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(१२०) स्वनावने, बोधन शोधन काज लालरे॥ रत्नत्रयी प्राप्तितणो, देतु कहो महाराज लालरे॥ देव०॥६॥ तुज सरिखो साहिब मले, नांजे नवन्त्रम टेव लालरे ॥पुष्टालंबन प्रनु लदी, कोण करे पर सेव लालरे॥ देव०॥७॥ दीनदयाल कृपाल तुं, नाथ नविक आधार लालरे ॥ देवचं जिन सेवना, परमामृत सुखकार लाल रे॥देव० ॥ ॥ इति ॥ ५॥ ॥अथ चोथु वीश विदरमान- स्तवन ॥
राग रामकली सीमंधर युगमंधर बाहु, चोथा स्वामी सुबाहु ॥ जंबुढीप विदेदे विचरे, केवल कमला नाहुरे॥१॥नविका विदरमानजिन वंदो ॥ आतम पाप निकंदोरे॥ ज०॥ए आंकणी ॥ सुजात स्वयंप्रन ऋषनानन, अनंतवीरज चित्त धरीये ॥
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