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( १२४ ) जव पातक त्रुटे || शेत्रुंजा सादामो डग जरीये ॥ वि० ॥ २ ॥ सात ब दोय - हम तपस्या, करी चढीये गिरिवरीये वि० ॥ ३ ॥ पुंडरीक पद जपीये दरखे, अध्यवसाय शुभ धरीये ॥ वि० ॥ ४ ॥ पापी नविन नजरे देखे, हिंसक पण क६रीये ॥ वि० ॥ ५ ॥ जुइ संथारो ने नारी तो संग, दूरथक परिदरीये ॥ वि०॥६॥ सचित्त परिदारी ने एकलयदारी, गुरु साथै पदचरीये ॥ वि० ॥ ७ ॥ पडिक्कमणा दोय विधिशुं करीये, पापपडल विखरीये ॥ वि० ॥ ८ ॥ कलिकाले ए तीरथ मोहोड, प्रवण जिम नर दरीये ॥ वि० ॥ एए ॥ उत्तम ए गिरिवर सेवंतां, पद्म कदे नव तरीये ॥ विमल० ॥ १० ॥ इति ॥ ७८ ॥ ॥ अथ सप्तमं श्रीसिदाचलस्तवनं ॥ ॥ चालो चालोने राज, श्रीसिदाचल
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