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नवे पास जिचंद ! ॥ ५ ॥ इति ॥ १७ ॥ गाथा[५] लघु [ १५६ ] गुरुवर्ण [२५] सर्ववर्ण [ १८५ ] १८ ॥ अथ जयवीयरायसुत्तं ॥ ॥ जय वीराय ! जगगुरु !, दोन ममं तुद पत्रावर्ज जयवं ! || जवनिवे मग्गासारिया इफल सिद्धी ॥ १ ॥ लोगविरुच्चार्ज, गुरुजणपूच्या परत्यकरणं च ॥ सदगुरुजोगो तar - सेवा नवमखंडा ॥ २ ॥ वारिक जइवि निया-एवंधणं वीयराय ! तुद समए ॥ तदवि मम हुआ सेवा, नवे नवे तुम्ह चलणाणं ॥ ३ ॥ डुक्खखर्ज कम्मखर्ज, समादिमरणं च बोदिलानो, संपऊन मद एयं, तुद नाह! पणामकरणेणं ॥४॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम्॥ प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ८ ॥ इति ॥१८॥ गाथा [५] पद [२०] संपदा [२०] गुरु [ १७ ] लघु [ १७२ ] सर्ववर्ण [ ११ ]
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Van
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