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( ६७ ) बादिर मोकल्युं. शब्द संभलावी, रूप देखाडी, कांकरो नांखी प्राणपणुं बतुं जणाव्यं, पुद्गलतणो प्रक्षेप कीधो. दशमे देशावगाशिक व्रत विषइओ नेरो० १४
ग्यारमे पोषधोपवास व्रते पांच अतिचार. संथारुच्चार विदि० ॥ पोसलीधे संथारातणी भूमि बाहिरलां थंकिलां संदिसे रुडां शोध्यां नहि, पडिलेह्यां नहि, थं मिल मात्र परठवतां चिंतवणी न कीधी; " प्रणुजापह जस्सुग्गदो" न कह्यो, परवव्या पुंठे वार त्रण वोसिरे वोसिरे न को. देहरा पोसालमांदे पेसतां निसरतां निसीहि वस्सदि कहेवी विसारी. पुढवी, आप, तेज, वान, वनस्पति, सकाय तणा संघ परिताप उपश्व कीधाः संयारा पोरसी तो विधि जणवो विसार्यो, प्रविधि संथार्या; पारणादिकती चिंता
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