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एवंकारे श्रावकतणे धर्मे, श्री समकित मूल बारव्रत, एकसोचोवीश अतिचारमांदि नेरो जे कोइ अतिचार पक्ष दिवसमांहि सूक्ष्म, बादर, जाणतां अजाणतां हुई होय ते सवि हुं मने वचने कायाए करी तस्स मिचामि डुक्कडं. इति श्री श्रावक परकी, चोमासी, संवचरी अतिचार समाप्त ॥ ५३ ॥
॥ अथ प्रजातनां पञ्चरकाण ॥ ॥ प्रथम नमुक्कारसहिप्रमुठिस दिनुं ॥ ॥ उग्गए सूरे, नमुक्कारसदियं, मुट्ठिसहि पच्चकाइ ॥ चनविपि आहारं, असणं, पाणं, खाइमं, साइमं ॥ अन्नत्थयाजोगेणं, सदसागरेणं, मदत्तरागारेणं, सवसमादिवत्तियागारेणं, वो सिरइ ॥ ५४ ॥ ॥ बीजुं पोरिसि साढपोरिसिनुं ॥ ॥ उग्गए सूरे, नमुक्कारसहियं, पोरिसिं,
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