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(१३५) रजी अर्ज ने एक मोरी, दीजे दासकुं सेवना चरण तोरी॥ पुण्य उदय हु गुरु आज मेरो, विवेके लह्यो में प्रन्नु दर्श तेरो ॥२५॥ इति ॥ २॥
॥अथ श्रीगौतमाष्टकबंद ॥ ॥वीर जिणेसर केरो शिष्य, गौतम नाम जपो निशदीश ॥ जो कीजे गौतमनुं ध्यान, तो घर विलसे नवे निधान ॥५॥ गौतम नामे गिरिवर चढे, मनवांबित देला संपजे ॥गौतम नामे नावे रोग, गौतम नामे सर्व संजोग ॥॥ जे वैरी विरूआ वंकमा, तस नामे नावे ढुंकडा ॥नूत प्रेत नवि मंडे प्राण, ते गौतमनां करुं वखाण ॥३॥ गौतम नामे निर्मल काय, गौतम नामे वाधे आय ॥ गौतम जिनशासन शणगार, गौतम नामे जयजयकार ॥४॥ शाल दाल सुरहा घृत गोल, मनवंग्ति
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