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(१२) ॥अथ श्रीसिझाचलजीतुं स्तवन । ॥आंखडीयेरे में आज, शत्रुजय दीठगेरे ॥ सवा लाख टकानो दहाडोरे, लागे मुने मीगरे॥ ए आंकणी॥ सफल थयो मारा मननो उमादो ॥ वाला मारा ॥ जवनो संशय नांग्योरे॥ नरक तिर्यंच गति दूर निवारी, चरणे प्रजुजीने लाग्योरे ॥ शत्रु ॥१॥मानव नवनो लादो लीधो॥वा॥ देड्डी पावन कीधीरे ॥ सोना रुपाने फूखडे वधावी,प्रेमे प्रदक्षिणा दीधीरे॥शन ॥२॥ उधडे पखाली ने केसर घोली ॥ वा ॥श्री आदीश्वर पूज्यारे॥ श्री सिहाचल नयणे जोतां, पाप मेवासी धूज्यारे शत्रु ॥ ३ ॥ स्वयंमुख सुधर्मासुरपति
आगे॥ वा ॥ वीरजिणंद श्म बोलेरे ॥ त्रण जुवनमा तीरथ मोटुं, नहिं को शे१ श्रीमुख.
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