________________
( 30 ) लोचादिक कष्ट कर्या नदि; संलीनता अंगोपांग संकोची राख्यां नदि; पच्चकाण नांग्या. पाटलो डगतो फेड्यो नदि; गंसदि पच्चका नांग्युं; उपवास, प्रांबिल, नीवी कीधे मुखे सचित्त पाणी घाल्युं, वमन हुआ. बाह्यतप विषइओ अनेरो० ॥ १८ ॥
अन्यंतर तप | पायवित्तं विप्रो० ॥ सुधुं प्रायश्चित्त पडिवज्युं नदि, आलोयण तणी सुधी टीप कीधी नदि; सुधो तप पहुंचाड्यो नदि; साते नेदे विनय साचव्यो नहि; दश नेदे वैयावच्च न कीधो, पंचविध सज्जाय न कीधो; कषाय वोसराव्यो नदि; दुःखक्ष्य कर्मय निमित्त काजसग्ग न कीधो; शुक्लध्यान, धर्मध्यान ध्यायां नदि; आर्त्त तथा रौड ध्यान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org