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( १४४ ) ए देशी || पिजी पिनजीरे नाम, जपुं दिन रातियां || पिनजी चाल्या परदेश, तपे मोरी बातीयां ॥ पग पग जोती वाट, वालेसर कब मिले || नीर विबोह्यां मीन के, ते ज्युं टलवले ॥ १ ॥ सुंदर मंदिर सेज, सादिब विण नवि गमे ॥ जिदांरे वालेसर नेम, तिदां मारुं मन जमे ॥ जो दोवे सजन दूर, तोदि पासे वसे ॥ किदां सायर किदां चंद, देखि मन उसे ॥ २ ॥ निःस्नेदी शुं प्रीत, मकरजो को सदी || पतंग जलावे देद, दीपक मनमें नहीं ॥ वाला माणसनो विजोग, म दोजो केदने ॥ सालेरे साल - समान, दइयामां तेदने ॥ ३ ॥ विरद व्यथानी पीड़, जोबन प्रति ददे ॥ जेनो पियु परदेश ते, माणस दुःख सदे ॥ झुरी झुरी पंजर कीध, काया कमल जिसी ॥ दजी न आव्या नेम, मली नयणे दसी
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