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( ३० ) मासा माणसिस्स, सबस्स वयाइच्यारस्स ॥ ३४ ॥ वंदणवय सिकागा- खेसु सन्नाकसायद मेसु ॥ गुत्ती सुसमिसु अ, जो अइयारो (तयं) तं निंदे ॥ ३६ ॥ सम्मद्दिठी जीवो, जवि हु पावं समायरे किंचि ॥ अप्पो सि होइ बंधो, जेण न निधसं कुणइ ||३५|| तंपि हु सपडिक्कमणं, सप्परिआवं सउत्तरगुणं च ॥ खिप्पं नवसामेई, वादिव सुसिरिकर्ड विको ॥ ३७ ॥ जदा विसं कुठगयं, मंतमूलविसारया ॥ विजा दांति मंतेहिं, तो तं दवइ निधिसं ||३८|| एवं विदं कम्मं, रागदोससमयिं ॥ ॥ आलो तो निंदंतो, खिप्पं दाइ सुसाव ॥ ३० ॥ कयपावोवि मणुस्सो, आलोच्य निंदिच्य गुरुसगासे ॥ दोइ इरेगलहुई, उदरित्र्नरुव जारवदो ॥ ४० ॥
१ मणूसो.
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