववर्ण [ १७६ ] २५॥ अथ वेयावच्चगराणंसुत्तं ॥ ॥ वेयावच्चगराणं संतिगराणं सम्मबिहिसमादिगराणं ॥३५॥ करेमि काजस्सग्गं, अन्नत्थ० ॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) २६ ॥ अथ नगवानादि वंदन ॥ नगवान् हं॥ आचार्य दं ॥ उपाध्यायहं ॥ सर्वसाधु दं॥ इति ॥१६॥ ॥अथ देवसिअपडिकमणे गचं सुत्तं॥ इच्छाकारेण संदिसह नगवन् ! देवसिअपडिकमणे गलं ? इच्छं, सबस्सवि देवसिअ उचिंतित्र, उन्नासिअ, छचिम्लि, मिच्गमि उकडं ॥ इति॥३॥ शव ॥ अथ इच्गमि गमिसुत्तं ॥ __इच्छामि गमि काउस्सग्गं, जो मे देवसि अश्वारो कर्ज, कार्ड वाइड माणसिर्ज, उस्सुत्तो नम्मग्गो अकप्पो, अकरणिजो, उज्छा, उविचिंति, अणायारो, अणिच्चिअव्वो, असावगपानग्गो, नाणे दंसणे चरित्ताचरित्ते, सुए सामाइए, तिएहं गुत्तीणं, चउएवं कसायाणं, पंचएदमणुवयाणं, तिएदं गुणवयाणं, चनादं सिख्खा Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) वयाणं, बारसविहस्स सावगधम्मस्स, जं खंडिअं जं विरादिशं तस्स मिबामि उकडं ॥ इति ॥ गुरु [२५] लघु [ १३० ] सर्ववर्ण [ १६७ ] ए॥ अथ अतिचारनी आठ गाथा ॥ नाणंमिदंसणंमि अ, चरणं मितवंमि तद य विरियंमि॥आयरणं आयारो,श्य एसो पंचदा नणि॥२॥ काले विणए बहुमाणे, नवदाणे तद अनिण्हवणे॥ वंजणअत्थतउनए, अविदो नाणमायारो ॥२॥ निस्संकि, निकंखिश्र, निवितिगिला अमूढदिही अ॥उववूद थिरीकरणे, वजन पनावणे अ॥३॥ पणिदाणजोगजुत्तो, पंचहिँ समिर्श तीहि गुत्तीहि ॥ एस चरित्तायारो, अविदो होइ नायबो ॥४॥ बारसविदंमिवि तवे, सब्जितरबादिरे कुसददिठे ॥ अगिलाइ अणाजीवी, नायवो ___ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) सो तवायारो ॥ ५ ॥ अणसणमूणोअरिया, वित्तीसंखेवणं रसच्चा ॥ कायकिखेसो संली-णया य बज्छो तवो होई॥६॥ पायचित्तं विणजे, वेयावच्चं तदेव सज्छा ॥काणं जस्सग्गोवि य,अनितर तवो दोश् ॥ ॥ अणिगूदिअबलविरि, परक्कम जो जहुत्तमानत्तो ॥ जुंजइ अ जहाथामं, नायबो वीरिआयारो ॥७॥ इति ॥ ३० ॥ अथ सुगुरुवांदणां ॥ ॥श्वामि खमासमणो ! वंदिलं, जावणिकाए निसीदिआए ॥ अणुजाणद में मिनग्गरं, निसीहि ॥ अहोकायं कायसंफासं, खमणिो ने किलामो॥ अप्पकिवंताणं बहुसुण ने दिवसो वश्कतो?॥ जत्ताने? जवणि च ने ? खामेमि खमासमणो ! देवसिअं वश्कम्म, आवस्सि Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) आए, पडिकमामि खमासमणाणं, देवसिआए, आसायणाए, तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिबाए, मणकडाए, वयउक्कडाए, कायउक्कडाए, कोदाए, माणाए, मायाए, लोनाए सव्वकालिआए, सबमिबोवयाराए, सबधम्माश्कमणाए, आसायणाए,जो मे अश्यारो कर्ज, तस्स खमासमणो पडिकमामिनिंदामि गरिदामि अप्पाएं वोसिरामि ॥३॥ बीजीवारने वांदणे"आवस्सिाए"पद न कदेवू,अनेराश्ये "राश्वश्कता",परकीये “परको वश्कतो", चनमासीये " चनमासी वश्कंता” अने संवबरीए “संवरो वरकंतो”॥ एवी रीते पाठ कदेवो॥इति३०॥ पद ( ५७ ) गुरु ( २५) लघु ( २०१ ) सर्ववर्ण (२५६) ३१ ॥ अथ देवसिगं आलोचंसुत्तं ॥ ॥श्बाकारेण संदिसद नगवन् ! देव ___ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - (२३) सिअं आलोचं ? श्वं, आलोएमि जो मे इति ॥३२॥ ३२॥ अथ सातलाख ॥ ॥सात लाख पृथिवीकाय ॥ सात लाख अप्काय ॥ सात लाख तेनकाय ॥ सात लाख वानकाय ॥ दश लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय ॥ चन्द लाख साधारण वनस्पतिकाय ॥ बे लाख बेइंज्यि॥ बे लाख तेइंज्यि ॥ बे लाख चौरिंख्यि ॥ चार लाख देवता ॥ चार लाख नारकी ॥ चार लाख तिर्यंच पंचेंशिय ॥ चौद लाख मनुष्य ॥ एवंकारे चोराशी लाख जीवयोनिमांदि, मदारे जीवे जे कोइ जीव दायो होय,दणाव्यो दोय, हणतां प्रत्ये अनुमोद्यो दोय, ते सर्वे मनवचनकायाए करी तस्स मिठामि उक्कडं ॥ इति ॥ ३२॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) ३३ ॥ अथ प्रढारपापस्थानक ॥ ॥ पदे प्राणातिपाते, बीजे मृषावादे, बीजे अदत्तादान, चोथे मैथुन, पांच मे परिग्रह, बहे क्रोध, सातमे मान, आठमे माया, नवमे लोन, दशमे राग, ग्यारमे द्वेष, बारमे कलद, तेरमे अन्याख्यानं, चौदमे पैशून्यं, पन्नरमे रति- अरति, सो - लमे परपरिवाद, सत्तरमे मायामृषावाद, प्रढारमे मिथ्यात्वशल्य, ए प्रढार पापस्थानमांहि, म्हारे जीवे जे कोइ पाप सेव्युं दोय, सेवराव्युं दोय, सेवतां प्रत्ये अनुमोघुं दोय, ते सर्वे मने, वचने, कायाए करी तस्स मिचामि डुक्कडं ॥ इति ॥ ३३ ॥ ३४ ॥ अथ सवस्सवि ॥ ॥ सवस्सवि देवसि पुच्चिति, डुब्ना१ जीवहिंसा. २ जुव्रं. ३ चोरी. ४ स्त्रीसेवन, ए कलंक. ६ चामी. 9 परनिंदा. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) सिअ,चिहिअश्चाकारेण संदिस दलगवन्! चं, तस्स मिबामि उक्कडं॥इति॥३४॥ ३५॥ अथ श्रावकवंदितासूत्रम् ॥ ॥ वंदित्तु सबसिडे, धम्मायरिए अ सबसाढू अ॥श्वामि पडिक्रमिनं, सावगधम्माश्ारस्स ॥१॥ जो मे वयाइआरो, नाणे तद दंसणे चरित्ते अ ॥ सुहुमो अ बायरो वा, तं निंदे तं च गरिदामि ॥२॥ विहे परिग्गदंमि, साव बहुविद अ आरंने॥कारावणे अ करणे, पडिक्कमे देसिअं सवं ॥३॥जं बझमिंदिएदि, चनदि कसाएदि अप्पसत्थेटिं॥रागेण व दोसेण व, तं निंदे तं च गरिदामि ॥४॥ आगमणे निग्गमणे, गणे चंकमणे अणानोगे॥ अनिलंगे अनिउंगे, पडिक्कमे ॥५॥संको कंखे विगिच्ग, पसंस तद संथवो कुलिंगीसु ॥ सम्मत्तस्सइ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) आरे, पडिक्कमे ॥६॥ उकायसमारंने, पयणे अपयावणे अ जे दोसा ॥ अत्तहा य परहा, उन्नया चेव तं निंदे ॥ ७ ॥ पंचएदमणुवयाणं, गुणवयाणं च तिएहमश्यारे॥ सिरकाणं च चनए, पडिकमे०, ॥ ॥पढमे अणुवयंमि, थूलगपाणावायविरई॥आयरिअमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसंगणं॥णा वह बंधे विजेएं, अश्नारे जत्तपाणवुनेऍ॥ पढमवयस्सआरे, पडिक्कमे ॥ २० ॥ बीए अणुवयंमी, परिथूलगअलिअवयणविरई ॥आयरिअमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसंगणं ॥ १२॥ सहसा रहस्स दारे, मोसुवएसे अ कूडले ॥बीयवयस्सबारे, पडिक्कमे ॥२२॥ तइए अणुव्वयंमी, थूलगपरदवहरणविरई ॥ आयरिअमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसंगेणं ॥ १३ ॥ तेनादडंप्पउँगे, Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (29) तप्पमरू विरुधगमणे ॥ कूडतुलकूडमाणे, पडिक्कमे० ॥ १४ ॥ चनत्थे - गुवयंमि, निच्चं परदारगमण विरई ॥ चायरिच्यमप्पसत्ये, इत्थ पमायप्पसंगेणं ॥२॥ अपरिग्गदिच्य इत्तरे, अांगवी वा तिवच्रोगे ॥ चनत्थवयस्सइयारे, पडिक्कमे ० ॥ १६ ॥ इत्तो व पंचमंमि यरिमप्पसत्यंमि ॥ परिमाण परिचेए, इत्य पमायप्प संगेणं ॥ १७ ॥ धण धन्न १ खित्तवत्थू २,रूप्प सुवणे ३ प्र कुविप्रपरिमाऐ ४ ॥ डुपए चनप्पयंमि य ५, पडिक्कमे० ॥ १८ ॥ गमणस्स उ परिमाणे, दिसासुन १ प्रदेश अतिरियं ३ च ॥ बुडि ४ सइअंतर ५, पढमंमि गुणवए निंदे ॥ १ ॥ ममि १ अ मंसंमि २ प्र, पुप्फे ३ फले ४ अ गंधमले ५ अ ॥ नवजोग परीनोगे, बीयंमि गुणवए निंदे ॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) २५ ॥ सच्चित्ते १ पडिबझेश, अपोल ३ पुप्पोलिअं४ चाहारे॥तुच्छोसदिन्नकणया ५, पडिक्कमे॥२॥इंगालीवणसाडीनाडी फोमी सुवजए कम्मं ॥ वाणिजं चेव दंतलकरसकेसविसविसय॥श्शाएवंखुजंतपिल्लणकम्मं १ निलंगणं २ च दवदाणं ३॥सरदहतलायसोसं ४, असईपोसं ५ च वजिजा ॥२३॥ सत्यग्गिमुसलजंतगतणक मंतमूलनेसजे ॥ दिने दवाविए वा, पडिक्कमे०२४ाएदाणुवट्टणवण्णगविलेवणे सदरूवरसगंधे॥ वत्थासणानरणे,पडिक्कमे ॥श्या कंदप्पे १ कुक्कुइए २, मोदरि ३ अदिगरण ४ नोगअरिते ५ ॥ दंडंमि अणहाए, तश्अंमि गुणवए निंदे ॥२६ ॥ तिविहे उप्पणिदाणे ३, अणवहाणे ४ तदा सविणे ५॥ सामाश्त्र वितदकए, पढमे सिस्कावए निंदे ॥१॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) आणवणे १ पेसवणे २, सद्दे ३ रूवे ४ अ पुग्गलकेवे ५ ॥ देसावगासिअंमी, बीए सिकावए निंदे॥२॥ संथारुच्चारविही, पमार्य तद चेव नोय(अ)णानोएँ। पोसहविहिविवरीएं, तइए सिकावए निंदे ॥श्॥सच्चित्ते निरिकवणे २, पिहिणे २ ववएस ३ मरे ४ चेव ॥ कालाइक्कमदाणे ५, चनथे सिकावए निंदे ॥ ३०॥ सुदिएसु अउदिएसु अ, जा मे अस्संजएसु अणुकंपा ॥रागेण व दोसेण व, तं निंदे तं च गरिदामि ॥ ३१ ॥ साहसु संविनागो, न कर्ड तवचरणकरणजुत्तेसु । संते फासुअदाणे, तं निंदे तं च गरिदामि ॥३२॥ इहलोएँ परलोएं, जीविमरणे अ आसंसपउँगे ॥ पंचविदो अश्वारो, मा मज्जं हुआ मरणंते ॥ ३३ ॥ काएण काश्अस्स, पडिक्कमे वाश्अस्स वायाए । * जीविअमरणेसु आससपउंगे Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) मासा माणसिस्स, सबस्स वयाइच्यारस्स ॥ ३४ ॥ वंदणवय सिकागा- खेसु सन्नाकसायद मेसु ॥ गुत्ती सुसमिसु अ, जो अइयारो (तयं) तं निंदे ॥ ३६ ॥ सम्मद्दिठी जीवो, जवि हु पावं समायरे किंचि ॥ अप्पो सि होइ बंधो, जेण न निधसं कुणइ ||३५|| तंपि हु सपडिक्कमणं, सप्परिआवं सउत्तरगुणं च ॥ खिप्पं नवसामेई, वादिव सुसिरिकर्ड विको ॥ ३७ ॥ जदा विसं कुठगयं, मंतमूलविसारया ॥ विजा दांति मंतेहिं, तो तं दवइ निधिसं ||३८|| एवं विदं कम्मं, रागदोससमयिं ॥ ॥ आलो तो निंदंतो, खिप्पं दाइ सुसाव ॥ ३० ॥ कयपावोवि मणुस्सो, आलोच्य निंदिच्य गुरुसगासे ॥ दोइ इरेगलहुई, उदरित्र्नरुव जारवदो ॥ ४० ॥ १ मणूसो. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) घ्यावस्सए एएए, सावर्ज जइवि बहुरन दोइ ॥ काणमंत किरित्र्यं, कादी अचिरेण काले ॥ ४१ ॥ लोणा बहुविदा, नय संगरिया पडिकमणकाले ॥ मूलगुणउत्तरगुणे, तं निंदे तं च गरिदामि ॥४२॥ तस्स धम्मस्स केवलिपन्नत्तस्स ॥ अनुडिमियराहणार, विरजमि विरादणाए ॥ तिविदे पडिक्कतो, वंदामि जिणे चनवीसं ॥ ४३ ॥ जावंति चेइआई० ॥४४॥ जावंत केवि साहू ॥ ४५ ॥ चिरसंचियपावपणासणीइ जवसय सदस्समदणीए ॥ चनवीसजिणविणिग्गयकहा वोलंतु मे दिदा ॥ ४६ ॥ मम मंगलमरिदंता, सिद्धा साहू सुपं च धम्मो ॥ सम्मदिट्ठी देवा, दिंतु समादिं च बोहिं च ॥४७॥ पडिसि छाणं करणे, किच्चाणमकरणे पsि - कमणं ॥ असद्ददणे अ तदा, विवरीयपरू mig Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) वणाए आनाखामेमि सबजीवे,सवे जीवा खमंतु मे ॥ मित्ती मे सम्वन्नूएस, वेरंमज्छ न केणई ॥४ए ॥ एवमहें आलोश्त्र, निंदिन गरदिन गंग्गिं सम्मं ॥ तिविदेण पडिकंतो, वंदामि जिणे चनबीसं ॥५०॥ इति ॥ ३५॥ ३६॥ अथ अनुहिजसुत्तं ॥ इलाकारेण संदिसह नगवन् !, अब्लुहिउँमि (अनुहिउँदं), अनितरदेवसिअं खामेनं ? इचं, खामेमि देवसि, जं किंचि अपत्तिअं, परपत्तिअं नत्ते पाणे विणए वेत्रावच्चे, आलावे संलावे, उच्चासणे समासणे, अंतरनासाए, उवरिनासाए, जं किंचि मज्छ विणयपरिदीणं, सुहुमं वा बायरं वा तुब्ने जाणद, अदं न जाणामि तस्स मिबामि उक्कडं ॥ ३६ ॥ गुरु (१५) लघु ( १११) सवर्वर्ण ( १५६) Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) ३७ ॥ अथ आयरिअ उवज्जाए सुत्तं ॥ आयरिअ नवज्छाए, सीसे साहम्मिए कुल गणे अ ॥ जे मे केश कसाया, सवे तिविदेण खामेमि ॥१॥सबस्स समणसंघस्स, नगवां अंजलिं करिअ सीसे ॥ सवं खमावश्त्ता, खमामि सवस्स अदयंपि॥३॥ सवस्स जीवरासिस्स, नावडे धम्मनिदिअनिअचित्तो ॥ सवं खमावश्त्ता, खमामि सवस्स अदयंपि ॥३॥३॥ ३॥ अथ नमोऽस्तु वर्षमानाय॥ बामो अणुसहिं, नमो खमासमणाणं, नमोऽर्दत् ॥ नमोऽस्तु वईमानाय, स्पईमानाय कर्मणा ॥ तछायावाप्तमोदाय, परोदाय कुतीथिनाम् ॥१॥ येषां विकचारविन्दराज्या, ज्यायः क्रमकमलावलि Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) दधत्या ॥ सदृशैरितिसङ्गतं प्रशस्यं कथितं सन्तु शिवाय ते जिनेन्द्राः ॥ २ ॥ कषायतापादितजन्तु निर्वृतिं करोति यो जैनमुखाम्बुदोजतः ॥ स शुक्रमासोनवसृष्टिसन्निजो, दधातु तुष्टिं मयि विस्तरो गिराम् ॥३॥ गाथा ( ३ ) पद ( १२ ) गुरु ( १ ) लघु ( १ ) सर्ववर्ण ( ११० ) ४० ॥ अथ विशाललोचन ॥ विशाललोचनदलं, प्रोद्यद्दन्तांशुकेसरम् ॥ प्रातर्वीरजिनेन्द्रस्य, मुखपद्मं पुनातु वः ॥ १ ॥ येषामनिषेककर्म कृत्वा, मत्ता दर्षजरात् सुखं सुरेन्द्राः ॥ तृणमपि गणयन्ति नैव नाकं, प्रातः सन्तु शिवाय ते जिनेन्द्राः ॥ २ ॥ कलङ्कनिर्मुक्तममुक्तपूर्णतं, कुतर्क हुग्रसनं सदोदयम् ॥ - पूर्वचन्द्रं जिनचन्द्रभाषितं, दिनागमे नौ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) मि बुधैर्नमस्कृतं ॥ ३ ॥ इति ॥ ४ ॥ ४१ ॥ अथ श्रुतदेवतादेवदेवतास्तुती ॥ सुअ देवयाए करेमि कानस्सरगं॥ सुअदेवया नगवई, नाणावरणीअकम्मसंघायं ॥ तेसिं खवेन सययं, जेसिं सुअसायरे नत्ती॥१॥ खित्तदेवयाए करेमि० ॥ जीसे खित्ते साहू, दंसणनाणोहिं चरणसदिएहिं ॥ साहंति मुस्कमग्गं, सा देवी दरन उरिआई॥२॥इति ॥४१॥ ४२॥ अथ कमलदलस्तुतिः॥ कमलदलविपुलनयना, कमलमुखी क मलगर्नसमगौरी ॥ कमले स्थिता नगवती, ददातु श्रुतदेवता सिद्धिम् ॥१॥३ति॥४२॥ ४३॥ अथ जुवनदेवतादेत्रदेवतास्तुती ॥ जुवणदेवयाए करेमि काउस्सग्गं0 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) झानादिगुणयुतानां, नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानाम् ॥ विदधातु जुवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥२॥इति ॥ ___ यस्याः देत्रं समाश्रित्य, साधुनिः साध्यते क्रिया ॥ सा देवदेवता नित्यं, नूयान्नः सुखदायिनी ॥२॥ इति ॥ ४३ ॥ ४४॥ अथ अडाइजेसु मुनिवंदनसूत्रम्॥ ___ अडाइजेसु दीवसमुद्देसु, पन्नरससु कम्मन्नूमीसु ॥ जावंत केवि साहू, रयदरणगुलपमिग्गदधारा ॥ पंचमढ़वयधारा, अहारससहस्ससीलंगधारा ॥ अस्कुयायारचरित्ता, ते सत्वे सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि ॥२॥ इति ॥४४ ॥ ४५॥ अथ वरकनकसूत्रम् ॥ ॥ वरकनकशङ्खविथुममरकतघनसन्नि १ अरकयायार इति पागंतरे. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) जं विगतमोदम् ॥ सप्ततिशतं जिनानां, सर्वामरपूजितं वन्दे ॥ १ ॥ इति ॥ ४५ ॥ ४६ ॥ चप्रथ लघुशान्तिस्तवः ॥ ॥ शान्ति शान्ति निशान्तं, शान्तं शान्ताशिवं नमस्कृत्य ॥ स्तोतुः शान्तिनिमित्तं, मन्त्रपदैः शान्तये स्तौमि ॥ १ ॥ उमिति - निश्चितवचसे, नमो नमो भगवतेऽर्दते पूजाम् ॥ शान्तिजिनाय जयवते, यशखिने स्वामिने दमिनाम् ॥ २ ॥ सकलातिशेषकमदा - संपत्तिसमन्विताय शस्याय ॥ त्रैलोक्यपूजिताय च नमो नमः शान्तिदेवाय ॥ ३ ॥ सर्वामरसुसमूद - स्वामिकसंपूजिताय ने जिताय ॥ जुवनजनपालनोद्यततमाय सततं नमस्तस्मै ॥ ४ ॥ सर्वरितौघनाशन- कराय सर्वाशिवप्रशमनाय ॥ ष्ष्टग्रहभूत पिशाच-शाकिनीनां प्रमथनाय ॥ १ नि जिताय इति पाठांतरे. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ॥५॥ यस्येति नाममन्त्र-प्रधानवाक्योपयोगकृततोषा॥ विजया कुरुते जनहित-मिति च नुता नमत तं शान्तिम्॥६॥नवतु नमस्तेनगवति!,विजये!सुजये! परापरैर जिते! ॥ अपराजिते! जगत्यां, जयतीति जयावदे नवति!॥७॥ सर्वस्यापि च सङ्घस्य, नाकल्याणमङ्गलप्रदद।साधूनां च सदा शिव-सुतुष्टिपुष्टिप्रद जीयाः॥ ७॥ नव्यानां कृतसि!, निर्वृतिनिर्वाणजननि! सत्त्वानाम् ॥ अन्नयप्रदाननिरते !, नमोऽस्तु स्वस्तिप्रदे! तुन्यम् ॥ए ॥ नक्तानां जन्तूनां, शुनावदे नित्यमुद्यते देवि !॥ सम्यग्दृष्टीनां धृति-रतिमतिबुद्धिप्रदानाय ॥१०॥जिनशासननिरतानां, शान्तिनतानां च जगति जनतानां॥श्रीसंपत्कीर्तियशो-वईन! जयदेवि! विजयस्व ॥ १२॥ सखिलानलविषविषधर-उष्टग्रदराजरोगरणनयतः॥रा Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) दसरिपुगणमारी-चौरेतिश्वापदादिन्यः १२ अथ रद रद सुशिवं, कुरु कुरु शान्ति च कुरु कुरु सदेति ॥ तुष्टिं कुरु कुरु पुष्टिं, कुरु कुरु स्वस्ति च कुरु कुरु त्वं ॥१३॥ नगवति! गुणवति ! शिवशान्ति-तुष्टिपुटिस्वस्तीद कुरु कुरु जनानाम् ॥ उमिति नमो नमो भा भी रु झः ॥ यः दः ही फुट फुट* स्वाहा ॥ १४ ॥ एवं यन्नामादर-पुरस्सरं संस्तुता जयादेवी ॥ कुरुते शान्तिं नमतां, नमो नमः शान्तये तस्मै ॥१५॥ इति पूर्वसूरिदर्शित-मन्त्रपदविदनितः स्तवः शान्तेः ॥ सखिलादिनयविनाशी, शान्त्यादिकरश्चनक्तिमताम् ॥१६॥ यश्चैनं पठति सदा, शृणोति जावयति वा यथायोगम् ॥स दि शान्तिपदं यायात् * फुट् फटः, फट् फट् स्वाहा इति पागंतरे. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) सूरिः श्रीमानदेवश्च ॥१७॥ उपसर्गाः क्षयं यान्ति, विद्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥२॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् ॥प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥१ए॥इति लघुशान्तिस्तवः॥४६॥ ४७॥ अथ चउकसाय ॥ चनकसायपडिमखुल्लूरणु, उजायमयणबाणमुसुमूरण॥ सरसपिअंगुवण्णु गयगामिन, जयन पासुनुवणत्तयसामिन ॥२॥ जसु तणुकतिकडप्पसिणिन, सोद फणिमणिकिरणालिन ॥ नं नवजलदरतडिल्लयलंबिन ॥ सो जिणु पासु पयन वंदिन ॥२॥ इति चउकसाय ॥ ४ ॥ ४७॥ अथ नरदेसरनी सज्झाय॥ नरदेसर बाहुबली, अन्नयकुमारो १ बुधन इति पानांतरं. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१ ) प्र ढंढणकुमारो || सिरिज अणियाउत्तो, प्रमुत्तो नागदत्तो ॥ १ ॥ मे थूलिनदो, वयर रिसि नंदिसेण सीदगिरी ॥ कयवन्नो सुकोसल, पुंमरिज के सि करकं ॥ २ ॥ दल विदा सुदंसण, साल महासाल सालिनो ॥ जद्दो दसण्णनद्दो, पसन्नचंदो जसनो ॥ ३ ॥ जंवुपहु वंकचूलो, गयसुकुमालो अवंतिसुकुमालो ॥ धन्नो इलाइपुत्तो, चिलाइपुत्तो बाहुमुखी ॥ ४ ॥ ग्रगिरि अरकिय, प्रमुदत्यी उदायगो मणगो ॥ कालयसूरि संबो, पन्नो मूलदेवो अ ॥ ५ ॥ पनवो विहुकुमारो द्दकुमारो दढप्पदारी | सिस कूरगडु, सिद्धनव मेदकुमारो ॥ ६ ॥ एमाइ महासत्ता, दिंतु सुदं गुणगणेदिं संजुत्ता ॥ जोसें नामग्गदणे, पावपबंधा विलय जंति Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) ॥७॥ सुलसा चंदनबाला, मणोरमा मयगरेहा दमयंती ॥ नमयासुंदरी सीया, नंदा नद्दा सुनद्दा य॥७॥रायमई रिसिदत्ता, परमावश् अंजणा सिरीदेवी ॥ जिह सुजित मिगावश्, पन्नावई चिक्षणादेवी॥ए॥ बंनी सुंदरी रुप्पिणि, रेव कुंती सिवा जयंती य॥ देव दोवइ धारणी, कलावई पुप्फचला य ॥ १०॥ पनमावई य गोरी, गंधारी लरकमणा सुसीमा य॥ जंबूवइ सचनामा, रुप्पिणि कण्हत महिसीई॥११॥ जरका य जम्कदिन्ना, नूआ तद चेवनूदिन्ना य॥सेणा वेणा रेणा, नयणी थूखिन्नदस्स ॥१२॥ श्चाइ महासा, जयंति अकलंकसीलकलिआउँ॥ अजावि वजा जासिं, जसपडहो तिहुणे सयले ॥ १३॥ इति सता सतीउनी सज्काय ॥४॥ Tona! Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३ ) ० ॥ अथ मल्ह जिलाणं सज्झाय ॥ || मह जिलाणं णं, मिच्छं परिहरद धरद सम्मत्तं ॥ विद यावस्सयंमि, नकुतो दोइ पइदिवसं ॥ १ ॥ पवेसु पोसदवयं, दाणं सीलं तवो नावो ॥ सज्याय नमुक्कारों, परोवयारो अ जयणा अ ॥ २ ॥ जिरापूच्या जिथूणणं, गुरुथुमसादम्मित्रप्राण वच्छल्नं ॥ ववहारस्स य सुही रहजत्ता तित्यजत्ता य ॥ ३ ॥ जवसम विवेग संवर, जासासमिई बेजीवकरुणा य ॥ धम्मित्र्जण संसग्गो, करणदमो चरपरिणामो ॥ ४ ॥ संघोवरि बहुमाणो, पुत्ययलिदां पजावणा तित्थे || साण किचमेयं, निच्चं सुगुरूवरसेणं॥ ॥ इति ॥४९॥ ५० ॥ अथ तीर्थवंदना ॥ ॥ सकल तीर्थ चंं करजोड, जिनवर १ मन्नह जिलाण माणं. २ य जीव इति पाठांतरं. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) नामे मंगल कोड ॥ पहेले स्वर्गे लाख बत्रीश, जिनवर चैत्य नमुं निशदीश ॥१॥ बीजे लाख अहाविश कह्यां, बीजे बार लाख सदह्यां ॥ चोथे स्वर्गे अड लख धार, पांचमे वंडं लाखज चार ॥२॥ के स्वर्गे सहस पचास, सातमे चालिश सहस प्रासाद ॥ आठमे स्वर्गे उ हजार, नव दशमे वंडं शत चार ॥३॥ अग्यार बारमे त्रशें सार, नव ग्रैवेके त्र शे अढार ॥ पांच अनुत्तर सर्वे मली, लाख चोराशी अधिकां वली ॥ ४ ॥ सदस सत्ताणु विश सार, जिनवर जुवन तणो अधिकार ॥ लांबां सो जोजन विस्तार, पचास उंचां बोहोंतेर धार ॥५॥ एकसो एंशी बिंब परिमाण, सनासहित एक चैत्ये जाण ॥सो कोड बावन कोड संनाल, लाख चोराणुं सदस चौंआल॥६॥ सा Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) तशे उपर साठ विशाल, सवि बिंब प्रणमुं त्रणकाल ॥ सात कोडने बोहोंतेर लाख ॥ जुवनपतिमां देवल नाख॥॥ एकसोएंशी बिंब प्रमाण, एक एक चैत्ये संख्या जाण ॥ तेरशे कोम नेव्याशी कोड, साठ लाख वंडं करजोड ॥ ७॥ बत्रीरों ने जंगणसाठ, तिर्गलोकमां चैत्यनो पाठ॥त्रण लाख एकाणु हजार, त्रणशे वीश ते बिंब जुहार ॥ए॥व्यंतर ज्योतिषिमां वली जेह, शाश्वता जिन वंडं तेद ॥ ऋषन चंशनन वारिषेण, वर्षमान नामे गुणसण ॥१०॥ समेतशिखर वं जिन वीश, अष्टापद वंडे चोवीश ॥ विमलाचल ने गढ गिरनार, आबु उपर जिनवर जुहार ॥ १२॥ शंखेश्वर केशरियो सार, तारंगे श्री अजित जुदार ॥ अंतरीक वरकाणो पास, जीरावलोने थंनण पास॥२॥गाम नगर पुर पा Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) टण जद, जिनवर चैत्य नमुं गुणगेद ॥ विदरमान वंडं जिन वीश, सिप अनंत नमुं निशदीश ॥१३॥ अढी बीपमा जे अणगार, अढार सहस सिलांगना धार ॥ पंच महाव्रत समिती सार, पाले पलावे पंचाचार ॥२४॥ बाह्य अन्यन्तर तप उजमाल, ते मुनि वंडं गुणमणिमाल ॥ नित नित उठी कीर्ति करूं, जीव कदे नवसायर तरूं ॥ १५॥ इति ॥ ५ ॥ ५१॥ अथ सकलाईत् ॥ सकलाईत्प्रतिष्ठानमधिष्ठानं शिवश्रियः॥ तर्जुवःस्वस्त्रयीशानमार्दन्त्यं प्रणिदध्मदे ॥ १ ॥ नामाकृतिव्यनावैः, पुनतस्त्रिजगजनम् ॥ देने काले च सर्वस्मिन्नर्दतः समुपास्महे ॥२॥ आदिम पृथिवीनाथमादिमं निष्परिग्रहं ॥ आदिम तीर्थनाथं च, ऋषनस्वामिनं स्तुमः॥३॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) अर्हतमजितं विश्वकमलाकरनास्करम् ॥ अम्लानकेवलादर्शसंक्रान्तजगतं स्तुवे॥४॥ विश्वनव्यजनारामकुल्यातुल्या जयन्ति ताः ॥देशनासमये वाचः, श्रीसंनवजगत्पतेः ॥ ५ ॥ अनेकान्तमताम्भोधिसमुल्लासनच माः॥ दद्यादमन्दमानन्दं, नगवाननिनन्दनः॥६॥ द्युसकिरीटशाणामोत्तेजिताविनखावलिः॥नगवान् सुमतिस्वामी, तनोत्वनिमतानि वः ॥७॥ पद्मप्रनप्रनोर्दैहनासः पुष्णन्तु वः श्रियम्॥ अन्तरङ्गारिमथने, कोपाटोपादिवारुणाः ॥॥ श्रीसुपार्श्वजिनेन्जाय, महेन्महिताङ्ग्रये ॥नमचतुर्वर्णसङ्घगगनानोगनास्वते ॥ ए॥ चन्प्रनप्रनोश्चन्मरीचिनिचयोज्ज्वला ॥ मूतिर्मूर्तसितध्याननिर्मितेव श्रियेऽस्तु वः॥ २०॥ करामलकवविश्वं, कलयन् केवलश्रिया ॥अचिन्त्यमादात्म्यनिधिः, सुविधि mar Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - (४७) बर्बोधयेऽस्तु वः ॥ ११॥ सत्त्वानां परमानन्दकन्दोद्नेदनवाम्बुदः ॥स्याहादामृतनिस्यन्दी, शीतलः पातु वो जिनः ॥१॥ नवरोगार्तजन्तूनामगदङ्कारदर्शनः ॥ निःश्रेयसश्रीरमणः, श्रेयांसः श्रेयसेऽस्तु वः ॥१३॥ विश्वोपकारकीचूततीर्थकृत्कर्मनिमितिः ॥ सुरासुरनरैः पूज्यो, वासुपूज्यः पुनातु वः॥ १४ ॥ विमलस्वामिनो वाचः, कतकदोदसोदराः॥ जयन्ति त्रिजगचेतोजलनैर्मल्यदेतवः॥ १५॥ स्वयम्भूरमणस्पर्षिकरुणारसवारिणा ॥ अनन्तजिदनन्तां वः, प्रयच्छतु सुखश्रियम् ॥१६॥ कल्पमसधाणमिष्टप्राप्तौ शरीरिणाम् ॥ चतुर्दा धर्मदेष्टारं, धर्मनाथमुपास्मदे ॥ १७॥ सुधासोदरवाग्ज्योत्स्नानिर्मलीकृतदिङ्मुखः ॥ मृगलमा तमःशान्त्य, शान्तिनाथ जिनोऽस्तु वः ॥ १७ ॥ श्री Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ए ) कुन्धुनायो भगवान्, सनाथोऽतिशय निः ॥ सुरासुरन्नृनाथानामेकनाथोऽस्तु वः श्रिये ॥ १७ ॥ अरनाथस्तु नगवाँश्चतुर्थारनजोरविः ॥ चतुर्थपुरुषार्थ श्रीविलासं वितनोतु वः ॥ २० ॥ सुरासुरनराधीशमयूरनववारिदम् ॥ कर्म्मन्मूलने दस्तिमत्रं मल्लीमनिष्टुमः ॥ २१ ॥ जगन्मदामोदनिशप्रत्यूषसमयोपमम् ॥ मुनिसुव्रतनाथस्य, देशनावचनं स्तुमः ॥ २२ ॥ बुवन्तो नमतां मूर्ध्नि, निर्मलीकारकारणम् ॥ वारिप्लवा इव नमः, पान्तु पादनखांशवः ॥२३॥ यडुवंशसमुद्रेन्डुः, कर्मकहुताशनः ॥ अरिष्टनेमिर्भगवान्, नूयाहोऽरिष्टनाशनः ॥ २४ ॥ कमठे धरणेन्द्रे च स्वोचितं कर्म कुर्वति ॥ प्रनुस्तुल्यमनोवृत्तिः, पार्श्वनायः श्रियेऽस्तु वः ॥ २५ ॥ श्रीमते वीरनाथाय, सनायायाद्भुतश्रिया ॥ महानन्दस Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५० ) रोराजमरालायाईते नमः ॥ २६ ॥ कृतापराधेऽपि जने, कृपामन्थरतारयोः ॥ ईषद्वाप्पाईयों, श्रीवीर जिनने त्रयोः ॥२७॥ जयति विजितान्यतेजाः, सुरासुराधीशसेवितः श्रीमान् ॥ विमलस्त्रासविरदितस्त्रिजुवनचूमामणिगवान् ॥ २८ ॥ वीरः सर्वसुरासुरेन्द्रमदितो वीरं बुधाः संश्रिता, वीरेणादितः स्वकर्मनिचयो वीराय नित्यं नमः || वीरात्तीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं वीरस्य घोरं तपो, वीरे श्रीधृतिकीर्तिकान्तिनिचयः श्रीवीर न दिश ॥ १॥ श्रवनितलगतानाम्, कृत्रिमाकृत्रिमानां; वरनवनगतानां, दिव्यवैमानिकानाम् ॥ इद मनुजकृतानां, देवराजार्चितानां; जिनवरजवनानां जावतोऽदं नमामि ॥ ३० ॥ सर्वेषां वेधसामाद्यमादिमं परमेष्ठिनाम् ॥ देवाधिदेवं सर्वज्ञं १ त्रिलोक चूकामणि, Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) श्रीवीरं प्रणिदध्महे ॥ ३१॥ देवोऽनेकनवार्जितोर्जितमदापापप्रदीपानलो, देवः सिविधूविशालहृदयालङ्कारदारोपमः ॥ देवोऽष्टादशदोषसिन्धुरघटानिर्नेदपञ्चाननो, नव्यानां विदधातु वाछितफलं श्रीवीतरागो जिनः ॥ ३२॥ ख्यातोऽष्टापदपर्वतो गजपदः सम्मेतशैलानिधः, श्रीमान् रैवतकः प्रसिक्ष्मदिमा शत्रुञ्जयो मण्डपः ॥ वैनारः कनकाचलोऽबुंदगिरिः श्रीचित्रकूटादयस्तत्र श्रीषनादयो जिनवराः कुर्वन्तु वो मङ्गलम् ॥ ३३ ॥ इति ॥ ५९॥ ॥ अथ श्रीपादिकादि संदेपअतिचार । नाणंमि दंसणंमि अ, चरणमि तमि तद य विरियमि॥ आयरणं आयारो, अ एसो पंचदा नणिो ॥१॥ झानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तप आचार,वीर्याचार ए पंचविध आचार Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) मांदि अनेरो जे कोइ अतिचार पद दिवस मांदे सूक्ष्म बादर जाणतां अजाणतां हो होय ते सवि हुं मन वचन कायाए करी मिबामि उक्कडं. ॥१॥ तत्र झानाचारे आठ अतिचार ॥काले विणए बहुमाणे नवदाणे तद य निएदवणे ॥ वंजण अत्य तउनए, अठ्ठविदो नाणमायारो ॥ २ ॥ ज्ञान कालवेलाए नायो गुण्यो. विनयहीन, बहुमानहीन, योगनपधानहीन, अनेरा कन्दे नणी अनेरो गुरु कह्यो; देववंदन वांदणे पडिकमणे सज्कायकरतां गणतां गुणतां कूडो अदर कान्दामात्रे आगलो ओगे नायो; सूत्र अर्थ बिहुँ कूडां कह्यां; साधु तणे धर्मे काजो डांडो अणपडिलेह्यां काजो नहरिज; असज्झाइ, अणोजामांदि दशवैकालिकप्रमुख सिद्धांत नएयो गुण्यो; Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) श्रावक तणे धर्मे थिविरावलि, पडिक्कमणासूत्र, उपदेशमाला प्रमुख, कालवेला काजो अणन-हरिए पढियो; ज्ञानव्य, नदित उपेदित प्रज्ञापराध विणास्यो; विणसतां उवेख्यो; सार संजाल न कीधी; तथा ज्ञानोपगरण पाटी, पोथी, उवणी, कवली, नोकारवाली,सांपडा, सांपडी,दस्तरी,वेदी,उलियाँ प्रत्ये पग लाग्यो;थुक लाग्यां थुके करी अदर मांज्यो; कन्दे तां आदार नीदार कीधो; ज्ञानवंत प्रत्ये द्वेष, मत्सर, अंतराय, अवज्ञा कीधी; आपणा जाणवा तणो गर्व चिंतव्यो; ज्ञानाचारव्रतविष अनेरो जे कोइ० पद ॥१॥ दर्शनाचारे आठ अतिचार ॥ निस्संकिय निकंखिय, निवितिगिला अमूढदिही १ नाश कों. २ उपेक्षा करी ३ चोपमो. ४ खखेला कागळना वींटा. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) अ॥ नववूद थिरीकरणे, ववल पन्नावणे अ ॥ ३ ॥ देवगुरु धर्म तणे विषे निःशंकपणुं न कीधुं, तथा एकांतनिश्चय न कीधो; धर्मसंबंधीया फलतणे विषे नि:संदेह बुद्धिधरी नहिं; तपोधन तपोधनी प्रत्ये मलमलिनगात्र देखी उगंग कीधी; मिथ्यात्वितणी पूजा प्रनावना देखी मूढदृष्टिपणुं कीg तथा संघमाहे गुणवंत तणी अनुपबृंदणा कीधी; अस्थिरीकरण, अवात्सल्य, अप्रीति अन्नक्ति कीधी; तथा देवाव्य, गुरुव्य साधारण व्य, नदित उपेदित, प्रज्ञापराध विणास्यो, विणसतो नवेख्यो; ती शक्ते सार संचालन कीधी; तथा साधर्मिकशुं कलह कर्मबंध कीधो; अधोती अष्टपट मुखकोश पाखे देवपूजा कीधी; वासकूपी, धूपधाएं, कलश तणो ठबको लाग्यो; Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) देवरा पोसालमांदि मल श्लेष्म लुह्यां दास्य केली कुतुहल कीधां; जिननवने चोराशी आशातना , गुरुप्रत्ये तेत्रीश आशातना, उवणायरीय हाथ थकी पाड्यु; पडिलेवू विसायु; गुरुवचन तहत्ति करी पडिवज्युं नहि दर्शनाचारव्रत विषश्रो अनेरो जे कोश् अतिचार पद ॥२॥ ___ चारित्राचारे आठ अतिचार ॥ पणिहाणजोगजुत्तो, पंचदि समिहि तीदि गुत्तीहिं ॥ एस चरित्तायारो, अविहो दोइ नायवो ॥४॥ ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदाननंडमत्तनिकेवणासमिति, पारिछावणिया समिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति, ए अष्ट प्रवचनमाता साधुतणे धर्मे सदैव, श्रावकतणे धर्मे सामायिक पोसह लीधे, रुडी पेरे पाळ्यां नदि Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६ ) खंडणा विराधना हुई, चारित्राचारव्रत विषइ नेरो जे कोइ प्रतिचार. पक्ष० ३ विशेषतः श्रावकतणे धर्मे सम्यकूत्वमूल बारव्रत, सम्यकूत्व तणा पांच प्रतिचार | संका कंख विगिवा० ॥ शंका - श्री अरिहंततणां बल, अतिशय, ज्ञानलक्ष्मी, गांभीर्यादिक गुण, शाश्वती प्रतिमा, चारित्रीयानां चारित्र, जिनवचनतणो संदेद कीधो; याकांदा - ब्रह्मा, विष्णु, मदेश्वर, क्षेत्रपाल, गोगो, यसपाल, पादरदेवता, गोत्रदेवता, देवदेदरानो प्रजाव देखी रोग यावे इदलोकपरलोकार्थे पूज्या, मान्या, बौद्ध, सांख्य, संन्यासी, नरडा, जगत, लिंगीया, जोगी, दरवेश, प्रनेरा दर्शनीयानुं कष्ट मंत्र चमत्कार देखी परमार्थ जाएया विना मूलाव्या, मोह्या; कुशास्त्र शीख्यां, सांजळ्यां; श्रा-६, संवत्सरी, दोली ? Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दवादशमी, व्रतच्यग्या ( एवं ) बजेव, मादीपूनम, प्रजापडवो, प्रेतबीज, गौरीत्रीज, विनायकचोय, नागपांचम, जीवणाबडी, शीयलसप्तमी, ध्रुवच्यष्टमी, नौली नवमी, रसी, वत्सवारसी, धनतेरसी, अनंतचौदशी, अमावास्या, च्यादित्यवार, उत्तरायन, नैवेद्य, याग, जोग मान्या; पीपले पाणी रेड्यां, रेडाव्यां; घरबादिर कूवे, तलावे, नदी, पद, कुंड, वावि समुद्रे, पुण्यदेतु स्नान कीधां; वितिगिता -- धर्म संबंधीया फल तो संदेह कीधो; जिन परिदंत धमना गर, विश्वोपकारसागर, मोक्षमार्गना दातार, इस्या गुणनणी पूज्या नहिं; इहलोक परलोक संबंधीया जोग वंबित पूजा कीधी; रोग प्रातंक कष्ट प्रावे दीएवचन याग मान्या; महात्मानां जात, पापी मल शोना तणी निंदा कीधी ; प्रीति Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (40) मांडी; तेहनी दाक्षिण्य लगे ते नो धर्म मान्यो, श्री सम्यक्त्वव्रतविषइयो नेरो० ॥ ४ ॥ - पहेले स्थूलप्राणातिपात विरमण व्रते पांच प्रतिचार. वढ़बंध विच्छे० ॥ द्विपद चतुष्पद प्रत्ये रीसवशे गाढो घाव घाल्यो, गाढ बंधण बांध्युं, घणे नारे पीड्यो, निल्नं कर्म कीधुं, चारा पाणी तणी वेलाए सार संजाल न कीधी. लेदणे देणे कुणढ़ने प्रोढ्युं, संघाव्यं. तेणे मूख्ये आपण जिम्या. सत्यां धान्य रुडीपेरे जोयां नहि. पाणी गलतां ढोळ्युं, जीवाणी सूकव्युं, गळतां कालक नांखी, गळणं रुडुं न कीधुं. इंधण गणां प्रणशोध्यां बाल्यां; ते मांहि साप, खजुरा, विंबी, सरोला, जूवा, गिंगोडा, सादतां मूच्या, उहव्या, रुडे स्थानके न मूक्या; कीडी, मंकोडी, नदेही, घीमेल Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) कातरा, चूडेल, पतंगीया,देडकां,अलसीयां श्यल प्रमुख जे को जीव विणग:विणसतां नवेख्या, चाप्यां; उदव्या. दलावतां चलावतां पाणी गंटतां अनेराइ कामकाज करतां निर्वसपणुं कीg,जीवरदा रुडी न कीधी.पदेलेस्थूल प्राणातिपात व्रत विषा, बीजे स्थूलमृषावादविरमण व्रते पांच अतिचार. सहसा रदस्स दारे० ॥ सहसात्कारे कुणद प्रत्ये अयुक्त आल दीधुं. स्वदारा मंत्र नेद कीधो. अनेराइ कुणदनो मंत्र आलोच मर्म प्रकाश्यो. कुणदने अपाय पाडवा कूडी बुद्धि धरी, कूडो लेख लख्यो. जूठी साख नरी. थापणमोसो कीधो. कन्या,ढोर, नूमि संबंधीया लेहणे देहेणे वाद वढवाड करतां मोटकुं जूलु बोल्या. बीजे स्थूल मृषावाद व्रत विषयो अनेरो त्रीजे स्थलअदत्तादानविरमणव्रते पांच Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) अतिचार. तेनादडप्पउँगे घर बादार, क्षेत्र, खले, परायुं अणमोकल्युं लीधुं, वावर्यु; चोराई वस्तु लीधी; चोर प्रत्ये संबल दीg; विरु: राज्यादि कर्म कीधुं; कूडां मान, मापां कीधां; माता, पिता, पुत्र, मित्र, कलत्र वंची कुणदने दीy; जूदी गांठ कीधी; नवा जूना, सरस नीरस, वस्तुतणाने संनेल कीधां. बीजे अदत्तादान व्रत विषइयो अनेरो० ॥ ७॥ चोथे स्वदारासंतोष परस्त्रीगमनविरमण व्रते पांच अतिचार. अपरिग्गदिया ईतर ॥अपरिग्रदिता गमन कीg; अनंग क्रीडा कीधी; विवादकरण कीg; काम नोग तणे विषे अति अनिलाष कीधो; दृष्टि विपर्यास कीधो; आठम चन्दशी तणा नियम लेश नांग्या; अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार, सुहणे स्वप्नांतरे हुआ. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६१ ) OG चोथे मैथुन विरमण व्रत विषईयो खनेरो ० पांचमे स्थूलपरिग्रदपरिमाण व्रते पांच प्रतिचार. धण धन्न खित्त वधू ॥ धण धन्न विगेरे परिमाण नपरुं रखायुं, सोनुं रुपुं, नवविध परियद् प्रमाण लीधुं नदि, पढवं विसायुं, पांचमे परिग्रह परिमाण व्रत विषयो नेरो० ॥ ए ॥ ठे दिग्वरमण व्रते पांच प्रतिचार. गमणस्स य परिमाणे० ॥ न दिशे, ढोदिशे, तिर्यग् दिशे जावा याववातणा नियम लेइ नांग्या; एक दिशी संदेपी बीजीदिशि वधारी; विस्मृति लगे अधिक नमि गया, पाठवणी घी पाबी मोकली; वदाण व्यवसाय कीधो; वर्षाकाले गामतरुं कीधुं. हे दिग्विरमण व्रत विषइयो अनेरो० ॥ १० ॥ • सातमे जोगोपनोग व्रते पांच प्रति Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) चार. सच्चिते पडिब० ॥सचित्त आहारे, सचित्तप्रतिव६ आहारे, अप्पोलसदि नरकणया, फुप्पोलसहि नरकणया, अपक्क आदारे, उपक्व आदारे, तुगैषधि, कुली आंबली, ओला, जंबी, पहुंक, पापडीतणां नदाण कीधां; अनंतकाय, अथाणां तणां जदाण कीधां; तथा रिंगण, विंगण पीलू , पीचू, पंपोटा, महडा, वमबोर, प्रमूख बहुबीज तणां नदण कीधां. ॥गाथा ॥ सचित्त दव विगई,वाणद तंबोल वथ्थ कुसुमेसु; वादण सयण विलेवण, बंदिसी नाण जत्तेसु.॥१॥ ए चौद नियम दिन प्रत्ये लीधा नदि, खेश ने संदेप्या नदि; सचित्त, अव्य, विगय, खासडा, वादन, तंबोल, फोफल, बेसण, सयन, पाणी अंघोलण, फल, फूल, नोजन, आगदने जे कोई नियम लेश नांग्या; बावीश अनक्ष्य, बत्रीश अनंत Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६३ ) कायमादि च्यादू, मूला, गाजर, पिंड, पिंडालू, कचूरो, सूरण, खिलोडां, मोरडा, सेलरां, कुली प्रांबली, वाघरडां, गरमर, नीली गलो, वाल्होल खाधी; वाशी कठोल, पोली, रोटली, त्रण दिवसना जंदन, मधु, महुडां, विष, दीम, करदा, घोलवडा, प्रजाण्यां फल, टींवरु, गुदां, बोर, प्रथाणु, काचुं मीठं, तिल, खसखस, कोटिबडां खाधां; लगभग वेलाए वालु कीधां दिन - ग्याविण शिराव्या; जे कोइ नेरो प्रतिचार हुई होय; तथा कर्मतः - इंगालकम्मे, वणकम्मे, साडी कम्मे, नाडी कम्मे, फोडी कम्मे ए पांच कर्म ॥ दंतवाणिज्य, लकवाणिज्य, रसवाणिज्य, केशवाणिज्य, विषवाणिज्य, ए पांच वाणिज्य ॥ जंत पिल्लणकम्मे, निल्लं - कम्मे, दवग्गिदावण्या, सरददतलायसोसण्या, असइपोसण्या, ए पांच सा Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) 10 मान्य ॥ ए पन्नर कर्मादान मांदे जे कोइ कीधां, कराव्यां, अनुमोद्यां, अनेरा जे कांइ सावध कर्म समाचर्यां होय, सातमे जोगोपजोग व्रत विषइयो नेरो० ॥ ११ ॥ ठमे अनर्थदंड विरमणव्रते पांच प्रतिचार. कंदप्पे कुक्कु ॥ अनर्थदंग जे कढ़िये काम काज पाखे मुधा पाप लाग्यां; मुख दास्य खेल, कुतूहल, अंग कुचेष्टा कीधी; निरर्थक लोकने कर्षण, गामां वादी गामांतरे कमावानी बुद्धि दीधी; कण कुवस्तु ढोर लेवराव्यां; अनेराइ पापोपदेश दीघां; कोश, कूदाडा, रथ, नखल, मुशल, घर, घंटी प्रमुख स करी म्हेल्यां ; माग्यां प्राप्यां; अंघोल, नादणे, पग धोयणे, खाले पाणी ढोल्यां, अथवा जीला की - ल्यां; जूवटुं रम्यां; नाटक पेखणां जोयां; पुरुष स्त्रीनां रूप शृंगार वखाएयां; राज Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) कथा, देश कथा, नक्त कथा, स्त्री कथा, पराइ तांत कीधी; कर्कश वचन बोल्या; संनेडालगाड्या; सरन, कूकडा प्रमुख जूझतां जोयां, कलद करता जोयां; लोक तणी उपार्जना कीधी; सुख कीर्ति देश लइचिंतवी; लण, पाणी, माटी, कण, कपाशिया, काजविण चाप्या, ते उपर बेठग; आली वनस्पति चूंटी, अंगीग काष्ट वणिज कीधा; गश, पाणी, घी, तेल,गोळ, अम्लवेतस, बेरंजातणां नाजन जघामां महेल्यां; ते मांदि कीमी, मंकोमी, कुंथुआ, नदी, घीमेल, गिरोली प्रमुख जे को जीव विणग; सुडा, सालही, क्रीडा देतु पांजरे घाल्या; अनेराइ जीवने रागद्वेष लगे एकने ऋदि परिवार वंग, एकने मृत्यु दाणी वंगी. आपमे अनर्थदंडविरमण व्रत विषओ अ० ॥१२॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) नवमे सामायिक व्रते पांच अतिचार. तिविहे उप्पणिदाणे० ॥ सामायिकमांदि मनमां आदट्ट दोहह चिंतव्यु. वचन सावद्य बोल्यां. शरीर अणपडिलेद्यं दलाव्युं. बती शक्तिए सामायिक ली, नहि. उघाडे मुखे बोल्यां, सामायिक मांदि जंघ आवी, वीज दीवा तणी उजेदी लागी; विकथा कीधी; कण, कपाशिया, माटी, पाणीतणा संघट्ट हुआ; मुहपत्ति संघट्टी; सामायिक अणपूगे पायु, पार विसार्यु. नवमे सामायिक व्रत विषश्रो अनेरो जे को अतिचार ॥ १३ ॥ दशमे देशावगाशिक व्रते पांच अतिचार. आणवणे पेसवणे ॥ आणवणप्पयोगे, पेसवणप्पयोगे, सद्दाणुवाइ, रूवाणुवाइ,बहियापुग्गल परकेवे.निमी नूमिकामांहिबादिरथी अणाव्यु.आपण कन्देथी Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६७ ) बादिर मोकल्युं. शब्द संभलावी, रूप देखाडी, कांकरो नांखी प्राणपणुं बतुं जणाव्यं, पुद्गलतणो प्रक्षेप कीधो. दशमे देशावगाशिक व्रत विषइओ नेरो० १४ ग्यारमे पोषधोपवास व्रते पांच अतिचार. संथारुच्चार विदि० ॥ पोसलीधे संथारातणी भूमि बाहिरलां थंकिलां संदिसे रुडां शोध्यां नहि, पडिलेह्यां नहि, थं मिल मात्र परठवतां चिंतवणी न कीधी; " प्रणुजापह जस्सुग्गदो" न कह्यो, परवव्या पुंठे वार त्रण वोसिरे वोसिरे न को. देहरा पोसालमांदे पेसतां निसरतां निसीहि वस्सदि कहेवी विसारी. पुढवी, आप, तेज, वान, वनस्पति, सकाय तणा संघ परिताप उपश्व कीधाः संयारा पोरसी तो विधि जणवो विसार्यो, प्रविधि संथार्या; पारणादिकती चिंता Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) निपजावी. कालवेलाए देव न वाद्या; पोसद असुरो लीधो, सवेरो पार्यो, पर्वतिथे पोसह लीधो नहि. अग्यारमे पोषधोपवास व्रत विषश्यो अनेरो ॥१५॥ बारमे अतिथिसंविनाग व्रते पांच अतिचार. सच्चिते निरिकवणे० ॥ सच्चित वस्तु देठ उपर बतां असुऊतुं दान दीg; वदोरवा वेलाए टली रह्या; मत्सर लगे दान दीधुं; देवातणी बुझे पराइ वस्तु धणीने अणकदे दीधी; अथवा आपणी करी दीधी; अणदेवातणी बुके सुकतुं फेमी असुऊतुं कीg; गुणवंत आवे नक्ति न साचवी; अनेराइ धर्मदेव सीदातां ती शक्ते नया नहि, दीन दीण प्रत्ये अनुकंपादान दीधुं नहि, देतां वायु; बारमे अतिथिसंविनाग व्रत विषश्त्रो अनेरो० ॥ १६॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) संलेषणा तणा पांच अतिचार. इठलोए परलोए ॥ इहलोगासंसप्पओगे, परखोगासंसप्पओगे,जीविसंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, कामनोगासंसप्पओगे, इहलोके धर्मतणा प्रनावलगे राजऋदिनोग वांब्या; परलोके देव, देवेंज, चक्रवर्तितणी पदवी वांगी; सुख आवे जीववातणी वांग कीधी, उःख आवे मरवातणवांग कीधी; काम भोग तणी वांग कीधी, संलेषणाव्रतविषयो अनेरो जे कोअतिचार पद ॥ १७ ॥ तपाचार बार नेद ॥ बाह्य व अज्यंतर अणसणमूणोअरिया०॥अणसण नण) उपवासादिक पर्वतिथे तप न कीg; जणोदरी बे चार कवल कणा न उठ्या; व्यन्नणी सर्व वस्तु तणो संदेप न कीधो; रस त्याग न कीधो; कायक्लेश Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 30 ) लोचादिक कष्ट कर्या नदि; संलीनता अंगोपांग संकोची राख्यां नदि; पच्चकाण नांग्या. पाटलो डगतो फेड्यो नदि; गंसदि पच्चका नांग्युं; उपवास, प्रांबिल, नीवी कीधे मुखे सचित्त पाणी घाल्युं, वमन हुआ. बाह्यतप विषइओ अनेरो० ॥ १८ ॥ अन्यंतर तप | पायवित्तं विप्रो० ॥ सुधुं प्रायश्चित्त पडिवज्युं नदि, आलोयण तणी सुधी टीप कीधी नदि; सुधो तप पहुंचाड्यो नदि; साते नेदे विनय साचव्यो नहि; दश नेदे वैयावच्च न कीधो, पंचविध सज्जाय न कीधो; कषाय वोसराव्यो नदि; दुःखक्ष्य कर्मय निमित्त काजसग्ग न कीधो; शुक्लध्यान, धर्मध्यान ध्यायां नदि; आर्त्त तथा रौड ध्यान Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) ध्यायां. अन्यंतर तप विषो अनेरो० ॥ १॥ वीर्याचार त्रण अतिचार. अणिगूदियबलविरियो ॥ मनोवीर्य-धर्मध्यान तणे विषे उद्यम न कीधो, पडिक्कमणे देवपूजा, धर्मानुष्ठान, दान, शील, तप, नावना, बती शक्तिए गोपवी, आलसे उद्यम न कीधो, बेठां पडिक्कमणुं कीg, रुडां खमासण न दीधां, वीर्याचार विषश्त्रो अनेरो० ॥२०॥ पडिसिहाणं करणे ॥ प्रतिषेध-अनक्ष्य, अनंतकाय, मदारंन परिग्रह, जे कोश् प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह,क्रोध,मान, माया, लोन,राग, द्वेष, कलद, अन्याख्यान, पैशुन्य, रति अरति, परपरिवाद, मायामृषावाद, मिथ्यात्वशल्य, ए अढार पापस्थानक मांदे कीधां, Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) कराव्यां, अनुमोद्यां दोय,तेसविहंमने, वचने, कायाएकरी मिच्छामि उकडं ॥२॥ एवंकारे श्रावकतणे धर्मे सम्यकूत्व मूल बार व्रत एकसो चोवीश अतिचार, पद दिवसमांदे सूक्ष्म, बादर जाणतां, अजाणतां हुवो होय, ते सवि हुं मनवचनकायाए करी मिनामि उक्कडं ॥२॥ इति पादिकादि संक्षिप्त अतिचार. ॥ अथ श्री पादिकादि अतिचार॥ ॥ नाणंमिदंसणंमि अ,चरणंमि तमि तह य विरियंमि॥ आयरणं आयारो, श्य एसो पंचहा भणि ॥१॥ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचार ॥ ए पंचविध आचारमादि अनेरो जे को अतिचार पद दिवसमांदि सूक्ष्म बादर जाणतां अजाणतां हुई दोय, ते सवि Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) हुं मने, वचने, कायाए करी तस्स मिचामि डुक्कडं ॥ १ ॥ तत्र ज्ञानाचारे आठ अतिचार ॥ काले विए बहुमाणे, जवहाणे तद य निन्दवणे ॥ वंजण प्रत्य तनए, विदो नामायारो ॥ १ ॥ ज्ञान काल वेलाए जयो गुण्यो नहीं, काले नएयो. विनयहीन, बहुमानदीन, योग उपधान दीन, अनेराकन्दे जणी अनेरो गुरु कह्यो. देव गुरु वांदणे, पडिक्कमणे, सज्जाय करतां, नएतां गुणतां, कूडो अक्षर काने मात्राये अधिको प्रोगे नएयो . सूत्र कूटुं कह्यं. अर्थ कूडो कह्यो तनय कुडां कह्यां जणीने विसाय. साधुतणे धर्म काजे काजो - नदर्ये, डांडो अप मिले, वसति प्रणशोधे, अणपवेसे, प्रसाइ, अणोकायमांदे श्री दशवैका लिकप्रमुख सिद्धांत न " Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) ण्यो गुण्यो. श्रावकतणे धर्मे थविरावलि, पमिकमणां, उपदेशमाला प्रमुख सिद्धांत नण्यो गुण्यो. कालवेला काजो अणनर्ये पढ्यो. ज्ञानोपगरण, पाटी, पोथी, उवणी, कवली, नोकारवाली, सांपडा, सांपडी, दस्तरी, वही, खिया प्रमुख प्रत्ये पग लाग्यो, थूक लाग्युं, थूके करी अदर मांज्यो, उशीसे धर्यो; कने बतां आदार नीहार कीधो. ज्ञानव्य नदतां जपेदा कीधी. प्रज्ञापराधे विणाश्यो, विणसतो नवेख्यो, उती शक्तिए सार संभाल न कीधी. झानवंत प्रत्ये वेष, मत्सर चिंतव्यो. अवज्ञा आशातना कीधी. कोइप्रत्ये नणतां, गणतां अंतराय कीधो. आपणा जाणपणातणो गर्व चिंतव्यो. मतिज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलझान, ए पंचविध ज्ञानतणी असदहणा Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) कीधी. कोइ तोतडो बोबडो दस्यो, वितों, अन्यथा प्ररूपणाकीधी ॥ ज्ञानाचारव्रत विष अनेरो जे कोइ अतिचार पद दिवस ॥१॥ - दर्शनाचारे आठ अतिचार ॥ निस्संकिय निकंखिय, निवितिगिना अमूढदिही अ॥ उववद थिरीकरणे, वबल्ल पनावणे अह ॥१॥ देव गुरु धर्मतणे विषे निःशंकपणुंन कीधुं तथा एकांत निश्चय न कीधो. धर्म संबंधीया फलतणे विषे निःसंदेह बुद्धि धरी नहीं. साधुसाध्वीनां मल मलिन गात्र देखी गंग निपजावी. कुचारित्रीया देखी चारित्रीया नपर अन्नाव हुर्ज. मिथ्यात्वीतणी पूजाप्रनावना देखी मूढदृष्टिपणुं कीधुं. तथा संघमांदे गुणवंततणी अनुपबृंदणा कीधी. अस्थिरीकरण, अवात्सल्य, अप्रीति, अ ___ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) नक्ति निपजावी, अबहुमान कीधुं. तथा देवाव्य, गुरुऽव्य, ज्ञानव्य, साधारण व्य, नदित नपेदित प्रज्ञापराधे विणाश्या, विणसता उवेख्या, बती शक्तिए सार संन्नाल न कीधी. तथा साधर्मिकसाथे कलह कर्मबंध कीधो. अधोती, अष्टपड मुखकोश पाखे देवपूजा कीधी. बिंबप्रत्ये वासकूपी, धूपधाj, कलशतणो उबकोलाग्यो. बिंब दाथथकी पाड्युं. उसास निःसास लाग्यो. देहरे, उपाश्रये मलश्लेष्मादिक लोह्यु.देदरामांदे दास्य,खेल,केलि, कुतूहल, आदार नीदार कीधां; पान, सो पारी, निवेदीआं खाधां. ठवणायरिय दाथथकी पाड्या, पडिलेहवा विसार्या. जिननवने चोराशी आशातना, गुरु गुरुणी प्रत्ये तेत्रीश आशातना कीधी होय, गु १ स्थापनाचार्य. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (99) रुवचन तदत्ति करी पडिवज्युं नहीं ॥ दर्शनाचारवत विषइयो अनेरो जे कोइ अतिचार पद दिवस० ॥ २ ॥ चारित्राचारे व अतिचार || पणिदाण जोगजुत्तो, पंचदि समिईदिँ तीदि गुत्तीदिं ॥ एस चरित्तायारो, ग्रविदो दोइ नायवो ॥ १ ॥ ईर्या समिति ते प्रणजोए दिंड्या. जाषा समिति ते सावद्य वचन बोल्या. एषणा समिति ते तृण, डेंगल, अन्न पाणी असूतुं सीधुं. प्रादाननंडमत्तनिरकेवा समिति ते आसन, शयन, उपकरण मातरुं प्रमुख पुंजी जीवाकुल भूमिकाये मूक्युं लीधुं. पारिष्टापनिका समिति ते मलमूत्रश्लेष्मादिक प्रणपुंजी जीवाकुल भूमिकावे परवव्युं. मनोगुप्ति, मनमां आर्त रौड ध्यान ध्यायां. १ घास २ अचित माटीना ढेकां. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3) वचनगुप्ति, सावद्य वचन बोल्यां. कायगुप्ति, शरीर अणपमिलेद्यं दलाव्यु; अएणपुंजे बेग. ए अष्टप्रवचन माता (ते, सदैव साधुतणे धर्मे अने) श्रावकतणे धर्मे सामायिक पोसह लीधे, रूडीपेरे पाल्यां नहीं, खंडणा विराधना हुइ ॥ चारित्राचार व्रत विष अनेरो जे कोइ अतिचार पद दिवस मांदी सूक्ष्मबादर जाणतां अजाणतां दुर्च दोय, ते सवि हूं मने वचने कायाए करी तस्स मिनामि उक्कडं ॥३॥ विशेषतः श्रावकतणे धर्मे श्री सम्यक्त्वमूल बारव्रत, सम्यक्त्व तणा पांच अतिचार ॥ संकाकंखविगिबा० ॥ शंका-श्रीअरिहंततणा बल, अतिशय, ज्ञानलक्ष्मी, गांनीर्यादिक गुण, शाश्वती प्रतिमा, चारित्रीयानां चारित्र, श्रीजिनवचन तणो सं Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) देह कीधो॥ आकांदा-ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, क्षेत्रपाल, गोगो, आसपाल, पादरदेवता, गोत्रदेवता, ग्रहपूजा, विनायक, हनुमंत, सुग्रीव, वाली, नाद, इत्येवमादिक देश, नगर, गाम, गोत्र, नगरी, जूजूत्रा देव, देहेरांना प्रनाव देखी रोग आतंक कष्ट आव्ये इहलोक परलोकार्थे पूज्या मान्या. सि विनायक जीराऊलाने मान्युं, इब्युं, बौछ सांख्यादिक संन्यासी, जरडा, नगत, लिंगिया, जोगीया, जोगी, दरवेश, अनेरा दर्शनीयातणो कष्ट, मंत्र, चमत्कार देखी परमार्थ जाण्या विना नूलाव्या, मोह्या. कुशास्त्र शीख्यां, सनिल्यां. श्रा, संवबरी, होलि, बलेव, माहिपूनम, अजापडवो, प्रेतबीज, गौरीत्रीज, विनायक चोथ, नागपांचमी,फिलणाही, शीलसातमी,ध्रु १ गणेश. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( Ga ) वाठमी, नौली नौमी, प्रदवा दशमी, त्रतत्र्यग्यारशी, वच्चबारशी, धनतेरशी, नंतचनदशी, अमावास्या, यादित्यवार, उत्तरायण, नैवेद्य कीधां. नवोदक, याग, नोग, उतारणां कीधां, कराव्यां, अनुमोद्यां, पीपले पाणी घाल्यां, घलाव्यां घर बाहिर क्षेत्र, खले, कूवे, तलावे, नदीए, दे, वाविए, समुद्रे, कुंडे, पुण्यहेतु स्नान कीधां, कराव्यां, अनुमोद्यां. दानदीघां. ग्रहण, शनिश्वर, माहामासे, नवरात्री, न्हायां. - जालना थाप्यां, अनेराइ व्रत व्रतोलां कीधां, कराव्यां ॥ वितिगिच्छा - धर्मसंबंधी फत विषे संदेह कीधो. जिन अरिदंत धर्मना यागर, विश्वोपकार सागर, मोक्षमार्गना दातार, इस्या गुणनणी न मान्या, न पूज्या. महासती, महात्मानी इहलोक परलोक संबंधीया जोग वांवित Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) पूजा कीधी. रोग आतंक कष्ट आव्ये खीण वचन नोग मान्या. महात्माना नात, पाणी, मल शोनातणी निंदा कीधी. कुचारित्रिया देखी चारित्रिया उपर कुनाव हुर्ड. मिथ्यात्वी तणी पूजा प्रनावना देखी प्रशंसा कीधी, प्रीति मांडी, दाक्षिण्य लगे तेदनो धर्म मान्यो, कीधो॥श्री सम्यकूत्वव्रत विषयि अनेरो जे कोइ अतिचार, पद दिवसमांदि० ॥१॥ __पदेले स्थूलप्राणातिपातविरमणव्रते पांच अतिचार ॥ वबंधविजेए० ॥ द्विपद चतुष्पद प्रत्ये रीसवशे गाढो घाव घाल्यो, गाढे बंधने बांध्यो. अधिक नार घाल्यो. निलीबन कर्म कीधां. चारापाणीतणी वेलाए सारसंनाल न कीधी. लेदेणे देदेणे किणदिप्रत्ये लंघाव्यो, तेणे नूखे आपणे जम्या. कन्दे रदी मराव्यो. बंधी ___ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) खाने घलाव्यो. सल्यां धान्य तावडे नांख्यां, दलाव्यां, जरडाव्यां, शोधी न वावयाँ. इंधण , गणां, अणशोध्यां बाळ्यां. तेमांदि साप, विंबी, खजूरा, सरवला, मांकड, जूश्रा, गिंगोडा, साहतां मुआ; उदव्या, रुडेस्थानके न मुक्या. कीड मकोडिनां इंडां विगेह्यां. लीख फोडि, उदेही, कीडी, मकोडि, घीमेल, कातरा चूमेल, पतंगिया, देडकां, अलसीयां, अल, कुंतां, डांस, मसा, बगतरा, माखी, तीड प्रमुख जीव विणहा. माला दलावतां दलावतां पंखी, चडकलां, कागतणां इंडां फोड्यां. अनेरा एकेडियादिक जीव विणास्या, चांप्या, उदव्या. कांइ हलावतां, चलावतां, पाणी गंटतां अनेरा कांइ कामकाज करतां, निध्वसंपणुं कीg. जीवरदा रूडीन कीधी. १ फालतां--पकमतां. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) संखारो सूकाव्यो. रूटुं गलj न कीg. अणगलपाणी वावगुं. रूडीजयणा न कीधी. अणगल पाणीए जील्या. बुगडां धोयां. खाटला तावेडे नाख्या, काटक्या. जीवाकुल नूमि लींपी. वाशीगार राखी. दलणे, खांडणे, लींपणे, रूडी जयणा न कीधी. आठम चनदशना नियम नांग्याः धूणी करावी n पहेले स्थूलप्राणातिपात. विरमणव्रत विषा अनेरो जे को अतिचार पद दिवसमांदि० ॥१॥ : बीजे स्थूलमृषावादविरमणव्रते पांच अतिचार॥सहसारहस्सदारे॥सहसातकारे कुणह प्रत्ये अजुगतुं आळ अभ्याख्यान दीधुं. स्वदारा मंत्र नेद कीधो. अनेरा कुएणदनो मंत्र, आलोच मर्म प्रकाश्यो. कुगहने अनर्थ पाडवा कूडी बुद्धि दीधी. १ न्हाया. २ तडके. Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - (४) कूडो लेख लख्यो. कूडी साख जरी.यापण मोसो कीधो. कन्या, गौ, ढोर, भूमिसंबंधि लेहणे देणे व्यवसाये वाद वढवाड करतां मोटकुं जूलु बोल्या. दाथ पगतणी गाली दीधी. कडकडा मोड्या. मर्म वचन बोल्या ॥ बीजे स्थूलमृषावादविरमणव्रत विषछ अनेरो जे कोइ अतिचार पद॥ ॥२॥ त्रीजे स्थूल अदत्तादानविरमणव्रते पांच अतिचार ॥ तेनाहडप्पलेंगे ॥ घर बाहिर खेत्र, खळे, पराइ वस्तु अणमोकली लीधी, वावरी. चोराइ वस्तु वोहोरी. चोर धाड प्रत्ये संकेत कीधो. तेदने संबल दीधुं. तेदनी वस्तु लीधी. विरुराज्यातिक्रम कीधो. नवा, पुराणा, सरस, विरस, सजीव, निर्जीव वस्तुना नेल संनेल कीधा. कूडे काटले, तोले, माने, मापे वहोर्या. दाणचोरी कीधी. कुणदने लेखे ___ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) वरांस्यो. साटे लांच लीधी. कूडो करदो काढ्यो. विश्वासघात कीधो, परवंचना कीधी. पासंग कूडां कीधां. डांडी चढावी, लहके बहके कूडां काटलां मान मापां कीधां. माता, पिता, पुत्र, मित्र, कलत्र, वंची कुणदिने दीधुं. जूदी गाठ कीधी. था. पण उलवी. कुणदिने लेखे पलेखे नूलव्यु. पडी वस्तु उळवी लीधी ॥त्रीजे स्थलअदत्तादानविरमणव्रत विषयि अनेरो जे कोई अतिचार पद दिवस० ॥३॥ चोथे स्वदारासंतोष, परस्त्रीगमनविरमणव्रते पांच अतिचार ॥ अपरिग्गदियाश्त्तर० ॥ अपरिगृहीतागमन, इत्वर परिगृहीतागमन कीधुं. विधवा, वेश्या, परस्त्री, कुलांगना, स्वदाराशोकतणे विषे १ वेश्यागमन. २ थोडा काल माटे कोईए राखेली स्त्री साथे गमन. Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) दृष्टि विपर्यास कीधो. सराग वचन बोल्यां. आठम, चन्दश, अनेर पर्वतिथीना नियम लइ नांग्या. घरंघरणां कीधां कराव्यांवरवहु वखाण्यां. कुविकल्प चिंतव्यो. नंक्रीडा कीधी. स्त्रीनां अंगोपांग निरख्यां. पराया विवाद जोड्या. डिंगला टिंगली परणाव्यां. कामनोगतणे विषे तीव्र प्रनिलाष कीधो. अतिक्रम, व्यतिक्रम, प्रतिचार, अनाचार, सुदणे स्वप्नांतरे हुआ कुस्वप्न लाध्यां नट, विट स्त्रीशुं दांसुं कीधुं ॥ चोथे स्वदारासंतोषत्रत विषयि ने जे कोइ अतिचार प० ॥४॥ पांच मे परिग्रहपरिमाणव्रते पांच प्रतिचार ॥ धणधन्न खित्त वत्थू० ॥ धन, धान्य, क्षेत्र, वास्तु, रूप्य, सुवर्ण, कुप्प, १ नातरुं - पुनर्लग्न. २ व्यवहार विरुद्ध गोवमे कामक्रिमा करवी. ३ घर वगेरे इमारत. ४ त्रानुं पित्तल वगेरे धातु, Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 6 ) द्विपद, चतुष्पद, ए नवविध परिग्रदतणा नियम उपरांत वृद्धि देखी मूर्छा लगे सं . प न कीधो. माता, पिता, पुत्र, स्त्रीतणे लेखे की धो. परिग्रह प्रमाण लीधुं नहीं. लइने पढिनं नहीं पढ़ विसायुं. प्रलीधुं मेल्युं. नियम विसार्या ॥ पांचमे परिग्रदपरिमाणव्रत विषयि अनेरो जे कोइ प्रतिचार पद दिवसमांदि० ॥ ५ ॥ बठे दिग्परिमाणत्रते पांच प्रतिचार ॥ गमणस्स न परिमाणे० ॥ ऊर्ध्वदिशि, प्रधोदिशि, तिर्यग दिशिए जावा चाववातणा नियम लाइ नांग्या. नानोगे विस्मृतलगे अधिकभूमि गया. पाठवणी आघीपाठी मोकली. वहाण व्यवसाय कीधो. वर्षाकाले गामतरुं कीधुं. भूमिका एकगमा संखेपी, बीजीगमा वधारी ॥ बडे दिग्परिमाण Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) व्रत विषयि अनेरो जे कोइ अतिचार पद दिवसमांदि० ॥६॥ सातमे नोगोपनोगविरमणव्रते नोजन आश्री पांच अतिचार, अने कर्महुंती पंदर अतिचार, एवं वीश अतिचार ॥ सचित्ते पडिब० ॥ सचित्त नियम लीधे अधिक सचित्त लीधुं ॥ अपक्कादार, उपक्कादार, तुबोषधितणुं नदाण कीधुं. उला, जंबी, पोंक, पापडी खाधां ॥ सचित्तदवविगई,-वाणहतंबोलवत्थकुसुमेसु ॥ वादणसयणविलेवण,-बंनदिसिन्दाणनत्तेसु ॥१॥ए चन्द् नियम दिनगत, रात्रिगत लीधां नहीं, लेश्ने नांग्यां. बावीश अन्नक्ष्य, बत्रीश अनंतकायमांदि आउ, मूला, गाजर, पिंड, पिंडालू, कचूरो, सूरण, कुलि आंबली, गलो, वाघरडां १ कुणी-कुमळी-काची. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८‍) खाधां . वाशी कठोल, पोली, रोटली, त्रण दिवसनुं जंदन लीधुं. मधु, महुडा, माखण, माटी, वेंगण, पीलु पीचु, पंपोटा, विष, हिम, करदा, घोलवडां, प्रजाएयां फल, टिंबरु, गुंदा, महोर, प्रथाणुं, आम्बलबोर काचुं मीठं, तिल, खसखस, कोळिंबडां खाधां रात्रि भोजन कीधां. लगभग वेळाए वाळु कीधुं, दिवस विणउगे शीराव्या. तथा कर्मतः पन्नर कर्मादान - इंगालकम्मे, वणकम्मे, साडिकम्मे, जाडिकम्मे, फोडिकम्मे, ए पांच कर्म ॥ दंतवाणिजे, लकवा णिजे, रसवाणिजे, केसवाणिजे, विसवाणिजे, ए पांच वाणिज्य ॥ जंत पिल्लणकम्मे, निलं कम्मे, दवग्गिदावण्या, सरददतलायसोसण्या, सरपोसण्या, ए पांच सामान्य ॥ ए पांच कर्म्म, पांच वाणिज्य, पाच सामान्य एवं पन्नर कर्मादान बहुसा Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) वद्य मदारंन, रागण लीदाला कराव्या. इंटनिनाडा पचाव्या.धाणी, चणा, पक्कान करीवेच्या. वाशी माखण तवाव्यां. तिल वोहोर्या, फागणमास उपरांत राख्या. दसीदो कीधो. अंगीग कराव्या. श्वान, बिलाडा, सूमा, सालहि पोष्या. अनेरा जे कांश बहु सावद्य खरकर्मादिक समाचर्या. वाशीगार राखी. लींपणे, गूंपणे, महारंन कीधो. अणशोध्या चूलासंधुक्या. घी, तेल, गोल, गशतणां नाजन नघाडां मूक्यां. तेमांदि माखी, कुंति, बंदर, घीरोली पडी. कीडी चडी, तेनी जयणा न कीधी ॥ सातमे नोगोपनोगविरमणव्रत विषयितुं अनेरो जे कोइ अतिचार पद दिवसमांदि । आठमे अनर्थदंडविरमणव्रते पांच अतिचार ॥ कंदप्पे कुक्कुईए० ॥ कंदर्प १ रंगाववानुं काम. २ कोयला. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) लगे विटचेष्टा, दास्य, खेल, कुतूहल कीधा. पुरुष स्त्रीना दाव, नाव, रूप, शृंगार, विषयरस वखाण्या. राजकथा, नक्तकथा, दे. शकथा स्त्रीकथा कीधी. पराइ तांत कीधी, तथा पैशुन्यपणुं कीचूं. आर्त्त-रौऽध्यान ध्यायां. खांडा, कटार, कोश, कूदाडा, रथ, उखल, मुशलं, अग्नि, घरंटी, निसादे, दातरडां प्रमुख अधिकरण मेली दादिषय लगे माग्यां आप्यां. पापोपदेश दीधो. अष्टमी चतुर्दशीए खांडवा दलवातणा नियमनांग्या. मूखरपणा लगे असंबंध वाक्य बोल्या. प्रमादाचरण सेव्यां. अंघोले, नादणे, दातणे, पग धोणे, खेल पाणि तेल गट्यां. कोलणे जीव्या, जुवटे रम्या, हिंचोले दिंच्या, नाटक प्रेदणक जोयां. १ जोजन आश्री कथा. २ वात ३ खाणीयो. ५ सांबेलु.५दाळ वाटवानी जीपर.६एका करी. वाचाळपणे. Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) कण, कुवस्तु, ढोर लेवराव्यां. कर्कश वचन बोल्या. आक्रोशकीधा.अबोलालीधा. करकडा मोड्या. मबर धों. संनेडा लगाड्या. श्राप दीधा, सा, सांढ, हुड्डु, कूकडा, श्वानादिक झूकार्या, झूऊतां जोयां, खादिलगे अदेखा चिंतवी. माटी, मीठं, कण, कपाशीया, काजविण चांप्या, ते उपर बेग. आली वनस्पति खुदि. सूइ, शस्त्रादिक निपजाव्यां. घणी निज्ञ कीधी. राग देष लगे एकने ऋछि परिवार वांगी, एकने मृत्यु दानी वांग ॥ ठमे अनर्थदंडविरमणव्रत विषा अनेरो जे कोश अतिचार पददिवसमांदि०॥७॥ नवमे सामायिकवते पांच अतिचार॥तिविदेउप्पणिहाणे ॥सामायिक लीधे मने आदट्टदोदट्ट चिंतव्यु.सावद्य वचन बोल्यां. ४. १ बोकमा. ५ वीवी.... Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - शरीर अणपमिलेद्यं दलाव्यु. ती वेलाए सामायिक न लीधुं. सामायिक लेइ नघाडे मुखे बोल्यां. जंघ आवी. वात विकथा घरतणी चिंता कीधी. वीज दीवा तणी नजोदि हुइ. कण, कपाशीया, माटी, मीठं, खडी, धावडी, अरणेटो पाषाणप्रमुख चांप्या. पाणी, नील, फूल, सेवाल, हरीयकाय, बीयकाय,इत्यादिक प्रानड्यां. स्त्री,तियंच तणा निरंतर परम्पर संघट हुआ. मु. दपत्तियो संघट्टी.सामायिक अणपूग्युं पायें, पार विसायु॥नवमे सामायिकत्रत विषयिउ अनेरो जे कोअतिचार पद दिवस ए _दशमे देशावगाशिकव्रते पांच अतिचार ॥ आणवणे पेसवणे॥आणवणप्पलेंगे, पेसवणप्पलेंगे, सदाणुवाइ, रूवागुवाइ, बदियापुग्गलपरकेवे ॥ नियमित १ अंतरबिना. ५ परंपराए. Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( एए४ ) भूमिकामादि बाहेरथी कांई अणाव्यं, आपण कन्देथकी बाढेर कांइ मोकल्युं.थवा रूप देखाडी, कांकरो नाखी, साद करी आपणपणुं वतुं जणाव्यं ॥ दशमे देशावगाशिकवत विषयि नेरो जे कोइ प्रतिचार पद दिवसमांदि० ॥ १० ॥ ग्यारमे पौषधोपवासत्रते पांच प्रतिचार || संथारुच्चारविही० ॥ प्रप्पडिले - दिय डुप्पडिले दिय सासंघारए ॥ अप्पडिलेदिय डुप्पडिले दिय उच्चारपासव भूमि ॥ पोसद सीधे संथारा तणी भूमि न पुंजी, बाहिरला लहुड़ां वडां स्थंडिल दिवसे शोध्यां नहीं, पडिलेह्यां नदीं मातरुं पुंज्युं दलाव्युं, अणपुंजी भूमिकाए प स्वव्यं, परववतां " प्रणुजाण दजस्सुग्ग दो" न कह्यो, परठव्या पुंठे वार त्रण "वोसिरे वो सिरे" न कह्यो. पोसदशालामांदि पे Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) सतां “निसीदि"निसरतां “आवस्सदि" वार व्रण नणी नदी. पुढवी, अप,तेज,वाज, वनस्पति, जसकाय तणा संघट्ट, परिताप, उपव हुआ. संथारापोरिसीतणो विधि नणवो विसार्यो. पोरिसीमादे नंध्या. अविधे संथारो पाथर्यो. पारणादिकतणी चिंता कीधी. कालवेलाए देव न वांद्या. पडिकमणुं न कीधुं. पोसद असूरो लीधो, सवेरो पार्यो, पर्वतिथे पोसह लीधो नहीं. ॥ अग्यारमे पौषधोपवासव्रत विष अनेरो जे कोई अतिचार पद० ॥११॥ बारमे अतिथिसंविनागव्रते पांच अतिचार ॥ सचित्ते निरिकवणे ॥ सचित्त वस्तु देठ उपर उतां महात्मा महासती प्रत्ये असूऊतुं दान दीधुं. देवानी बुझे असूझतुं फेडी सूझतुं कीधुं, परायुं फेडी आपणुं कीp.अणदेवानी बुझे सूझतुं फेडी Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए६) असू ऊतु कीg,आपणुं फेडीपरायु कीg.वोदोरवा वेला टली रह्या.असुर करी महात्मा तेड्या,मबरधरी दान दीg.गुणवंत आव्ये नक्ति न साचवी, ती शक्ते स्वामीवात्सल्य न कीधुं. अनेरा धर्मदेव सीदाता उती शक्तिए नया नहीं, दीन दीणं प्रत्ये अनुकंपादान न दीधुं ॥ बारमे अतिथिसंविनागव्रत विषयि अनेरो जे कोइ अतिचार पद दिवसमांहिण॥ १२॥ संलेषणातणा पांच अतिचार॥इहलोए परलोए॥इहलोगासंसप्पलेंगे, परलोगासंसप्पउँगे, जीवियासंसप्पउंगे,मरणासंसप्पगे, कामन्नोगासंसप्पउँगे॥ इद लोके धर्मनाप्रन्नावलगेराजऋद्धि,सुख,सौनाग्य, परिवार, वांब्या. परलोके देव, देवें, विद्याधर, चक्रवर्तीतणी पदवी वांगी. सुख १ निर्धन. २ मुःखी. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) आव्ये जीवितव्य वाग्युं. फुःख आव्ये मरण वांग्यु. कामनोगतणी वांग कीधी। संलेषणाबत विषयि अनेरो जे को अतिचार पद दिवसमांदि० ॥१३॥ तपाचार बार नेद उ बाह्य, उ अन्यतर ॥अणसण मूणोयरित्रा०॥अणसण जणी नपवास विशेष पर्व तिथे ती शक्तिए कीधो नहीं. नणोदरीव्रत ते कोलिया पांच सात जणा रह्या नहीं. रत्तिसंदेप ते अव्य नणी सर्व वस्तुनो संक्षेप कीधो नहीं. रसत्याग ते विगयत्याग न कीधो. कायक्लेश लोचादिक कष्ट कर्या नहीं. संलीनता अंगोपांग संकोची राख्यां नहीं. पच्चरकाण नाग्यां. पाटलो डगतो फेड्यो नहीं. गंठसी, पोरिसि, साढपोरिसि, पुरिमढ, एकासगुं, बेआसj, नीवि, १ स्निग्ध रस ( विगय ) नो त्याग-लोलुपतानो त्याग ७ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) आंबिल प्रमुख पच्चरकाण पार विसायु. वेसतां नवकार न नायो. उठतां पञ्चस्काण कर, विसायु. गंग्सीनं भांग्युं. नीवि, आंबिल, उपवासादिक तप करी काउँपाणीपीधुं. वमन हुई. बाह्यतप विषयि अनेरो जे कोइ अतिचार पद ॥१४॥ अध्यंतरतप ॥ पायबित्तं विणा० ॥ मनशुई गुरू कन्दे आलोषण बोधी नहीं, गुरुदत्त प्रायश्चित्त तप लेखा शुझे पहुंचाड्यो नहीं. देव, गुरु, संघ, सादामी प्रत्ये विनय साचव्यो नहीं. बाल, १६. ग्लान, तपस्वी प्रमुखनुं वैयावच्च न कीधुं. वांचना, पृबना, परावर्तना, अनुप्रेदा, धर्मकथा लक्षण पंचविध स्वाध्याय न कीधो. धर्मध्यान शुक्लध्यान न ध्यायां. आर्तध्यान, रौध्यान ध्यायां. कर्मक्ष्य निमित्ते लोगस्स दश वीशनो काउस्सग्ग anwr Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . appen (ए) न कीधो॥अभ्यंतर तप विषयि अनेरो जे कोइ अतिचार पददिवसमांहिणारा वीर्याचारना त्रण अतिचार ॥ अणिगहिअबलविरि ॥ पढवे, गुणवे, विनय, वैयावच्च, देवपूजा, सामायिक, पोसह, दान, शील, तप, नावनादिक धर्मकृत्यने विषे मन, वचन, कायातणुं ब्तुं बल वीर्य गोपच्यु. रूडां पंचांग खमासमण न दीधां. वांदणातणा आवर्त्तविधि साचव्या नहीं. अन्यचित्त निरादरपणे बेठा, जतावटुं देववंदन, पमिकमां कीधुं ॥ वीर्याचार विषयिर्ड अनेरो जे कोई अतिचार पदा० ॥१६॥ नाणा पश्वय, सम संलेहण पण पन्नर कम्मेसु ॥ बारसतप विरिअतिगं, चनबीसंसय अश्यारा॥पडिसिहाणं करणे॥ प्रतिषेध-अन्नदय, अनंतकाय, बहुबीज ए 4 wreampie TA । my Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) जदाणा, महारंनपरिग्रहादिक कीधा, जीवाजीवादिक सूक्ष्म विचार सईया नहीं. आपणी कुमति लगे उत्सूत्र प्ररूपणा कीधी. तथा प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोन, राग, द्वेष, कलह, अन्याख्यान, पैशुन्य, रति अरति, परपरिवाद, मायामृषावाद, मिथ्यात्वशल्य ए अढार पापस्थान कीयां, कराव्यां, अनुमोद्यां दोय; दिनकृत्य प्रतिक्रमण, विनय, वैयावच्च न कीधां, अनेसं जे कां वीतरागनी आझा विरुद कीg, कराव्यु, अनुमोद्यं होय ॥ ए चिहुं प्रकार मांदे अनेरो जे कोइ अतिचार पद दिवसमांहि सूदम, बादर जाणतां अजाणतां हुढं दोय ते सवि हुं मने, वचने कायाए करी तस्स मिगमि उकडं ॥१७॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०१ ) एवंकारे श्रावकतणे धर्मे, श्री समकित मूल बारव्रत, एकसोचोवीश अतिचारमांदि नेरो जे कोइ अतिचार पक्ष दिवसमांहि सूक्ष्म, बादर, जाणतां अजाणतां हुई होय ते सवि हुं मने वचने कायाए करी तस्स मिचामि डुक्कडं. इति श्री श्रावक परकी, चोमासी, संवचरी अतिचार समाप्त ॥ ५३ ॥ ॥ अथ प्रजातनां पञ्चरकाण ॥ ॥ प्रथम नमुक्कारसहिप्रमुठिस दिनुं ॥ ॥ उग्गए सूरे, नमुक्कारसदियं, मुट्ठिसहि पच्चकाइ ॥ चनविपि आहारं, असणं, पाणं, खाइमं, साइमं ॥ अन्नत्थयाजोगेणं, सदसागरेणं, मदत्तरागारेणं, सवसमादिवत्तियागारेणं, वो सिरइ ॥ ५४ ॥ ॥ बीजुं पोरिसि साढपोरिसिनुं ॥ ॥ उग्गए सूरे, नमुक्कारसहियं, पोरिसिं, Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) साढपोरिसिं, मुहिसदिअं, पञ्चरकाइ ॥ नग्गए सूरे, चनविपि आहारं, असणं, पाणं, खाश्मं, साइमं ॥ अन्नत्थणानोगेणं सहसागारेणं, पबन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिर ॥ ५५॥ ॥त्रीजुं एकासणा बियासणानुं ॥ ॥जग्गए सूरे, नमुक्कारसदिअं, पोरिसिं, मुसिदिशे, पच्चरका ॥ नग्गए सूरे, चविपि आदारं, असणं, पाणं, खाइम साइमं ॥ अन्नत्थणालोगेणं सहसागारेणं, पबन्नकालेणं, दिसामोदेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सबसमादिवत्तियागारेणं, विग पच्चस्काइ अन्नत्थणानोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहत्थसंसहेणं, कित्तविवेगेणं, पडुच्चमस्किएणं, पारिजावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमा Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०३ ) दिवत्तियागारेणं ॥ वियासां पच्चकाइ, तिविदपि प्रहारं असणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्यणानोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं, च्याउंटणपसारेणं, गुरुप्रब्जुठापेणं, पारिठावणियागारेणं, मदत्तरागारेणं, सवसमादिवत्तियागारेणं ॥ पाणस्स लेवेण वा, प्रलेवेणवा, अत्रेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्थेण वा, प्रसित्थेण वा, वोसिरइ || जो एकासणानुं पञ्चरकाण करवुं दोय तो, वियासांने ठेकाणे एकासनो पाठ केदेवो ॥ इति वियासणा एकासानुं पच्चरकाण समाप्त ॥ ५६ ॥ ॥ चोथं आयंबिलनुं पञ्चका ॥ ॥ उग्गए सूरे, नमुक्कारसदियं, पोरिसिं, साढपोरिसिं, मुठिस दियं पच्चकाइ ॥ उग्गए सूरे चनन्विदपि प्रहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणानोगेणं, Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०४) सहसागारेणं, पबन्नकालेणं, दिसामोदेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सबसमादिवत्तियागारेणं ॥ आयंबिलं पञ्चरका ॥ अन्नत्थणानोगेणं, सदसागारेणं, लेवालेवेणं, गिदत्यसंसहेणं, नस्कित्तविवेगेणं,पारिहावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमादिवत्तियागारेणं ॥ एगासणं पञ्चम्काइ तिविपि आदारं, असणं, खाश्मं, साइमं अन्नत्थणानोगेणं, सहसागारेणं, सागारिआगारेणं,आउंटणपसारेणं, गुरुअब्नुहाणेणं, पारिहावणियागारेणं, मदत्तरागारेणं, सवसमादिवत्तियागारेणं ॥ पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा अन्वेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्थेण वा, असित्येण वा वोसिर ॥ इति आयंबिल, पञ्चकाण ॥ ५॥ ॥ पांचमुं तिविहारउपवासवें ॥ ॥ सूरेनग्गए, अब्नत्त पञ्चरका Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) तिविपि दारं, असणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणानोगेणं, सहसागारेणं, पारिहावणियागारेणं, मदत्तरागारेणं, सबसमादिवत्तियागारेणं ॥ पाणदार पोरिसिं, साढपोरिसिं, मुहिसदिअं, पच्चकाइ अन्नत्थणानोगेणं, सदसागारेणं, पन्नकालेणं, दिसामोदेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं सबसमादिवत्तियागारेणं ॥ पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अजेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्थेण वा असित्येण वा वोसिर॥ इति तिविदार नपवासनु पच्चरकाण॥५॥ ॥बहुं चनविहार उपवासद् ॥ ॥ सूरे नग्गए अन्नत्त पञ्चकाइ चविपि आदारं, असणं, पाणं, खाइम, साइमं, अन्नत्थणानोगेणं, सदसागारेणं, पारिछावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, स Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०६ ) बसमाहिवत्तियागारेणं वो सिरइ ॥ इति चडविहार उपवासनुं ॥ ५ ॥ ॥ अथ सांकनां पच्चरकाण ॥ || तिहां प्रथम बीयासणं, एकासणं, प्रायं बिल, तिविहार उपवास ने बह जो करे तो तेथे पाणहारनुं पञ्चरकाण कखुं ते यावी रीते !! पाणदार दिवसचरिमं पच्चकाइ ॥ अन्नत्यणानोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमादिवत्तियागारेणं वोसिरइ ॥ इति ॥ ६० ॥ 5 || बीजुं चविहारनुं पञ्चकाण ॥ || दिवसचरिमं पच्चकाइ च विदंपि आदारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं ॥ अन्नत्यणानोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सवसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ ॥ इति ॥ ६१ ॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७) ॥त्रीजुं तिविदारनुं पच्चरकाण ॥ ॥दिवस चरिमं पञ्चरका॥ तिविहंपि आदारं, असणं, खाश्मं, साश्मं, अन्नत्थणानोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिर ॥ इति तिविहार,॥६॥ ॥ चोथु उविहार- पञ्चरकाण ॥ दिवस चरिमं पञ्चकाइ विपि आदारं, असणं, खाश्मं, अन्नत्यणानोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमादिवत्तियागारेणं, वोसिर ॥ इति ॥ ६३ ॥ ॥पांचमुंजे नियम धारे तेने देशावगासियनुं पञ्चरकाण करवू तेनो पाठ ॥ ॥ देसावगासिअंजवनोगं परिनोगं पचकाइ अन्नत्थणानोगेणं, सदसागारेणं, मदत्तरागारेणं, सबसमादिवत्तियागारेणं, वोसिर ॥ इति ॥६४ ॥ -UMORE HTTA Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ॥हुं पोसहनुं पच्चरकाण ॥ ॥ करेमि नंते ! पोसहं, आहारपोसहं देस सबउ, सरीरसकारपोसहं सवर्ड, बनचेरपोसहं सवर्ड, अब्बावारपोसहं सवर्ड, चनविदे पोसदे गमि ॥ जाव दिवसं अदोरत्तं पज्जुवासामि ॥ विहं तिविदेणं ॥ मणेणं, वायाए, कारणं, न करेमि, न कारवेमि, तस्स नंते! पडिकमामि, निंदामि, गरिदामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥६५॥ ॥इति पञ्चरकाणानि संपूर्णानि ॥ ॥ अथ पोसह पारतां गाथा॥ ॥ सागरचंदो कामो, चंदवडिसो सुदंसणो धन्नो॥ जेसिं पोसहपडिमा, अखंडिआ जीवितेवि ॥१॥धन्ना सलादणिजा, सुलसा आणंद कामदेवा य॥जास पसंसइ नयवं, दढवयत्तं महावीरो ॥२॥ पोसद विधे लीधो, विधे पार्यो, विधि क Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) रतां जे को अविधि हुई होय ते सवि हुं मनवचनकायाए करी मिबामि उकडं। इति ॥६६॥ ६७ ॥ अथ संथारा पोरिसी ॥ ॥निसिही निसिही निसिही ॥ नमो खमासमणाणं, गोयमाईणं, महामुणीणं. ए पाठ तथा नवकार तथा करेमिन्नंते सामाश्अंग ॥ एटला सर्वपाठ त्रणवार कहीने ॥ अणुजाणद जिठिा अणुजाणद परमगुरु, गुरुगुणरयणेदि मंडियसरीरा॥ बहुपडिपुण्णा पोरिसि, राश्यसंथारए गमि ॥१॥ अणुजाणद संथारं, बाहुवहाणेण वामपासेणं । कुक्कुडिपायपसारण, अतरंत पमजए नूमिं ॥ २॥ संकोश्य संडासा, उबढते अ कायपडिलेदा ॥ दवाइ उवांगं, ऊसासनिरंनणालोए ॥३॥ जश् मे हुआ पमा, श्मस्स देहस्सिमा ___ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) रयणीए ॥ आदारमुवहिदेहं, सचं तिविदेण वोसिरिअं ॥४॥ चत्तारि मंगलंअरिहंता मंगलं, सिहा मंगलं, साढू मंगलं, केवलिपन्नत्तो धम्मो मंगलं ॥५॥ चत्तारि लोगुत्तमा-अरिहंता लोगुत्तमा, सिहा लोगुत्तमा, साढू लोगुत्तमा, केवलिपन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो॥६॥चत्तारि सरणं पवजामि-अरिहंते सरणं पवझामि, सिझे सरणं पवजामि, साहु सरणं पवजामि, केवलिपन्नत्तं धम्म सरणं पवजामि ॥ ॥ पाणाईवायमलिअं, चोरिकं मेहुणं दविणमुबं । कोहं माणं मायं, लोनं पिऊ तदा दोसं ॥ ॥ कलहं अउनकाणं, पेसुन्नं रश्अरइ समानत्तं ॥ पररिवायं माया, मोसं मिलत्तसल्लं च ॥ ए॥ वोसिरिसु इमाई, मुस्कमग्गसंसग्गविग्धनूआई॥ जुग्गनिबंधणाई, अहारस पा NOW Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९१) वठाणाई॥१०॥ एगोऽहं नत्यि मे कोई, नादमन्नरस कस्सई॥ एवं अदीणमणसो, अप्पाणमणुसासई॥१२॥ एगो मे सास अप्पा, नाणदंसणसंजुङ । सेसा मे बादिरा नावा, सत्वे संजोगलकणा ॥२॥ संजोगमूला जीवेण, पत्ता पुरस्कपरंपरा ॥ तम्दा संजोगसंबंधं, सचं तिविदेण वोसिरिअं॥ १३ ॥ अरिहंतो मह देवो, जावजीवं सुसाहुणो गुरुणो॥ जिणपन्नत्तं तत्तं, इअ सम्मत्तं मए गहिरं ॥ १४ ॥ खमित्र खमावि मइ खमह, सबद जी. वनिकाय ॥ सिह साख आलोयणह, मुज्छद वर न नाव ॥१५॥सवे जीवा कम्मवस, चनदह राज नमंत॥ ते मे सब खमाविया, मुज्जवितेह खमंत ॥ १६॥ जं जं मणेण बई, जंजं वारण नासिअं १ खमित्र. Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N ( ११२) पावं ॥ जं जं कारण कयं, मिनामि उकडं तस्स ॥ १७॥ इति संथारा पोरिसि॥६॥ ॥अथ चैत्यवंदननो समुदाय ॥ ॥ तत्र प्रथम सीमंधरजिन चैत्यवंदन ॥ ॥ सीमंधर परमातमा, शिवसुखना दाता ॥ पुरस्कलव विजये जयो, सर्व जीबना त्राता॥१॥ पूर्व विदेह पुंडरीगिणी, नयरीए सोदे ॥ श्रीश्रेयांस राजा तिहां, नविपणनां मन मोहे ॥ ३ ॥चनद सुपन निर्मल लदी, सत्यकी राणी मात ॥ कुंथुअरजिन अंतरे, श्रीसीमंधर जात ॥३॥ अनुक्रमे प्रजु जनमीया, वली यौवन पावे ॥ मातपिता दरखे करी, रुकमिणी परणावे ॥४॥नोगवी सुख संसारना, संजम मन लावे ॥ मुनिसुव्रत नमि अंतरे, दीदा प्रनु पावे ॥ ५ ॥ घाती Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११३ ) कर्मनो दय करी, पाम्या केवलनाण || ऋषन लंबने शोजता, सर्व जावना जाण ॥ ६ ॥ चोरासी जस गणधरा, मुनिवर एकसो कोड ॥ त्रण जुवनमां जो प्रतां, नदि कोइ एदनी जोड ॥ ७ ॥ दश लाख कह्या केवली, प्रभुजीनो परिवार ॥ एकसमय त्रण कालना, जाणे सर्व विचार ॥ ८ ॥ उदय पेढाल जिनांतरेए, याशे जिनवर सिद्ध || जसविजय गुरु प्रणमतां, शुभ वंबित फल लीध ॥ ए ॥ इति ॥६८ अथ सीमंधर जिन द्वितीय चैत्यवंदन ॥ श्री सीमंधर जगधणी, या जरते वो ॥ करुणावंत करुणाकरी, मने वंदावो ॥२॥ सकल नक्त तुमे धणीए, जो दोवे अम नाथ ॥ नवोजव हुं हुं ताहरो, नहीं मेलुं दवे साथ ॥ २ ॥ सयल संग बंडी करीए, चारित्र लेइशुं ॥ पाय तमारा सेवीने, शिव Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११४) रमणी वरिशुं ॥ ३ ॥ ए अखजो मुजने घणो ए, पूरो सीमंधर देव ॥ इहां थकी हुं वीनवू, अवधारो मुझ सेव ॥ ४॥६ए अथ श्रीसिहाचलजीनुं त्रीजु चैत्यवंदन ॥ विमलकेवलझानकमला, कलित त्रिजुवन हितकरं ॥ सुरराजसंस्तुतचरणपंकज, नमो आदिजिनेश्वरं ॥ १॥ विमलगिरिवरशंगमंडण, प्रवरगुणगणनधरं ॥ सुरअसुर किन्नर कोडि सेवित ॥ नमो० ॥२॥ करती नाटक किन्नरी गण, गाय जिन गुण मनहरं॥ निर्जरावली नमे अदनिश॥ नमो० ॥ ३ ॥ पुंडरीक गणपति सिद्धि साधी, कोडि पण मुनि मनहरं ॥श्री विमल गिरिवर शृंग सिहा ॥ नमो० ॥४॥ निज साध्य साधन सुर मुनिवर, कोडिनंत ए गिरिवरं ॥ मुक्ति रमणीवर्या रंगे॥ नमो० ॥ ५ ॥ पातालनरसुरलोक मांही, Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११५ ) विमल गिरिवरतो परं ॥ नदि अधिक तीरथ तीर्थपति कदे || नमो० ॥ ६ ॥ इम विमल गिरिवर शिखर मंडण, दुःख विदंडण ध्याईये ॥ निजशुद्ध सत्ता साधनार्थं, परम ज्योति निपाइये ॥ ७ ॥ जित मोद कोद विबोद निश, परमपद स्थित जयकरं ॥ गिरिराज सेवाकरण तत्पर, पद्मविजय सुदितकरं ॥ ८ ॥ इति ॥ ७० ॥ ॥ चप्रथ सिद्धाचलनुं चोथुं चैत्यवंदन ॥ ॥ श्री शत्रुंजय सिहत्र दीवे दुर्गति वारे || नाव धरीने जे चढे, तेने नवपार उतारे ॥ १ ॥ अनंत सिनो एद ठाम, सकल तीरथनो राय ॥ पूर्व नवाणु रिखवदेव, ज्यां वविच्या प्रभुपाय ॥ २ ॥ सूरजकुंड सोदामणो, कवडजक अनिराम ॥ नानिराया कुलमंडलो, जिनवर करूं प्रणाम ॥ ३ ॥ इति चतुर्थ चैत्य० ॥ ७१ ॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९६) ॥अथ श्री परमात्मानुं पांचमुं चैत्यवंदन ॥ परमेसर परमातमा, पावन परमिह॥ जय जगगुरु देवाधिदेव, नयणे में दिक ॥१॥ अचल अकल अविकारसार, करुपारस सिंधु ॥ जगती जन आधार एक, निःकारण बंधु ॥३॥गुण अनंत प्रजु तादरा, किमदी कह्या न जाय ॥राम प्रनु जिनध्यानथी, चिदानंद सुख थाय ॥३॥ इति ॥ २॥ ॥ अथ स्तवनानि प्रारच्यन्ते ॥ ॥ तत्र प्रथमं सीमंधरजिनस्तवनं ॥ सुणो चंदाजी, सीमंधर परमातम पासे जाज्यो ॥ मुज वीनतडी, प्रेम धरीने एणिपरे तुमे संनलावजो ॥ ए आंकणी॥ जेत्रण नुवननो नायक डे, जस चोसठ इंड पायक ॥ नाण दरिसण जेदने खा - Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९७) यक , सुणो ॥१॥ जस कंचनवरणी काया , जस धोरी लंबन पाया ॥ पुंडरीगिणि नगरीनो राया, सुणो॥॥ बार पर्षदा मांदि बिराजे , जस चोत्रीश अतिशय गजे ॥गुण पांत्रीश वाणीए गाजे , सुणो० ॥ ३ ॥ नविजनने जे पडिबोदे बे, जस अधिक शितल गुण सोदे वे ॥ रूप देखी नविजन मोदे ले सुणो० ॥४॥ तुम सेवा करवा रसी बु, पण जरतमां दूरे वसी बुं ॥ मदामोदराय कर फसी बु, सुणो० ॥ ५ ॥ पण सादिब चित्तमां धरीयो बे, तुम आणा खड्ग कर ग्रहीयो ने ॥ते कांइक मुजयी डरीयो , सुणो० ॥६॥ जिन उत्तम पुंठ दवे पूरो, कदे पद्म विजय था शूरो ॥ तो वाधे मुज मन अति नूरो, सुणो॥3॥ ॥इति सीमंधरजिनस्तवनं ॥७३॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) ॥अथ द्वितीयं श्री सुबाहुजिनस्तवनं ॥ ॥ चतुरसनेही मोदना ॥ ए देशी॥ ॥ स्वामी सुबाहु सुहंकरु, जूनंदा नंदन प्यारो रे ॥ निसढ नरेसर कुलतिलो, किंपुरुषानो भरतारो रे॥स्वामी ॥१॥कपिलंबन नलिनावती, विप्र विजय अजोध्या नादो रे ॥रंगे मलिये तेदश्यु, एद मणुय जनमनो लादो रे॥ स्वा० ॥॥ते दिन सवि एले गया, जिहां प्रज्जुशुं गोठ न बांधीरे ॥ नक्ति दूतीकाए मन दर्यु, पण वात कदी आधी रे॥ स्वा०॥३॥अनुनव मित्र जो मोकलो, तो ते सघली वात जणावे रे ॥पण तेद विण मुऊ नवि सरे, कहो तो पुत्र विचार ते आवेरे॥स्वा० ॥४॥ तेणे जश्वात सर्व कही, प्रजु मव्या ते ध्यानने टाणेरे ॥ श्री नयविजय विबुध तणो, श्म सेवक सुजस वखाणे रे॥ स्वा०॥५॥इति सुबाहु स्तवन ॥ ४ ॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११ ) ॥ तृतीयं श्रीदेवजसाजिनस्तवनं ॥ ॥ महाविदेद देत्र सोदामj॥ए देशी॥ ॥ देवजसा दरिसण करो, विघटे मोह विनाव लाल रे॥प्रगटे शुभस्वन्नावता, आनंद लदरी दाव लालरे ॥ देव० ॥१॥ स्वामी वसो पुखरवरे, जंबू मरते दास लाल रे॥ क्षेत्र विनेद घणो पड्यो, केम पहोंचे उल्लास लालरे ॥ देव०॥॥ दोवत जो तनु पांखडी, तो आवत नाथ दजूर लालरे॥जो दोबत चित्त आंखडी, देखत नित्य प्रनु नूर लालरे॥ देव ॥३॥शासन नक्त जे सुरवरा, वीनवु शीश नमाय लालरे ॥ कृपा करो मुझ नपरे, तो जिनवंदन थाय लालरे ॥ देव०॥४॥ पूर्बु पूर्व विराधना, शी कीधी एणे जीव लालरे॥ अविरति मोद टली नदि, दीठे आगम दीव लाखरे ॥ देव ॥५॥ आतमतत्त्व Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२०) स्वनावने, बोधन शोधन काज लालरे॥ रत्नत्रयी प्राप्तितणो, देतु कहो महाराज लालरे॥ देव०॥६॥ तुज सरिखो साहिब मले, नांजे नवन्त्रम टेव लालरे ॥पुष्टालंबन प्रनु लदी, कोण करे पर सेव लालरे॥ देव०॥७॥ दीनदयाल कृपाल तुं, नाथ नविक आधार लालरे ॥ देवचं जिन सेवना, परमामृत सुखकार लाल रे॥देव० ॥ ॥ इति ॥ ५॥ ॥अथ चोथु वीश विदरमान- स्तवन ॥ राग रामकली सीमंधर युगमंधर बाहु, चोथा स्वामी सुबाहु ॥ जंबुढीप विदेदे विचरे, केवल कमला नाहुरे॥१॥नविका विदरमानजिन वंदो ॥ आतम पाप निकंदोरे॥ ज०॥ए आंकणी ॥ सुजात स्वयंप्रन ऋषनानन, अनंतवीरज चित्त धरीये ॥ ___ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) सुरप्रन श्रीविशाल वजंधर, चंजनन धातकी एरे॥ नविण ॥२॥ चंबाहु जुजंग ने ईश्वर, नेमिनाथ वीरसेन ॥ देवजस चंजसा जितवीरिय, पुस्करबीप प्रसन्न रे॥०॥३॥ आठमी नवमी चोवीश पचवीशमी, विदेह विजय जयवंता ॥ दश लाख केवली सो कोड साधु, परिवारे गदगदंतारे ॥ न ॥४॥धनुष पांचशे उंची सोदे, सोवनवरणी काया ॥ दोष रहित सुर मदि महीतल, विचरे पावन पायारे॥ न ॥ ५ ॥ चोराशी लाख पूरव जिन जीवित, चोत्रीश अतिशयधारी॥ समवसरण बेग परमेश्वर, पडिबोदे नरनारी रे॥ ज० ॥६॥ खिमाविजय जिन करुणासागर, आप तां पर तारे ॥ धर्मनायक शिवमारगदायक, जन्म जरा जुःख वारेरे न० ॥७॥६॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) ॥अथ श्रीसिझाचलजीतुं स्तवन । ॥आंखडीयेरे में आज, शत्रुजय दीठगेरे ॥ सवा लाख टकानो दहाडोरे, लागे मुने मीगरे॥ ए आंकणी॥ सफल थयो मारा मननो उमादो ॥ वाला मारा ॥ जवनो संशय नांग्योरे॥ नरक तिर्यंच गति दूर निवारी, चरणे प्रजुजीने लाग्योरे ॥ शत्रु ॥१॥मानव नवनो लादो लीधो॥वा॥ देड्डी पावन कीधीरे ॥ सोना रुपाने फूखडे वधावी,प्रेमे प्रदक्षिणा दीधीरे॥शन ॥२॥ उधडे पखाली ने केसर घोली ॥ वा ॥श्री आदीश्वर पूज्यारे॥ श्री सिहाचल नयणे जोतां, पाप मेवासी धूज्यारे शत्रु ॥ ३ ॥ स्वयंमुख सुधर्मासुरपति आगे॥ वा ॥ वीरजिणंद श्म बोलेरे ॥ त्रण जुवनमा तीरथ मोटुं, नहिं को शे१ श्रीमुख. Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५३) Qजा तोलेरे॥शत्रु॥४॥ इं सरिखा ए तीरथनी॥वा ॥ चाकरी चित्तमां चादेरे ॥ कायानी तो कासल टाले, सूरज कुंडमां नादेरे ॥ शत्रु ॥५॥ कांकरे कांकरे श्रीसिदेत्रे॥वा॥साधु अनंता सीध्यारे॥ तेमाटेए तीरथमोटुं, नहार अनंता कीधारे ॥श ॥६॥ नानिराया सुत नयणे जोतां ॥वाणा मेद अमीरस वुठ्यारे॥उदयरतन कदे आज मारे पोते, श्रीआदीश्वर त्रुट्यारे ॥ शत्रु०॥ ॥ इति स्तवनं ॥ ७॥ ॥अथ षष्ठं श्रीसिहाचलस्तवनं ॥ ॥जसोदा मावडी ॥ ए देशी ॥ ॥ जात्रा नवाणु करीए विमलगिरि ॥ जात्रा नवाणु करीए ॥ ए आंकणी ॥ पूरव नवाणु वार शेजागिरि,रिखनजिणंद समोससरीए ॥ वि० ॥१॥ कोडि सदस १ कासर. Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ ( १२४ ) जव पातक त्रुटे || शेत्रुंजा सादामो डग जरीये ॥ वि० ॥ २ ॥ सात ब दोय - हम तपस्या, करी चढीये गिरिवरीये वि० ॥ ३ ॥ पुंडरीक पद जपीये दरखे, अध्यवसाय शुभ धरीये ॥ वि० ॥ ४ ॥ पापी नविन नजरे देखे, हिंसक पण क६रीये ॥ वि० ॥ ५ ॥ जुइ संथारो ने नारी तो संग, दूरथक परिदरीये ॥ वि०॥६॥ सचित्त परिदारी ने एकलयदारी, गुरु साथै पदचरीये ॥ वि० ॥ ७ ॥ पडिक्कमणा दोय विधिशुं करीये, पापपडल विखरीये ॥ वि० ॥ ८ ॥ कलिकाले ए तीरथ मोहोड, प्रवण जिम नर दरीये ॥ वि० ॥ एए ॥ उत्तम ए गिरिवर सेवंतां, पद्म कदे नव तरीये ॥ विमल० ॥ १० ॥ इति ॥ ७८ ॥ ॥ अथ सप्तमं श्रीसिदाचलस्तवनं ॥ ॥ चालो चालोने राज, श्रीसिदाचल Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२५) गिरिये ॥ ए आंकणी ॥ श्रीविमलाचलतीरथ फरसी, आतम पावन करीये ॥ चालो० ॥ १ ॥ण गिरिजपर मुनिवर कोडी, आतम तत्व निपायो ॥ पूर्णानंद सहज अनुनवरस, मदानंद पद पायो चालो० ॥२॥ पुंडरिक पमुदा मुनिवर कोडि, सकल विन्नाव गमायो । नेदानेद तत्त्व परिणतिथी, ध्यान अनेद नपायो । चालो० ॥ ३ ॥ जिनवर गणधर मुनिवर कोडी, ए तीरथ रंग राता ॥ शुभ शक्ति व्यक्ते गुण सिदि, त्रिभुवन जनना त्राता चालो० ॥४॥ए गिरि फरसे नव्य परीदा, उर्गतिनो दोये बेद ॥ सम्यक् दरिसण निर्मल कारण, निज आनंद अनेद ॥ चालो० ॥ ५॥ संवत अढार चम्मोतरा वरसे, शुदि मागशिर तेरशीये ।। श्रीसूरतथी नक्ति दरखथी, संघ सहित Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) उल्लसीये ॥ चालो० ॥६॥ कचरा कीका जिनवर नक्ति, रूपचंजी इं॥श्री श्रीसंघने प्रनु नेटाव्या, जगपति प्रथम जिणंद ॥ चालो० ॥ ७ ॥ ज्ञानानंदी त्रिनुवनवंदित, परमेश्वर गुण नीना ॥ देवचं पद पामे अनुत, परम मंगल लयलीना॥ चालो० ॥ ७ ॥ इति ॥ ७॥ ॥अथ अष्टमं श्रीसिहाचलस्तवनं ॥ ॥विमलाचल नितु वंदीये, कीजे एदनी सेवा ॥ मानुं हाथ ए धर्मनो, शिवतरु फल लेवा ॥ वि०॥१॥ उज्वल जिनगृह मंडली, तिहां दीपे उत्तंगा ॥मानुं हिमगिरि विज्रमे, आइअंबरगंगा॥वि॥ ॥ ॥ कोइ अनेसं जग नहीं, ए तीरथ तोले ॥ एम श्रीमुख हरिआगले, श्रीसीमधर बोले ॥ वि० ॥ ३ ॥ जे सघलां तीरथ कया, जात्रा फल लदीये ॥ तेहथी ए ___ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) गिरि नेटतां, शतगणुं फल कदीये ॥ वि० ॥४॥ जनम सफल दोय तेदनो, जे ए गिरि वंदे ॥ सुजस विजय संपद लदे, ते नर चिर नंदे ॥ वि० ॥ ५॥इति ॥ ॥ अथ श्रीतीर्थमालास्तवनं ॥ ॥शजय ऋषन समोसर्या, नला गुण नर्यारे॥ सिद्ध्या साधु अनंत, तीरथ ते नमुंरे ॥ तीन कल्याणक तिहां थयां, मुगते गयारे॥ नेमीसर गिरनार ॥ ती ॥१॥ अष्टापद एक देहरो, गिरि सेहरोरे॥नरते नराव्यां बिंब ॥ ती० ॥ आबु चौमुख अति नलो, त्रिभुवन तिलोरे ॥ विमल वसइ वस्तुपाल ॥ती ॥२॥ समेत शिखर सोहामणो, रलीयामणोरे॥ सिध्या तीर्थकर वीश ॥ ती० ॥ नयरी चंपा निरखीये, हैये दरखीये रे ॥ सिध्या श्रीवासु. Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) पूज्य ॥ ती० ॥ ३ ॥ पूर्व दिशे पावापुरी, ऋदे जरीरे॥ मुक्ति गया महावीर॥ती॥ जेशलमेर जूढारीये, मुःख वारीयेरे ॥ अरिहंत बिंब अनेक ॥ती॥ ४॥ विकानेरज वंदीये, चिर नंदीयेरे ॥ अरिहंत देहरां आठ ॥ती० ॥ सोरिसरो संखेश्वरो, पंचासरोरे॥ फलोधी थंनण पास ॥ ती ॥५॥ अंतरिक अंजारवो, अमीरोरे॥ जीरावलो जगनाथ ॥ ती ॥ त्रैलोक्यदीपक देदरो, जात्रा करोरे ॥राणपुरे रिसदेस ॥ ती० ॥ ६॥ श्री नाडुलाइ जादवो, गोडिस्तवोरे ॥ श्रीवरकाणो पास ॥ ती०॥ नंदीश्वरनां देहरां, बावन नलां रे॥ रुचक कुंडले चार चार॥ती॥७॥शाश्वती अशाश्वती, प्रतिमा तीरे ॥ स्वर्ग मृत्युपा ताल॥ती॥तीरथ जात्रा फल तिदां,दोजो मुज इदारे॥समयसुंदर कहे एम॥ती॥G Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) ॥ अथ श्रीमदावीरजिनछंद ॥ ॥सेवो वीरने चित्तमा नित्य धारो, अरिक्रोधने मन्नथी दूर वारो ॥ संतोषत्ति धरो चित्तमांदि, राग द्वेषथी दूर था उबादिं॥१॥ पड्या मोदना पासमां जेद प्राणी, शुभ तत्त्वनी वात तेणे न जाणी॥ मनुष जन्म पामी तथा कां गमो गे, जैन मार्ग बंडी जुला कां नमोगे ॥२॥ अलोनी अमानी निरागी तजो गे, सलोनी समानी सरागी नजोगे ॥ दरिदरादि अ. न्यथी शुं रमो गे, नदी गंग मूकी गळीमां पडो गे ॥३॥ केश देव दाथे असि चक्रधारा, केइ देव घाले गळे रंड माला ॥ के देव उत्संगे राखे वामा, के देव साथे रमे उंदरामा ॥४॥ केश देव जपे खेश जपमाला, केश मांसनदी महा वीक Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३०) राला ॥ केश योगिणी जोगिणी नोगरागे, के रुजणी गगनो दोम मागे॥५॥ श्स्या देव देवी तणी आश राखे, तदा मुक्तिना सुखने केम चाखे ॥ जदा लोलना थोकनों पार नाव्यो, तदा मधनो बिंउ मन्न नाव्यो॥६॥ जेद देवलां आपणी आशराखे, जेद पिंडने मनशुं लेअ चाखे ॥ दीन दीननी नीड ते केम नांजे, फुटो ढोल दोए कदो केम वाजे ॥ ७ ॥ अरे मूढ जातो नजो मोददाता, अलोनी प्रनुने नजो विश्वख्याता ॥ रत्न चिंतामणि सारिखो एह साचो, कलंकी काचना पिंडणुंमत राचो ॥ ॥ मंद बुद्धि जेद प्राणी कदे , सवि धर्म एकत्व नूलो नमे ॥ कीदां सर्षवा ने कीदां मेरु धीरं, कीदां कायरा ने कीदां शूरवीर॥॥ कीदां स्वर्णथावं कीदां कुंजखंडं, कीद Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३१) कोजवा ने कीदां खीरमंडं ॥ कीदां खीरसिंधु कीहां दारनीरं, कीदां कामधेनु कीदां गगखीरं ॥ १०॥ कीहां सत्यवाचा कीदां कूडवाणी, कीदां रंकनारी कीदां रायराणी॥ कीहां नारकी ने कीदा देव नोगी, कीदां इंदेदी कीदां कुष्ठरोगी ॥ ११ ॥ कीदां कर्मघाती कीदां कर्मधारी, नमो वीर स्वामी नजो अन्य वारी ॥ जिसी सेजमां स्वप्नथी राज्य पामी, राचे मंदबुद्धि धरी जेद स्वामी ॥ १२ ॥ अथिर सुख संसारमां मन माचे, ते जना मूढमां श्रेष्ठ शुं इष्ट गजे ॥ तजो मोद माया दरो दंनरोशी, सजो पुण्य पोशी नजो ते अरोशी ॥१३॥गति चार संसार अपार पामी, आव्या आश धारी प्रजु पाय स्वामी॥ तुदीं तुहीं तुहीं प्रन्नु पर्मरागी, नवफेरनी शंखला मोद नाग। ॥ २४ ॥ मानीय वी ९॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) रजी अर्ज ने एक मोरी, दीजे दासकुं सेवना चरण तोरी॥ पुण्य उदय हु गुरु आज मेरो, विवेके लह्यो में प्रन्नु दर्श तेरो ॥२५॥ इति ॥ २॥ ॥अथ श्रीगौतमाष्टकबंद ॥ ॥वीर जिणेसर केरो शिष्य, गौतम नाम जपो निशदीश ॥ जो कीजे गौतमनुं ध्यान, तो घर विलसे नवे निधान ॥५॥ गौतम नामे गिरिवर चढे, मनवांबित देला संपजे ॥गौतम नामे नावे रोग, गौतम नामे सर्व संजोग ॥॥ जे वैरी विरूआ वंकमा, तस नामे नावे ढुंकडा ॥नूत प्रेत नवि मंडे प्राण, ते गौतमनां करुं वखाण ॥३॥ गौतम नामे निर्मल काय, गौतम नामे वाधे आय ॥ गौतम जिनशासन शणगार, गौतम नामे जयजयकार ॥४॥ शाल दाल सुरहा घृत गोल, मनवंग्ति Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३३) कापड तंबोल ॥ घर सुघरणी निर्मल चित्त, गौतम नामे पुत्र विनीत ॥५॥ गौतम जदयो अविचल नाण, गौतम नाम जपो जग जाण ॥ मोहोटां मंदिर मेरुसमान, गौतम नामे सफल विदाण ॥ ६ ॥ घर मयगल घोडानी जोड, वारु पोहोंचे वंनित कोड ॥ महीयल माने मोहोटा राय, जो तवे गौतमना पाय ॥ ॥ गौतम प्रणम्यां पातक टले, उत्तम नरनी संगत मले।गौतम नामे निर्मल झान, गौतम नामे वाधे वान ॥ ७॥ पुण्यवंत अवधारो सहु, गुरु गौतमना गुण ने बहु ॥ कहे लावण्यसमय करजोड, गौतम तूठे संपत्ति कोड ॥ए॥ इति ॥७३॥ ॥ अथ पंचतीर्थी चैत्यवंदन ॥ ॥ आज देव अरिहंत नमुं, समरूं तारूं नाम ॥ ज्यांज्यांप्रतिमा जिनतणी,त्यां त्यां ___ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३४) कलं प्रणाम ॥ शत्रुजय श्रीआदिदेव, तेम नमुं गिरनार ॥ तारंगे श्रीअजितनाथ, आबु शषन जुदार ॥२॥ अष्टापदगिरि ऊपरे, जिन चोवीशे जोय ॥ मणिमय मूरति मानशुं, जरते नरावी सोय ॥ ३ ॥ समेतशिखर तीरथ वडं, ज्यां वीशे जिन पाय ॥ वैनारगिरिवर ऊपरे, श्रीवीरजिनेश्वरराय ॥४॥ मांडवगढनो राजीयो, नामे देव सुपास ॥ शषन कहे जिन समरतां, पोहोंचे मननी आश ॥५॥इति॥ ॥ अथ पञ्चमीनी थुइ लिख्यते ॥ पञ्चानन्तकसुप्रपञ्चपरमानन्दप्रदानदाम, पञ्चानुत्तरसीमदिव्यपदवीवश्याय मन्त्रोपमम् । येन प्रोज्वलपञ्चमीवरतपो व्यादारि तत्कारणं, श्रीपञ्चाननलाञ्छनः स तनुतां श्रीवईमानः श्रियम् ॥१॥ये पञ्चाश्रवरोधसाधनपराः पञ्चप्रमादादराः, पञ्चाणुव्रत Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३५ ) पञ्चसुव्रत विधिप्रज्ञापनासादराः । कृत्वा पञ्चषीक नियमथो प्राप्ता गतिं पञ्चमीं, तेऽमी संयमपञ्चमीव्रतभृतां तीर्थङ्कराः श ङ्कराः ॥ २ ॥ पञ्चाचारधुरीणपञ्चमगणाधीशेन संसूत्रितं, पञ्चज्ञान विचारसारकलितं पञ्चेषुपञ्चत्वदम् । दीपानं गुरुपञ्चमार तिमिरे एकादशी रोहिणी - पञ्चम्यादिकुलप्रकाशनपटुं ध्यायामि जैनागमम् ॥ ३ ॥ पञ्चानां परमेष्ठिनां स्थिरतया श्रीपञ्चमेरुश्रियं, भक्तानां जविनां गृदेषु बहुशो या पञ्चदिव्यं व्यधात् । प्रवे पञ्च जगन्मनोमतिकृतौ स्वारत्नपाञ्चालिका, पञ्चम्यादितपोवतां जवतु सा सिहायिका त्रायिका ॥ ४ ॥ इति ॥ ८५ ॥ ॥ अथ एकादशी स्तुतिर्लिख्यते ॥ श्रीमाने मिर्वाषे जलशयसविधे स्फू - र्तिमेकादशीयां, माद्यन्मोदावनीन्द्रप्रशमन A Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३६) विशिखः पञ्चबाणाचिरणः । मिथ्यात्वध्वान्तवान्तौ रविकरनिकरस्तीव्रलोनाश्विबं, श्रेयस्तत्पर्व वस्ताबिवसुखमिति वा सुव्रतश्रेष्टिनोऽनूत् ॥ १ ॥ इन्औरत्रमनिमुनिपगुणरसास्वादनानन्दपूर्ण-दिव्यनिस्फारदारैर्ललितवरवपुर्यष्टिनिस्स्वर्वधूनिः । साई कल्याणकौघो जिनपतिनवतेविन्मुन्नतेन्जुसंख्यो, घस्रे यस्मिन् जगे तद् भवतु सुन्नविनां पर्व सबर्मदेतुः ॥॥ सिधान्ताब्धिप्रवादः कुमतजनपदान् प्लावयन् यः प्रत्तः, सिदिक्षीपं नयन् धीधनमुनिवणिजः सत्यपात्रप्रतिष्ठान्। एकादश्यादिपर्वेन्जमणिमतिदिशन्धीवराणां मदाऱ्या, सन्यायाम्नश्च नित्यं प्रवितरतु स नः स्वप्रतीरे निवासम् ॥३॥ तत्पर्योद्यापनार्थ समुदितमुधियां शम्नुसंख्याप्रमेया-मुत्कृष्टां वस्तुवीथीमनयदसदने प्रा ___ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३७) नृतीकुर्वतां ताम् । तेषां सव्यापादैः प्रलपितमतिनिः प्रेतनूतादिनिर्वा, उष्टजन्यं त्वजन्यं हरतु दरितनन्यस्तपादाम्बिकाख्या ॥४॥६६॥ ॥ अथ पंचतीर्थ थोयो ॥श्लोक॥श्रीशत्रुञ्जयमुख्यतीर्थतिलकं श्री नानिराजाङ्गजं, वन्दे रैवतशैलमौलिमुकुटं श्रीनेमिनाथं तथा । तारङ्गेऽप्यजितं जिनं नृगुपुरे श्रीसुव्रतं स्तम्लने,श्रीपाचं प्रणमामि सत्यनगरे श्रीवईमानं त्रिधा ॥२॥ वन्देऽनुत्तरकल्पतल्पनुवने ग्रैवेयकव्यन्तर-ज्योतिप्कामरमन्दराश्विसतीस्तीर्थङ्करानादात् । जम्बूपुष्करधातकीषु रुचके नन्दीश्वरे कुण्डले,ये चान्येऽपि जिना नमामि सततं तान् कृत्रिमाकृत्रिमान् ॥२॥ श्रीमहीरजिनास्यपद्मह्रदतो निर्गम्य तं गौतम, गङ्गावर्तनमेत्य या प्रबिनिदे मिथ्या Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) त्ववैताढ्यकम् । उत्पत्तिस्थितिसंहतित्रिपथगा ज्ञानाम्बुधारझिगा, सा मे कर्ममलं दरत्वविकलं श्रीद्वादशाङ्गी नदी ॥३॥ शकश्चन्धविग्रदाश्च धरणब्रह्मेन्शान्त्यम्बिका, दिक्पालाः सकपर्दिगोमुखगणिश्चक्रेश्वरी भारती । येऽन्ये झानतपःक्रियाव्रतविधिश्रीतीर्थयात्रादिषु, श्रीसङ्घस्य तुरा चतुर्विधसुरास्ते सन्तु नङ्कराः ॥४॥ इति श्रीपंचतीर्थस्तुतिः॥ ७॥ ॥अथ शंखेश्वरपार्श्वजिनस्तुतिः ॥ ॥ शंखेश्वर पासजी पूजिये, नरनवनो खादो लीजीये ॥ मन वंति पूरण सुरतरु, जय वामा सुत अलवसरु ॥१॥ दोय राता जिनवर अति नला, दोय धोला जिनवर गुणनिला ॥ दोय लीला दोय शामळ कह्या, सोले जिन कंचनवर्ण सह्या ॥२॥आगम ते जिनवर नाखीयो, Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३५ ) गणधर ते दइडे राखीयो ॥ तेदनो रस जेणे चाखीयो, ते हु शिवसुख साखीयो ॥ ३ ॥ धरणीधर राय पद्मावती, प्रभु पार्श्वता गुण गावती ॥ सहु संघनां संकट चूरती, नयविमलना वंबित पूरती ॥ ४ ॥ इति ॥ ८८ ॥ ॥ अथ सज्जायो प्रारंभ ॥ ॥ तत्र प्रथम श्री विनयच्प्रध्ययननी सज्जाय॥ || श्री नेमीसर जिनतपुंजी ॥ ए देशी ॥ पवयण देवी चित्त धरी जी, विनय वखागीश सार ॥ जंबुने पूये कह्यो जी, श्रीसोदम गणधार ॥ १ ॥ नविक जन विनय वदो सुखकार ॥ ए प्रकणी ॥ पदिले अध्ययने कह्यो जी, उत्तराध्ययन मकार || सघला गुणमां मूलगोजी, जे जिनशासन सार ॥ २ ॥ नवि० ॥ नाण विनयथी पामीए जी, नाणे दरिस शु६ ॥ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४० ) चारित्र दरिसाथी हुए जी, चारित्रयी पुस ६ || ३ || जवि० ॥ गुरुनी आण सदा धरेजी, जाणे गुरुनो जाव ॥ विनयवंत गुण रागीजी, ते मुनि सरल स्वभाव ॥ ४ ॥ जवि ० ॥ कानुं कुंडुं परिदरीजी, विष्टाशुं मन राग ॥ गुरुशेदी ते जाणवाजी, सुपर उपमा लाग ॥ ५ ॥ नवि० ॥ कोह्या काननी कूतरीजी, वाम न पामीरे जेम ॥ शीलदीए कह्यागराजी, आदर न लदे तेम ॥ ६ ॥ नवि ॥ चंडतणीपेरे नजली जी, कीरति तेद लदंत ॥ विषय कषाय जीती करी जी, जे नर शील वदंत ॥ ७ ॥ नवि० ॥ विजयदेव गुरुपाटवीजी, श्री विजयसिंह सूरींद || शिष्य उदय वाचक जणेजी, विनय सयल सुखकंद ॥ ८ ॥ जवि० ॥ इति ॥ ८ ॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४१) ॥ अथ द्वितीय शिखामण सज्छाय॥ ॥ जीव वारुं छं मोरा वालमा, परनारीथी प्रीति म जोड ॥ परनारीनी संगत नहीं नली, तारा कूलमा लागशे खोड ॥ जीव ॥१॥ जीव आ संसार के कारमो, दीसे ने आळ पंपाळ ॥ जीव एवं जाणी चेतजो, आगल मागडे नाखी जान॥जीव०॥g॥ जीव मात पिता नाइ बेनडी, सह कुटुंब तणो परिवार ॥ जीव वेती वारे सहु सगुं, पळे लांबा कीधा जूदार ॥ जीव० ॥३॥ देहली लगे सगी अंगना, शेरी अलगे सगी माय ॥ जीव सीम लगे साजन नलो, प हंस एकीलो जाय ॥ जीव०॥४॥ जीव जातां थका नवि जाणीयु, नवि जाण्यो वार कुवार ॥ जीव गाडुं नरीयुं इंधणे, वळी खोखरी हांडली सार ॥ जीव ॥५॥जीव आठम Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४२ ) पाखि न उलखी, जीव बहुलां कीधां पाप ॥ जीव सुमतिविजय मुनि एम जणे, जीव आवागमन निवार ॥ जी ॥६॥ इति ॥ए॥ ॥ अथ नाथी मुनिनी सज्जाय ॥ ॥ श्रेणिक रयवाडी चड्यो, पेखीयो मुनि एकंत ॥ वररूप कांते मोदिर्ज, राय पूवेरे कहोने विरतंत ॥ १ ॥ श्रेणिकराय हुंरे नाथी निग्रंथ ॥ ति में लीधोरे साधुजीनो पंथ ॥ श्रेणिक० ॥ एकणी ॥ इणे कोसंबी नयरी वसे, मुऊ पिता परिघल धन ॥ परिवार पूरे परिवय, हुं हुं तेदनोरे पुत्र रतन ॥ ० ॥ २ ॥ एक दिवस मुज वेदना, उपनी में न खमाय ॥ मात पिता झरी मेरे, पण समाधि किणे नवि थाय ॥ श्रे० ॥ ३ ॥ गोरडी गुणमणि - रडी, चोरडी प्रवला नार ॥ कोरडी पीडा में सदी, कोणे न कीधी मोरडी सार ॥ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४३) श्रे॥४॥ बहु राजवैद्य बोलाविया, कीधला कोटि उपाय॥बावनाचंदन चरचियां, तोदि पणरे समाधि न थाय ॥श्रे॥५॥ जगमांदि को केदनो नदी, ते नणी हंरे अनाथ ॥ वीतरागना धरम सारिखो, नर्दि को बीजोरे मुक्तिनो साथ ॥श्रेण ॥ ६॥ वेदना जो मुफ उपशमे, तो ले संजम जार ॥श्म चिंतवतां वेदन गइ, व्रत ली, में हर्ष अपार ॥श्रे॥ ॥ करजोडी रायगुण स्तवे, धन्य धन्य ए अणगार ॥श्रेणिक समकित पामियो, वांदी पोदोतोरे नगर मकार ॥श्रे॥७॥ मुनि अनाथी गुण गावतां, तूटे कर्मनी कोड ॥ गणि समयसुंदर तेदना, पाय वंदेरे बे करजोड ॥ श्रे॥ए॥इति अनाथी सज्काय ॥२॥ ॥ अथ श्रीनेम राजुलनी सज्काय ॥ ॥ नदीजमुनाके तीर,जडे दोय पंखीया. Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४४ ) ए देशी || पिजी पिनजीरे नाम, जपुं दिन रातियां || पिनजी चाल्या परदेश, तपे मोरी बातीयां ॥ पग पग जोती वाट, वालेसर कब मिले || नीर विबोह्यां मीन के, ते ज्युं टलवले ॥ १ ॥ सुंदर मंदिर सेज, सादिब विण नवि गमे ॥ जिदांरे वालेसर नेम, तिदां मारुं मन जमे ॥ जो दोवे सजन दूर, तोदि पासे वसे ॥ किदां सायर किदां चंद, देखि मन उसे ॥ २ ॥ निःस्नेदी शुं प्रीत, मकरजो को सदी || पतंग जलावे देद, दीपक मनमें नहीं ॥ वाला माणसनो विजोग, म दोजो केदने ॥ सालेरे साल - समान, दइयामां तेदने ॥ ३ ॥ विरद व्यथानी पीड़, जोबन प्रति ददे ॥ जेनो पियु परदेश ते, माणस दुःख सदे ॥ झुरी झुरी पंजर कीध, काया कमल जिसी ॥ दजी न आव्या नेम, मली नयणे दसी Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४५) ॥४॥ जेने जेदशं रंग, टाल्यो ते नवि टले ॥ चकवा रयणी विजोग, ते तो दिवसे मले ॥ आंबा केरो स्वाद, लिंबु ते नवि करे ॥ जे नाह्या गंगा नीर, ते बिक्षर किम तरे॥५॥जे रम्या मालती फूल, धतूरे केम रमे ॥ जेदने घीयशुं प्रेम, ते तेले किम जमे॥जेहने चतुरशुं नेद, ते अवरने शुं करे ॥नव जोबन तजी नेम, वैरागी थइ फरे ॥६॥ राजुल रूप निधान, पोहोती सहसावने। जइ वांद्या प्रनु नेम, संजम लइ एक मने॥ पाम्या केवलझान, पोहोती मननी रळी ॥ रूपविजय प्रनु नेम, नेट्ये आशा फळी॥॥इति॥न॥ ॥अथ आप स्वन्नावनी समाय॥ ॥आप स्वनावमा रे, अवधु सदा मगनमें रहना ॥ जगत जीव हे कर्माधिना, अचरिज कबुअन लीना ॥ आ० ॥१॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४६ ) नदी तेरा, क्या करे तेरी पासे, प्र तुम नदी केरा को मेरा मेरा || तेरा दे सो वर सबे नेरा ॥ ० ॥ २ ॥ वपु विनाशी तुं अविनाशी, अब दे इनकुं विलासी ॥ वपु संग जब दूर निकासी, तब तुम शिवका वासी ॥ आ० ॥ ३ ॥ राग नेरीसा दोय खवीसा, ए तुम दुःखका दीसा ॥ जब तुम उनकुं दूर करीसा, तब तुम जगका ईसा ॥ ० ॥ ४ ॥ परकी प्रशा सदा निराशा, ए दे जगजन पासा ॥ ते काटनकुं करो यासा, लहो सदा सुखवासा ॥ ० ॥ ५॥ कबदीक काजी कबढीक पाजी, कबदीक हुवा पाजी ॥ कबदीक जगमें कीर्ती गाजी, सब पुद्गळकी बाजी ॥ आ० ॥६॥ शुध उपयोग ने समताधारी, ज्ञान ध्यान मनोहारी ॥ कर्म कलंककुं दूर निवारी, जीव वरे शिवनारी ॥ ० ॥ ७ ॥ इति ॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४७ ) ॥ नवस्मरणप्रारम्भः ॥ १ ॥ प्रथमं नवकार पंचमङ्गलरूपम् ॥ नमो अरिहंताणं ॥ १ ॥ नमो सिझणं ॥ २ ॥ नमो आयरियाणं ॥ ३ ॥ नमो उवज्जायाणं ॥ ४ ॥ नमो लोए सव्व - साहूणं ॥ ५ ॥ एसो पंचनमुक्कारो ॥ ६ ॥ सवपावप्पणासणो ॥ ७ ॥ मंगलाणं च सचेसिं ॥ ८ ॥ पढमं दवइ मंगलं ॥ ए॥इति ॥ १ ॥ २ ॥ अथ नवसग्गहरं स्तवनम् ॥ नवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं । विसदरविसनिन्नासं, मंगलकवाण प्रवासं ॥ १ ॥ विसदरफुलिंगमंतं, कंठे धारेइ जो सया मणु । तस्स गढ़रोगमारी - जरा जंति नवसामं ॥ २ ॥ चिठन दूरे मंतो, तुज्य पणामोवि बहुफलो दोइ | नर तिरिएसुचि जीवा, पार्वति न दोगचं ॥ ३ ॥ तुद सम्मत्ते वदे, Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७) चिंतामणिकप्पपायवदनदिए। पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं गणं ॥४॥ इस संथु महायस., नत्तिब्नरनिबनरेण दिएण । ता देव ! दिऊ बोदिं, नवे नवे पास जिणचंद !॥५॥इति ॥२॥ ३॥ अथ संतिकरस्तवनम् ॥ ॥संतिकरं संतिजिणं, जगसरणं जयसिरी दायारं । समरामि नत्तपालग-निवाणीगरुमकयसेवं ॥१॥ उस नमो विप्पोसहि-पत्ताणं संतिसामिपायाणं । झौं स्वाहामंतेणं, सबासिवरिअहरणाणं ॥२॥ ॐ संतिनमुक्कारो, खेलोसहिमाइलहिपत्ता । सौं भी नमो सम्बोसहिपत्ताणं च देश सिरिं॥३॥ वाणी तिहुणसामिणि, सिरिदेवी जकरायगणिपिडगा। गददिसिपालसुरिंदा, सयावि रकंतु जिानते॥४॥ रकंतु मम रोहिणी, पन्नत्ती वासिंखला Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४९५ ) य सया । वकुसि चक्केसरि, नरदत्ता कालि महकाली ॥ ५ ॥ गोरी तद गंधारी, मदजाला माणवी अ वरुट्टा | अनुत्ता माण सिच्या, महामाण सिप्रा देवी ॥ ६ ॥ जरका गोमुह महजक, तिमुह जस्केस तुंबरू कुसुमो | मायंग विजयप्रजिच्या, बंजो मर्ज सुरकुमारो ॥ ७ ॥ बम्मुद पयाल किन्नर, गेरुलो गंधव तद य जकिंदो | कूबर वरुणो निउडी, गोमेदो पासमा - यंगा ॥ ८ ॥ देवी चक्केसरि, यजिच्या इरियारि कालि मदकाली । अच्चु संता जाला, सुतारयासोय सिरिवा ॥ ९ ॥ चंडा विजयंकुसि पन्नइत्ति निवाणि प्रचुया धरणी । वइरुबुत्त गंधारित्र्यंबपनमावई सिदा ॥ १० ॥ इय तित्थर कणरया, अन्नेव सुरा सुरी य च दावि । वं १ गरुडो. Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५०) तरजोणिपमुदा, कुणंतु रकं सया अम्हं ॥२१॥ एवं सुदिम्सुिरगण-सदि संघस्स संतिजिणचंदो मज्छवि करेन ररकं, मुणिसुंदरसूरिथुअमहिमा ॥ १२ ॥ इत्र संतिनाहसम्मदिहिरकं सर तिकालं जो। सबोवद्दवरदिर्ज, स लद सुहसंपयं परमं ॥ १३॥ तवगबगयणदिए यर-जुग वरसिरिसोमसुंदरगुरूणं । सुपसायलगणदर-विजासिही नण सीसो॥१४॥ ॥ इति संतिकरस्तवनम् ॥ ३ ॥ ४॥ अथ तिजयपहुत्तनामस्मरणम् ॥ तिजयपहुत्तपयासय-अहमदापाडिदेरजुत्ताणं । समयस्कित्तग्ािणं, सरेमि चकं जिणिंदाणं ॥१॥ पणवीसा य असीआ, पणरस पन्नास जिणवरसमूहो। नासेज सयल रिअं, नविप्राणं नत्तिजुत्ताणं ॥२॥ वीसा पणयालावि य, तीसा ___ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५१) पन्नत्तरी जिणवरिंदा । गहनूअरकसाइणि-घोरुवसग्गं पणासंतु ॥ ३॥ सत्तरि पणतीसावि य,सही पंचेव जिणगणो एसो। वादिजलजलणहरिकरि-चोरारिमदानयं दरज ॥ ४ ॥ पणपन्ना य दसेव य, पन्नही तह य चेव चालीसा । रग्कंतु में सरीरं, देवासुरपणमित्रा सिक्षा॥॥ॐदरहुँदः सरसुंसः, हरहुँदः तद य चेव सरसुंसः।आलिदियनामगब्नं, चकं किर सवर्ड नई ॥ ६ ॥ ॐरोहिणि पन्नत्ती, वऊसिंखला तह य वजाअंकुसिआ। चक्केसरि नरदत्ता, कालि महाकालि तद गोरी॥॥ गंधारी मदजाला, माणवि वझट्ट तद य अतुत्ता । माणसि मदमाणसिआ, विजादेवी रकंतु ॥ ७ ॥ पंचदसकम्मन्नूमिसु, नप्पन्नं सत्तरी जिणाण सयं । विविदरयणाश्वन्नो-वसोहिअंदर उरिााणा Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५२ ) चडसीसच्प्रइसयजुआ, अहमदापाडिदेरकयसोदा | तित्ययरा गयमोदा, जाएवा पयत्तेणं ॥ १८ ॥ ॐ वरकणयसंखविहुम- मरगयघणसन्निदं विगयमोदं । सतरिसयं जिणाणं, सधामरपूइयं वंदे ॥ स्वाहा ॥ ११ ॥ ॐ नवणवई वाणवंतर जोइसवासी विमाणवासी | जे केवि कुछ देवा, ते सधे नवसमंतु ममं ॥ स्वादा ॥ १२ ॥ चंदकप्पूरेणं, फलए लिहिऊण खालि पीध्रं । एगंतराइगदनू - साइणिमुग्गं पणासेइ ॥ १३ ॥ इ सत्तरिसयं जंतं, सम्मं मंतं ज्वारि पडिलिदियं । इरियारि विजयवंतं, निव्नंतं निच्चमच्चेद ॥ १४ ॥ इति ॥ ४ ॥ ५ ॥ अथ नमिकणनामकं स्मरणम् ॥ नमिऊण पणयसुरगण - चूडामणिकिरणरंजि मुणिणो । चलणजुअलं मदा Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५३ ) जय - पणासणं संथवं वुद्धं ॥ १ ॥ स - डियकरचरणनदमुह, निवुड्डनासा विवन्नवायएगा। कुछ महारोगानल - फुलिंगनिद्दड्डसबंगा ॥ २ ॥ तें तुह चलणारादण - सलिलंजलिसेयवुड्डियचाया (उच्चादा ) | वणदवदड्डा गिरिपा - यवव पत्ता पुणो लि ॥ ३ ॥ घायखुनियजल निदि, उन्नडकलोलीसणारावे । संनंतनयविसंठुलनिद्यामयमुक्कवावारे ॥ ४ ॥ अविद लियजाणवत्ता, खणेण पावंति इति कूलं । पास जिचलणजुञ्प्रलं, निच्चं चित्र जेनमंति नरा ॥ ५ ॥ खरपवणु-प्रवणदवजालावलिमिलियसयल मगहणे । डज्ऊंतमु इमयवहु- नीसणरवनी सांमि वणे ॥ ६ ॥ जगगुरुणो कमजुअलं, निवाविासयजतिहुअपानोखं । जे संजरंति १ जे. Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५४ ) मणुच्छ, न कुणइ जलणो जयं तेसिं ॥७॥ विलसंतनोगजी सण, फुरिच्प्रारुपनयणतरलजीदानं । नग्गनुगं नवजल्लयसत्येदं जीसणायारं ॥ ८॥ मन्नंति कीडसरिसं, दूरपरिचूढविसम विसवेगा । तुद नाम करफुड सि-हमंत गुरुच्या नरा लोए || || डवीसु लितकर - पुलिंदसहूलसद्दजीमासु । जयविहुवुन्नकायर - नल्लू रिपहि सत्यासु ॥ १० ॥ विलुत्त विदवसारा, तुद नाह! पणाममत्तवावारा । ववगयविग्धा सिग्घं, पत्ता हियइत्रियं गणं ॥ ११ ॥ पलिच्यानलनयां, दूरवियारियमुहं म दाकायं । नहकुलिसघाय विप्रलिप्र-गईदकुंनत्यलानोयं ॥ १२ ॥ पण्यससंनमपत्थिव - नदमणिमाणिक्कपडित्र्यपडिमस्स | तु वयपरणधरा, सीदं कुपि न ग १ सहं. २ गरुया. Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५५) णंति ॥ १३॥ ससिधवलदंतमुसलं, दीदकरुल्लालवुड्डिनबादं । महुपिंगनयणजुअलं, ससलिलनवजलहरारावं ॥ १४ ॥ नीमं महागइंदं, अच्चासन्नपि ते न वि गएणंति । जे तुम्ह चलणजुअलं, मुणिवश्तुंगं समल्लीणा ॥१५॥ समरम्मि तिकखग्गा-निग्घायपविनायकबंधे।कुंतविणिनिन्नकरिकलद-मुक्कसिक्कारपनरंमि॥१६॥ निजियदप्पुपररिज-नरिंदनिवदानडा जसं धवलं । पावंति पावपसमिण, पासजिण ! तुद प्पनावेण ॥ १७॥ रोगजलजलणविसदर-चोरारिमरंदगयरणनयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंतिसबार॥ एवं महानयहरं, पासजिणिंदस्स संथवमु आरं । नवियजणाणंदयरं, कल्लाणपरंपरनिदाणं ॥ १५॥रायन्नयजरकररकस-कुसुमिणऽस्सनणरिकपीडासु । संकासु दोसु Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६ ) पंथे, नवसग्गे तद य रयणी ॥ २० ॥ जो पढइ जो निसुाइ, ताणं कणो य माणतुंगस्स । पासो पावं पसमेन सयलजुवच्चिच्चलणो ॥ २१ ॥ उवसग्गंते कमठा - सुरम्मि काणा जो न संचलिये | सुरनर किन्नरजुवईदिं, संधु जयन पासजिणो ॥ २२ ॥ एस्स मज्जयारे, प्रहारसरकरेहिं जो मंतो । जो जागाइ सो कायइ, परमपयत्थं फुडं पासं ॥ २३ ॥ पासद समरण जो कुइ, संतुठे दियए । अहुत्तरसयवादिनय, नासर तस्स दूरे ॥ २४ ॥ इति श्रीमदानयहरनामकं स्मरणं संपूर्णम् ॥ ५ ॥ ६ ॥ अथ प्रजितशान्तिस्तवन ॥ || जि जिप्रसवजयं, संतिं च पसंतसवगयपावं | जयगुरु संतिगुणकरे, दोवि जिणवरे पणिवयामि ॥ १ ॥ गादा ॥ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - ( १५७) ववगयमगुलनावे, तेऽदं विनलतवनिम्मलसहावे । निरुवममहप्पनावे, थोसामि सुदिठसठनावे॥॥गादा ॥सबउरकप्पसंतीणं, सबपावप्पसंतिणं । सया अजियसंतीणं, नमो अजिअसंतिणं ॥३॥सिलोगो॥ अजियजिण! सुहप्पवत्तणं,तव पुरिसुत्तम! नामकित्तणं । तह य विश्मईप्पवत्तणं, तव य जिणुत्तम! संति ! कित्तणं ॥४॥मागदिया ॥ किरिाविदिसंचिकम्मकिलेसविमुकयरं, अजिथं निचिशं च गुणेहिं महामुणिसिगियं। अजिअस्स य संति महामुहिणोवि अ संतिकरं, सययं मम निबुझकारणयं च नमसणयं ॥५॥ आलिंगणय पुरिसा!ज उस्कवारणं,ज अ विमग्गद सुरककारणं । अजिअं संतिं च नावडे, अजयकरे सरणं पवजाहा॥६॥ १ मईपवत्तणं. Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५७) मागदिश्रा ॥ अरइरतिमिरविरहिअमुवरयजरमरणं, सुरअसुरगरुलजुयगवश्पययपणिवश्लं । अजिअमदमविअ सुनयनयनिनणमन्नयकरं, सरणमुवसरिअनुविदिविजमदिशं सययमुवणमे॥७॥संगययं ॥ तं च जिणुत्तममुत्तमनित्तमसत्तधरं, अजावमद्दवखंतिविमुत्तिसमादिनिहिं। संतिकरं पणमामि दमुत्तमतित्थयरं, संतिमुंणी मम संति समादिवरं दिसन ॥ ७ ॥ सोवाणयासावत्थिपुवपत्थिवं च वरदस्थिमत्थयपसत्यविबिन्नसंथिअं थिरसरिजवळ मयगललीलायमाणवरगंधहत्थिपत्थाणपस्थियंसंथवारिहं,हत्यिहत्थवाडं धंतकणगरुअगनिरुवहयपिंजरं पवरलकणोवचित्रसोमचारुरूवं, सुश्सुहमणानिरामपरमरमणिकावरदेवउंउदिनिनायमहुरयरसुदगिरं १ संतियर. २ संतिमुणि. Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५ए) ॥ ए ॥ वेड्ड ॥ अजिअं जिआरिगणं, जिअसवनयं नवोदरिलं। पणमामि अहं पयजे, पावं पसमेन मे जयवं ॥ १० ॥रासालुजे ॥ कुरुजणवयहत्यिणाजरनरीसरो पढम त महाचकवहिनोए महप्पजावो, जो बावत्तरिपुरवरसहस्सवरनगरनिगमजणवयवई बत्तीसारायवरसहस्सागुयायमग्गो । चन्दसवररयणनवमहानिहिचनसहिसहस्सपवरजुवईण सुंदरवई, चुलसीहयगयरदसयसहस्ससामी, उन्नवगामकोडिसामी आसी जो नारदंमिनयवं ॥ १२॥ वेड्ड ॥ तं संतिं संतिकरं, संतिएणं सबनया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विदेन मे॥१२॥ रासानंदिअयं ॥३कागविदेहनरीसर, नरवसहा मुणिवसहा, नवसारयससिसकलाणण, विगयतमा विहुअरया, अजिनत्तमतेअगुणेदिं म Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६०) दामुणिअमिअबला विनलकुला, पणमामि ते नवनयमूरण, जगसरणा मम सरणं॥ १३॥ चित्तलेहा ॥ देवदाणविंदचंदसूरवंददन्तुजिहपरम-लहरूवधंतरुप्पपट्टसेअसुनिइधवल । दंतपंतिसंतिसत्तिकित्तिमुत्तिजुत्तिगुत्तिपवर, दित्ततेश्र वंदधेअ सबलोअनाविअप्पनावणेअपइस मे समाहिं ॥ १४॥ नाराय: ॥विमलससिकलाइरेअसोम, वितिमिरसूरकरारेअतेयं । तिअसवगणारेअरूवं, धरणिधरणावरारेासारं ॥ १५ ॥ कुसुमलया ॥ सत्ते अ सया अजिअं, सारीरे अ बले अजिअं । तव संजमे अ अजिअं, एस थुणामि जिणं अजिअं ॥१६॥ नुअगपरिरिंगिअं॥ सोमगुणदि पावश्न तं नवसरयससी,तेअगुणेहि पावइ न तं नवसरयरवी । रूवगुणेहि पाव न a AT Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६१) तं तिअसगणवइ, सारगुणहि पावन तं धरणिधरवश्॥१७॥ खिजिअयं ॥ तित्थवरपवत्तयं तमरयरदिवे, धीरजणथुअञ्चिअं चुअकलिकलुसं । संतिसुहप्पवत्तयं तिगरणपयर्ड, संतिमहं महामुणिं सरणमुवणमे ॥ १७ ॥ललिअयं॥विणणयसिररश्अंजलिरिसिगणसंथुअं थिमिश्र, विबुदादिवधणवश्नरवश्थुअमदिअच्चिअं बहुसो । अश्रुग्गयसरयदिवायरसमदिअसप्पनं तवसा, गयणंगणवियरणसमुश्अचारणवंदिअं सिरसा ॥१०॥ किसलयमाला ॥ असुरगरुलपरिवंदिरं, किन्नरोरगनमंसिअं । देवकोडिसयसंथुअं, समणसंघपरिवंदि॥०॥ सुमुदं ॥ अनयं अणदं, अरयं अरुयं । अजिअं अजिअं, पयर्ड पणमे ॥१॥ विअविलसिअं॥ आगया वरविमाणदि ११ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६५) वकणगरदतुरयपहकरसएहिं हुलिणं । ससंनमोअरणखुनिअबुलिअचलकुंडलंगयतिरीडसोदंतमनलिमाला ॥२२॥वेड्ढड। जं सुरसंघा सासुरसंघा वेरविउत्ता नत्तिसुजुत्ता, आयरनूसिअसंन्नमपिडिअसुहसुविम्हिसवबलोघा । उत्तमकंचणरय परूविअन्नासुरनूसणनासुरिअंगा, गायसमोणयनत्तिवसागयपंजलिपेसियसीसपणामा ॥ १३ ॥ रयणमाला ॥ वंदिगण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेव य पुणो पयादिणं । पणमिकण य जिणं सुरासुरा, पमुश्था सन्नवणाइं तो गया॥२४॥ खित्तयं ॥ तं महामुणिमपि पंजली, रागदोसनयमोदवजिअं । देवदाणवनरिंदवंदिरं, संतिमुत्तमं महातवं नमे ॥३॥ खित्तयं ॥ अंबरंतरविरणिहिं, ललि Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६३ ) प्रसवहुगामि' णिच्चाहिं । पीएसोणियणसां लिपियादि, सकल कमलदललोहिं ॥ २६ ॥ दीवयं ॥ पीणनिरंतरथणजरविण मियगायलयाहिं, मणिकंचणपसिढिलमे दलसो दिसोणितडादि । वरखिंखिणिनेजरस तिलय वलय विनूस णियादि, रइकरचउरमणोदर सुंदर दस णिआदिं ॥ २७ ॥ चित्तकरा ॥ देवसुंदरीहिं पायवंदियाहिं वंदिया य जस्स ते सुविकमा कमा अप्पणो निमालदि मंडलोड एप्पगारएदिं केदिं केहिंवी अवंगतिलयपत्तलेदनाम एहिं चिल्लएदि संगयंगयादि जत्तिसन्निविद्यवंदागयादि हुंति ते वंदिया पुणो पुणो ॥ २८ ॥ नारायर्ज ॥ तमदं जिणचंदं, प्रजित्र्यं जिप्रमोदं । धुयसव किलेसं, पयर्ज पणमामि ॥ २९ ॥ १ गामणि. २ साल पि. Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६४) नंदिअयं ॥ थुअवंदिअयस्सा रिसिगणदेवगणेदि, तो देववहूहिँ पय पणमिअस्सा । जस्स जगुत्तमसासणअस्सा, नत्तिवसागयपिंडिअादि । देववरचरसा बहुआहिं, सुरवररश्गुणपंडिअाहिं ॥ ३० ॥ नासुरयं ॥ वंससद्दतंतितालमेलिए तिनक्खरानिरामसदमीसए कए अ, सुश्समाणणे अ सुसजगीअपायजालघंटिआदिं वलयमेहलाकलावनेनरानिरामसदमीसए कए अ । देवनहिशाहिँ दावनावविन्नमप्पगारएहिँ नचिकण अंगदारपद वंदित्रा य जस्स ते सुविकमा कमा, तयं तिलोयसबसत्तसंतिकारयं पसंतसवपावदोसमेसहं नमामि संतिमुत्तमं जिणं ॥३२॥ नारायां ॥उत्तचामरपडागजूअजवमंडिआ, ऊयवरमगरतुरयसिरिवनसुखंबणा । दीवसमुद्दमंदरदिसाग Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६५) यसोदिया, सत्थिअवसदसीदरदचकवरंकिया ॥ ३२ ॥ ललिअयं ॥ सदावलजा समप्पश्छा, अदोसदुछा गुणेदि जिहा। पसायसिहा तवेण पुछा, सिरीदि का रिसीहिं जुहा ॥ ३३॥ वाणवासिआ॥ ते तवेण धुप्रसवपावया, सबलोअदिअमूलपावया । संथुआ अजिअसंतिपायया, हुँतु मे सिवसुहाण दायया ॥ ३४ ॥ अपरांतिका ॥ एवं तवबलविजलं, थुझं मए अजिअसंतिजिणजुअलं । ववगयकम्मरयमलं, गई गयं सासयं विनलें ॥ ३५॥ गादा ॥ तं बहुगुणप्पसायं, मुक्खसुदेण परमेण अविसायं । नासेल मे विसायं, कुणन अ परिसावि अप्पसायं ॥ ३६॥ गादा ॥ तं मोएन अनंदि, पावेन अ नंदिसेणमभिनंदि । परिसावि अ सुद१ सिरिवछ सुलंगणा (सुलंबित्रा)इति पागंतरं.२ विमलं. Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६६) नंदि, मम य दिसन संजमे नंदिं ॥३॥ गादा ॥ पक्खिअचानम्मासिअ-संवचरिए अवस्सनणिअबो । सोअबो सवेदि, नवसग्गनिवारणो एसो॥ ३७॥ जो पढ जो अनिसुण, उन कालंपि अजिअसंतिथयं । न हु हुँति तस्स रोगा, पुव्वुप्पन्नावि नासंति ॥ ३५॥ ज बद परमपयं, अदवा कित्तिं सुवित्थडं जुवणे। ता तेलुकुरणे, जिणवयणे आयरं कुणद ॥४॥इति श्रीअजितशान्तिस्तवनम् ॥६॥ ॥अथ नक्तामरस्मरणप्रारम्नः॥ भक्तामरप्रणतमौलिमणिप्रनाणा-मुद्योतकं दलितपापतमोवितानम् । सम्यक प्रणम्य जिनपादयुगं युगादा-वालम्बन नवजले पततां जनानाम् ॥१॥ यः संस्तुतः सकलवाङ्मयतत्त्वबोधा-उनूतबु१ संवबरं राइए अदिअहे अ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६७) पिटुन्निः सुरलोकनाथैः । स्तोत्रैर्जगत्रितयचित्तहरैरुदारैः, स्तोष्ये किलादमपि तं प्रथमं जिनेन्डम् ॥॥ वुझ्या विनाऽपि विबुधार्चितपादपीठ!, स्तोतुं समुद्यतमतिविगतत्रपोऽहम् । बालं विहाय जलसंस्थितमिन्सुबिम्ब-मन्यः क श्चति जनः सहसा ग्रहीतुम्? ॥३॥ वक्तुं गुणान् गु समु! शशाङ्क कान्तान, कस्ते दामः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुध्या ? । कल्पान्तकालपवनोइतनकचक्रं, को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं नुजाच्याम् ? ॥ ४ ॥ सोऽहं तथापि तव नक्तिवशान्मुनीश!, कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रत्तः।प्रीत्याऽऽत्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्, नान्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ? ॥ ५॥ अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिदासधाम, त्वन्नक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् । यत्कोकिलः किल मधौ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६८ ) मधुरं विरौति, तच्चारुचूतकलिका निकरैकदेतुः ॥ ६ ॥ त्वत्संस्तवेन जवसन्ततिसन्निब-ई, पापं दणात्यमुपैति शरीरजाजाम | आक्रान्तलोकमलिनीलमशेषमाशु, सूर्याशुनिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् ॥ ७ ॥ मत्वेति नाथ! तव संस्तवनं मयेद - मारच्यते तनुधियाऽपि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनीदलेषु, मुक्ताफलद्युतिमुपैति ननूद बिन्दुः ॥ ८ ॥ आस्तां तव स्तवनमस्तसमस्तदोषं, त्वत्संकथाऽपि जगतां इरितानि दन्ति । दूरे सदस्रकिरणः कुरुते प्रनैव, पद्माकरेषु जलजानि विकाशाञ्जि ॥ ९ ॥ नात्यद्भुतं भुवनभूषणनूतनाथ!, भूतैर्गुणैर्भुवि जवन्तमनिष्टुवन्तः। तुल्या नवन्ति जवतो ननु तेन किं वा ? नूत्याश्रितं य इद् नात्मसमं करोति ॥ १० ॥ दृष्ट्वा जवन्तमनिमेषविलोकनीयं नान्यत्र Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६ए) तोषमुपयाति जनस्य चदुः। पीत्वा पयः शशिकरद्युतिउग्धसिन्धोः, दारं जलं जलनिधेरशितुं क श्चेत् ? ॥ ११॥ यैः शान्तरागरुचिनिः परमाणुनिस्त्वं, निर्मापितस्त्रिनुवनैकललामनूत!। तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां, यत्ते समानमपरं न दि रूपमस्ति ॥ १२॥ वकं व ते सुरनरोरगनेत्रहारि, निःशेषनिर्जितजगत्रितयोपमानम् ? । बिम्बं कलङ्कमलिनं क निशाकरस्य ?, यासरे नवति पाण्डुपलाशकल्पम् ॥ १३ ॥ संपूर्णमण्डलशशाङ्ककलाकलाप-शुत्रा गुणास्त्रिजुवनं तव लवयन्ति । ये संश्रितास्त्रिजगदीश्वरनाथमेकं, कस्तानिवारयति संचरतो यथेष्टम् ? ॥१४॥ चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशाङ्गनानि-नीतं मनागपि मनो न विकारमागेम्? । कल्पान्तकालमरुता चलिताचलेन, ___ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७० ) किं मन्दराद्विशिखरं चलितं कदाचित् ? ॥ १५ ॥ निर्धूमवर्त्तिरपवर्जिततैलपूरः, कृत्स्नं जगत्रयमिदं प्रकटीकरोषि । गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाशः ॥ १६ ॥ नास्तं कदाचिडुपयासि न राहुगम्यः, स्पष्टीकरोषि सदसा युगपजगन्ति । नाम्नोधरोदर निरु ६मदाप्रभावः, सूर्यातिशायिमहिमाऽसि मुनीन्द्र ! लोके ॥ १७ ॥ नित्योदयं दलितमोहमदान्धकारं, गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम् । विज्राजते तव मुखाब्जमनल्पकान्ति, विद्योतयजगदपूर्वशशाङ्कविम्बम् ॥ १८ ॥ किं शर्वरीषु शशिनाहि विवस्वता वा ?, युष्मन्मुखेन्डुदलितेषु तमस्सु नाथ ! । निष्पन्नशा लिवनशा लिनि जीवलोके, कार्य कियजलधरे - जलजारनयैः ? ॥ १९ ॥ ज्ञानं यथा त्वयि Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७१) विनाति कृतावकाशं, नैवं तथा हरिदरादिषु नायकेषु । तेजः स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं, नैवं तु काचशकले किरणाकुलेऽपि ॥२०॥ मन्ये वरं दरिहरादय एव दृष्टा, दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति । किं वीदितेन नवता नुवि येन नान्यः,कश्चिन्मनो दरति नाथ! नवान्तरेऽपि ॥३१॥ स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्, नान्या सुतं त्वउपमं जननी प्रसूता। सर्वा दिशो दधति नानि सहस्ररश्मि, प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशुजालम् ॥ १२॥ त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांस-मादित्यवर्णममलं तमसः पुरस्तात्। त्वामेव सम्यगुपलन्य जयन्ति मृत्यु,नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्छ! पन्थाः॥२३॥ त्वामव्ययं विनुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं, ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनङ्गकेतुम् । योगीश्वरं Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) विदितयोगमनेकमेकं, झानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः॥२४॥ बुधस्त्वमेव विबुधार्चितबुध्विोधात्, त्वं शङ्करोऽसि जुवनत्रयशङ्करत्वात् । धातासि धीर! शिवमार्गविधेर्विधानात् , व्यक्तं त्वमेव नगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥ ३५॥ तुल्यं नमस्त्रिनुवनार्तिहराय नाथ!, तुभ्यं नमः दितितलामलनूषणाय । तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन! नवोदधिशोषणाय ॥२६॥ को विस्मयोऽत्र ? यदि नाम गुणैरशेषै-स्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश!। दोषैरुपात्तविविधाश्रययजातगर्वैः, स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीदितोऽसि ॥ २७॥ उच्चैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूख-मानाति रूपममलं नवतो नितान्तम् । स्पष्टोलसत्किरणमस्ततमोवितानं, बिम्बं रवेरिव पयोधरपार्श्ववति॥श्न॥ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७३) सिंहासने मणिमयूखशिखाविचित्रे, वित्राजते तव वपुः कनकावदातम् । बिम्ब वियलिसदंशुलतावितानं, तुङ्गोदयाशिशिरसीव सहस्ररश्मेः॥२॥ कुन्दावदातचलचामरचारुशोनं, वित्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम् । नद्यशाङ्कशुचिनिर्मरवारिधार-मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्नम् ॥ ३०॥ त्रत्रयं तव विनाति शशाङ्ककान्त-मुच्चैः स्थितं स्थगितनानुकरप्रतापम् । मुक्ताफलप्रकरजालविटशोनं, प्रख्यापयत्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥३१॥ नन्निदमेनवपङ्कजपुञ्जकान्ति-पयुलसन्नखमयूखशिखानिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्! धत्तः,पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥ ३२ ॥इत्थं यथा तव विनूतिरनूजिनेन्न!, धर्मोपदेशनविधी न तथा परस्य । याकू प्रना दिनकृतः Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७४ ) प्रहतान्धकारा, तादृकुतो ग्रद्गणस्य विकाशिनोऽपि ? ॥ ३३ ॥ श्रयोतन्मदाविलविलोलकपोलमूल--मत्तत्रमद्भ्रमरनादविट*इकोपम् । ऐरावतानमिजमु छतमापतन्तं, दृष्ट्वा जयं जवति नो नवदाश्रितानाम् ॥ ३४ ॥ निन्नेनकुम्नगल डुज्ज्वलशोणिताक्त-मुक्ताफलप्रकरनूषितभूमिभागः । ब६क्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि, नाकामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते ॥ ३५ ॥ कल्पान्तकाल पवनोतवह्निकल्पं, दावानलं ज्वलितमुज्ज्वलमुत्फुलिङ्गम् । विश्वं जिघसुमिव संमुखमापतन्तं, त्वन्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् ॥ ३६ ॥ रक्तेक्षणं समदकोकिलकण्ठनीलं, क्रोधो दतं फणिनमुफणमापतन्तम् । चाक्रामति क्रमयुगेन निरस्तराङ्क, -स्त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुंसः ॥ ३७ ॥ वल्गत्तुरङ्गगजगर्जितनी Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७५) मनाद-माजौ बलं बलवतामपि नूपतीनाम्। उद्यदिवाकरमयूखशिखापवि, त्वत्कीर्तनात्तम श्वाशु निदामुपैति ॥३७॥ कुन्ताग्रनिन्नगजशोणितवारिवाद-वेगावतारतरणातुरयोधनीमे । युके जयं विजितर्जयजेयपदा-स्त्वत्पादपङ्कजवनाश्रयिणो लनन्ते ॥ ३ए ॥ अम्नोनिधौ क्षुनितनीषनकचक्र-पाठीनपीनियदोल्बणवामवाग्नौ । रङ्गत्तरङ्गशिखरस्थितयानपात्रास्त्रासं विदाय नवतः स्मरणाद् व्रजन्ति ॥४०॥उनूतनीषणजलोदरनारजुग्नाः, शोच्यां दशामुपगताथ्युतजीविताशाः । त्वत्पादपङ्कजरजोऽमृतदिग्धदेदा, मानवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपाः ॥ ४२ ॥ आपादकण्ठमुरुशृङ्खलवेष्टिताङ्गा, गाढं बृदनिगडकोटिनिघृष्टजवाः । त्वन्नाममन्त्रमनिशं मनुजाः स्मरन्तः, सद्यः स्वयं विग Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६) तबन्धनया नवन्ति ॥४२॥ मत्तहिपेअमृगराजदवानलादि-संग्रामवारिधिमहोदरबन्धनोत्थम् । तस्याशु नाशमुपयाति नयं नियेव, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥४३॥ स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र! गुणैर्निबधां, नत्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्पाम् । धत्ते जनो य श्द कण्ठगतामजस्रं, तं मानतुङ्गमवशा समुपैति लदमीः॥ ४ ॥ ॥इति नक्तामरस्तोत्रं संपूर्णम् ॥७॥ नाअथश्रीकल्याणमन्दिरस्तोत्रंप्रारच्यते॥ वसन्ततिलकाटत्तम् ॥ कल्याणमन्दिरमुदारमवद्यनेदि, नीतानयप्रदमनिन्दितमङ्घिपद्मम्। संसारसागरनिमजदशेषजन्तु-पोतायमानमनिनम्य जिनेश्वरस्य॥॥यस्य स्वयं सुरगुरुगरिमाम्वुराशेः, स्तोत्रं सुविस्तृतमतिर्न विजुर्वि Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 299 ) तीर्थेश्वरस्य कमठस्मयधूमकेतो- स्तस्यादमेष कि संस्तवनं करिष्ये ॥ २ ॥ युग्मम् ॥ सामान्यतोऽपि तव वर्णयितुं स्वरूपमस्मादृशाः कथमधीश ! नवन्त्यधीशाः ? | धृष्टोऽपि कौशिकशिशुर्यदि वा दिवान्धों, रूपं प्ररूपयति किं किल घर्मरश्मेः ? ॥३ ॥ मोहदयादनुजवन्नपि नाथ ! मत्त्र्यो, नूनं गुणान् गणयितुं न तव दमेत । कल्पान्तवान्तपयसः प्रकटोsपि यस्मान्मीयेत केन जलधेर्ननु रत्नराशिः ? ॥ ४ ॥ अयुद्यतोऽस्मि तव नाथ ! जडाशयोऽपि कर्त्तुं स्तवं लसदसंख्यगुणाकरस्य । बालोऽपि किं न निजबाहुयुगं वितत्य, विस्तीर्णतां कथयति स्वधियाऽम्बुराशेः ? ॥ ५ ॥ ये योगिनामपि न यान्ति गुणास्तवेश !, वक्तुं कथं जवति तेषु ममावकाशः ? | जाता तदेवमसमीक्षितकारितेयं, जल्पन्ति १२ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७८ ) वा निजगिरा ननु पक्षिणोऽपि ॥ ६ ॥ - स्तामचिन्त्यमदिमा जिन ! संस्तवस्ते, नामापि पाति नवतो जवतो जगन्ति । तीव्रातपोपदतपान्थजनान्निदाघे, प्रीणाति पद्मसरसः सरसोऽनिलोऽपि ॥ ७ ॥ हृद्वर्त्तिनि त्वयि विनो! शिथिलीभवन्ति, जन्तोः दोन निविडा यपि कर्मबन्धाः । सद्यों जुजङ्गममया इव मध्यजाग - मज्यागते वन शिखण्डिनि चन्दनस्य ॥ ८ ॥ मुच्यन्त एव मनुजाः सहसा जिनेन्द्र !, रौधैरुपधवशतैस्त्वयि वीदितेऽपि । गोस्वामिनि स्फुरिततेजसि दृष्टमात्रे, चौरैरिवाशु पशवः प्रपलायमानैः ॥ ए ॥ त्वं तारको जिन ! कथं विनां ? त एव त्वामुद्वदन्ति हृदयेन यत्तरन्तः । यद्वा हतिस्तरति यलमेष नृन-मन्तर्गतस्य मरुतः स किलानुनावः ॥ १० ॥ यस्मिन् दरप्रभृतयोऽपि Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७ ) दतप्रनावाः, सोऽपि त्वया रतिपतिः दपितः दणेन । विध्यापिता इतनुजः पयसाऽथ येन, पीतं न किं तदपि ईरवाडवेन ? ॥११॥ स्वामिन्ननल्पगरिमाणमपि प्रपन्ना-स्त्वां जन्तवः कथमदो हृदये दधानाः। जन्मोदधिं लघु तरन्त्यतिलाघवेन?, चिन्त्यो न दन्त महतां यदि वा प्रनावः ॥१२॥ क्रोधस्त्वया यदि विनो! प्रथमं निरस्तो, ध्वस्तास्तदा बत कथं किल कर्मचौराः ? । प्लोषत्यमुत्र यदि वा शिशिराऽपि लोके, नीलकुमाणि विपिनानि न किं हिमानी ? ॥ १३ ॥ त्वां योगिनो जिन! सदा परमात्मरूप-मन्वेषयन्ति हृदयाम्बुजकोशदेशे। पूतस्य निर्मलरुचेर्यदिवा किमन्य-ददस्य संनवि पदं ननु कर्णिकायाः ? ॥ १४ ॥ ध्यानाजिनेश! नवतो नविनः कणेन, देखें विदाय परमात्मदशां व्रजन्ति । तीवान Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७०) लाउपलनावमपास्य लोके, चामीकरत्वमचिरादिव धातुनेदाः ॥ १५॥ अन्तः सदैव जिन! यस्य विनाव्यसे त्वं, नव्यैः कथं तदपि नाशयसे शरीरम् ?। एतत्स्वरूपमथ मध्यविवर्त्तिनो दि, यद्विग्रहं प्रशमयन्ति मदानुनावाः ॥१६॥ आत्मा मनीषिनिरयं त्वदनेदबुध्या, ध्यातो जिनेन् ! जवतीह नवत्प्रनावः । पानीयमप्यमृतमित्यनुचिन्त्यमानं, किं नाम नो विषविकारमपाकरोति ?॥ १७॥ त्वामेव वीततमसं परवादिनोऽपि, नूनं विनो! दरिदरादिधिया प्रपन्नाः । किं काचकामलिनिरीश ! सितोऽपि शङ्खो, नो गृह्यते ? विविधवर्णविपर्ययेण ॥ १७ ॥ धर्मोपदेशसमये सविधानुनावा-दास्तां जनो जवति ते तरुरप्यशोकः । अन्युजते दिनपतौ समहीरुदोऽपि, किं वा विबोधमुपयाति न जीवलो Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७१) कः ? १५॥ चित्रं विनो ! कथमवाङ्मुखटन्तमेव, विष्वक् पतत्यविरता सुरपुष्पटष्टिः ? । त्वमोचरे सुमनसां यदि वा मुनीश !, गबन्ति नूनमध एव दि बन्धनानि ॥२०॥ स्थाने गन्नीरहृदयोदधिसंनवायाः, पीयूषतां तव गिरः समुदीरयन्ति । पीत्वा यतः परमसंमदसङ्गनाजो, नव्या व्रजन्ति तरसाऽप्यजरामरत्वम् ॥१२॥ स्वामिन् ! सुदूरमवनम्य समुत्पतन्तो, मन्ये वदन्ति शुचयः सुरचामरौघाः। येऽस्मै नतिं विदधते मुनिपुङ्गवाय, ते नूनमूर्ध्वगतयः खलु शुक्ष्नावाः ॥३॥ श्यामं गनीरगिरमुज्वलदेमरत्न-सिंहासनस्थमिद जव्यशिखण्डिनस्त्वाम्। आलोकयन्ति रनसेन नदन्तमुच्चैश्वामीकराजिशिरसीव नवाम्बुवादम् ॥२३॥ उद्गबता तव शितिद्युतिमण्डलेन, लुप्तबदवविरशोकतरुवनूव। सान्निध्यतोऽपि यदि Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८२ ) वा तव वीतराग !, नीरागतां व्रजति को न सचेतनोऽपि ? ॥ २४ ॥ जो जोः प्रमादमवधूय नजध्वमेन - मागत्य निर्वृतिपुरीं प्रति सार्थवादम् । एतन्निवेदयति देव ! जगत्त्रयाय, मन्ये नदन्ननिननः सुरडुन्डु निस्ते ॥ २५ ॥ ज्योतितेषु नवता भुवनेषु नाथ!, तारान्वितो विधुरयं विद्दताधिकारः । मुक्ताकलापक खितोच्न सितातपत्र - व्याजा त्रिधा धृततनुर्ध्रुवमच्युपेतः ॥ २६ ॥ स्वेन प्रपूरितजगत्रय पिण्डितेन, कान्तिप्रतापयश - सामिव सञ्चयेन । माणिक्यदेमरजतप्रविनिर्मितेन, सालत्रयेण नगवन्ननितो विनासि ॥ २७ ॥ दिव्यसृजो जिन ! नमन्त्रिदशाधिपाना - मुत्सृज्य रत्नरचितानपि मौविबन्धान् । पादौ श्रयन्ति जवतो यदि वा परत्र, त्वत्संगमे सुमनसो न रमन्त एव ॥ २८ ॥ त्वं नाथ ! जन्मजलधेर्विपराङ्मु - Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७३) खोऽपि,यत्तारयस्यसुमतो निजपृष्ठलग्नान् । युक्तं दि पार्थिवनिपस्य सतस्तवैव, चित्रं विनो! यदसि कर्मविपाकशून्यः ॥२५॥ विश्वेश्वरोऽपि जनपालक ! उर्गतस्त्वं, किं. वाऽदरप्रकृतिरप्यलिपिस्त्वमीश ! अझानवत्यपि सदैव कथञ्चिदेव, ज्ञानं त्वयि स्फुरति विश्वविकाशदेतुः ॥ ३० ॥ प्राग्नारसंभृतननांसि रजांसि रोषा-उत्थापितानि कमठेन शठेन यानि । गयाऽपि तैस्तव न नाथ ! हता दताशो, ग्रस्तस्त्वमीनिरयमेव परं उरात्मा॥३२॥यद् गर्जदूर्जितघनौघमदबनीम, श्यत्तडिन्मुसलमांसलघोरधारम् । दैत्येन मुक्तमथ उस्तरवारि दधे, तेनैव तस्य जिन! उस्तरवारिकृत्यम् ॥३॥ ध्वस्तो केशविकृताकृतिमर्त्यमुण्ड-प्रालम्बभृनयदवक्रविनियंदग्निः । प्रेतव्रजः प्र. ति नवन्तमपीरितो यः, सोऽस्थानवत्प्रति ___ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - ( २४) नवं नवःखदेतुः॥ ३३ ॥धन्यास्त एव नुवनाधिप ! ये त्रिसन्ध्य-माराधयन्ति विधिवहिधुतान्यकृत्याः । नत्त्योल्लसत्पुलकपदमलदेवदेशाः, पादद्वयं तव विनो ! जुवि जन्मन्नाजः ॥ ३४ ॥ अस्मिन्नपारनववारिनिधौ मुनीश!, मन्ये न मे श्रवणगोचरतां गतोऽसि । आकर्णिते तु तव गोत्रपवित्रमन्त्रे, किं वा विपद्विषधरी सविधं समेति ? ॥३५॥ जन्मान्तरेऽपि तव पादयुगं न देव !, मन्ये मया महितमीदितदानददम् । तेनेद जन्मनि मुनीश ! पराभवानां, जातो निकेतनमहं मथिताशयानाम् ॥३६॥ नूनं न मोदतिमिराटतलोचनेन,पूर्व विभो! सकृदपि प्रविलोकितोऽसि । मर्माविधो विधुरयन्ति दि मामनाः, प्रोद्यत्प्रबन्धगतयः कथमन्यथैते ?॥३जा आकर्णितोऽपि मदितोऽपि निरीदितोऽपि, नूनं न चेतसि Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) मया विधृतोऽसि नत्त्या । जातोऽस्मि तेन जनबान्धव !ःखपात्रं, यस्माक्रियाःप्रतिफलन्ति न भावशून्याः ॥३७॥ त्वं नाथ ! खिजनवत्सल दे शरण्य, कारुण्यपुण्यवसते वशिनां वरेण्य । नक्त्या नते मयि मदेश ! दयां विधाय, जुःखाङ्कुरोद्दलनतत्परतां विधेहि ॥ ३५ ॥ निःसङ्ख्यसारशरणं शरणं शराय-मासाद्य सादितरिपुप्रथितावदातम् । त्वत्पादपङ्कजमपि प्रणिधानवन्ध्यो, वध्योऽस्मि चेद् जुवनपावन ! हा दतोऽस्मि ॥४०॥ देवेन्श्वन्द्य ! विदिताखिलवस्तुसार !, संसारतारक विनो! जुवनाधिनाथ । त्रायस्व देव ! करुणाह्रद मां पुनीदि, सीदन्तमद्य नयदव्यसनाम्बुराशेः ॥४॥यद्यस्ति नाथ! नवदत्रिसरोरुदाणां, भक्तेः फलं किमपि संततिसंचितायाः । तन्मे त्वदेकशरणस्य शरण्य नूयाः,स्वामी - - ___ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Arutam (१६) त्वमेव जुवनेऽत्र नवान्तरेऽपि ॥४२॥ इत्थं समादितधियो विधिवजिनेन् !, साहोलसत्पुलककञ्चकिताङ्गनागाः। त्वद्बिम्बनिर्मलमुखाम्बुजबलदा, ये संस्तवं तव विनो! रचयन्ति नव्याः॥४३॥ जननयनकुमुदचन्प्रनास्वराः स्वर्गसंपदो जुक्त्वा । ते विगलितमलनिचया, अचिरान्मोदं प्रपद्यन्ते ॥ युग्मम् ॥४४॥ ॥शति श्रीकल्याणमन्दिरं संपूर्णम् ॥७॥ अथ म्होटी शान्तिः नो नो नव्याः! शांत वचनं प्रस्तुतं सर्वमेतद्, ये यात्रायां त्रिभुवनगुरोरार्दता नक्तिनाजः। तेषां शान्तिवतु नवतामईदादिप्रनावा-दारोग्यश्रीधृतिमतिकरी क्लेशविध्वंसदेतुः ॥२॥ नो नो नव्यलोका! इद दिनरतैरावतविदेदसंनवानां समस्ततीर्थकृतां जन्मन्यासनप्रकम्पान Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) न्तरमवधिना विझाय, सौधर्माधिपतिः सुघोषाघण्टाचालनानन्तरं सकलसुरासुरेन्ः सह समागत्य, सविनयमईनहारकं गृहीत्वा गत्वा कनकाशिङ्गे, विदितजन्मानिषेकः, शान्तिमुद्घोषयति यथा, ततोऽदं कृतानुकारमितिकृत्वा महाजनो येन गतः स पन्थाः इति नव्यजनैः सह समेत्य, स्नानपीठे स्नात्रं विधाय, शान्तिमुद्घोषयामि, तत्पूजायात्रास्नानादिमहोत्सवानन्तरमितिकृत्वा कर्ण दत्वा निशम्यतां निशम्यतां स्वादा ॥ ॐ पुण्याई पुण्यादं प्रीयन्तां प्रीयन्तां नगवन्तोऽन्तः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिनस्त्रिलोकनाथास्त्रिलोकमहितास्त्रिलोकपूज्यास्त्रिलोकेश्वरास्त्रिलोकोद्योतकराः॥ उ शषन-अजित-संनव-अनिनन्दनसुमति-पद्मप्रन-सुपार्श्व-चन्प्र न-सुविधि-शीतल-श्रेयांस-वासुपूज्य-विमल-अ ___ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) नन्त-धर्म-शान्ति-कुन्थु-अर-मल्लिमुनिसुव्रत-नमि-नेमि-पार्थ-वईमानान्ता जिनाः शान्ताः शान्तिकरा नवन्तु, स्वाहा ॥ ॐ मुनयो मुनिप्रवरा रिपुविजयनिंदकान्तारेषु मुर्गमार्गेषुरदन्तु वो नित्यं स्वादा॥ीश्रीधृति-मति-कीर्तिकांति-बुद्धि-लक्ष्मी-मेधा-विद्यासाधनप्रवेश-निवेशनेषु सुगृहीतनामानो जयन्तु ते जिनेन्जाः॥ ॐ रोहिणी-प्रज्ञप्ति-वज्रशृङ्खला-वज्राङ्कशी-अप्रतिचक्रा-पुरुषदत्ता-काली-महाकाली-गौरी-गान्धारीसर्वास्त्रा महाज्वाला-मानवी-वैरोट्या-अgप्ता-मानसी-महामानसी षोमश विद्यादेव्यो रदन्तु वो नित्यं स्वाहा ॥ 3 आचार्योपाध्यायप्रतिचातुर्वर्णस्य श्रीश्रमणसवस्य शान्तिनवतु तुष्टिर्नवतु पुष्टिर्नवतु॥ ॐ ग्रहाश्चन्प्रसूर्याङ्गारकबुधबृहस्पतिशुक्र -poope Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) शनैश्चरराहुकेतुसहिताः सलोकपालाः सोमयमवरुणकुबेरवासवादित्यस्कन्दविनायकोपेताः ये चान्येऽपि ग्रामनगरदेवदेवतादयस्ते सर्व प्रीयन्तां प्रोयन्तां । अदीणकोशकोष्ठागारा नरपतयश्च नवन्तु स्वादा। उपुत्र-मित्र-त्रातृ-कलत्र-सुहृत्-स्वजनसम्बन्धि-बन्धुवर्गसदिता नित्यं चामोदप्रमोदकारिणः अस्मिँश्च जूमण्डलायतननिवासिसाधुसाध्वीश्रावकश्राविकाणां रोगोपसर्गव्याधिःखनिददौर्मनस्योपशमनाय शान्तिनवतु। ॐ तुष्टिपुष्टिशविधिमाङ्गल्योत्सवाः। सदा प्रार्जुतानि पापानि शाम्यन्तु उरितानि । शत्रवः पराङ्मुखा नवन्तु स्वादा । श्रीमते शान्तिनाथाय, नमः शान्तिविधायिने । त्रैलोक्यस्यामराधीश-मुकुटाच्यचिताञये ॥२॥ शान्तिः १ विनायका. ५ त्रातृमित्र. ३ जवन्तु इति शेषः Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) शान्तिकरः श्रीमान् ,शान्ति दिशतु मे गुरुः। शान्तिरेव सदा तेषां, येषां शान्तिर्यदे गृहे ॥२॥नन्मृष्टरिष्टऽष्ट-ग्रदगतिःस्वमर्निमित्तादि। संपादितदितसंप-नामग्रदणं जयति शान्तेः ॥३॥श्री सङ्घजंगजनपद-राजाधिपराजसन्निवेशानाम् ।गोष्ठिकपुरमुख्याणां, व्यादरणैादरेवान्तिम् ॥४॥ श्री श्रमणसङ्घस्य शान्तिनवतु। श्रीजनपदानां शान्तिनवतु । श्रीराजाधिपानां शान्तिवतु । श्रीराजसन्निवेशानां शान्तिवतु । श्रीगोष्ठिकानां शान्तिनवतु; श्रीपोरैमुख्याणां शान्तिर्भवतु । श्रीपौरजनस्य शान्तिनवतु । श्रीब्रह्मलोकस्य शान्तिनवतु। ॐ स्वादा ॐ स्वादा ॐ श्रीपार्श्वनाथाय स्वाहा । एषा शान्तिः प्रति . १ पौरजनपद. २ (पुरमुख्याणां) टीकायां गवाधिपानामिति चास्ति. Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 ( १९१) ष्ठायात्रास्नात्राद्यवसानेषु । शान्तिकलशं गृहीत्वा, कुङ्कुमचन्दनकर्पूरागुरुधूपवासकुसुमाञ्जलिसमेतः । स्नात्रचतुष्किकायां श्रीसङ्घसमेतः शुचिशुचिवपुः पुष्पवस्त्रचन्दनानरणालङ्कतः पुष्पमालां कण्ठे कृत्वा, शान्तिमुद्घोषयित्वा शान्तिपानीयं मस्तके दातव्यमिति । नृत्यन्ति नृत्यं मणिपुष्पवर्ष, सृजन्ति गायन्ति च मङ्गलानि । स्तोत्राणि गोत्राणि पठन्ति मन्त्रान्, कल्याणनाजो दि जिनानिषेके ॥ १ ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः, परदितनिरता नवन्तु नूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखीनवन्तु लोकाः॥२॥ अहं तित्थयरमाया, सिवादेवी तुम्ह नयरनिवासिनी । अम्द सिवं तुम्द सिवं, असिवोवसमं सिवं नवतु स्वाहा ॥ ३ ॥ उपसर्गाः दयं यान्ति, विद्यन्ते विघ्नवल्लयः। मनः प्रस Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥४॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥५॥ इति बृदबान्तिस्तवः ॥॥ एए॥ इतिनवस्मरणानि संपूर्णम् ॥ अथ श्रीरत्नाकरपञ्चविंशिकाप्रारम्नः॥ उपजातिबन्दः॥ श्रेयःश्रियां मङ्गलकेलिसद्म!, नरेन्द्रदेवेन्नताङ्घ्रिपद्म! । सर्वज्ञ ! सर्वातिशयप्रधान!, चिरंजय ज्ञानकलानिधान ॥१॥ जगत्रयाधार ! कृपावतार !, उारसंसारविकारवैद्य !। श्रीवीतराग! त्वयि मुग्धनावा--द्विा! प्रनो ! विज्ञपयामि किञ्चित् ॥३॥ किं बाललीलाकलितो न बालः, पित्रोः पुरो जल्पति निर्विकल्पः। तथा यथार्थ कथयामि नाथ !, निजाशयं सानुश Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९३) यस्तवाग्रे॥३॥ दत्तं न दानं परिशीलितं च, न शालि शीलं न तपोऽनितप्तं । शुनो न नावोऽप्यनवनवेऽस्मिन् , विन्नो ! मया ज्रान्तमदो मुधैव ॥धादग्धोऽग्निना क्रोधमयेन दष्टो, उष्टेन लोनाख्यमदोरगेण । प्रस्तोनिमानाजगरेण माया-जालेन बहोऽस्मि कथं नजे त्वाम्? ॥५॥ कृतं मया ऽमुत्र हितं न चेद, लोकेऽपि लोकेश! सुखं न मेऽनूत् । अस्मादृशां केवलमेव जन्म, जिनेश !ज नवपूरणाय ॥६॥मन्ये मनो यन्न मनोझटत्त-त्वदास्यपीयूषमयूखलानात्।द्रुतं मदानन्दरसं कठोर-मस्मादृशां देव! तदश्मतोऽपि ॥ ७ ॥ त्वत्तः सुष्प्राप्यमिदं मयाप्तं, रत्नत्रयं नूरिनवज्रमेण । प्रमादनितावशतो गतं तत्, कस्याग्रतो नायक! पूत्करोमि?॥७॥ वैराग्यरङ्गः पर १ रङ्गो ___ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१ए४) वञ्चनाय, धर्मोपदेशो जनरञ्जनाय । वादाय विद्याऽध्ययनं च मेऽनत् ,कियद ब्रुवे दास्यकरं स्वमीश! ॥ए॥ परापवादेन मुखं सदोषं, नेत्रं परस्त्रीजनवीदाणेन । चेतः परापायाविचिन्तनेन,कृतं नविष्यामि कथं? विनोऽहम् ॥१०॥ विडम्बितं यत्स्मरघस्मरार्ति-दशावशात्स्वं विषयान्धलेनाप्रकाशितं तद्भवतो व्हियैव, सर्वज्ञसर्व स्वयमेव वेत्सि ॥२१॥ध्वस्तोऽन्यमन्त्रैः परमेष्ठिमन्त्रः,कुशास्त्रवाक्यर्निदताऽऽगमोक्तिः । कर्तुं वृथा कर्म कुदेवसङ्गा-दवाविहीनाथ!मतिन्त्रमो मे१२ विमुच्य दृग्लक्ष्यगतं नवन्तं, ध्याता मया मूढधिया हृदन्तः।कटाक्षवदोजगनीरनानिकटीतटीयाः सुदृशां विलासाः।२३लोलेद१ अंसलवत्सलादिवदौणादिकालप्रत्ययागमेन, विद्युत्पत्रान्धावति प्राकृतलक्षणेनेतिकश्चित् तन्न प्राकृतगन्धस्याप्यत्रानावात्, मुरलादेराकृतिगणत्वाच्च नालप्रत्ययउर्लनता. ___ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ए५) णावक्रनिरीदणेन,योमानसे रागलवो विलनान शुइसिधान्तपयोधिमध्ये,धौतोऽप्यगात्तारक! कारणं किम्?।२४ाअङ्गं न चङ्गं नगणो गुणानां,न निर्मलः कोऽपि कलाविलासः। स्फुरत्प्रनो न प्रजुता च काऽपि,तथाऽप्यदङ्कारकदर्थितोऽहम्।१५आयुर्गलत्याशु न पापबुद्धि-र्गतं वयो नो विषयानिवाषः। यत्नश्च नैषज्यविधौ न धर्मे, स्वामिन्मदामोदविडम्बना मे ॥ १६॥ नाऽत्मा न पुण्यं न नवो न पापं, मया विटानां कटुगीरपीयम् । अधारि कर्णे त्वयि केवलार्के, परिस्फुटे सत्यपि देव! धिङ्माम्॥२॥ न देवपूजा न च पात्रपूजा, न श्राइधर्मश्च न साधुधर्मः। लब्ध्वाऽपि मानुष्यमिदं समस्तं, कृतं मयाऽरायविलापतुल्यम् ॥१७॥चके १ मानसो. ५ प्रधानप्रनुता. ३ श्राधारि. Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९६) मयाऽसत्स्वपि कामधेनु-कल्पचिन्तामणिषु स्पृहार्तिः। न जैनधर्मे स्फुटशमदेऽपि, जिनेश ! मे पश्य विमूढनावम् ॥ १० ॥ सनोगलीला नच रोगकोला, धनागमो नो निधनागमश्च । दारा न कारा नरकस्य चित्ते, व्यचिन्ति नित्यं मयकाऽधमेन ॥ २० ॥ स्थितं न साधोर्हदि साधुटत्तात् ,परोपकारान्न यशोऽङितं च । कृतं न तीर्थो धरणादिकृत्यं, मया मुधा दारितमेव जन्म ॥२१॥ वैराग्यरको न गुरूदितेषु,न उर्जनानां वचनेषु शान्तिः । नाध्यात्मलेशो मम कोऽपि देव !, तार्यः कथंकारमयं नवाब्धिः॥श्शापूर्वे नवेऽकारिमया न पुण्य-मागामिजन्मन्यपिनो करिष्ये । यदीहशोऽहं मम तेन नष्टा,नूतोद्नव १ इष्टोऽयं प्रयोग इति कश्चित् , स जमिमावष्टब्धान्तः करण एव यतो न न्यत्नालि तेन युष्मदस्मदोऽसोनादिस्यादेः (श्रीसि० -३-३०) इति सूत्रम् ॥ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) दनाविनवत्रयीश ! ॥२३॥ किंवा मुधाऽहं बहुधा सुधाजुकपूज्य! त्वदने चरितं स्वकीयम्।जल्पामि यस्मात् त्रिजगत्स्वरूप-निरूपकस्त्वं कियदेतदत्र ? ॥ २४ ॥ __ शार्दूलविक्रीडितबन्दः॥ दीनोधारधुरन्धरस्त्वदपरो नास्ते मदन्यः कृपा-पानं नात्र जने जिनेश्वर! तथाऽप्येतांन याचे श्रियम्। किंवदन्निदमेव केवलमहो सदोधिरत्नं शिवं, श्रीरत्नाकर ! मङ्गलैकनिलय ! श्रेयस्कर प्रार्थये ॥२५॥ ॥ इति रत्नाकरपञ्चविंशतिका संपूर्णा ॥ अथ सामायिक लेवानो विधि. प्रथम स्थापनाचार्यजी न होय तो उंचे श्रासने पुस्तक आदि ज्ञानादिनुं उपकरण मुकीने श्रावक तथा श्राविकाए कटासणुं मुहपत्ति अने चरवलो लश्शुल वस्त्र सहित थर, जग्या पुंजी कटासणुं पाथरी, ते उपर बेसी, मुहपत्ति डाबा Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) दाथमां मुख पासे राखी, ते मे मुख ढांकी, जमयो हाथ धो स्थापनाजी सन्मुख राखीने एक नवकार तथा पंचिदिय कहेवा. पठी खमासमण द इरियावहि तस्सउत्तरी अन्नत्यऊस सिए कढ़ी एक लोगस्सनो चंदेसु निम्मलयरा सुधी (लो गस्स न आवडे तो चार नवकार) नो काउस्सग्ग करवो. नमो अरिहंताणं पद बोली काउस्सग्ग पारी लोगस्स कवो.प । खमासमण दइ" इवाकारे संदिसह जगवन् ! सामायिक मुहपत्ति पहिलेहुं?" कही कांइक विराम लइ इ कहीं पचीस बोल १ सेनप्रश्नना पाठप्रमाणे स्थापना त्रण नवकारे अने उत्थापना एकनवकारे. २ सूत्रार्थतत्त्वकरी सद्दढुं ? सम्यक्त्वमोहनीय मिश्रमोहनीय मिथ्यात्वमोहनीय परिहरु ४, कामराग स्नेहराग दृष्टिराग १०१, सुदेव सुगुरु सुधर्म श्रादरुं १०, कुदेव कुगुरु कुधर्म प० १३, ज्ञानदर्शन चारित्र श्र० १६, ज्ञानदर्शनचारित्रविराधना प० १९, मनोगुप्ति वचनगुप्ति काय गुप्ति ० २२, मनोदएकवचनदएककायदएक प० २५, हास्यरत्यरति प० २८, जयशोकडुबा प० ३१, कृष्णलेश्या नीललेश्या कापातलेश्या प० ३४, रसगारव विगारवसातागारव ५० ३७, मायाशस्य नियाणशस्यमिथ्यात्वशस्य प० ४०, क्रोधमान प० ४२, मायालोज १०४४, पृथ्वी काय काय ते कायनीजया करूं ४७, वायुकाय वनस्पतिकाय सकायनी रक्षा करूं ५०. Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१एए) चिंतववा साथे मुहपत्ति पमिलेहवी. पनी खमासमण दर "श्लाकारेण संदिसह नगवन् ! सामायिक संदिसावं?" कही कही खमासमण द"श्छाकारेण संदिसह नगवन् ! सामायिक गजं?" श्वं कही बे हाथ जोमी एक नवकार गणी "श्चकारि जगवन् ! पसाय करी सामायिक दंमक उच्चरावोजी” कही, गुरु अथवा वडिल होय तो तेओनी पासे करेमिन्नते उचर,नहि तर पोतानी मेले करेमिजतेनो पाठ बोलवो. पड़ी खमासमण दश् “श्छाकारेण संदिसह जगवन् ! बेसणे संदिसावं” “छकही, पठी खमासमण दर,"श्वाकारेण संदिसह नगवन् ! बेसणे गजं? छ” कहे. पठी खमासमण द" श्छाकारेण संदिसह नगवन् ! सज्जाय संदिसावं?" श्वं कही खमासमण दर वाकारेण संदिसह जगवन् सज्जाय करूं ? श्वं' कही त्रण नवकार गणवा. पली बे घमी वांचवा श्रादिए करी धर्मध्यान करवू अथवा नवकारवाली गणवी. विकथादि प्रमादमां पमबुं नहि. Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२००) ॥ अथ सामायिक पारवानो विधि ॥ प्रथम चरवलो लश् उन्ना यश् खमासमण द शरियावहि पमिकमी यावत् कास्सग्ग करी लोगस्स कही खमासण द"श्चाकारेण संदिसह नगवन् ! मुहपत्ति पमिले हुँ ? श्वं" कही,मुहपत्ति पमिलेही खमासमण दर "इछाकारेण संदिसह जगवन् ! सामायिक पारं' ?” गुरुए आदेश डा. प्या पनी यथाशक्ति कही खमासमण दर “इनाकारेण संदिसह नगवन् !सामायिक पायु” कही कंश्क विसामा पठी तहत्ति कही पली जमणो हाथ चरवला उपर अथवा कटासणा उपर स्थापी एक नवकार गणी ‘सामाश्यवयजुत्तो' कहेवो, पली जमणो हाथ स्थापना सामे सवलो राखीने एक नवकार गणवो,अहीं उपरा उपर त्रण सामायिक के बे सामायिक करवां होय तो दरेक सामायिक खेता लेवानी विधि करवी, पण वखतो वखत पारवू नही.बे सामायिक करवां होय, तो वे पूरा थ १ अहीं गुरु 'पुणोवि कायव्वो' कहे. २ अहीं गुरु 'आयारो न मोत्तव्यो' कहे. Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०१ ) ये नेत्र सामायिक करवा होय तो त्रण पूरा ये एक वार पार, एवी प्रवृत्ति बे. एक सामटा दश सामायिक करवां होय तो त्रण त्र सामायिक सुधी या विधि जाणवो. ' ॥ चप्रथ चैत्यवंदन करवानो विधि ॥ प्रथम त्रण खमासमण दइने पछी " इछाकारेण संदिसह जगवन् ! चैत्यवंदन करूँ?" कही, ''कही, चैत्यवंदन, जंकिंचि० कही, पठी बे कुणी पेट उपर राखी बे हाथ जोमी अंजली करी 'नमुत्थुणं' कहेवुं. पी मुक्ताशुक्तिमुद्राए ( वे हाथ पोला जोमी, माथा सुधी उंचा राखी ) 'जावंति चेथाई' कही, खमासमण दइ तेज मुद्राए जावंतके विसाहू कही, पठी अंजली करी 'नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुज्यः' तेमज उवसग्गहरं० अथवा गमे ते सुविहितनुं करेलुं स्तवन कहेतुं. पबी मुक्ताशुक्तिमुद्राए जयवीयराय श्रजवमखंमा सुधी कहीं हाथ जरा १ लगोलग सामायक लेबुं होय त्यारे बीजुं त्रीजुं सामायिक लेतां 'सज्झाय करूं' ना बदले 'सज्जायमां बुं एम कही ऋण नवकारना बदले एक नवकार गणवो. Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०२) नीचा उतारी जयवीयराय पूरा कदेवा; पठी उन्ना थ बे पग वच्चे चार आंगल अंतर राखी बे हाथे अंजली करी "अरिहंत चेश्याणं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ ऊससिएणं” कही एक नवकारनो कानस्सग्ग करवो. पडी नमो अरिहंताणं कही, 'नमोऽहतसिकाचार्योपाध्यायसर्वसाधज्यः' कही, थोयजोमामांनी पहेली थोय कदेवी.' ॥ अथ गुरुवंदन करवानो विधि ॥ प्रथम बे खमासण दईश्वकार सुहराइ' थी सुखशातापूवी पडीखमासमण दर्शश्वाकारेण संदिसह नगवन् अनुहिरोमि अब्लितर राश्यंखामेजं? कही अनुहि कदेवो. पलीपञ्चरकाण करवू, ॥ अथ पच्चरकाण पारवानो विधि ॥ प्रथम "इरियाव दियाए” पमिकमी, यावत् “ जगचिंतामणि" नुं चैत्यवंदन " जयवीयराय” सुधी करवं. पली "ममह जिणाण” नी सज्जाय कही, मुहपत्ति पमिलेहवी. पठी खमासमण दश 'श्छाकारेण संदिसह जगवन्! पच्चरकाण पारुं?' १ बपोर पीना वखतमां देवसियं कहेवू. Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०३) “यथाशक्ति" श्वामि० श्चा० पच्चरकाण पायु. "तहत्ति” एम कही, जमणो हाथ कटासणा अथवा चरवला ऊपर स्थापी, एक "नवकार" गणी, पञ्चरकाण कयु होय तेनुं नाम कहीने पारq.ते लखीये बीये-"जग्गएसूरे नमुक्कारस हिअं, पोरिसिं, साढपोरिसिं, गंठिसहि, मुहिसहियं पच्चरकाण कयु चजविहार; आंबिल, निवी, एकासणुं,बेयासणुं,पच्चरकाण कयु तिविहार; पञ्चकाण फासिवे, पालिश्र,सोहिअंतीरियं, किहिअं, आराहिथं, जं च न थारा हिथं, तस्स मिलामिछक्कम.” एम कही एक नवकार गणवो॥इति॥ ॥ अथ पमिलेहण करवानो विधि ॥ ___नवकार पंचिंदिय कही इरियाव हियाए कहेवू, ( स्थापना होय तो नवकार पंचिंदिय न कहेवा.) पनी तस्स उत्तरी अन्नत्य कही एक लोगस्स अथवा चार नवकारनो काउस्सग्ग करी, प्रगट लोगस्स कही, खमासमण दश्, 'इला पमिलेहण करूं ? श्लं' कही, उन्ने पगे बेसी मुहपत्ती, चरवलो, कटासणुं, उत्तरासण, धोतीयं, कंदोरो श्रादिनुं पमिलेहण करवं. Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०४) पड़ी रियावही पमिकमी काजो काढी, जीव कलेवर सचित्त आदि जोवू, पबी काजो काढनार स्थापनाजी सामो उनो रही, इरियावही पमिकमी, काजो परउववा जग्या शोधी, त्रणवार 'अणुजाणह जस्सुग्गहों कही काजो परवीने पनी त्रण वार “वोसिरे” कहे ॥ इति ॥ ॥ अथ देववांदवानो विधि ॥ ॥ प्रथम इरियावही पमिकमवाथी मामीने यावत् लोगस्स कही, पठी उत्तरासण नाखी, चैत्यवंदन, ६ नमत्थणं" कही. " जयवीयराय थानवमखंमा " सुधी हाथ जोमी कहे. वली फरी" चैत्यवंदन” कहीने “नमुत्थुणं” कही, यावत् चार थोयो कहीये तिहां सुधी बधुं कहेवू; पड़ी"नमुत्थुणं०"कही, वली चार थोयो कहीये त्यां सुधी बधुं कहेवू; पली "नमुत्थुणं०” तथा बे " जावंति "क ही, स्तवन कही, “जयवीयराय आनवमखंडा" सुधी कही, पनी " चैत्यवंदन” कही, "नमुत्थुणं" कही, पाखा “ जयवीयराय" कहेवा.पली श्छा सज्जाय करूं कही नवकार Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०५) गणी मनहजिणाणण्नी सज्जाय कहेवी. इहां सवारे देव वांदवा तेमां " मन्ह जिणाणं” नी सज्जाय कहेवी, अने मध्यान्हे तथा सांके देव वांदवामां सज्जाय न कहेवी ॥ इति ॥ ॥अथ देवसि प्रतिक्रमणविधि ॥ प्रथम पूर्वनी रीतिये सामायिक खेवं. पठी पाणी वापर्यु होय तो खमासण दश"श्वा० संदि जग मुहपत्ति पमिलेहं ? छ” एम कही बेसीने फक्त मुहपत्ति पमिलेदवी अने जो आहार वापर्यो होय तो बे वांदणां देवां; त्यां बीजा वांदणामां"आवस्सियाए" ए पद न कहेतां श्रवग्रहमा ज उना रहीने “ श्चकारी जग पसाय करी पञ्चरकाणनो आदेश देशोजी” एम कहेवू, पडी वमिल पञ्चकाण करावे या पोते यथाशक्ति पच्चरकाण करे. पनी खमासमण दक्ष उन्ना थ“श्नासंदिग्नगा चैत्यवंदन करूं ?" एम कहे; पनी बेसीने वडिल चैत्यवंदन करे वमिल न होय तो पंचांग प्रणिपातथी (बंने ढींचण जमीन उपर स्थापी) पोते करे. पली "जं किंचि"कहेवू.पड़ी नमुत्थुणं कह। उन्ना Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०६ ) थई अरिहंत चेश्थाएं कही अन्नत्थकही एक नवकारनो का सग्ग करी पोरी नमोऽई कही पहेली थोय कदेवी. पठी लोगस्स, सव्वलोए अरिहंत चेश्या० न्नथ्य० कही एक नवकारनो का सग्ग करी पारी बीजी थोय कहेवी. पुरकरवरदी, सुस्स जगवर्ज करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तिए कही, अन्नत्थ० कही, एक नवकारनो का सग्ग करी, पारी त्रीजी थोय कदेवी. पी सिद्धाणं बुद्धा कही, वेयावच्चगरा० न्नथ० कही, एक नवकारनो काउसग्ग करी, पारी नमोऽर्हत्० कही चोथी थोय कवी. पढी बेसीने नमुत्यु कहेतुं पढी उजा थइ चार खमासमण देवा पूर्वक " जगवा - नहं, श्राचार्यहं, उपाध्यायहं सर्वसाधुहं " एम क. पी 'इकारि समस्त श्रावकने वांएं,' एम कहे. पछी " छा० संदि० जग० देवसिप डिक्कमणे गजं ? श्वं " ए श्रादेश मागीने बेसी जमणो हाथ चरवला उपर या भूमि उपर स्थापी " सवस्सवि देवसिय 5चिंति, डुब्नासिय, पुच्चि हिश्र मिठामि · Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) उक” ए पाठ कदेवो. (प्रतिक्रमणमां दरेक आदेश वमीलज मागे ते न होय तो. श्रावक पोते मागे. या वात पीविकारूपे सर्वत्र योजवी.) पनी उना थइ 'करेमिन्नते श्वामिगमि काउसग्गं जोमे देवसि अश्यारो'कही तस्सउत्तरी० अन्नत्थ कही, अतिचारनी आठ गाथानो, अने ते न आवडे तो आठ नवकारनो काउसग्ग करी, पारी, प्रगट लोगस्स कदेवो. पडी बेसीने त्रीजा आवश्यकनी मुहपत्ति पमिलेहवी.पबी उन्नाथश्ने बे वांदणां देवा, तेमां बीजा वांदणा वखते अवग्रह बहार नीकलवू नहि. बीजुं वांदणुं पूरूं थये "श्चा० सं० न देवसियं आलो?"कही, जो मे देवसिउँ अश्रोनो पाठ कहेवो. पठी 'सात लाख' अने 'अढार पापस्थानका' कहेवा. पठी 'सबस्सवि देवसिथ उचिंतिय उन्नासिय उच्चियि श्छा संदि० नग छ तस्स मिछामि उक” एम कही वीरासने अथवा न आवडे तो जमणो ढींचण उचो राखी एक नवकार करेमि कही, श्वामि पडिकमिजं, जो मे दे Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०८ ) वसि - रो कही संपूर्ण वंदित्तु कहेतुं . पण तेमां "तस्स धम्मस्स केवलिपसत्तस्स जुहि मि" ए पद बोलतां उजा य ने अवग्रहनी बहार जश्ने वंदित्तु पूरुं कर. पठी बे वांदणां देवां, बीजा वांदणामां श्रवग्रहमां उजा होइए त्यां " इछाकारेण संदिसह जगवन् - ब्लुमिनिंतर देवसि खामेतं ? वं खामि देवसिां" कहीने जमणो हाथ चरबला उपर स्थापी जंकिंचि अपत्ति इत्यादि पाठ बोलतां अन्नुहि खामवो. पठी अवग्रह बहार नीकलीने वे वांदणां देवां वीजं वदणुं पूरुं याय त्यारे अवग्रहनी बहारनी कली, आयरिय उवज्जाए कहेतुं पढी करेमि ते ०श्छामि गमि० तस्स उत्तरी, अन्नत्थ० कही, वे लोगस्स अथवा न वने तो आठ नवकारनो काउस्सग्ग कवो. ( शांति के खराब स्वप्नना काउस्सग्ग शिवाय बीजी बधी जगोए लोगस्सना ज्यां ज्यां काउस्सग्ग यावे त्यां त्यां 'चंदेसु निम्मलयरा' सुधी जगणवानुं ध्यानमा राखतुं ) पढी पारीने लोगस्स, सबलोए अरिहंत चेइ० श्र Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०५) नत्थ कही, एक लोगस्स, या चार नवकारनो कानस्सग्ग करी, पारी, पुरकरवरदी सबस्स नगवओ करेमि काज वंदण कही, अन्नत्थन कही एक लोगस्सनो या चार नवकारनो काउस्सग्ग करी, पुरकरवरदी सुअस्स जगव करेमिकान वंदण कही, अन्नत्थन कही एक लोगस्सनो या चार नवकारनो काउस्सग्ग करी, पारी सिकाणं बुझाणं कहे. पठी "सुअदेवयाए करेमि कानस्सग्गं अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी, पारी, नमोऽहत कही पुरुष सुभदेवयानी थोय (अहीं स्त्री होय तो ते कमलदलनी स्तुति कहे) कहेवी, पठी “खित्तदेवयाए करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ कही, एक नवकारनो काउसग्ग करी, पारी, नमोऽहत्। कही, जीसे खित्ते साहनी थोय कहेवी. (अहीं पण स्त्री होय तो ते यस्याः देत्रं नी थोय कहे) पड़ी एक नवकार गणी बेसीने मुहपत्ति पमिलेहवी. पली बे वांदणां देवा. पनी अवग्रहमा ज उन्ना उत्ना "सामायिक, चवीसत्थो, वांदणां, पडिकमj, कान १४ ___ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१० ) " स्सग्ग, पञ्चरकाण कर्यु बेजी.” “इलामो अणुसहिं” एम कही वेसीने " नमो खमासमणाणं, नमोऽर्हत् इत्यादि" पाठ कही, नमोऽस्तु वर्द्धमानाय० कहेतुं. (हीं स्त्री होय तो ते संसादावानी त्रण थोय कहे) पी नमुत्थुणं कही " इछाकारेण संदि० जग० स्तवन जणुं ? इवं एम कही स्तवन कहेतुं ( स्तवन पूर्वाचार्यनुं बनावेलुं जंगमां तुं पांच गाथानुं होतुं जोइए). पढी वरकनक कही पूर्वनी पेठे जगवानादिचारने जगवानहं विगेरे कहीं चार खमासव योजवंदन करवुं पठी जमणो हाथ चरवला या भूमिपर स्थापी डाइजेसु० कहे वं. पनी उजा थइ इवा० संदि० जग० देवसि - पायवित्तविसोहणत्थं काउस्सग्ग करूं ? इछं, देवसिपायवित्तविसोहणत्थं करेमि काउस्सग्गं" अन्नत्थ कही चार लोगस्स या सोल नवकारनो काजस्ग्ग करी, पारी, प्रगट लोगस्स कदेवो. पती वे खमासण देवा पूर्वक "सज्जाय संदिसावं ? इछं. सज्जाय करूं ? " एवी ते वे आदेश मागी बेसीने एक नवकार ग 46 Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२११) णीने वमिल अगर तेनो आदेश मागी पोते सज्जाय कहे. पनी एक नवकार गणी उन्ना थर खमासण द" श्वा० संदि० जग कुस्करकयकम्मरकयनिमित्तं कानस्सग्ग करूं ? श्वं पुस्करकयकम्मरकयनिमित्तं करेमि कानस्सग्गं” एम कही अन्नत्था कही संपूर्ण चार लोगस्स या सोल नवकारनो काउस्तग्ग करी, पारी, नमोऽहत् कही, एक जण 'लघुशांति' कहे; अने वीजा कानस्सग्गमा सानले. पड़ी काउस्सग्ग पारी, लोगस्त कही खमासण दरियावही तस्सनत्तरी अन्नत्या कही,ए. क लोगस्स या चार नवकारनो कानस्सग्ग करी, पारी,लोगस्स कहेवो. पठी वेसी चक्कप्लाय,नमुत्थुणं,जावंतिचेश्याकही खमासण दर जावंत केविसाह, नमोऽहत्व नवसग्गहरं कही,बेहाथ ललाटे लगामी जयवीयराय कही, खमासण दक्ष, "श्चा संदिन जग० मुहपत्ति पमिलेहुँ?” कही मुहपत्ति पमिलेहवी.पछी उना थश्वे खमासमण देवा पूर्वक अनुक्रमे "छाप संदिरा नग० सामायिक पारुं ?यथाशक्ति” तथा “श्वासंदिगण Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१२ ) सामायिक पार्यु. तहत्ति " कहीं, सामायिक पारवानी विधि प्रमाणे सामाश्यवयजुत्तो० कहेवा पर्यंत सर्व कहेवुं. पढी स्थापना स्थापी होय तो जमणो हाथ सवलो स्थापनाजी सन्मुख राखी एक नवकार गणो इति. ॥ अथ राइ प्रतिक्रमण विधि ॥ प्रथम पूर्व रीतिए सामायिक लेवुं, पढी खमासमण दई " इछाकारेण सं दिसह जगवन् ! कुसुमिल सुमिण उड्डावणी राइपायच्छित्त विसोहृणत्थं काउस्सग्ग करूं? इछं, कुसुमिण डुसुमिलउड्डावणी राइपाय च्छित्त विसोहणत्थं करेमि काउस्सगं" एस कही अन्नत्थकही काम जोगादिनां ते रात्रिए कुस्वप्न श्राव्यां होय तो सागरवरगंजीरां सुधी ने बीजां दुःस्वप्न - व्यां होय तो चंदेसु निम्मलयरा सुधी चार लोगस्स या सोल नवकारनो काउस्सग्ग करी, पा १ हावणी अगर उड्डावणी. २ काम जोगादि कुस्वप्न श्राव्यां होय तो चंदेसुनिम्मलयरा सुधी चार लोगस्स ने एक नवकारनो काउस्सग्ग करवानो पण विधि बे. ३ न व्यां होय तो पण. ! Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१३ ) थइ री प्रगट लोगस्स कहेवो. पढी खमासमण द‍ "इछाकारेण संदि०जग० चैत्यवंदन करूं ? इच्छं." एम कही बेसीने पंचांग प्रणिपाते जगचिंतामपिनुं चैत्यवंदन जयवीयराय० पर्यंत करवुं. पठी जगवानादि चारने थोजवंदन कर. पी उजा इ वे खमासमण देवा पूर्वक सज्जायनो आदेश मागी बेसीने एक नवकार गणी, जरदेसर नी सज्जा कवी. पी छकार सुहराइ सुख तपनो पाठ कदेवो, पढी "इलाकारेण संदि० जग० राश्पक्किमणे गजं ? " एम कही जमणो हाथ उपधि उपर स्थापी सवस्सवि राज्य पुञ्चितिश्र० नो पाठ कहेवो. पठी नमुत्थुणं कही उजा थइ करे मिनंते, इछा मिठामि, तस्सउत्तरी, अन्नत्थ० कही, लोगस्स या चार नवकारनो काउस्सग्ग करवो. पछी लोगस्स, सबale to अन्नत्थ० कही एक लोगस्स या चार नवकारनो काउस्सग्ग करवो. पढी पुरकवरदी० सुस्स जगवर्ज० वंद० अन्नत्थ कही व गाथानो या आठ नवकारनो काउस्सग्ग करवो. पढी सिद्धाणं बुद्धाणं कही Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१४ ) बेसीने त्रीजा घ्यावश्यकनी मुहपत्ति पमिलेहवी. पठी उजा थर वांदणां वे देवां पठी “इछाकारेण संदि० जग० राश्यं श्रालोनं ? छं” थालोए मि जो मे राइ० नो पाठ कदेवो; पछी सातलाख, ढार पापस्थानक, "सबस्सवि राज्य० " देवसि प्रतिक्रमणनी पेठे कहेतुं पठी बेसीने वीरासन (?) न यावडे तो जमणो ढींचण उनो राखी नवकार, करेमिनंते, इछामि पमिक्कमिजं जो मे राइ० कही वंदित्तु कहेवुं. ४३ मी गायामां "अजुमि ” पद कहेतां उजा थर वंदित्तु पुरुं कही, वांदणांवे देवां पठी - वग्रहमांज रही श्रादेश मागी अन्नुहि मि० खामीने श्रवग्रह बहार नीकली वांदणां वे देवां. पठी आयरिय उवज्जाए कहेवुं. पठी श्वामिगमि० तस्स० [अन्नत्य० कही सोल नवकारनो काउस्सग्ग करी ( यत्र तपचिंतवणीनो काउरसग्ग करवानो वे ) पारी, प्रगट लोगस्स कड़ी बेसीने वा आवश्यकनी मुहपत्ति पहिलेही ने उजा थइने वांदणां वे देवां पढी अवग्रहनी अंदर रहीने सकलतीर्थ कहेतुं पढी श्रादेश Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१५) मागी यथाशक्ति पच्चरकाण करवं. पबीब आवश्यक देव सिवनी पेठे संजारवां पड़ी " - छामो अणुसहि” कही बेसीने नमो खमासमणाणं नमोऽहत्। कही विशाललोचनदलं० कहेवू, (अहीं स्त्रीए संसारदावानी त्रणथोय कहेवी) परी नमुत्थुणं कही उत्ता थर अरि० अन्नत्य एक नवकारनो कालस्सग्ग करी पारी, नमोऽर्हत् कही, कल्लाणकंदनी प्रथम थोय कहेवी. पनी लोगस्स, पुरस्करवरदी० सिझाणं बुझाणं कहेवा पूर्वक देववंदन करीए बीए ते विधिए देवसि प्रतिक्रमणनी पेरे कबाणकंदंनी चोथी थोय कहेवा पर्यंत सर्व विधि करवी.पबी बेसीने नमुत्थुणं कही जगवानादि चारने थोजवंदन करवू. पठी जमणो हाथ उपधि उपर स्थापी, अवाश्ोसु कहे. पड़ी बंने ढींचण नूमि पर स्थापी शानकोण सन्मुख बेसी या ते दिशा सनमा चितवीन खमासमण दश् श्रीसीमंधरस्वामिनु चैत्यवंदन, स्तवन, जयवीयराय, थोय पर्यंत विधि पूर्वक करवू; तेमां अरिहंत चे श्री उना थश्ने Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) विधि करवी. तेज प्रमाणे खमासमण दक्ष श्री सिझाचलजीनु चैत्यवंदन, स्तवन, जयवीयराय, थोय पर्यंत विधि पूर्वक करवं. पठी सामायिक पारवानीरीतिए सामायिक पार इति. ता.क. गुरु महाराज होय त्यारे तेयो जेमथादेश मागे , तेथो कानस्सग्ग पारे त्यारे आपणे पारीये बीए, कंसूत्र कहेवू होय त्यारे तेउनी पासे कहेवानो आदेश मागीए बीए; तेज प्रकारे तेमने विरहे करेमिनंते उच्चरावनार झान वृक्ष प्रत्ये पण प्रतिक्रमण करती वखते विनयथी वर्तवं योग्य . ॥ अथ परिकप्रतिक्रमण विधि ॥ प्रथम देवसिक प्रतिक्रमणमा वंदित्तु कही रहिये तिहां सुधी सर्व कहे; पण चैत्यवंदन सकलाईत्नुं कहेवं, अने थोयो स्नातस्यानी कहेवी. पली खमासमण दर्शने देवसियालोश्य पमिकंता इलाकारेण संदिसह जगवन् ! परिकमुहपत्ति पमिलेहुँ ? एम कही मुहपत्ति पमिलेहवी, पनी वांदणां बे देवां,पली श्वाकारेण संदिजग अहिउहं संबुझाखामणेणं अभिनं. तरपरिकअं खामेलं ? इच्छं खामेमि परिक, Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) पेनरस दिवसाणं, पनरस राश्याणं, जंकिंचि अपत्तियं कही इलाकारेण सं० नग परिक बालो? इलोएमिजो मे परिक अश्यारो का कही "श्वाकारेण परिक अतिचार आलोठं ?” एम कही अतिचार कहिये. पठी “एवंकारे श्रावकतणे धर्मे श्रीसमकित मूल बारव्रत एकसो चोवीश अतिचार मांहे जे कोश् अतिचार पद दिवसमाहे सूदम बादर जाणतां अजाणतां ह होय. ते सव्वे मने वचने कायाए करी मिठामि मुकम्” कही "सव्वस्तवि पकिय चिंतित्र, पुनासिथ, पुचिहिय, इलाकारेण संदिसह नगवन् ! श्वं तस्स मिलामि पुकम्” कही, “इनकारि !नगवन् पसाय करी पकितप प्रसाद करोजी.” एम उच्चार करीने श्रावी रीते कहिये:-"चनत्थे णं,एक उपवास, बे बिल, त्रण नीवि, चार एकासणां, पाठ बेवासणां, बे हजार सज्जाय यथाशक्ति तपकरी प्होंचाडवो.” पठी प्रवेश कयों होय तो, 'पहि १ एक परकाणं ( अंतोपरकस्स ) पन्नरसराइंदियाणं. २ गुरु पनिक्कमेह कहे पठी. ३ तप. Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) 3' कहीये, अने करवो होय तो तहत्ति' कहीये, तथा न करवो होय तो श्रणबोल्यो रहीये. पठी वांदणां वे देवां.पनी बाका अनुहिऽहं पत्तेअखामणेणं अनितरपरिकथं खामे ? छ खामे मि परिकरं, पेनरस दिवसाणं पनरस राश्याणं जंकिंचि अपत्तियं कही वांदणां बे देवां. पडी देव सिथ थालोश्य पमिकंता श्छाका संदि० नगवन् परिकअं पमिक मुं ? सम्म पमिकमामि, एम कही करेमिनंते सामाश्य कही, श्यामि पमिकमिदं जो मे परिक० कहे. पठी खमासमण दर चाकारेण संदि परिकसूत्र कढुं. एम कही त्रण नवकार गणी साधु होय तो परिकसूत्र कहे अने साधु न होय तो त्रण नवकार गणीने श्रावक वंदित्तु कहे. पठी सुअदेवयानी थोय कहेवी. पठी हेग वेसी जमणो ढिंचण उनो राखी, एक नवकार गणी, करेमिजतेरा श्वामि पनि कही वंदित्तु १ यथाशक्ति केटलाक बोले . २ एक पक्खाणं पनर. सदिवसाणं पनरसराश्याणं ३ परिकगं पमिकमावेह ? गुरु कहे सम्म पमिकमह! शिष्य कहे 'छ, सम्म पमिकमामि.' Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१ए) कहेवू.पनी करेमि ते श्वामि गमि काजस्सग्गं जो मे परिकर्ड तस्सउत्तरी अन्नत्था कहीने बार लोगस्सनो कामस्सग्ग करवो. ते लोगस्स चंदेसु निम्मलयरा सुधी कहेवा, अथवा श्रमतालीश नवकारनो काउस्सग्ग करी पारवो, पारीने प्रगट लोगस्स कही मुहपत्ति पमिले हिने, वांदणां बे देवां. पठी 'श्छाका अनुहिजेऽहं समत्तखामणेणं अनितर परिकअं खामेजं? छ खामेमि परिक,एकपरकाणं, पनरस राश्याणं, पनरस दिवसाणं जं किंचि अपत्तिअंकही पली खमासमण दश्ने इलाका परिक खामणा खामुं? एम कही खामणां चार खामवां. पडी देवसि प्रतिक्रमणमां वंदित्तु कह्या पली बे वांदणां दए तिहांथी ते सामायिक पारीये त्यांसुधी सर्व देवसीनी पेठे जाणवू,पण सुअदेवयानी थोयोने ठेकाणे ज्ञानादिनी थोयो कदेवी.स्तवन अजितशांतिनुं कहेQ. सज्जायने ठेकाणे उवसग्गहरं तथा संसारदावानी थोयो चार कहेवी, अने लघुशांतिने ठेकाणे म्होटी शान्ति कहेवी ॥ इति परिकप्रतिक्रमण विधिः ।। Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (20) ॥अथचनमासीप्रतिक्रमण विधिः॥ // एमां उपर कह्या मुजब पस्किनी विधि प्रमाणे करवू पण एटबुं विशेष जे बार लोगस्सना कास्सग्गने ठेकाणे वीश लोगस्सनो कास्सग्ग करवो अने परिकना शब्दने ठेकाणे चउमासीनो शब्द कहेवो तथा तपने ठेकाणे “उठेणं, वे उपवास, चार श्रांबिल, उनीवि, थाठ एकासणां, सोल बेआसणां, चार हजार सज्जाय” ए रीते कहेQ // इति // ॥अथसंवत्सरीप्रतिक्रमणविधिः॥ ॥एमां पण उपर लख्या मुजब परिकनी विधिप्रमाणे करवू; पण एटबुं विशेष जे बार लोगस्सनाकाउस्सग्गने ठेकाणे चालीश लोगस्स ने एक नवकार अथवा एकसो ने साठ नवकारनो काजस्सग्ग करवो अने तपने ठेकाणे "अहमजतं,त्रण उपवास, उ श्रांबिल, नव नीवि,बार एकासणां,चोवीस वेपासणां अनेक हजार सज्जायः"ए रीते कहे. अने परिकना शब्दने ठेकाणे संवत्ररीनो शब्द कहेवो॥इति संवचरीप्रतिक्रमणविधिः इति श्रेष्टि-देवचन्द्र लालभाई-जैनपुस्तकोद्वारे-ग्रन्थाङ्क:-~-१९ -