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(१४३) श्रे॥४॥ बहु राजवैद्य बोलाविया, कीधला कोटि उपाय॥बावनाचंदन चरचियां, तोदि पणरे समाधि न थाय ॥श्रे॥५॥ जगमांदि को केदनो नदी, ते नणी हंरे अनाथ ॥ वीतरागना धरम सारिखो, नर्दि को बीजोरे मुक्तिनो साथ ॥श्रेण ॥ ६॥ वेदना जो मुफ उपशमे, तो ले संजम जार ॥श्म चिंतवतां वेदन गइ, व्रत ली, में हर्ष अपार ॥श्रे॥ ॥ करजोडी रायगुण स्तवे, धन्य धन्य ए अणगार ॥श्रेणिक समकित पामियो, वांदी पोदोतोरे नगर मकार ॥श्रे॥७॥ मुनि अनाथी गुण गावतां, तूटे कर्मनी कोड ॥ गणि समयसुंदर तेदना, पाय वंदेरे बे करजोड ॥ श्रे॥ए॥इति अनाथी सज्काय ॥२॥
॥ अथ श्रीनेम राजुलनी सज्काय ॥ ॥ नदीजमुनाके तीर,जडे दोय पंखीया.
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