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( १४७ )
॥ नवस्मरणप्रारम्भः ॥ १ ॥ प्रथमं नवकार पंचमङ्गलरूपम् ॥ नमो अरिहंताणं ॥ १ ॥ नमो सिझणं ॥ २ ॥ नमो आयरियाणं ॥ ३ ॥ नमो उवज्जायाणं ॥ ४ ॥ नमो लोए सव्व - साहूणं ॥ ५ ॥ एसो पंचनमुक्कारो ॥ ६ ॥ सवपावप्पणासणो ॥ ७ ॥ मंगलाणं च सचेसिं ॥ ८ ॥ पढमं दवइ मंगलं ॥ ए॥इति ॥ १ ॥
२ ॥ अथ नवसग्गहरं स्तवनम् ॥ नवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं । विसदरविसनिन्नासं, मंगलकवाण प्रवासं ॥ १ ॥ विसदरफुलिंगमंतं, कंठे धारेइ जो सया मणु । तस्स गढ़रोगमारी - जरा जंति नवसामं ॥ २ ॥ चिठन दूरे मंतो, तुज्य पणामोवि बहुफलो दोइ | नर तिरिएसुचि जीवा, पार्वति न दोगचं ॥ ३ ॥ तुद सम्मत्ते वदे,
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