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(११) सुरप्रन श्रीविशाल वजंधर, चंजनन धातकी एरे॥ नविण ॥२॥ चंबाहु जुजंग ने ईश्वर, नेमिनाथ वीरसेन ॥ देवजस चंजसा जितवीरिय, पुस्करबीप प्रसन्न रे॥०॥३॥ आठमी नवमी चोवीश पचवीशमी, विदेह विजय जयवंता ॥ दश लाख केवली सो कोड साधु, परिवारे गदगदंतारे ॥ न ॥४॥धनुष पांचशे उंची सोदे, सोवनवरणी काया ॥ दोष रहित सुर मदि महीतल, विचरे पावन पायारे॥ न ॥ ५ ॥ चोराशी लाख पूरव जिन जीवित, चोत्रीश अतिशयधारी॥ समवसरण बेग परमेश्वर, पडिबोदे नरनारी रे॥ ज० ॥६॥ खिमाविजय जिन करुणासागर, आप तां पर तारे ॥ धर्मनायक शिवमारगदायक, जन्म जरा जुःख वारेरे न० ॥७॥६॥
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