________________
(११ ) ॥ तृतीयं श्रीदेवजसाजिनस्तवनं ॥ ॥ महाविदेद देत्र सोदामj॥ए देशी॥ ॥ देवजसा दरिसण करो, विघटे मोह विनाव लाल रे॥प्रगटे शुभस्वन्नावता, आनंद लदरी दाव लालरे ॥ देव० ॥१॥ स्वामी वसो पुखरवरे, जंबू मरते दास लाल रे॥ क्षेत्र विनेद घणो पड्यो, केम पहोंचे उल्लास लालरे ॥ देव०॥॥ दोवत जो तनु पांखडी, तो आवत नाथ दजूर लालरे॥जो दोबत चित्त आंखडी, देखत नित्य प्रनु नूर लालरे॥ देव ॥३॥शासन नक्त जे सुरवरा, वीनवु शीश नमाय लालरे ॥ कृपा करो मुझ नपरे, तो जिनवंदन थाय लालरे ॥ देव०॥४॥ पूर्बु पूर्व विराधना, शी कीधी एणे जीव लालरे॥ अविरति मोद टली नदि, दीठे आगम दीव लाखरे ॥ देव ॥५॥ आतमतत्त्व
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org