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( १९६) ॥अथ श्री परमात्मानुं पांचमुं चैत्यवंदन ॥
परमेसर परमातमा, पावन परमिह॥ जय जगगुरु देवाधिदेव, नयणे में दिक ॥१॥ अचल अकल अविकारसार, करुपारस सिंधु ॥ जगती जन आधार एक, निःकारण बंधु ॥३॥गुण अनंत प्रजु तादरा, किमदी कह्या न जाय ॥राम प्रनु जिनध्यानथी, चिदानंद सुख थाय ॥३॥ इति ॥ २॥
॥ अथ स्तवनानि प्रारच्यन्ते ॥ ॥ तत्र प्रथमं सीमंधरजिनस्तवनं ॥ सुणो चंदाजी, सीमंधर परमातम पासे जाज्यो ॥ मुज वीनतडी, प्रेम धरीने एणिपरे तुमे संनलावजो ॥ ए आंकणी॥ जेत्रण नुवननो नायक डे, जस चोसठ इंड पायक ॥ नाण दरिसण जेदने खा
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